Friday, 11 March 2016

आम आदमी पार्टी का वर्गीय दृष्टिकोण

मंगत राम पासला

कांग्रेस पार्टी (यू.पी.ए.) और वर्तमान भाजपा (एन.डी.ए.) के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकारों की जनविरोधी नीतियों से आम जन, विशेषकर आर्थिक रूप से निचोड़े व लूटे जा रहे जनसमूह अत्यंत दुखी एवं परेशान हैं। जिस गति से महंगाई, बेकारी, गरीबी व भ्रष्टाचार बढ़ रहा है उस से पूरे देश के आम लोग त्राहि-त्राहि कर उठे हैं। उधर तेज ‘आर्थिक वृद्धि’ एवं ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ जैसे धोखेपूर्ण शब्द-आडंबरों द्वारा शासकों ने इतनी धुंद बिखेर दी है कि लोग पूर्णतय: ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। लोग इस मकडज़ाल से निकला चाहते हंै। किन्तु नग्न सत्य यह भी है कि श्रमिक आबादी की बहुत भारी संख्या अभी भी इस मंदहाली के मूल कारणों को समझने में पूरी तरह असमर्थ है। वह कभी इस मंदहाली का कारण अपनी बुरी किस्मत समझ कर बेबस हो बैठ जाते हैं, या फिर एक किस्म की शासक पार्टी का पल्लू छोड़ दूसरी का जा पकड़ते हैं। जबकि यह एक अटल सत्य है कि शासक वर्गों के सभी दल व उनके नेता एक जैसे ही वर्ग चरित्र के होने के कारण एक जैसे ही कार्यकलापों में लिप्त रहते हैं।
इन हालात में शासक वर्गों की सरकारों के विरुद्ध लोगों में पनपे रोष को भांपते हुए, संसार व देश में, कार्पोरेट घराने एवं उन के हितों के रक्षक राजनीतिक दल, सुचेत रूप में यह जुगाड़ लगाते हैं कि लोगों में व्याप्त रोष कहीं क्रान्तिकारी परिवर्तन की ओर न मुड़ जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शासक वर्ग हर संभव प्रयत्न करते हैं कि लोगों के गुस्से का प्रगटावा ऐसे तरीकों से हो कि लोग अपने मन की भड़ास तो निकाल लें किन्तु यथास्थिति में ही फंसे रह कर फडफ़ड़ाते रहें। इस कुकृत्य की सफलता हेतु सरकारी प्रचार माध्यम चौबीसों घंटे पूंजीवाद का महिमामंडन एवं समाजवाद की भौंडी निंदा में लगे रहते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति से अब तक हमारा देश पूंजीवादी विकास माडल पर चलते हुए विभिन्न पूंजीपति भूमिपति शासक वर्गीय दलों की जकड़ में रहा है। इस पूरे अर्से में वामपंथी दलों ने लोगों के हितों की रक्षा हेतु एवं शासकों की जनविरोधी नीतियों विरुद्ध अतुलनीय बलिदान देेते हए संघर्ष लडक़र शानदार प्राप्तियां भी की हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि भारतीय आबादी के बड़े भागों को वामपंथी दल पूंजीवाद राजसत्ता खिलाफ वैचारिक एवं राजनैतिक संग्रामों में लाने हेतु संगठित नहीं कर सके हैं। इसी अभाव में केंद्र एवं प्रांतों में नये-नये राजनैतिक दल जन्म लेते राजसत्ता पर काबिज होते रहे हैं क्योंकि ये सभी दल शासक वर्गों के प्रतिनिधि के कारण यथास्थिति बनाये रखते हैं या यूं कहें कि मूल क्रांन्तिकारी परिवर्तन से जनता के बड़े भागों को रोके रखते हैं। इसलिए शासक वर्ग इन से कतई नहीं घबराते एवं इन दलों के पनपने व विकास करने में सहायक ही बनते हैं। इस के विपरीत वामपंथी एवं कम्युनिस्ट ऐसी राजसत्ता की दिशा मेें आगे बढऩा चाहते हैं जहां पर किसी को पूर्णत: बराबर के अधिकार प्राप्त हों एवं किसी किस्म की लूट या शोषण न हो इसलिए कम्युनिस्टों का आगे बढऩा साधारणतय: आसान नहीं होता एवं शासक वर्ग भी उनको आगे बढऩे से रोकने हेतु संभव प्रयत्न करते हैं। पूंजीवादी दलों के नेतागण समान रूप से शोषक वर्गों के हित रक्षक एवं प्रतिनिधि होने के कारण बड़ी आसानी से दलबदली जैसे घृणित कार्य में लगे रहते हैं एवं ऐसा करते हुए उन्हें कभी कोई झिजक या ग्लानी भी महिसूस नहीं होती।
ठीक इसी पृष्ठभूमि में, एक ओर जहां स्थापित पूंजीवादी दलों द्वारा लागू की जा रही नीतियों, चहुं ओर फैला भ्रष्टाचार लोगों के हितों की पूर्णत: अनदेखी के चलते लोगों में पसरी उदासीनता एवं समाजवाद की स्थापना हेतु कार्यरत वाम दलों की लोगों को सत्ता परिवर्तन की दिशा में संगठित करने के ऐतिहासिक कार्य में नाकामी के चलते ‘‘आम आदमी पार्टी’’ यानि ‘आप’ का जन्म हुआ।
साम्राज्यवादी देशों एवं बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशनों की हर किस्म की सहायता से लैस देश विदेश में क्रियाशील गैर सरकारी संगठनों (हृत्रह्रज्ह्य) ने ‘आप’ के उभार में अभूतपूर्व योगदान दिया। बेकारी, भ्रष्टाचार, एवं शासक दलों के कुप्रबंधों से ग्रस्त मध्यवर्ग सोशल मीडिया एवं अन्य प्रचार साधनों से प्रभावित हो ‘आप’ की तरफ खिंचा चला गया व इन्हें ‘आप’ की मजबूती में अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के सपने सच होते नजर आने लगे। यह भी एक सत्य है कि ‘आप’ के नेतागण शुरू से ही सुचेत रूप में मौजूदा पूंजीवादी ढांचे एवं नवउदारवादी नीतियों का समर्थन करते रहे हैं। किन्तु अपने कार्यकलापों में वामपंथी लफ्फाजी का इस्तेमाल करते रहे हंैं। ‘आप’ के इस ढर्रे के काम-धाम से पढ़े लिखे लोगों को अपनी समस्याओं का वामपंथियों द्वारा सुझाया गया समाधान ‘आप’ के जरिये पूर्ण होता नजर आया। इसी वजह से बहुत से निराश एवं गैर सरगर्म वाम झुकाव वाले बुद्धिजीवियों, कलाकारों एवं मध्यम वर्गीय मानसिकता से परिपूर्ण लोगों ने आप के हक में जनमत जुटाने एवं मजबूत करने में भरपूर योगदान दिया।
सी.पी.एम. पंजाब व सी.पी.एम. हरियाणा ने ‘आप’ के इस उभार को सकारात्मक रूझान मानते हुए कांग्रेस एवं भाजपा की जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध लोगों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हेतु  सांझा संग्राम निर्मित करने के इरादे से ‘आप’ के नेताओं से संपर्क भी साथा था। हमें ‘आप’ के वर्ग चरित्र के बारे में कोई संदेह नहीं था, किन्तु ‘आप’ नेताओं ने जिस प्रभावी ढंग से श्रमिक वर्गों के लिये मुफ्त पानी, बिजली, ठेका आधारित कर्मियों को पक्का करने, एवं भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई हमने इसका वाजिब नोटिस लिया। दर हकीकत हम हर रोज इन्हीं मुद्दों पर पल-पल यथाशक्ति पहले से ही संघर्षरत हैं। हमारा उद्देश्य जन संग्रामों के पक्ष में बन रहे माहौल का भरपूर सहृदयता से इस्तेमाल करने का था।  किन्तु अपनी वर्गीय एवं व्यवहारिक दुर्बलताओं के चलते ‘आप’ नेताओं ने हमारी सकारात्मक पहल को पूर्ण रूप से नकार दिया। उन्होंने बहुत ही दंभी एवं अहंकारपूर्ण रवैये पर चलते हुए यह शर्त लगाई कि लोगों की भलाई का इच्छुक कोई भी दल या व्यक्ति बिना शर्त आप में विलय कर ले। बड़े ही अहंकारी ढंग से यह भी प्रचार किया गया कि ‘आप’ के अलावा कोई भी लोक-कल्याणकारी, जनवादी व ईमानदारी से परिपूर्ण नहीं है।
‘आप’ नेताओं ने आरंभ से ही वाम या दक्षिण पंथी होने की बात को सिरे से नकार दिया। इतना ही नहीं किसी के भी ईमानदाराना बलिदानों की हठपूर्ण अनदेखी करते हुए संघर्षों या चुनावों में किसी भी साथ चलने से मुकम्मल इनकार किया। ऐसा सीधी सीधे कारर्पोरेट घरानों के दबाव के तहत किया गया। किसी भी तरह की वैचारिक प्रतिबद्धता से इनकार करने का अर्थ ही शासकीय ढांचे का अंग होना है।
इसी दोषपूर्ण परिपाटी के चलते ‘आप’ ने सभी के हितों में कार्य करने का हास्यपूर्ण सिद्धांत पेश किया। किन्तु मुसीबतों से मुक्ति पाने की चाहत रखने वाले वंचितों के लिये यह परिभाषा बहुत दुखद है। इस पहुंच पर चलते हुए आप ने न केवल कार्पोरेट घरानों से मोटी रकमें चन्दे के रूप में वसूल कीं बल्कि लोक सभा व अन्य चुनावों में उम्मीदवार बनाते वक्त नवउदारवादी नीतियों के मुखर समर्थकों को भी टिकटें दीं। लोक सभा चुनावों में पंजाब की चार सीटों पर जीत हासिल करने के अलावा ‘आप’ को कभी भी कोई सफलता नहीं मिली। ‘आप’ नेतागण पूंजीवादी वर्गों के दूसरे हिस्सों से भिन्न-भिन्न लाभ भी लेते रहे। इसके पश्चात दिल्ली विधान सभा चुनाव में अरबपतियों एवं झुग्गी झोंपडिय़ों में गुजर बसर करने वालों  के अधिकारों की एक समान रक्षा करने, भ्रष्टाचार समाप्त करने, बेघरों को घर, पानी एवं बिजली उपलब्ध करवाने, कर्मचारियों को पक्का करने, औरतों की सर्वत्र-संपूर्ण सुरक्षा करने, बसों में, सी.टी.वी. कैमरे लगवाने आदि आदि जैसे समस्त भरमाए जाने वाले वायदे किये जो गाहे बगाहे अन्य पूंजीवाद, जागीरदार दलों के सभी नेता लोगों से हमेशा करते रहते हैं। इस के साथ ही ‘आप’ नेताओं का बड़ा भाग राजनैतिक क्षेत्र में पहली बार दृष्टिगोचर होने का लाभ लेते हुए, इसलिये ‘आप’ कुन्बा कम से कम वेतन लेते हुए ईमानदारी से जन सेवा का वायदा करके भी लोगों को लुभाने में सफल रहा। चुनाव जीतने के बाद विधायकों के वेतन एवं भत्तों में पर्वतीय आकार की वृद्धि (लगभग 400 प्रतिशत) करने मात्र से ही ‘आप’ की कथना-करनी के फर्क के बारे में सभी भ्रम दूर हो गये हैं। लोग समझने लगे हैं कि सादगी के बारे में बढ़-चढ़ कर बोलना एवं उस पर हूबहू अमल करना दोनों अलग अलग चीजें हैं।
अरविंद केजरीवाल व दूसरे ‘आप’ नेताओं द्वारा प्रमुख ओद्यौगिक संगठनों की बैठकों में बोलते हुए यह कहना कि ‘आप’ पूंजीवादी प्रबंध की पूर्ण समर्थक होने के नाते संसारीकरण,  उदारीकरण, निजीकरण की उन नीतियों को पूर्णत: समर्थन देगी जिनके चलते बिजली, पानी, रेलवे, यातायात, शिक्षा, सेवाओं का निजीकरण करते हुए उन्हें देशी-विदेशी धन कुबेरों के हाथों में सौंपा जा रहा है। उन्होंने यहां तक आश्वासन दिया कि उनके वाम शैली के शब्द आडंबरों को गंभीरता से न लिया जाए।
कुल मिला कर बात यह है कि पढ़े-लिखे नौजवान युवक-युवतियों ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में ‘आप’ का साथ दिया। कांग्रेस पार्टी का जनाधार भी भाजपा को हराने के लिए एवं अपने उज्जवल भविष्य की कामना में केजरीवाल की गाड़ी चढ़ बैठा। चुनावों में प्रचार के लिये मोटी रकमें खर्च करने के मामले मेें ‘आप’, कांग्रेस एवं भाजपा में से कोई भी कमतर नहीं रहा। अंतत: दिल्ली विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को अभूतपूर्व सफलता मिली।
किन्तु देखने-समझने का विषय यह है कि एक साल से अधिक समय बीतने के पश्चात भी लोगों को मुफ्त बिजली पानी देने, अनाधिकृत कालोनियां नियमित किये जाने और विभागीय अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई किये जाने आदि जैसे गरीब जनता को बड़ी राहत प्रदान करने वाले वादों को पूरा करने की दिशा में रत्ती भर भी प्रगति नहीं हुई। हालाकि हम यह बात बेझिझक मानने को तैयार हैं कि केंद्र की भाजपा नीति मोदी सरकार दिल्ली की ‘आप’ सरकार के कामकाज में दुभार्वना से बेवजह अडंग़े लगा रही है। किन्तु यह भी नग्न सत्य है कि केजरीवाल सरकार अपनी असफलताओं और अक्षमताओं को छिपाने के लिये केंद्र से टकराव को बेवजह तूल दे रही है और लोगों का ध्यान हटाने के लिये टाला जा सकने वाला टकराव भी जानबूझ कर खड़ा कर रही है। कटोचने वाली बात यह है कि दूसरे दलों को भ्रष्ट एवं अलोकतांत्रिक कहने वाले अरविंद केजरीवाल ने केवल एक ही बार ‘अपनी’ ‘आप’ की उच्चस्तीय समिति की बैठक बुलाई है; उस में उन्होंने स्वयं ही पूरा समय भाषण कर दूसरों को नसीहतें दीं तथा अंत में विरोधी राय रखने वालों को केवल ल_मारों की सहायता से ‘भीतरी लोकतंत्र’ का पाठ ही नहीं पढ़ाया गया बल्कि सदा-सदा के लिए बाहर का रास्ता भी दिया गया। मूल प्रश्न यह है कि पूंजीवादी ढांचा, जो खुद-ब-खुद भ्रष्टाचार एवं लूट पर आधारित है, की हिमायती कोई भी पार्टी, लोगों की मूलभूत समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती। यहां यह समझना अति आवश्यक है कि पूंजीवाद एवं समाजवाद एक दूसरे विरोधी सत्ता प्रबंध है। पूंजीवाद अरबों लोगों की लूट करते हुए मु_ी भर को धनवान बनाता है। वहीं समाजवाद पूरी पैदावार को पूरे समाज की पैदावार मानते हुए इसका समान वितरण करने को प्राथमिकता देता है। ‘आप’ की सारी सीमाएं यहीं निहित हैं। लोगों को भ्रमित करने हेतु ‘आप’ ने तो विकसित पूंजीवादी देशों जैसे अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस आदि के भागों के उच्च जीवन स्तर की उदाहरणें देते हैं। किन्तु ये महाशय यह भूल जाते हैं कि इन अमीर देशों के शासक वर्ग सभी गरीब देशों के लोगों की खून पसीने की गाढ़ी कमाई एवं अति कीमती कुदरती संसाधनों की लूट करके अपने देश की आबादी को शांत रखने का इंतजाम करते हैं। हालाकि अब लूटे जा रहे देशों के लोग भी अमीर या साम्राज्यवादी देशों की इस लूट के विरूद्ध उठ खड़े हो रहे हैं। जिस दिन यह (अमीर देशों द्वारा गरीब देशों की) लूट बंद हो गई उस दिन वहां के शासक अपने देशों की प्रजा का अपने मुनाफे के लिये खून चूसने वाले पिशाच बन जाएंगे। अंतत हम साफ साफ यह कहना चाहते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था को न केवल कायम रखते हुए बल्कि और सुदृढ़ करते हुए लोगों की मूलभूत समस्याओं का हल करने का दावा केजरीवाल जैसे दंभी ही कर सकते हैं।
सी.पी.एम.पंजाब द्वारा ‘आप’ के गठन के समय इसे शुभ संकेत कहना किसी अंतर्मुखी सोच या भ्रम की उपज नहीं था। अपितु यह कांग्रेस-भाजपा या अन्य पूंजीवादी दलों की नीतियों से उपजे वाजिब जनरोष को प्रगतिशील एवं क्रांतिकारी धारा में परिवर्तित करने की ठीक नीयत पर आधारित था। अब जब अपने शासन-प्रशासन चलाने के तौर तरीकों एवं अलोकतांत्रिक तौर-तरीकों से ‘आप’ ने अपना असली रूप स्वंय ही प्रस्तुत कर दिया है तो हम अन्य पूंजीवादी दलों की तरह ‘आप’ की कार्यशैली एवं वर्गचरित्र को भी आवाम के सामने रखने के आवश्यक कार्य को पूरी दृढ़ता से निभाएंगे।
हम ‘आप’ की ओर आशा की दृष्टि से देखने वाले लोगों के ध्यान में एक तथ्य अवश्य लाना चाहेंगे। दूसरी पूंजीपति पार्टियों में रहकर अनेक निर्वाचित या मनोनीत पदों पर रहते हुए लोगों की बेतहाशा लूट करने वाले राजनैतिक हैवान, जिनमेें से कुछ ने तो पंजाब में चले काले दौर में पृथकतावादी आंदोलन में भी चांदी कूटी थी आज ‘आप’ में शामिल होकर कैसे रातो-रात दूध के धुले स्वच्छ जन सेवक बन जाएंगे? इस तरह भूतपूर्व पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने जीवन भर काली कमाईयां करते हुए अपने पूंजी साम्राज्य खड़े किये हैं कैसे अचानक लोगों के लिये कामधेनु बन जाएंगे। वैसे कई लोगों के माथे पर बल पड़ भी रहे हैं यह सब देखकर और यह देखकर कि कैसे ‘आप’ की सरकार ने अपने विधायकों-मंत्रियों के तनख्वाहों/भत्तों में विशाल वृद्धि की है।
देश का पूंजीवादी वर्ग हमेशा यह चाहेगा कि उसकी हित रक्षक कांग्रेस-भाजपा या अन्य दलों से नाराज लोग किसी प्रगतिशील परिवर्तनशील धारा या दल के साथ न जुड़ें,  अपितु भ्रमित होकर अपने द्वारा निर्मित किसी ‘आप’ जैसे नये भ्रम जाल में फंसे रहें। प्रांत के दर्जे से भी वंचित दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों को अन्य बड़े दलों के बराबर ही टी.वी. चैनलों व अन्य प्रचार माध्यमों द्वारा समय दिया जाना और ‘आप’ से राष्ट्रीय पैमाने पर कहीं बड़े आकार वाली वाम की धारा को पूर्णतया नजरअंंदाज करना शासन वर्गों की इस नीति का जीता जागता प्रमाण है।
हम देश के समस्त जनसमूहों, विशेषत: पढ़े लिखे नौजवानों, राजनैतिक रूप से सचेत जनसमूहों को यह जरूर कहना चाहते हैं कि अब इस बहस पर विराम लगाईये कि केंद्र या प्रांतों में किस दल की सरकार बनेगी! अपितु अब चर्चा का केंद्र स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कायम हुई एवं अब तक चली आ रही पूंजीवादी व्यवस्था के गुण दोष होने चाहिएं।
साथ ही अब यह चर्चा करने का दौर भी आ गया है कि समाज में व्याप्त बेकारी, बढ़ रही महंगाई, भ्रष्टाचार, लूटमार, असुरक्षा, मजदूरों एवं किसानों की दुर्दशा, सामाजिक उत्पीडऩ, नशों की भरमार आदि के जिम्मेदार इस ढांचे को बदलकर एक ऐसा समाज निर्मित किया जाए जिसमें अपने उत्पादन के सभी उत्पादनकर्ता यानि स्वयं लोग ही स्वामी हों न कि मु_ी भर शोषक।
सौ बातों की एक बात। सवाल व्यक्ति या दल बदलने का नहीं मूल प्रश्न व्यवस्था बदलने का  है और पाठकगण ये कार्य ‘आप’ जैसे दल कदापि नहीं कर सकते। यह कार्य केवल और केवल वाम-जनतांत्रिक शक्तियों के योग्य ही है। और इसे करने के लिये तीखी वर्गीय सूझ, निष्ठा, त्याग समय की सबसे बड़ी जरूरत है। समूचा वाम आंदोलन इस राह पर चलते हुए इस दिशा में अग्रसर है। हम अति नम्रता से कहना चाहेंगे कि ‘आप’ का समूचा विश्लेषण उपरोक्त दृष्टिकोण से किये बिना लोगों के भ्रम और मुसीबतें दोनों सुरसा की भांति उग्र होते जाएंगे।

ਉਘੇ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਚਿੰਤਕ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਰਣਧੀਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ

''ਆਪਣੇ ਆਪ ਵਿਚ ਇਕ ਸੰਸਥਾ'' ਵਜੋਂ ਜਾਣੇ ਅਤੇ ਸਤਿਕਾਰੇ ਜਾਂਦੇ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਰਣਧੀਰ ਸਿੰਘ ਬੀਤੇ ਦਿਨੀਂ 95 ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਘਟਨਾਵਾਂ ਭਰਪੂਰ ਤੇ ਸ਼ਾਨਾਮੱਤੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਊ ਕੇ ਸਾਥੋਂ ਸਦਾ ਲਈ ਵਿੱਛੜ ਗਏ ਹਨ। 1922 ਵਿਚ ਇਕ ਮੱਧ ਵਰਗੀ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਜਨਮੇਂ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਕਾਇਆ ਪਲਟ ਦੇਣ ਵਾਲੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੌਰਾਨ ਹਾਸਲ ਕੀਤੇ ਅਨੁਭਵਾਂ ਦਾ ਬੜਾ ਸਜੀਵ ਚਿਤਰਣ ਮਾਰਕਸੀ ਫਲਸਫੇ ਦੇ ਚੌਖਟੇ 'ਚ ਕਰਦਿਆਂ ਵੱਡਮੁੱਲੀਆਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ।
ਸ਼ਹੀਦ-ਇ-ਆਜ਼ਮ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ  ਦੀ ਸ਼ਹਾਦਤ, ਮਨੁੱਖ ਮਾਰੂ ਦੂਜੀ ਸੰਸਾਰ ਜੰਗ, ਜੁਗ ਪਲਟਾਊ ਚੀਨੀ ਇਨਕਲਾਬ, ਵੀਅਤਨਾਮ ਦੀ ਅਜਾਦੀ ਦਾ ਸੰਗਰਾਮ ਅਤੇ ਅਮਰੀਕਨ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋਕ ਯੁੱਧ, ਭਾਰਤ ਦੀ 1947 ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਬਸਤੀਵਾਦੀ ਹਾਕਮਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਰਾਜਸੀ ਜਾਂ ਬਕੌਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧੂਰੀ ਆਜ਼ਾਦੀ, ਤੇਲੰਗਾਨਾ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਨਿਜ਼ਾਮ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ਮੀਨੀ ਸੰਗਰਾਮ ਅਤੇ ਅਜਿਹੇ ਹੋਰ ਅਨੇਕਾਂ ਵਰਤਾਰੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਨ ਤੋਂ ਘੋਖਿਆ ਅਤੇ ਚੰਗੇਰਾ ਸਮਾਜ ਸਿਰਜਣ ਦੇ ਪੱਖ ਤੋਂ, ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ।
ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮਾਂ ਇਕ ਕੁਲਵਕਤੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਕਾਰਕੁੰਨ ਵਜੋਂ ਸਰਗਰਮੀ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਪਿਛੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਧਿਆਪਨ ਕਿੱਤਾ ਅਪਣਾਇਆ। ਅਨੇਕਾਂ ਮਿਸਾਲਾਂ ਹਨ ਕਿ ਕੁਲਵਕਤੀ ਜੀਵਨ ਤਿਆਗ ਕੇ ਕਾਰੋਬਾਰਾਂ ਦੇ ਝੰਜਟਾਂ 'ਚ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਨਿਰਾਸ਼ ਜਾਂ ਕਈ ਵਾਰ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਵਿਰੋਧੀ ਹੋਣ ਤੱਕ ਜਾ ਪੁੱਜਦੇ ਹਨ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਰਗਰਮੀ ਦੋਹਾਂ ਹਾਲਤਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਅਗਲੇਰੀਆਂ ਪੀੜ੍ਹੀਆਂ ਦੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਕਾਰਕੁੰਨਾਂ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਣਾਮਈ ਹੈ।
ਨਵੇਂ ਦੋਸਤਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਗੱਲ ਅਸੰਭਵ ਵਰਗੀ ਲੱਗ ਸਕਦੀ ਹੈ, ਪਰ ਹੈ ਸੱਚ! ਦਿੱਲੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ 'ਚ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਇਹ ਆਮ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹਨ ਕਿ ਹੋਰ ਕਲਾਸਾਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਲਾਸਰੂਮਜ਼ ਦੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਨਾਲ ਲੱਗ ਕੇ ਖਲੋਂਦੇ ਸਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਲੈਕਚਰ ਸੁਣਨ ਲਈ।
ਨਵੀਂ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਕਾਰਕੁੰਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦਿੱਕਤਾਂ, ਖਾਸਕਰ ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਚੌਖਟੇ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ, ਨੂੰ ਹਲੀਮੀ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਸਮਾਂ ਦੇ ਕੇ ਸੁਣਨਾ ਅਤੇ ਫਿਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੱਲ ਲਈ ਤਸੱਲੀ ਭਰਪੂਰ ਯਤਨ ਕਰਨਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਖਿੱਚ ਪਾਊ ਸ਼ਖਸ਼ੀਅਤ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਅਤੀ ਰੌਸ਼ਨ ਪਹਿਲੂ ਹੈ ਜੋ ਭਵਿੱਖ ਦੇ ਕਾਰਕੁੰਨਾਂ ਵਾਸਤੇ ਬੇਹੱਦ ਸਹਾਈ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਕੁਲਵਕਤੀ ਹੁੰਦਿਆਂ ਜੇਲ੍ਹ, ਜੂਹਬੰਦੀ ਅਤੇ ਨਜ਼ਰਬੰਦੀ ਹੰਢਾਈ। ਪਿਛੋਂ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਅਧਿਆਪਕ ਵਜੋਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਹਰ ਪਲ ਜਨਵਾਦੀ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਅੰਦੋਲਨ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਰਹੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਫਲਸਫੇ ਦੇ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਾਲਾਤ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਦੀਆਂ ਦਰਜਨਾਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਲਿਖ ਕੇ ਸਮਾਜ ਬਦਲਣ ਦੀ ਚਲ ਰਹੀ ਜੰਗ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਇਆ, ਨਾਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ 'ਸਾਡਾ ਯੁੱਗ' (ਸਾਂਝੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਬੁਲਾਰਾ) ਦੀ ਸੰਪਾਦਨਾ ਵੀ ਕੀਤੀ। ਅਜੋਕੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਕਾਰਕੁੰਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਡੀ ਜਾਚੇ ਬਾਕੀ ਸਾਰੇ ਰੌਸ਼ਨ ਪਹਿਲੂਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਲੈਣ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਜਿਸ ਗੱਲ ਵੱਲ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਧਿਆਨ ਕੇਂਦਰਤ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ, ਉਹ ਹੈ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਫਲਸਫੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤੀਬੱਧਤਾ ਅਤੇ ਫਲਸਫੇ ਨੂੰ ਅਗਾਂਹ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਲਈ ਜੀਵਨ ਭਰ ਘਾਲੀ ਘਾਲਣਾ। ਜੇ ਇਕ ਲਾਈਨ 'ਚ ਕੁੱਝ ਕਹਿਣਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਇਹੀ ਕਹਾਂਗੇ ਕਿ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਫਲਸਫੇ ਨੂੰ ਇਕ ਟੈਗ ਜਾਂ ਫੈਸ਼ਨ ਵਜੋਂ ਇਸਤੇਮਾਲ ਨਾ ਕਰਦਿਆਂ, ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਫਲਸਫੇ ਲਈ ਹੀ ਅਰਪਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ।
ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਘਾਲਣਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਿਰੜ ਨੂੰ ਸਲਾਮ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਦਰਸ਼ਾਂ 'ਤੇ ਤੁਰਨ ਦਾ ਪੂਰਾ ਯਤਨ ਕਰਨ ਦਾ ਪ੍ਰਣ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਮਹਾਨ ਰਹਿਬਰ ਨੂੰ ਇਨਕਲਾਬੀ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ ਭੇਂਟ ਕਰਦੇ ਹਾਂ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਲੋਂ ਪਛਾਣਵਾਦ ਬਾਰੇ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਲੇਖ ਪਾਠਕਾਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ।            
-ਸੰਪਾਦਕੀ ਮੰਡਲ

On ‘Identitarianism’ 
Problems arising out of India’s Characterstic diversity of plurality need not detain us here. But our presumed concern with revolutionary politics persuades me to digress a little beyond what I have already stated, and make one implication of my argument more explicit. This is related to two interesting shifts of thought and action that occurred on the right and the left of the Indian political spectrum in the early eighties as a result of the continuing crisis in Indian politics in recent years. That the shifts have almost ended up as two escape routes does not take away from their significance, though it is only the issues raised by the shift on the left which concern us here.
On the right, among the liberals and not a few ‘Gandhians’, there was widespread disenchantment with the working of conventional party-besed bourgeois politics, presided over, most of the time, by Congress (I), the major political formation of the Indian ruling classes. Many felt betrayed and were indeed heart broken at the way the Indian state had let them down - it had simply failed to deliver ‘as an instrument of social transformation and equity’, as, they believed, the democratic state in the West had done. Quite a few of them, therefore, sought salvation elsewhere and found it, even if somewhat ambiguously, in the alternative of then emerging ‘grass roots movements’, in the work of ‘new instrumentalities’ like voluntary activism or what came to be described as ‘non-party political formations’. This, however, did not work out as expected,  if for no other reason than that it was too narrow and fractured a base, ideologically as well as organisationally, to provide for any kind of alternative politics-liberal, left or any other. This is not to deny the significance of the emergence of these ‘formations’ or the commendable work done by them in the cause of the people. One even hopes that the best of them will yet find their way, sooner rather than later, to a radical, if not revolutionary, practice of politics. But for the present their limitations of theory and practice are only too obvious.
I cannot pursue this subject here, except to report that, while these ‘formations’ continue to struggle to realise their possibilities, and interest in the ‘escape route’ persists, our liberals and ‘Gandhians’ are back with the Indian state, which they had in fact never really abandoned-hopefully content, for the time being at least, with the alternative politics of the National Front, another political formation of the Indian ruling classes.
It is the parallel shift on the left, however, which is of immediate interest to us. The disenchantment here was with the outcome of conventional class-politics as practised by the established communist parties, which had long lost its way in the mire of ‘economism’ and much of the working class itself to the ruling class politics. Quite a few of the radicals too, therefore, sought salvation elsewhere-and found it in the emerging, highly visible struggles of the long oppressed and more disadvantaged sections of the Indian people, ‘identities’ as they came to be called : minor nationalities or ethnic groups, religious minorities, dalits, tribals, women, and so on, all impelled to action by an iniquitous economic development, all struggling against an oppresive, homogenizing Indian state and India’s equally oppressive social structures, and all of them seeking their rights and a place of dignity and honour among the Indian people. This shift of thought and action to the terrain of the struggles of these ‘identities’ too has not fared well-it can hardly claim to have significantly advanced the cause of left politics or revolutionary change in India. Nor is it likely to do so in future. In view of the limited and uncritical manner in which those involved in this shift have thought and acted in the matter of these identities and their struggles, it is only turning out to be an escape route on the left.
There is no doubt about the reality of injustice or grievances here, often long denied or neglected for being rooted deep in history; the groups or identities concerned are in fact victims of double oppression, and worse as in case of women-the class oppression which affects the exploited everywhere and the  oppressions specific to each group or identity. These struggles are therefore most justified, they are a part of Indian peoples’ struggle for a more just and humane social order. But in endorsing these struggles, sharing in them or leading them, there is no justification for a simplistic, idealising or myth-making attitude towards these groups or identities, an attitude not uncommon with the left when speaking of ‘the people’ or ‘the oppressed’ (to say nothing of ‘the proletariat’ in another context). A form of community, historically constituted and evolving, an identity as such is not something sacred, a value in itself-its real-life situation may have all kinds of negative, ugly features within that limit or diminish human beings, struggle against which has to be a part of the larger struggle without.... of decisive importance is the need to articulate this larger struggle with class struggle, to conduct it in full recognition of the economic structural contradictions of Indian society. For these contrdictions even as they determine the basic class oppressions in our society also condition, most decisively, the working out of the identity-specific oppressions; and their resolution is a necessary, though by no means sufficient, condition for the elimination of these oppressions also. Such a resolution, however, calls for an united revolutionary movement of all oppressed people, which is not possible without the requisite revolutionary consciousness among them. It should be obvious that it is impossible to develop such a consciousness without a prior and persistent critique of ‘the identity-consciousness’ which is, in the very nature of things, a much corrupted consciousness.
All this points to the implication I am wanting to make explicit, namely, the imperative need to infuse the aforementioned struggles in every way and everywhere with socialist concerns and articulate them, in theory as well as practice, with revolutionary class struggle, with a class based people’s politics, Such has always been the principle in Marxism for the conduct of such or similar struggles. It remains very much valid even today.
It needs to be emphasised that many things which the old communists did not do, or did badly, or have stopped doing, have still to be done by those who, coming after them, would develoop a people’s movement for a revolutionary break in our society. And class politics is one of those things, asking for a genuine Marxist practice. Unless this is done, the ongoing struggles of these groups or identities are likely to divide the oppressed even more, distort or corrupt their consciousness still further, and end up serving the interests of not the common people but the exploiting and other elite elements within, who are only too eager to find a place for themselves in India’s underdeveloped capitalism and over-developed bourgeois politics.

ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਪਿੜ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਮਾਰਚ 2016)

ਰਵੀ ਕੰਵਰ 
ਤੁਰਕੀ ਵਲੋਂ ਕੁਰਦਾਂ ਉਪਰ ਘਿਨਾਉਣੇ ਹਮਲੇਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼, ਇਸ ਸਮੇਂ, ਮੱਧ-ਏਸ਼ੀਆ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਪੈਰ ਪਸਾਰ ਚੁੱਕੀ ਇਸਲਾਮਿਕ ਬੁਨਿਆਦਪ੍ਰਸਤ ਅੱਤਵਾਦੀ ਜਥੇਬੰਦੀ, ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕਜੁੱਟ ਹਨ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਸ ਆਮ ਸਹਿਮਤੀ ਦੇ ਉਲਟ, ਅਮਰੀਕੀ ਸਾਮਰਾਜ ਅਤੇ ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਨੇੜਲਾ ਸਹਿਯੋਗੀ ਦੇਸ਼-ਤੁਰਕੀ, ਇਸੇ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਨੂੰ ਭਾਂਜ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਕੁਰਦਾਂ ਉਤੇ ਚੁਪਾਸੜ ਹਮਲੇ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਤਰੀ ਸੀਰੀਆ ਦੇ ਉਹ ਖੇਤਰ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਉਤੇ ਕੁਰਦਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੈ, ਉਤੇ ਉਹ ਵਹਿਸ਼ੀ ਹਵਾਈ ਹਮਲੇ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਸੀਰੀਆ ਦੇ ਉਤਰੀ ਖੇਤਰ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲਤਾ ਵਾਲੇ ਹਨ, ਉਤੇ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਯੂਨੀਅਨ ਪਾਰਟੀ (ਵਾਈ.ਪੀ.ਡੀ.) ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਕੁਰਦਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ। ਜਦੋਂ ਸੀਰੀਆ ਵਿਚ ਅਸਦ ਹਕੂਮਤ ਵਿਰੁੱਧ ਲੋਕ ਬਗਾਵਤ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਸ ਵੇਲੇ ਵਾਈ.ਪੀ.ਡੀ. ਦੀ ਅਗਵਾਈ 'ਚ ਚੱਲੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਅਸਦ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਖਿੱਤੇ ਨੂੰ ਛੱਡਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਕੁਰਦਾਂ ਵਲੋਂ ਇੱਥੇ ਰੋਜਾਵਾ ਨਾਂਅ ਦਾ ਇਕ ਖੁਦਮੁਖਤਾਰ ਖਿੱਤਾ ਸਥਾਪਤ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਹ ਖਿੱਤਾ ਹੀ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੀ. ਅਤੇ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੇ. ਗੁਰੀਲਿਆਂ ਨੂੰ ਲਾਮਬੰਦ ਕਰਨ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਬਣਿਆ ਸੀ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਤੋਂ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲੱਗਦੇ ਕੋਬਾਨੀ ਸੂਬੇ ਨੂੰ ਬੜੀ ਹੀ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਲੜੀ ਜੰਗ ਵਿਚ ਖੋਹ ਲਿਆ ਸੀ। ਇਹ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਹਾਰ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਚ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੀ. ਦੀਆਂ ਨੌਜਵਾਨ ਗੁਰੀਲਾ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਸੀ; ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਸਮੁੱਚੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ ਸ਼ਲਾਘਾ ਦਾ ਪਾਤਰ ਬਣੀਆਂ ਸਨ। ਅੱਜ ਸੀਰੀਆਈ ਕੁਰਦਾਂ ਦੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਾਲੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤਰਾਂ ਉਤੇ ਹੀ ਅਮਰੀਕੀ ਸਾਮਰਾਜ ਤੇ ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦਾ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਵਿਰੁੱਧ ਜੰਗ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਨੇੜਲਾ ਸਹਿਯੋਗੀ ਕਹਿਣ ਵਾਲਾ ਅਤੇ ਇਸ ਨਾਂਅ ਉਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਕਰੋੜਾਂ ਡਾਲਰ ਮਦਦ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਦੇਸ਼, ਤੁਰਕੀ ਹਵਾਈ ਹਮਲੇ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਤੁਰਕੀ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉਤਰੀ-ਪੂਰਬੀ ਖੇਤਰਾਂ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲਤਾ ਵਾਲੇ ਹਨ, ਵਿਚ ਵੀ ਕੁਰਦਾਂ ਉਤੇ ਵਹਿਸ਼ੀ ਹਮਲੇ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕੁਰਦ ਸ਼ਹਿਰੀਆਂ ਉਤੇ ਫੌਜ ਵਲੋਂ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। 7 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਮੀਡੀਆ ਟੀ.ਆਰ.ਟੀ. ਨੇ ਦਾਅਵਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਸਿਜ਼ਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਫੌਜ ਨੇ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦੇ ਹੋਏ 12 ਦਿਨਾਂ ਤੱਕ ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ (ਭਾਵ ਕੁਰਦਾਂ) ਨਾਲ ਚੱਲੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਕ ਤਹਿਖਾਨੇ 'ਚੋਂ 60 ''ਅੱਤਵਾਦੀਆਂ'' ਦੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਬਰਾਮਦ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ। ਫੌਰੀ ਬਾਅਦ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਦਾਵੁਤੋਗਲੂ ਨੇ ਇਸ ਰਿਪੋਰਟ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਮਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ 10 ਦੱਸੀ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਪਾਰਟੀ ਐਚ.ਡੀ.ਪੀ. ਦੇ ਕੋ-ਚੇਅਰਮੈਨ ਸੇਲਾਹਤਿੱਨ ਡੇਮਿਰਤਾਸ ਨੇ ਇਸ ਬਾਰੇ ਇੰਕਸ਼ਾਫ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ-''ਲਗਭਗ 20 ਦਿਨਾਂ ਤੱਕ ਸਿਜ਼ਰੇ ਸ਼ਹਿਰ ਸਰਕਾਰੀ ਫੌਜਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਹੇਠ ਰਿਹਾ। ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੂਚਨਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਝੂਠੀ ਹੈ। ਸਥਿਤੀ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ, ਉਸ ਗਲੀ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਬਿਲਡਿੰਗਾਂ ਵਿਚ 70-90 ਲੋਕ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁੱਝ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਨ, ਜਿਹੜੇ ਉਥੇ ਇਕਜੁਟਤਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਗਏ ਸਨ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਸਥਾਨਕ ਲੋਕ ਸਨ। ਫੌਜ ਦੀ ਸਪੈਸ਼ਲ ਆਪਰੇਸ਼ਨ ਫੋਰਸ ਵਲੋਂ ਨਿਰੰਤਰ 20 ਦਿਨਾਂ ਤਕ 24 ਘੰਟੇ ਅਤੇ ਸੱਤੇ ਦਿਨ ਟੈਂਕਾਂ ਅਤੇ ਤੋਪਾਂ ਨਾਲ ਗੋਲਾਬਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਕੋਈ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਿਲਡਿੰਗਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕਈ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਫੋਨ ਕਾਲਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇੱਥੇ ਜਖਮੀ ਲੋਕ ਹਨ, ਅਸੀਂ ਇੱਥੋਂ ਨਿਕਲਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਅਸੀਂ ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਖਿੜਕੀ ਜਾਂ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਨੇੜੇ ਆਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਦੇ ਸਾਂ ਫੌਜ ਗੋਲੇ ਵਰ੍ਹਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਸੀ।
ਡੇਮਿਰਤਾਸ ਨੇ ਅੱਗੇ ਕਿਹਾ ''ਸਾਡੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਰਾਏ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਲੋਕ ਕਤਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ। ਸਰਕਾਰ ਇਸ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਸਪੱਸ਼ਟੀਕਰਨ ਨਹੀਂ ਦੇ ਰਹੀ। ਸਾਡੇ ਕੋਲ 32 ਮਿੰਟ ਦੀ ਵੀਡਿਓ ਰਿਕਾਰਡਿੰਗ ਹੈ। ਇਹ ਇਕ ਕਤਲੇਆਮ ਹੈ।''
ਤੁਰਕੀ ਦੀ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਬੰਦ ਕੁਰਦ ਆਗੂ ਅਬਦੁਲਾ ਉਕਲੇਨ ਨਾਲ ਚਲ ਰਹੀ ਅਮਨ ਗਲਬਾਤ 2014 ਵਿਚ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਬੰਦ ਕਰ ਦੇਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਤੋਂ ਹੀ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਕੁਰਦਾਂ ਅਤੇ ਕੁਰਦ ਖੇਤਰਾਂ ਉਤੇ ਹਮਲੇ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ। ਜੂਨ 2015 ਵਿਚ ਹੋਈਆਂ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਬਾਅਦ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਇਰਦੋਗਨ ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਪਾਰਟੀ ਏ.ਕੇ.ਪੀ. ਕੁਰਦਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਬੁਖਲਾਹਟ ਵਿਚ ਆ ਗਈ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਇਰਦੋਗਨ ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਦੋ ਤਿਹਾਈ ਵੋਟਾਂ ਹਾਸਲ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਤਰਜ ਦੀ ਹਕੂਮਤ ਕਾਇਮ ਕਰਨਾ ਸੀ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹ  ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਆਰਥਕ ਨੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਇਸਲਾਮ ਪੱਖੀ ਆਪਣਾ ਸਮਾਜਕ ਏਜੰਡਾ ਲਾਗੂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਏ.ਕੇ.ਪੀ. ਸਪੱਸ਼ਟ ਬਹੁਮਤ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕੀ ਅਤੇ ਕੁਰਦ ਪੱਖੀ ਖੱਬੀ ਪਾਰਟੀ ਐਚ.ਡੀ.ਪੀ. ਨੇ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ 13% ਵੋਟਾਂ ਲੈ ਕੇ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਥਾਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਬਣਾਈ ਬਲਕਿ 80 ਸੀਟਾਂ ਵੀ ਹਾਸਲ ਕਰ ਲਈਆਂ ਸਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਰਦੋਗਨ ਆਪਣਾ ਲੋਕ ਦੋਖੀ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਪੂਰਨ ਕਰਨ ਵਿਚ ਨਾਕਾਮ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਜਿਸ ਲਈ ਉਹ ਐਚ.ਡੀ.ਪੀ. ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਦੋਸ਼ੀ ਮੰਨਦਾ ਹੈ। ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਸਰਕਾਰ ਨਾ ਬਣਾਅ ਸਕਣ ਕਰਕੇ ਨਵੰਬਰ 2015 ਵਿਚ ਮੁੜ ਹੋਈਆਂ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਇਰਦੋਗਨ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਸੱਤਾਸੀਨ ਤਾਂ ਹੋਈ ਪਰ ਦੋ ਤਿਹਾਈ ਬਹੁਮਤ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਅਸਫਲ ਰਹੀ ਅਤੇ ਐਚ.ਡੀ.ਪੀ. ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਤਾਂ ਗਈ ਪਰ ਫੇਰ ਵੀ 10.7% ਵੋਟਾਂ ਹਾਸਲ ਕਰਕੇ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਜਗ੍ਹਾ ਬਨਾਉਣ ਵਿਚ ਸਫਲ ਰਹੀ।
ਨਵੰਬਰ 2015 ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲ ਇਲਾਕਿਆਂ ਉਤੇ ਦਮਨਚੱਕਰ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਤੁਰਕੀ ਦੀ ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਬਾਰੇ ਜਥੇਬੰਦੀ, ਹਿਉਮਨ ਰਾਈਟਸ ਫਾਊਂਡੇਸ਼ਨ ਆਫ ਤੁਰਕੀ ਵਲੋਂ ਜਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਇਕ ਹਾਲੀਆ ਰਿਪੋਰਟ ਅਨੁਸਾਰ, ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ 58 ਅਧਿਕਾਰਤ ਸੂਚਨਾਵਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਹੀ 16 ਅਪ੍ਰੈਲ 2015 ਤੋਂ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲ 7 ਸ਼ਹਿਰਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਦਿਆਰਬਾਕੀਰ, ਸਿਰਨਕ, ਮਾਰਦਿਨ ਤੇ ਹੱਕਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ, ਦੇ ਘੱਟੋ ਘੱਟ 19 ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿਚ ਚੌਵੀ-ਚੌਵੀ ਘੰਟੇ ਦਾ ਕਰਫਿਊ ਲੱਗਿਆ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਖੇਤਰਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਅਬਾਦੀ, 2014 ਦੀ ਮਰਦਮ ਸ਼ੁਮਾਰੀ ਅਨੁਸਾਰ, ਲਗਭਗ 13 ਲੱਖ 77 ਹਜ਼ਾਰ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਐਲਾਨੇ ਗਏ ਕਰਫਿਊਆਂ ਅਧੀਨ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਵਸਨੀਕਾਂ ਦੇ ਜਿਊਣ ਤੇ ਸਿਹਤ ਸੇਵਾਵਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਹੱਕਾਂ 'ਤੇ ਤਾਂ ਛਾਪਾ ਵੱਜਿਆ ਹੀ ਹੈ ਨਾਲ ਹੀ 162 ਸ਼ਹਿਰੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿੰਦਗੀਆਂ ਵੀ ਗਵਾਉਣੀਆਂ ਪਈਆਂ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ 29 ਔਰਤਾਂ, 32 ਬੱਚੇ ਅਤੇ 24 ਹੋਰ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ। ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੇ ਉਘੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਅਤੇ ਦਿਆਰਬਾਕੀਰ ਬਾਰ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਚੇਅਰਮੈਨ ਕੁਰਦ ਆਗੂ ਤਾਹਿਰ ਇਲਸੀ ਦੀ ਵੀ ਹੱਤਿਆ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਵੀ ਕੁਰਦਾਂ ਉਤੇ ਵਿਆਪਕ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਹਮਲੇ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਸਲ ਘਾਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਸੂਰ ਸਿਰਫ ਐਨਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਰਦੋਗਨ ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਪਾਰਟੀ ਏ.ਕੇ.ਪੀ. ਦੇ ਲੋਕ ਵਿਰੋਧੀ ਏਜੰਡੇ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਨਸਲੀ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀ ਹੱਕਾਂ-ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ।
ਅਕਤੂਬਰ 2015 ਤੋਂ ਹੀ ਤੁਰਕੀ ਦੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਸੀਰੀਆ ਵਿਚ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਵਿਰੁੱਧ ਲੜ ਰਹੇ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੀ. ਗੁਰੀਲਿਆਂ ਅਤੇ ਪੀ.ਕੇ.ਕੇ. ਦੇ ਗੁਰੀਲਿਆਂ ਨੂੂੰ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਬਣਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਪੀ.ਕੇ.ਕੇ. ਆਗੂ ਸੇਮਿਲ ਬਾਈਕ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਮਲਿਆਂ ਰਾਹੀਂ ਤੁਰਕੀ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਵਿਰੁੱਧ ਕੁਰਦ ਗੁਰੀਲਿਆਂ ਦੇ ਵਾਧੇ ਨੂੰ ਰੋਕਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਮੱਧ ਪੂਰਬ ਦੇ ਗੱਹਿਗੱਚ ਜੰਗ ਵਾਲੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਗੱਲ ਆਮ ਹੀ ਚਲਦੀ ਹੈ ਕਿ ਤੁਰਕੀ ਦੀ ਹਾਕਮ ਪਾਰਟੀ ਏ.ਕੇ.ਪੀ., ਆਈ.ਐਸ.ਨੂੰ ਪੱਕੇ ਪੈਰੀਂ ਕਰਨ ਵਿਚ ਭਾਈਵਾਲ ਹੈ। ਤੁਰਕੀ ਦੀ ਸੀਮਾ ਆਈ.ਐਸ.ਦੇ ਜਿਹਾਦੀਆਂ ਅਤੇ ਆਈ.ਐਸ.ਵਲੋਂ ਸਮਗਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਤੇਲ ਲਈ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ। ਬਾਈਕ ਅਨੁਸਾਰ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਇਰਦੋਗਨ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਬਿਲਾਲ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਬੀ.ਐਮ.ਜੈਡ. ਵਪਾਰਕ ਗਰੁੱਪ ਦਾ ਇਕ ਡਾਇਰੈਕਟਰ ਵੀ ਹੈ, ਉਤੇ ਦੋਸ਼ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸਦੀ ਆਈ.ਐਸ.ਦੇ ਤੇਲ ਨੂੰ ਮਾਲਟਾ ਅਤੇ ਉਥੋਂ ਇਜਰਾਇਲ ਸਮਗਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਵੀ ਸਰਗਰਮ ਭੂਮਿਕਾ ਹੈ।
ਇੱਥੇ ਇਹ ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤੇਲ ਵਿਕਰੀ ਤੋਂ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਪੈਸਾ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਦੀ ਆਰਥਕਤਾ ਲਈ ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ।
ਪਿਛਲੇ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੌਰਾਨ ਅਰਬ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਹੋਈਆਂ ਲੋਕ ਬਗਾਵਤਾਂ ਲਗਭਗ ਸਭ ਜਗ੍ਹਾ ਹੀ ਪਿਛਾਖੜੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਚੱਲੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ, ਅਤੇ ਕੋਈ ਵੀ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਸਿੱਟੇ ਨਹੀਂ ਕੱਢ ਸਕੀਆਂ। ਸੀਰੀਆ ਦੇ ਉਤਰੀ ਖੇਤਰ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਕੁਰਦ ਬਹੁਲਤਾ ਵਾਲੇ ਸਨ, ਵਿਚ ਕੁਰਦਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਲਈ ਲੜ ਰਹੀ ਪਾਰਟੀ ਹੀ ਇਕੋ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਪਾਰਟੀ ਹੈ ਜਿਸਨੇ ਡੈਮੋਕਰੇਟਿਕ ਯੂਨੀਅਨ ਪਾਰਟੀ (ਪੀ.ਵਾਈ.ਡੀ.) ਇਸ ਲੋਕ ਬਗਾਵਤ ਨੂੰ ਸਹੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿਚ ਮੋੜਦੇ ਹੋਏ ਸੀਰੀਆਈ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਖੇਤਰ ਤੋਂ ਪਿਛਾਂਹ ਹਟਣ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਇਸ ਖੇਤਰ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਰੋਜਾਵਾ ਨਾਂਅ ਦੇ ਖੁਦ ਮੁਖਤਾਰ ਖਿੱਤੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਲੋਕ ਪੀ.ਵਾਈ.ਡੀ. ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਜਮਹੂਰੀ, ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਤੇ ਬਹੁਨਸਲੀ ਸਮਾਜਕ ਮਾਡਲ ਦਾ ਤਜ਼ਰਬਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਲਿੰਗਕ ਸਮਾਨਤਾ, ਸਮਾਜਕ ਨਿਆਂ ਅਤੇ ਚੁਗਿਰਦੇ ਦਾ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨ ਦਾ ਦਾਅਵਾ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਯਕੀਨਨ ਰੂਪ ਵਿਚ ਰੋਜਾਵਾ ਦਾ ਇੰਨਕਲਾਬ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕੁੱਝ ਲੋਕ ਦਾਅਵਾ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਹ ਜਮਹੂਰੀ ਇਨਕਲਾਬ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੈ। ਇਹ ਕੌਮਾਂ ਦੇ ਉਤਪੀੜਨ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ ਅਤੇ ਲਿੰਗਕ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਜਬਰਦਸਤ ਅਲੰਬਰਦਾਰ ਹੈ। ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਜੰਗ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਬਣੇ ਮੱਧ ਪੂਰਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਇਹ ਇਕ ਆਸ ਦੀ ਕਿਰਨ ਹੈ। ਇਹ ਹੋਰ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਪ੍ਰੇਰਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਅਤੇ ਹੋਰ ਕੱਟੜਪੰਥੀ ਤਾਕਤਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਰੜਕਦਾ ਹੈ। ਤੁਰਕੀ ਵੀ ਕੁਰਦਾਂ ਵਲੋਂ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਇਸ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਤਜ਼ੁਰਬੇ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਇਹ ਵੀ ਨੋਟ ਕਰਨ ਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਸੀਰੀਆ ਦਾ ਕੋਬਾਨੀ ਸੂਬਾ ਜਿੱਥੋਂ ਕੁਰਦ ਗੁੱਰੀਲਾ ਸੰਗਠਨ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੀ. ਨੇ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਨੂੰ ਮਾਤ ਦੇ ਕੇ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਵਿਚ ਸ਼ਲਾਘਾ ਖੱਟੀ ਸੀ ਉਹ ਇਸੇ ਰੋਜਾਵਾ ਦਾ ਇਕ ਹਿੱਸਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦੀ ਸੀਮਾ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਨਾਲ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਰੋਜਾਵਾ 'ਤੇ ਜਿੱਥੇ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਹਮਲੇ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਥੇ ਹੀ ਤੁਰਕੀ ਵੀ ਇੱਥੇ ਸਥਿਤ ਕੁਰਦ ਗੁਰੀਲਿਆਂ ਦੇ ਟਿਕਾਣਿਆਂ ਉਤੇ ਲਗਭਗ ਨਿੱਤ ਹੀ ਹਮਲੇ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਫਲਸਤੀਨੀਆਂ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਕੁਰਦ ਮੱਧ ਏਸ਼ੀਆ ਦੀ ਉਹ ਕੌਮ ਹੈ, ਜਿਹੜੀ ਆਪਣੇ ਹੱਕਾਂ-ਹਿੱਤਾਂ ਲਈ ਨਿਰੰਤਰ ਜੂਝ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਹ ਇਸ ਖੇਤਰ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਕੌਮ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਕੌਮ ਦੇ ਦਰਜੇ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਪਿਛਲੀ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਮੱਧ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿਚ ਬ੍ਰਿਟੇਨ ਅਤੇ ਫਰਾਂਸ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇਹ ਖੇਤਰ ਸੀ, ਨੇ ਵੰਡੀਆਂ ਪਾਈਆਂ ਤਾਂ ਕੁਰਦ ਕੌਮ ਲਈ ਕੋਈ ਵੀ ਦੇਸ਼ ਨਹੀਂ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ। 2 ਕਰੋੜ 80 ਲੱਖ ਦੇ ਕਰੀਬ ਹੈ ਕੁਰਦਾਂ ਦੀ ਆਬਾਦੀ ਜਿਹੜੀ ਲਗਭਗ ਇਕ ਲੱਖ ਮੁਰੱਬਾ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਖੇਤਰ ਈਰਾਕ, ਈਰਾਨ, ਸੀਰੀਆ ਅਤੇ ਤੁਰਕੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਪਿਛਲੀ ਸਦੀ ਤੋਂ ਹੀ ਇਹ ਆਜ਼ਾਦ ਕੁਰਦਿਸਤਾਨ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਦੇ ਦਮਨਚੱਕਰ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣ ਰਹੇ ਹਨ। ਕੁਰਦਾਂ ਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਖਾਸਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਅਗਾਂਹਵਧੂ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੀ.ਕੇ.ਕੇ. ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਇਕ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਪਾਰਟੀ ਹੈ, ਉਹ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਸ਼ਕਤੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖੇਤਰਾਂ ਦੇ ਕੁਰਦਾਂ ਦੀਆਂ ਆਪਣੀਆਂ ਵੀ ਪਾਰਟੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਪੀ.ਕੇ.ਕੇ. ਤੋਂ ਹੀ ਸੇਧ ਲੈ ਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕੁਰਦ ਕੌਮ ਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਲਹਿਰ ਦੇ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਖਾਸੇ ਕਰਕੇ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਵਿਰੁੱਧ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੀ. ਅਤੇ ਵਾਈ.ਪੀ.ਜੇ. ਗੁਰੀਲਾ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦੇ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ ਅਤੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਲੜਾਈ ਲੜਨ ਵਾਲੀ ਇਕੋ ਇਕ ਧਿਰ ਹੋਣ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਅਮਰੀਕੀ ਸਾਮਰਾਜ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਮਰਥਨ ਦੇਣਾ ਜਿੱਥੇ ਉਸਦੀ ਮਜ਼ਬੂਰੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਥੇ ਹੀ ਸੀਰੀਆ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਵਿਚ ਹੋਈ ਜੇਨੇਵਾ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਾਰਤਾ ਵਿਚ ਸੀਰੀਆਈ ਕੁਰਦਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗੀਆਂ ਵਲੋਂ ਬਣਾਏ ਗਏ ਸੰਗਠਨ ਡੈਮੋਕਰੇਟਿਕ ਸੀਰੀਆ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਪ੍ਰਤੀਨਿੱਧਤਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਇੱਥੇ ਇਹ ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਦਸੰਬਰ ਵਿਚ ਸੀਰੀਆ ਦੇ ਡੇਰਿਕ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਸੌ ਤੋਂ ਵੱਧ ਡੈਲੀਗੇਟਾਂ ਨੇ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਸੀਰੀਆ ਭਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਾਰਮਕ ਤੇ ਨਸਲੀ ਗਰੁੱਪਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧਤਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਨੌਜਵਾਨ ਅਤੇ ਔਰਤਾਂ ਸਨ ਨੇ ਡੈਮੋਕਰੇਟਿਕ ਸੀਰੀਆ ਕਾਂਗਰਸ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਇਸ ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ ਜਮਹੂਰੀ, ਸ਼ਾਂਤੀਪੂਰਨ ਵਿਚਾਰ-ਵਟਾਂਦਰੇ ਅਤੇ ਗੱਲਬਾਤ ਰਾਹੀਂ ਸੀਰੀਆ ਸੰਕਟ ਨੂੰ ਸੁਲਝਾਉਣ ਲਈ ਜਮਹੂਰੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਿਰਜਕੇ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਨਿਰਪੱਖ ਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਚੋਣਾਂ ਕਰਾਉਣ ਦਾ ਅਹਿਦ ਕੀਤਾ ਸੀ ਤਾਂਕਿ ਸਮੁੱਚੇ ਸੀਰੀਆਈ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾ ਸਾਕੇ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਤੇ ਪਛਾਣ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇ।
ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਇਰਦੋਗਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਾਲੀ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕੁਰਦ ਆਬਾਦੀ ਉਤੇ ਫੌਜੀ ਹਮਲਿਆਂ ਰਾਹੀਂ ਢਾਹੇ ਜਾ ਰਹੇ ਵਹਿਸ਼ੀ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ, ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਵਿਰੋਧੀ ਪਾਰਟੀਆਂ, ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਅਤੇ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਉਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਮਲਿਆਂ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਖਾਨਾਜੰਗੀ ਵੱਲ ਵੱਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਹਕੂਮਤੀ ਹਿੰਸਾ ਵਿਰੁੱਧ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਪਟੀਸ਼ਨ ਦੇਣ ਵਾਲੇ 1000 ਤੋਂ ਵੱਧ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ, ਬੁੱਧੀਜੀਵੀਆਂ ਤੇ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਨਹੀਂ ਬਖਸ਼ਿਆ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਹੱਥ ਧੋਣ, ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੱਕ ਦਾ ਸਾਹਮਣੇ ਕਰਨਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬ੍ਰਿਟੇਨ ਦੇ ਅਖਬਾਰ ਗਾਰਡੀਅਨ ਵਿਚ 14 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਛਪੇ ਬਿਆਨ ਰਾਹੀਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨ ਪ੍ਰੋ. ਨੋਆਮ ਚੋਮਸਕੀ ਨੇ ਵੀ ਇਰਦੋਗਨ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ- ''ਤੁਰਕੀ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹਾਲੀਆ ਅੱਤਵਾਦੀ ਹਮਲਿਆਂ ਲਈ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. 'ਤੇ ਦੋਸ਼ ਲਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਦੀ ਇਰਦੋਗਨ ਕਈ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਮਦਦ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਹ ਅਲ ਨੁਸਰਾ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਆਈ.ਐਸ. ਤੋਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵੱਖਰਾ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਰਦੋਗਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕੂੜ ਦਾ ਤੂਫਾਨ ਖੜਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਉਸ ਵਲੋਂ ਕੁਰਦਾਂ ਉਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਮੁਜ਼ਰਮਾਨਾਂ ਹਮਲਿਆਂ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਸੀਰੀਆ ਅਤੇ ਈਰਾਕ ਦੋਵਾਂ ਥਾਵਾਂ 'ਤੇ ਆਈ.ਐਸ.ਆਈ.ਐਸ. ਨਾਲ ਜਮੀਨੀ ਜੰਗ ਰਾਹੀਂ ਟੱਕਰ ਲੈਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮੁੱਖ ਧਿਰਾਂ ਹਨ।'' ਕੀ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਕਿਸੇ ਟਿਪਣੀ ਦੀ ਲੋੜ ਰਹਿ ਜਾਂਦੀ ਹੈ? ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਪਸੰਦ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਕੁਰਦਾਂ ਉਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਮਲਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਆਵਾਜ਼ ਬੁਲੰਦ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ।ઠ

 
ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਇੰਟਰਨੈਸ਼ਨਲ ਏਅਰਲਾਈਨਜ਼ ਹੜਤਾਲ : ਅੰਨ੍ਹਾ ਤਸ਼ੱਦਦ 3 ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਸ਼ਹੀਦ ਸਾਡੇ ਹਮਸਾਇਆ ਦੇਸ਼ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੀ ਕੌਮੀ ਹਵਾਈ ਸੇਵਾ, ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਇੰਟਰਨੈਸ਼ਨਲ ਏਅਰਲਾਇਨਜ਼ (ਪੀ.ਆਈ.ਏ.) ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ 2 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਅਣਮਿੱਥੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਹੜਤਾਲ 'ਤੇ ਚਲੇ ਗਏ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਹ ਹੜਤਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ, ਸਾਮਰਾਜ ਨਿਰਦੇਸ਼ਤ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮੁਦਰਾ ਫੰਡ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਾਂ ਅਧੀਨ, ਇਸ ਜਨਤਕ ਅਦਾਰੇ ਦਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕਰਨ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਵਿਰੁੱਧ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਇਸ ਹੜਤਾਲ ਦਾ ਮੁੱਢ ਉਸ ਵੇਲੇ ਬੱਝਾ ਜਦੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸੰਸਦ, ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਕੌਮੀ ਅਸੰਬਲੀ ਨੇ 21 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਇਕ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਇਸ ਕੌਮੀ ਹਵਾਈ ਸੇਵਾ ਨੂੰ ਇਕ ਨਿੱਜੀ ਕੰਪਨੀ ਵਿਚ ਤਬਦੀਲ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਲਿਆ ਸੀ। ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਦੀ ਸਾਂਝੀ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਵਲੋਂ ਹੜਤਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਨਵਾਜ਼ ਸ਼ਰੀਫ ਨੇ 1 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੇਵਾਵਾਂ ਬਾਰੇ 1952 ਦੇ ਕਾਨੂੰਨ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਕੇ ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਉਤੇ ਯੂਨੀਅਨ ਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਰਗਰਮੀ ਵਿਚ ਭਾਗ ਲੈਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸੂਚਨਾ ਮੰਤਰੀ ਪਰਵੇਜ਼ ਰਸ਼ੀਦ ਨੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਧਮਕਾਉਂਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਜਿਹੜੇ ਵੀ ਹੜਤਾਲ 'ਤੇ ਜਾਣਗੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਸਮਝਿਆ ਜਾਵੇਗਾ।
ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਇਸ ਦਮਨਕਾਰੀ ਕਦਮ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੱਖੋਂ ਪਰੋਖੇ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੇ ਇਸ ਹੜਤਾਲ ਵਿਚ ਵੱਧ ਚੜ੍ਹਕੇ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵੀ ਹਵਾਈ ਉਡਾਨ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕੀ। ਪਾਇਲਟਾਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਗਰਾਊਂਡ ਸਟਾਫ ਤੱਕ ਸਮੁੱਚੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮ 2 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਸਵੇਰੇ ਹੀ ਹੜਤਾਲ 'ਤੇ ਚਲੇ ਗਏ ਸਨ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਭ ਹਵਾਈ ਅੱਡਿਆਂ 'ਤੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੇ ਹੜਤਾਲ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਧਰਨੇ ਵੀ ਦਿੱਤੇ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਬੁਖਲਾਹਟ ਵਿਚ ਆ ਕੇ ਅਤੇ ਇਸ ਹੜਤਾਲ ਤੋਂ ਭੈਭੀਤ ਹੋ ਕੇ ਹੜਤਾਲੀ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ 'ਤੇ ਅੰਨ੍ਹਾ ਤਸ਼ੱਦਦ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਦਮਨ ਲਈ ਪੈਰਾ-ਮਿਲਟਰੀ ਬਲਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਭੀੜ ਭਾੜ ਵਾਲੇ ਕਰਾਚੀ ਦੇ ਹਵਾਈ ਅੱਡੇ ਉਤੇ ਤਾਂ ਏਅਰ ਪੋਰਟ ਉਤੇ ਧਰਨਾ ਦੇ ਰਹੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਉਤੇ ਪੈਰਾ ਮਿਲਟਰੀ ਬਲਾਂ ਨੇ ਸਿੱਧੀਆਂ ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾਈਆਂ, ਜਿਸਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 3 ਟਰੇਡ ਯੂਨੀਅਨ ਆਗੂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਦਰਜਨ ਤੋਂ ਵੱਧ ਜਖ਼ਮੀ ਹੋ ਗਏ। ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਣ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿਚ ਉਘੇ ਟਰੇਡ ਯੂਨੀਅਨ ਆਗੂ ਇਨਾਇਤ ਰਜ਼ਾ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ। ਇਸ ਘਟਨਾ ਦੀ ਖਬਰ ਫੈਲਦਿਆਂ ਹੀ ਸਮੁੱਚੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਰੋਸ ਲਹਿਰ ਫੈਲ ਗਈ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਹੀ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਵਿਰੁੱਧ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਹੋਏ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਇਸਲਾਮਾਬਾਦ ਵਿਖੇ ਕੌਮੀ ਪ੍ਰੈਸ ਕਲਬ ਸਾਹਮਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਪਾਰਟੀ ਅਵਾਮੀ ਵਰਕਰਜ਼ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਕੀਤੇ ਗਏ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਵਿਚ ਕਈ ਟਰੇਡ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਦੇ ਆਗੂ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਕਾਰਕੁੰਨਾਂ ਨੇ ਭਾਗ ਲਿਆ। ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਸਮੂਹਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਿਰੋਧ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਅਧਿਕਾਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ 'ਤੇ ਪੈਰਾ ਮਿਲਟਰੀ ਬਲਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦੀ ਸਖਤ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਲਹਿਰ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦ ਗਰਦਾਨਦੇ ਹੋਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀਆਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀਆਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਏਅਰਲਾਈਨ ਦਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਹੋ ਜਾਣਗੇ, ਇਸ ਲਈ ਇਸਨੂੰ ਫੌਰੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਾਪਸ ਲਿਆ ਜਾਵੇ। ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਜਨਤਕ ਖੇਤਰ ਦੇ ਦੂਰਸੰਚਾਰ ਅਦਾਰੇ ਦੇ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਦਾ ਤਜ਼ੁਰਬਾ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦਿਆਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਮੁਲਾਜ਼ਮ ਤਾਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰ ਹੋਏ ਹੀ ਹਨ, ਇਸ ਨਾਲ ਸੇਵਾਵਾਂ ਵਿਚ  ਨਿਘਾਰ ਵੀ ਆਇਆ ਹੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਮਹਿੰਗੀਆਂ ਵੀ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ, ਹਾਂ ਐਨਾ ਜ਼ਰੂਰ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਸਰਮਾਏਦਾਰਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਟੈਕਸ ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਇਸ ਮਹਿਕਮੇ ਦੀਆਂ ਸੰਪਤੀਆਂ ਦੀ ਲੁੱਟ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤਿਜੋਰੀਆਂ ਖੂਬ ਭਰੀਆਂ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਅਤੇ ਹੋਰ ਜਨਤਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦੇ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਸਮੁੱਚੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਤੇ ਕਿਰਤੀਆਂ ਨੂੰ ਇਕਜੁੱਟ ਕਰਨਾ ਸਮੇਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਲੋੜ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਮੁੱਚੇ ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਕਜੁੱਟ ਕਰਕੇ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਇਸ ਘਾਤਕ ਹਮਲੇ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਇੱਥੇ ਇਹ ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ 2013 ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਮੌਜੂਦਾ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਮੁਸਲਮ ਲੀਗ (ਨਵਾਜ ਸ਼ਰੀਫ) ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਾਲੀ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮੁਦਰਾ ਫੰਡ ਤੋਂ 6.64 ਬਿਲੀਅਨ ਅਮਰੀਕੀ ਡਾਲਰ ਦਾ ਰਾਹਤ ਪੈਕੇਜ ਲੈਂਦੇ ਹੋਏ ਉਸਦੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਮੰਨਦਿਆਂ ਦੇਸ਼ ਦੇ 68 ਜਨਤਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕਰਨ ਦਾ ਵਾਅਦਾ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਜਿਸ ਵਿਚ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਸਟੀਲ ਮਿਲਜ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਅਦਾਰੇ ਵਾਪਡਾ ਦਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕਰਨਾ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ। ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਮੁਦਰਾ ਫੰਡ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਲੋਂ ਇਸ ਬਾਰੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਬੈਠਕ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਇਸ਼ਾਕ ਡਾਰ ਉਤੇ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਲਈ ਦਬਾਅ ਬਣਾਇਆ ਸੀ। ਇਸਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਲੇ ਕੌਮੀ ਏਅਰਲਾਈਨ, ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਦੇ 26% ਹਿੱਸੇ ਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਅਗਲੇ ਕੁੱਝ ਹਫਤਿਆਂ ਵਿਚ ਵੇਚਣ ਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ।
ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੀ ਇਸ ਜਬਰਦਸਤ ਹੜਤਾਲ ਅਤੇ ਉਸ ਉਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਘਾਤਕ ਹਮਲੇ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਵਿਆਪਕ ਜਨਸਮਰਥਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਾਂਝੀ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਨੇ ਇਹ ਹੜਤਾਲ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਕੋਈਂ ਠੋਸ ਮੰਗ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਹੀ 9 ਫਰਵਰੀ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਲੈ ਗਈ। ਪੀ.ਆਈ.ਏ. ਦੇ ਪਾਈਲਟਾਂ ਦੀ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪਿੱਠ ਵਿਖਾਈ ਅਤੇ 7 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਕਰਾਚੀ ਹਵਾਈ ਅੱਡੇ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਉੜਾਨ ਜੇਹਾੱਦ ਲਈ ਭਰੀ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਇੰਜੀਨੀਅਰਾਂ ਦੀ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਨੇ ਹੜਤਾਲ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਤੋਂ ਸਾਫ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਇਹ ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ ਗੰਭੀਰ ਜੋਖਮ ਲੈ ਕੇ ਉਡਾਇਆ ਗਿਆ। ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਇੰਜੀਨੀਅਰਾਂ ਦੀ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਨੇ ਇਤਰਾਜ ਵੀ ਕੀਤਾ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਦਾਰੇ ਦੇ ਕੈਟਰਿੰਗ ਸਟਾਫ ਨੇ ਵੀ ਇਸ ਉਡਾਣ ਲਈ ਭੋਜਨ ਨਹੀਂ ਬਣਾਇਆ ਅਤੇ ਕੱਤਾਰ ਏਅਰਲਾਈਨ ਤੋਂ 5 ਗੁਣਾ ਮਹਿੰਗੇ ਭਾਅ 'ਤੇ ਇਹ ਸੇਵਾ ਲਈ ਗਈ। ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਦਮਨ ਚੱਕਰ ਵੀ ਹੋਰ ਤੇਜ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਹੜਤਾਲੀ ਆਗੂਆਂ ਦੀਆਂ ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਗਿਰਫਤਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਹੜਤਾਲੀ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਧਰਨਿਆਂ ਨੂੂੰ ਹਵਾਈ ਅੱਡਿਆਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਏਅਰ ਹੋਸਟਸਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਚਿੱਟ ਕੱਪੜੀਏ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ  ਘਰਾਂ 'ਤੇ ਪੁਲਸ ਦੇ ਛਾਪੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ।  ਸਾਂਝੀ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਚੇਅਰਮੈਨ ਸੋਹਲ ਬਲੋਚ ਨੇ 9 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਕਰਾਚੀ ਪ੍ਰੈਸ ਕਲੱਬ ਵਿਚ ਪ੍ਰੈਸ ਕਾਨਫਰੰਸ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ-''ਇਕ ਦਿਆਵਾਨ ਦੋਸਤ ਦੀ ਸਲਾਹ 'ਤੇ ਅਸੀਂ ਹਤਾਲ ਵਾਪਸ ਲੈ ਲਈ ਹੈ।'' ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਇਹ ਜੋੜ ਦਿੱਤਾ ''ਅਸੀਂ ਇਕ ਵਿਚੋਲੇ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਭਰੋਸੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੜਤਾਲ ਵਾਪਸ ਲੈ ਰਹੇ ਹਾਂ।'' ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸੇ ਰਾਤ ਸਾਂਝੀ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਕੁੱਝ ਆਗੂ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਨਵਾਜ ਸ਼ਰੀਫ  ਦੇ ਭਰਾ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਸ਼ਹਿਵਾਜ ਸ਼ਰੀਫ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਾਹੌਰ ਚਲੇ ਗਏ। ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਕਿ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ 6 ਮਹੀਨੇ ਦਾ ਸਮਾਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਦੌਰਾਨ ਉਹ ਇਸ ਅਦਾਰੇ ਨੂੰ ਮੁਨਾਫੇ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣਗੇ। ਜੇਕਰ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ਤਾਂ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਇਸ ਸਮਝੌਤੇ ਦੀ ਅਜੇ ਸਿਆਹੀ ਵੀ ਸੁੱਕੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦਮਨਚੱਕਰ ਨੂੰ ਅਗਾਂਹ ਤੋਰਦੇ ਹੋਏ ਲਾਜ਼ਮੀ ਸੇਵਾਵਾਂ ਕਾਇਮ ਰੱਖਣ ਬਾਰੇ ਕਾਨੂੰਨ, ਸੀ.ਐਸ.ਐਮ.ਏ. ਅਧੀਨ  11 ਦਿਹਾੜੀਦਾਰ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਬਰਖਾਸਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ 167 ਪੱਕੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਹੜਤਾਲ ਸਮੇਂ ਸਰਗਰਮ ਕਾਰਕੁੰਨ ਗਰਦਾਨਦੇ ਹੋਏ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ਨੋਟਿਸ ਜਾਰੀ ਕਰ ਦਿੱਤੇ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੱਧਕੇ ਹੁਣ 500 ਤੱਕ ਪੁੱਜ ਗਈ ਹੈ। 
(20.2.2016)

ਸਾਹਿਤ ਤੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਮਾਰਚ 2016)

ਕਹਾਣੀ
ਫੱਤੂ ਮਰਾਸੀ
 
- ਗੁਰਬਚਨ ਸਿੰਘ ਭੁੱਲਰ  ਫੱਤੂ ਮਰਾਸੀ, ਉਹਦੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਕਰੀਮਾ, ਉਹਦੇ ਦੋਵੇਂ ਪੁੱਤਰ, ਯੂਸਫ਼ ਅਤੇ ਹਮੀਦਾ ਇਕ ਦਿਨ ਅਚਨਚੇਤ ਪਾਕਿਸਤਾਨੋਂ ਮੁੜ ਪਿੰਡ ਆ ਗਏ। ਸਾਰੇ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਕਰਨ ਲਈ ਇਹੋ ਗੱਲ ਸੀ। ਲੋਕ ਫੱਤੂ ਅਤੇ ਉਹੇ ਟੱਬਰ ਨੂੰ ਵੇਖਣ ਗਏ। ਫੱਤੂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਇਕੱਲੇ ਇਕੱਲੇ ਘਰ ਫਿਰਿਆ। ਉਹਨੂੰ ਜਿਵੇਂ ਚਿਰਾਂ ਦੀ ਅਣਬੁੱਝੀ ਤੇਹ ਲੱਗੀ ਹੋਈ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਘਰੋ ਘਰ ਫਿਰ ਕੇ ਮਿਲਣੀਆਂ ਦੀਆਂ ਘੁੱਟਾਂ ਭਰ ਭਰ ਉਹਨੂੰ ਤ੍ਰਿਪਤ ਕਰਦਾ ਫਿਰਦਾ ਸੀ। ਉਹ ਇਕ ਘਰੋਂ ਨਿਕਲਦਾ ਤੇ ਦੂਜੇ ਘਰ ਜਾ ਕੇ ਕਹਿੰਦਾ, ''ਚਾਚੀ ਮੱਥਾ ਟੇਕਦਾ ਆਂ.... ਸੋਹਣ ਸਿਆਂ ਭਰਾਵਾ! ਸਾਹ ਸ਼੍ਰੀ ਕਾਲ.... ਦਿਆਲ ਕੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਣੀਏ, ਆਹ ਗੁੱਡੀ ਐ? ਮਰ ਜਾਣੀ ਮੇਰੇ ਪਿਛੋਂ ਪਿਛੋਂ ਹੀ ਸੁੱਖ ਨਾਲ ਮੁਟਿਆਰ ਹੋ ਗਈ।''
ਪਿੰਡ ਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਬੰਦਿਆਂ-ਬੁੜ੍ਹੀਆਂ ਕੋਲ ਉਹ ਕਿੰਨਾ-ਕਿੰਨਾ ਚਿਰ ਬੈਠਾ ਰਹਿੰਦਾ, ਦੁੱਖ-ਸੁੱਖ ਦੀਆਂ, ਘਰ-ਬਾਹਰ ਦੀਆਂ, ਸਾਕ-ਸਬੰਧੀਆਂ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਪੁੱਛਦਾ ਦੱਸਦਾ-ਰਹਿੰਦਾ। ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਦਿਆਂ, ਉਹਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਅਕਸਰ ਮੋਹ ਦੀ ਇਕ ਛੱਲ ਜਿਹੀ ਉਠਦੀ ਤੇ ਉਹਦਾ ਗਲਾ ਭਰ ਆਉਂਦਾ। ਕਈ ਦਿਨ ਫੱਤੂ ਪਿੰਡ ਦੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਭੌਂਦਾ ਫਿਰਿਆ। ਕਰੀਮਾ ਪਿੰਡ ਦੀਆਂ ਬੁੜ੍ਹੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲਦੀ ਤੇ ਦੁੱਖ ਸੁੱਖ ਕਰਦੀ ਰਹੀ।
ਫੱਤੂ, ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਪਿੰਡ ਦਾ ਜੱਦੀ ਮਿਰਾਸੀ ਸੀ। ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਸੁਖਵੰਤ ਅਜੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਮਿਡਲ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਦਾ ਸੀ, ਫੱਤੂ ਦਾ ਮੁੰਡਾ ਯੂਸਫ਼ ਉਹਦਾ ਜਮਾਤੀ ਸੀ। ਭਾਵੇਂ ਯੂਸਫ ਲਾਗੀਆਂ ਦਾ ਮੁੰਡਾ ਸੀ, ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੋਵਾਂ ਦੀ ਵਾਹਵਾ ਯਾਰੀ ਸੀ। ਕਈ ਵਾਰ ਸੁਖਵੰਤ ਉਹਦੇ ਨਾਲ ਉਹਦੇ ਘਰ ਚਲਿਆ ਜਾਂਦਾ। ਜਿਸ ਦਿਨ ਯੂਸਫ ਦੀ ਸੁਨੰਤ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਘਰ ਉਹਨੇ ਰੱਜ ਰੱਜ ਸ਼ੱਕਰ ਖਾਧੀ ਸੀ। ਯੂਸਫ ਆਪਣੇ ਤਾਏ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ-ਧੀਆਂ ਦੀ ਰੀਸ ਨਾਲ ਫੱਤੂ ਨੂੰ ਚਾਚਾ ਕਹਿੰਦਾ ਸੀ। ਫੱਤੂ ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਬਾਪੂ ਨਾਲੋਂ ਸੀ ਵੀ ਛੋਟਾ; ਉਹ ਵੀ ਉਹਨੂੰ ਚਾਚਾ ਆਖ ਕੇ ਬੁਲਾਉਂਦਾ।
1947 ਦਾ ਸਾਲ ਚੜ੍ਹਿਆ। ਦੂਰੋਂ ਨੇੜਿਓਂ ਮੰਦੀਆਂ-ਮੰਦੀਆਂ ਕਨਸੋਆਂ ਆਉਣ ਲੱਗੀਆਂ। ਪਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੱਚ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਉਂਦਾ। ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ? ਛੇਕੜ, ਕੱਟਾ-ਵੱਢੀ ਇਸ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ। ਫੱਤੂ ਦਾ ਵਿਚਕਾਰਲਾ ਪੁੱਤਰ ਬਸ਼ੀਰਾ ਨਾਨਕੀਂ ਗਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਅਤੇ ਖ਼ਬਰ ਆਈ, ਕਿ ਉਥੇ ਸਭ ਮੁਸਲਮਾਨ ਵੱਢ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਸਨ। ਫੱਤੂ ਦੀ ਪਿੱਛੇ ਜਿਹੇ ਵਿਆਹੀ ਧੀ ਨਿਆਮਤ ਦੇ ਸਹੁਰੇ ਪਿੰਡ ਵੀ ਏਹੋ ਭਾਣਾ ਵਰਤ ਗਿਆ ਸੀ। ਪਰ ਕਿਸੇ ਦੀ ਖਬਰ ਲੈਣ ਦੀ ਸੁਰਤ ਕੀਹਨੂੰ ਸੀ?
ਗੱਲਾਂ ਹੋਣ ਲੱਗੀਆਂ ਕਿ ਦੋ-ਚਾਰ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਇਲਾਕੇ ਦੀਆਂ ਧਾੜਾਂ ਨੇ ਪਿੰਡ ਉਤੇ ਧਾਵਾ ਬੋਲਣਾ ਸੀ। ਖੁਦ ਏਸ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬਦਮਾਸ਼ ਗੰਡਾਸੇ ਰੇਤਣ ਲੱਗ ਪਏ ਸਨ। ਕੁਝ ਜ਼ੋਰ ਵਾਲੇ ਸਿਆਣੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਲਾਹ ਕੀਤੀ, ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਰੇ ਹੇਠ ਫ਼ੀਰੋਜ਼ਪੁਰ ਕੋਲੋਂ ਹੱਦ ਪਾਰ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤੀ।
ਪਿਛੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ, ਬਸ਼ੀਰੇ ਦੇ ਸਿਰ ਵਿਚ ਵੱਜਿਆ ਗੰਡਾਸਾ, ਉਹਦੇ ਨੱਕ ਤੱਕ ਧਸ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਨਿਆਮਤ ਦੇ ਘਰ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਵੱਢ ਕੇ, ਬਦਮਾਸ਼ ਉਹਨੂੰ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲੈ ਗਏ ਸਨ।
ਉਧਰੋਂ ਫੱਤੂ ਦੀਆਂ ਅਤੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਹੋਰ ਕਈ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਆਉਣ ਲੱਗੀਆਂ। ਉਹ ਜੋ ਕੁਝ ਤਰਦਾ-ਤਰਦਾ ਘਰਾਂ ਤੋਂ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲੈ ਗਏ ਸਨ, ਉਹ ਹੱਦ ਪਾਰ ਕਰਦਿਆਂ ਖੁਹਾ ਗਏ ਸਨ ਅਤੇ 'ਮੋਮਨਾਂ ਦੀ ਧਰਤੀ' ਉਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਖਾਲੀ ਹੱਥੀਂ ਪੈਰ ਪਾਇਆ ਸੀ। ਫੱਤੂ ਦੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਬਾਪੂ, ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਈਆਂ। ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਸੁੱਖ-ਸਾਂਦ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਕੋ ਗੱਲ ਪੁੱਛੀ ਗਈ ਹੁੰਦੀ- ਬਸ਼ੀਰੇ ਅਤੇ ਨਿਆਮਤ ਦੇ ਥਹੁ-ਪਤੇ ਬਾਰੇ।
ਪਿੱਛੇ ਰਹਿ ਗਈ ਮੁਟਿਆਰ ਧੀ ਅਤੇ ਜਵਾਨ ਮੁੰਡਾ, ਜਦੋਂ ਫੱਤੂ ਨੂੰ ਯਾਦ ਆਉਂਦੇ, ਉਹਦੀ ਧਾਹ ਨਿਕਲ ਜਾਂਦੀ। ਇਹ ਰੁਦਣ ਉਹਦੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਡੁੱਲ੍ਹ-ਡੁੱਲ੍ਹ ਪੈਂਦਾ। ਉਹਨੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਰਹਿ ਗਏ ਬੰਦੇ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੀ ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ ਪੁਲਸ ਕੋਲ ਮੁੜ-ਮੁੜ ਨੱਕ ਰਗੜਿਆ, ਕਿ ਉਹਨੂੰ ਵੀ ਨਾਲ ਲੈ ਜਾਣ, ਤਾਂ ਜੋ ਆਪਣੀਆਂ ਆਂਦਰਾਂ ਦੇ ਟੋਟੇ ਭਾਲ ਲਿਆਵੇ। ਪਰ ਉਹਨੂੰ ਹਰ ਵਾਰ ਇਹੋ ਉਤਰ ਮਿਲਦਾ ਕਿ ਉਹ ਉਧਰੋਂ ਪਤਾ ਮੰਗਵਾਏ, ਉਹਦੇ ਧੀ-ਪੁੱਤਰ ਕਿੱਥੇ ਸਨ? ਅਤੇ ਉਹ, ਉਹਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਕੱਢਵਾ ਲਿਆਉਣਗੇ। ਉਹ ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀਆਂ ਕਰਦਾ ਕਿ ਉਹ ਬਸ ਇਕ ਵਾਰ ਉਹਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਥਾਂ ਟਿਕਾਣੇ ਦੀ ਸੂਹ ਲੈ ਦੇਵੇ....
ਪਰ ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਨਾ ਪਿਆ ਕਿ ਉਹ ਸੱਚ ਲਿਖ ਭੇਜੇ। ਉਹਨੇ ਜਵਾਬ ਵਿਚ ਲਿਖ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹਨੀਂ ਦੋਹੀਂ ਪਿੰਡੀਂ ਕੁਝ ਮੁਸਲਮਾਨ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ਤੇ ਬਾਕੀ ਬਚ ਕੇ ਭੱਜ ਗਏ ਸਨ। ਬਸ਼ੀਰੇ ਅਤੇ ਕੁੜੀ ਦਾ ਕੋਈ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਕੀ ਬਣਿਆ। ਫੇਰ ਇਹ ਚਿੱਠੀਆਂ ਵੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈਆਂ।
ਅਸਮਾਨ ਉਤੇ ਚੜ੍ਹੀ ਹਨ੍ਹੇਰੀ ਉਤਰ ਗਈ। ਲੋਕੀਂ ਕੀਤੇ ਉਤੇ ਪਛਤਾਉਣ ਲੱਗੇ। ਫੱਤੂ ਮਰਾਸੀ ਵਰਗੇ ਬੰਦੇ ਅਕਸਰ ਯਾਦ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ। ਸੁਖਵੰਤ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਬੇਲੀ ਯੂਸਫ਼ ਭੁਲਾਇਆ ਨਾ ਭੁੱਲਦਾ। ਵਰ੍ਹੇ ਬੀਤਦੇ ਗਏ ਅਤੇ ਸੰਤਾਲੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ, ਸੰਤਾਲੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਬੰਦੇ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਚੇਤਿਆਂ ਵਿਚ ਕੁਝ ਮੱਧਮ ਪੈਣ ਲੱਗ ਪਏ।
ਸੁਖਵੰਤ ਕਈ ਵਾਰ ਫੱਤੂ ਦੇ ਘਰ ਅੱਗੋਂ ਲੰਘਦਾ ਤਾਂ ਉਹਦਾ ਪੈਰ ਜਿਵੇਂ ਰੁਕ ਜਾਂਦੇ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਘਰ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਅਲਾਟ ਨਹੀਂ ਸੀ ਹੋਇਆ। ਇਸ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਲਾਗੀ ਸਨ। ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਵਾਲੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਘਰ-ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਪਾਕਿਸਤਾਨੋਂ ਆਏ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਲਾਟ ਹੋ ਗਈਆਂ ਸਨ? ਪਰ ਇਹੋ ਜਿਹੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਨਾ ਕੋਈ 'ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ' ਆਇਆ ਅਤੇ ਨਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਦਾ ਕੁਝ ਬਣਿਆ। ਜਾਂ ਉਹ ਨਾਲ ਲੱਗਦੇ ਘਰਾਂ ਵਾਲਿਆਂ ਨੇ ਰੋਕ ਲਏ ਅਤੇ ਜਾਂ ਸੁੰਨੇ ਪਏ ਢਹਿ ਗਏ ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਉਥੇ ਰੂੜੀਆਂ ਲਾ ਲਈਆਂ। ਫੱਤੂ ਦੇ ਘਰ ਦੇ ਇੱਟਾਂ-ਰੋੜੇ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਇੱਧਰ ਉਧਰ ਹੋ ਗਏ ਤੇ ਹੁਣ ਉਥੇ ਰੜਾ ਮੈਦਾਨ ਸੀ, ਜਿੱਥੇ ਆਮ ਕਰਕੇ ਰਿਆਹ ਡੰਗਰ ਬੈਠੇ ਉਗਾਲੀ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ।
ਜਦੋਂ ਫੱਤੂ ਮਰਾਸੀ, ਉਹਦੀ ਘਰ ਵਾਲੀ ਕਰੀਮਾਂ, ਉਹਦੇ ਪੁੱਤਰ ਯੂਸਫ਼ ਅਤੇ ਹਮੀਦਾ ਮੁੜ ਕੇ ਪਿੰਡ ਆਏ, ਘਰ ਦੀ ਥਾਂ ਰੜਾ ਮੈਦਾਨ ਵੇਖ ਕੇ ਇਕ ਵਾਰ ਤਾਂ ਉਹ ਦਿਲਗੀਰ ਹੋ ਗਏ। ਪਰ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਉਹਨੂੰ ਨੂੰ ਦਿਲਾਸਾ ਦਿੱਤਾ। ਜੇ ਹੁਣ ਉਹ ਰਹਿਣ ਲਈ ਆਏ ਸਨ, ਤਾਂ ਕੋਈ ਫ਼ਿਕਰ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਸਭ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਸਨ।
ਕਿਤੋਂ ਕੱਚੀਆਂ ਇੱਟਾਂ, ਕਿਤੋਂ ਪੱਕੇ ਰੋੜੇ, ਕਿਤੋਂ ਸ਼ਤੀਰ, ਕਿਤੋਂ ਕੜੀ, ਅਤੇ ਫੱਤੂ ਮਰਾਸੀ ਨੇ ਦੋ ਕੋਠੜੀਆਂ ਛੱਤ ਕੇ ਬਾਹਰਲੀ ਕੰਧ ਕਢਵਾ ਲਈ। ਕਈ ਦਿਨ ਉਹ ਘਰ-ਘਰ ਅੱਲਾ-ਖ਼ੈਰ ਗਜਾਉਂਦਾ ਅਤੇ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਲਿਆਉਂਦਾ ਫਿਰਿਆ।
ਕੋਠੀਆਂ ਦੀ ਛਤਾਈ ਤੋਂ ਵਿਹਲਾ ਹੋ ਕੇ ਉਹਨੇ ਨਵੇਂ ਬਦਲ ਕੇ ਆਏ ਕਿਸੇ ਕਰਮਚਾਰੀ ਵਾਂਗ ਆਪਣੀ ਥਾਂ ਸੰਭਾਲ ਲਈ। ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਦੇ ਵਿਆਹ ਹੁੰਦਾ ਜਾਂ ਮਰਨਾ, ਉਹ ਅੱਲਾ-ਖੈਰ ਆਖ ਕੇ ਵਿਹੜੇ ਵਿਚ ਜਾ ਬੈਠਦਾ। ਜੋ-ਜੋ ਕੰਮ ਕਹੇ ਜਾਂਦੇ, ਉਹ ਭੱਜ-ਭੱਜ ਕੇ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ। ਜਿਸ-ਜਿਸ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਬੁਲਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ, ਉਹ ਭੱਜ-ਭੱਜ ਬੁਲਾ ਲਿਆਉਂਦਾ। ਉਹਦਾ ਛੋਟਾ ਪੁੱਤਰ ਹਮੀਦਾ, ਜੀਹਨੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਨਾਈ ਦਾ ਕੰਮ ਸਿੱਖ ਲਿਆ ਸੀ, ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਇਕ ਹੱਜਾਮ ਕੋਲ ਨੌਕਰ ਰਹਿ ਪਿਆ। ਉਹਦਾ ਵੱਡਾ ਪੁੱਤਰ ਯੂਸਫ਼ ਵਿਆਹ ਸਾਹਿਆਂ ਦੀਆਂ ਗੰਢਾਂ ਜਾਂ ਸੋਗ ਦੀਆਂ ਸੁਣਾਉਣੀਆਂ ਦੇਣ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਸਾਕ-ਸਕੀਰੀਆਂ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜਾਂਦਾ।
ਹਾੜੀ ਦੀ ਫਸਲ ਪੱਕਣ ਉਤੇ ਆ ਗਈ। ਹੁਣ ਤੱਕ ਫੱਤੂ ਨੇ ਕੁੱਝ ਪੈਸੇ ਤਾਂ ਆਪ ਜੋੜ ਲਏ ਸਨ ਅਤੇ ਕੁਝ ਰਕਮ ਉਹਨੇ ਘਰ-ਘਰ ਤੋਂ ਉਗਰਾਹ ਲਈ ਅਤੇ ਇਕ ਟੱਟੂ ਤੇ ਇਕ ਟੈਰ ਖਰੀਦ ਲਏ। ਹਾੜ੍ਹੀਆਂ ਵੱਢਦੇ ਜੱਟਾਂ ਤੋਂ ਉਹਨੇ ਲਾਂਗਾ ਲੈ-ਲੈ ਕੇ ਵਾਹਵਾ ਹੱਥ ਸੁਖਾਲਾ ਕਰ ਲਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਂਗ ਹੀ ਸੌਖੇ ਦਿਨ ਲੰਘਾਉਣ ਲੱਗੇ।
ਭਾਵੇਂ ਫੱਤੂ ਹੁਣ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਸੀ, ਜਿਵੇਂ ਕੋਈ ਦੇਸ ਨਿਕਾਲਾ ਕੱਟ ਕੇ ਵਾਪਸ ਆਇਆ ਮਨੁੱਖ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਬਸ਼ੀਰੇ ਅਤੇ ਨਿਆਮਤ ਦੀ ਯਾਦ ਉਹਦੀ ਹਿੱਕ ਵਿਚ ਫੋੜਾ ਬਣ ਗਈ ਸੀ। ਕਈ ਵਾਰ ਉਹ ਘਰ ਦੇ ਵਿਹੜੇ ਦੀ ਕੰਧ ਨਾਲ ਪਿੱਠ ਲਾਕੇ ਬੈਠ ਜਾਂਦਾ ਤੇ ਹੁੱਕੇ ਦੀ ਨੜੀ ਮੂੰਹ ਵਿਚ ਲੈ ਕੇ ਅੱਖਾਂ ਮੀਟ ਲੈਂਦਾ। ਉਹਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਜਿਵੇਂ ਬਸ਼ੀਰਾ ਅਤੇ ਨਿਆਮਤ ਵਿਹੜੇ ਵਿਚ ਖੇਡ ਰਹੇ ਹੋਣ, ਗਲੀ ਵਿਚ ਭੱਜ ਰਹੇ ਹੋਣ। ਜਿਵੇਂ ਬਸ਼ੀਰਾ ਬਸਤਾ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ ਸਕੂਲ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ ਤੇ ਨਿਆਮਤ, ਕਰੀਮਾਂ ਨਾਲ ਕੰਮ ਵਿਚ ਹੱਥ ਵਟਾ ਰਹੀ ਹੋਵੇ। ਤੇ ਫੇਰ ਉਹਨੂੰ ਉਹ ਕਹਿਰ ਭਰੇ ਦਿਨ ਯਾਦ ਆਉਂਦੇ...
ਅੱਗੇ ਉਹਤੋਂ ਕੁਝ ਸੋਚਿਆ ਨਾ ਜਾਂਦਾ। ਹੁੱਕੇ ਦੀ ਨੜੀ ਉਹਦੀ ਖਾਖ ਵਿਚੋਂ ਬਾਹਰ ਲਟਕ ਜਾਂਦੀ ਅਤੇ ਦੋ ਪਤਲੀਆਂ ਧਾਰਾਂ ਬਣ ਕੇ ਉਹਦੇ ਹੰਝੂ ਗੱਲਾਂ ਉਤੇ ਦੀ ਵਗ ਕੇ ਦਾੜ੍ਹੀ ਉਤੇ ਡਿੱਗ ਪੈਂਦੇ। ਉਹ ਮਨ ਨੂੰ ਢਾਰਸ ਬੰਨ੍ਹਾਉਂਦਾ ਅਤੇ ਕੁੜਤੇ ਦੇ ਲੜ ਨਾਲ ਅੱਖਾਂ ਪੂੰਝ ਕੇ ਸੰਭਲ ਜਾਂਦਾ ਤੇ ਕੰਮਾਂ-ਧੰਦਿਆਂ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਆ ਕੇ ਜਿਵੇਂ ਸਭ ਕੁਝ ਭੁੱਲ ਜਾਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ।
ਇਕ ਦਿਨ ਮੰਡੀ ਨੂੰ ਜਾਂਦੇ ਸੁਖਵੰਤ ਨੂੰ ਰਾਹ ਵਿਚ ਫੱਤੂ ਮਿਲ ਪਿਆ ਅਤੇ ਉਹਨੇ ਉਹਦੇ ਤਾਏ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਦੇ ਵਿਆਹ ਦੀ ਤਰੀਕ ਪੁੱਛੀ। ਸੱਤ ਦਿਨ ਦੱਸੇ ਜਾਣ ਉਤੇ ਉਹ ਬੋਲਿਆ, ''ਚੰਗੀ ਗੱਲ, ਪ੍ਰਭਾ, ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਮੈਂ ਬੋਹੜਾਂ ਵਾਲੀ ਢਾਬ ਪਟਵਾ ਲਊਂ। ਇਉਂ ਲੱਗਦਾ ਐ, ਜਿਵੇਂ ਮੇਰੇ ਮਗਰੋਂ ਨੱਗਰ-ਖੇੜਾ ਢਾਬ ਪੁੱਟਣੀ ਹੀ ਭੁੱਲ ਗਿਆ ਹੋਵੇ। ਮੀਂਹ ਪੈਣਗੇ, ਪੱਟੇ ਹੋਏ ਟੋਭੇ ਵਿਚ ਮੱਝਾਂ 'ਰਾਮ ਨਾਲ' ਤਾਂ ਬੈਠਣਗੀਆਂ ਨਾਲੇ ਢਾਬ ਕਿਨਾਰੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪਿੱਪਲਾਂ ਬੋਹੜਾਂ ਦੁਆਲਿਓਂ ਮਿੱਟੀ ਖੁਰ-ਖੁਰ ਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਨੰਗੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਪਈਆਂ ਨੇ।''
ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ, ਹਰ ਸਾਲ ਫੱਤੂ ਆਹਰ ਕਰਦਾ ਅਤੇ ਬੋਹੜਾਂ ਵਾਲੀ ਢਾਬ ਪੁੱਟੀ ਜਾਂਦੀ। ਉਹਦਾ ਢੋਲ ਗੂੰਜਦਾ, ਹੋਰ ਗੂੰਜਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਅਤੇ ਕਹੀਆਂ ਡੂੰਘੀਆਂ, ਹੋਰ ਡੂੰਘੀਆਂ ਧਸਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ। ਚੁਫੇਰੇ ਖੜ੍ਹੇ ਦਰੱਖਤਾਂ ਹੇਠ ਚੌਂਤਰੇ ਬੱਝ ਜਾਂਦੇ। ਇਹਨਾਂ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਇਕ-ਦੋ ਵਾਰ ਢਾਬ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਕੱਢੀ ਤਾਂ ਗਈ, ਪਰ ਨਾ ਬਰਾਬਰ।
ਸੁਖਵੰਤ ਨੇ ਕਿਹਾ, ''ਚਾਚਾ, ਤੇਰੇ ਬਿਨਾਂ ਜੇ ਢਾਬ ਪੱਟੀ ਵੀ, ਤਾਂ ਵੀ ਨਾ ਹੋਇਆਂ ਵਰਗੀ, ਤੂੰ ਹੀ ਹਿੰਮਤ ਕਰੇਂ ਤਾਂ ਗੱਲ ਬਣੇ।''
ਤੇ ਫੱਤੂ ਨੇ ਢਾਬ ਪੁੱਟਣ ਦਾ ਹੋਕਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ। ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਲੋਕ ਕਹੀਆਂ ਲੈ ਕੇ ਜਾ ਜੁਟੇ। ਫੱਤੂ ਢੋਲ ਵਜਾਉਂਦਾ ਹੋਇਆ, ਕਦੀ ਢਾਬ ਪੁੱਟਦਿਆਂ ਨੂੰ ਹੱਲਾਸ਼ੇਰੀ ਦਿੰਦਾ ਤੇ ਕਦੀ ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਗੇੜਾ ਦੇ ਕੇ ਹੋਰ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਘਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕਢਦਾ ਤੇ ਬੁੜ੍ਹੀਆਂ ਨੂੰ ਗੁੜ-ਚਾਹ ਤੇ ਦੁੱਧ ਭੇਜਣ ਲਈ ਆਖਦਾ।
ਤਿੰਨ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਭੂਤਾਂ ਵਾਂਗ ਲੱਗ ਕੇ ਸਾਰੀ ਢਾਬ ਪੁੱਟ ਸੁੱਟੀ ਅਤੇ ਫੱਤੂ ਨੇ ਢੋਲ ਗਲੋਂ ਲਾਹਿਆ।
ਕੱਲ੍ਹ ਤੋਂ ਉਹ ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਤਾਏ ਦੇ ਘਰ ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਊਰੀ ਵਾਂਗ ਘੁੰਮਦਾ ਫਿਰਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਆਹ ਵਿਚ ਲਿਖਾ-ਪੜ੍ਹੀ ਵਾਲਾ, ਗਿਣਤੀ-ਮਿਣਤੀ ਵਾਲਾ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਸੁਖਵੰਤ ਜ਼ਿੰਮੇ ਲੱਗਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਕੱਲ੍ਹ ਮੰਜੇ ਬਿਸਤਰੇ ਇਕੱਠੇ ਕੀਤੇ ਸਨ। ਫੱਤੂ ਦੋ ਲਾਗੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਸੱਤ-ਅੱਠ ਘਰ ਪੁੱਛ ਜਾਂਦਾ ਅਤੇ ਵਾਪਸ ਆ ਕੇ ਇਕੱਲੇ-ਇਕੱਲੇ ਮੰਜੇ ਬਿਸਤਰੇ ਉਤੇ ਸੁਖਵੰਤ ਤੋਂ ਮਾਲਕ ਦੇ ਨਾਂਅ ਵਾਲੀਆਂ ਪਰਚੀਆਂ ਲੁਆ ਦਿੰਦਾ। ਅੱਜ ਪਿਛਲੇ ਪਹਿਰ ਨਿਉਂਦਾ ਪੈਣਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸੁਖਵੰਤ ਨੇ ਤਾਏ ਦੀ ਵਹੀ ਫਰੋਲ ਕੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਘਰਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਨਿਉਂਦੇ-ਸਲਾਮੀ ਦਾ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਸੀ, ਉਹਨਾਂ ਘਰਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਕਾਪੀ ਉਤੇ ਬਣਾ ਲਈ ਸੀ।
ਫੱਤੂ ਨੇ ਸੁਖਵੰਤ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਉਹਨੂੰ ਇਕ ਪਾਸੇ ਦੇ ਪੰਦਰਾਂ-ਵੀਹ ਘਰ ਗਿਣਾ ਦੇਵੇ। ਫੇਰ ਉਹ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਘਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਪੁੱਛ ਕੇ ਉਧਰ ਚਲਿਆ ਜਾਵੇਗਾ।
ਸੁਖਵੰਤ ਨੇ ਫੱਤੂ ਨੂੰ ਇਕੋ ਪਾਸੇ ਦੇ ਅਠਾਰਾਂ ਘਰ ਗਿਣਾ ਦਿੱਤੇ। ਉਹਨੇ ਇਕ ਵਾਰ ਉਹਨਾਂ ਸਾਰੇ ਘਰਾਂ ਦਾ ਨਕਸ਼ਾ ਦਿਮਾਗ ਵਿਚ ਬਣਾਇਆ। ਫੇਰ ਆਪਣੀ ਤਰਤੀਬ ਅਨੁਸਾਰ ਉਹਨਾਂ ਅਠਾਰਾਂ ਦੇ ਅਠਾਰਾਂ ਘਰ ਸੁਖਵੰਤ ਸਾਹਮਣੇ ਗਿਣੇ-ਚਾਰੇ ਘਰ ਦਫੇਦਾਰਾਂ ਦੇ, ਤਿੰਨੇ ਘਰ ਸਰਪੰਚ ਕੇ, ਤਿੰਨੇ ਘਰ ਨੰਗ ਪੈਰਿਆਂ ਦੇ, ਦੋਵੇਂ ਘਰ ਚਿੜੀਮਾਰਾਂ ਦੇ, ਸੂਰਜਨ ਕਾ, ਗੋਧੇ ਕਾ, ਮੱਖਣ ਸਿਉਂ ਕਾ, ਦਰਬਾਰਾ ਸਿਉਂ ਕਾ, ਦਿਆਲੇ ਕਾ, ਸੁਰਤੇ ਕਾ, ਤੇ, ਉਹ ਖੱਬੇ ਮੋਢੇ ਉਤੇ ਪਰਨਾ ਠੀਕ ਕਰਦਿਆਂ, ਨਿੰਮ ਨਾਲ ਖੜ੍ਹੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੋਟੀ ਚੁੱਕ ਕੇ ਤਿੱਖੀ ਤੋਰ ਤੁਰ ਗਿਆ।
ਸੁਖਵੰਤ ਫੱਤੂ ਦੇ ਤੇ ਮਰਾਸੀ ਜਾਤ ਦੇ ਚੇਤੇ ਬਾਰੇ ਸੋਚਦਾ ਨਿੰਮ ਹੇਠ ਖੁੰਢ ਉਤੇ ਬੈਠ ਗਿਆ।
ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਖੁਸ਼ੀ ਗਮੀ ਦੇ, ਵਿਆਹ ਸੋਗ ਦੇ ਹਰ ਮੌਕੇ ਉਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਮਰਾਸੀ ਹਾਜ਼ਰ ਹੁੰਦੇ। ਇਕ ਵਾਰ ਗੱਲ ਸਮਝਾ ਦਿਉ, ਘਰ ਗਿਣਾ ਦਿਉ, ਬੰਦੇ ਦੱਸ ਦਿਉ, ਕੀ ਮਜ਼ਾਲ ਇਕ ਵੀ ਉਕਾਈ ਹੋ ਜਾਵੇ। ਨਾ ਕੰਮ ਤੋਂ ਟਲਣਾ, ਨਾ ਅੱਕਣਾ, ਨਾ ਥੱਕਣਾ।
ਕਈ ਦਿਨ ਹੋਏ ਸੁਖਵੰਤ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਅਖ਼ਬਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਗਿਆ। ਸੀ ਤਾਂ ਭਾਈ ਜੀ ਵੀ ਫੱਤੂ ਨੂੰ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ, ''ਮਰਦਾਨੇ-ਕਿਆ, ਤੇਰੇ ਬਿਨਾਂ ਬੜੀ ਔਖ ਕੱਟੀ, ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਤਾਂ ਕੀਰਤਨੀਏ ਸਿੰਘ ਹੀ ਕੱਠੇ ਕਰਨੇ, ਕਿਸੇ ਯੋਧੇ ਦਾ ਕੰਮ ਐ। ਤੇਰੇ ਮਗਰੋਂ ਚੌਕੀਦਾਰ  ਨੂੰ ਕਹੀਂਦਾ ਸੀ, ਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਸੱਪ ਲੜ ਜਾਂਦਾ ਸੀ, ਉਹਦੇ। ਹਰ ਵਾਰ ਇਹੋ ਕਹਿੰਦਾ.... ਭਾਈ ਜੀ ਇਕ ਕੀਰਤਨੀਆ ਸਿੱਖ ਪਿੰਡ ਦੇ ਇਕ ਸਿਰੇ, ਦੂਜਾ ਦੂਜੇ ਸਿਰੇ, ਤੀਜਾ ਤੀਜੇ ਸਿਰ, ਮੇਰੇ ਤਾਂ ਗੋਡੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਐ।''
ਤੇ ਫੱਤੂ ਸੰਤਾਲੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਂਗ ਹੀ ਜਿਸ ਦਿਨ ਕਿਸੇ ਦੇ ਆਸਾ ਦੀ ਵਾਰ ਦਾ ਕੀਰਤਨ ਹੋਣਾ ਹੁੰਦਾ, ਸਵੇਰੇ ਕੁੱਕੜ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਬਾਂਗ .ਨਾਲ ਉਠਦਾ, ਉਹ ਸਾਰੇ ਕੀਰਤਨੀਆਂ ਨੂੰ ਘਰ ਘਰ ਜਾ ਕੇ ਕੱਢਦਾ ਤੇ ਫੇਰ ਵਾਜਾ ਵਜਾਉਣ ਵਾਲੇ ਨੇਤਰਹੀਣ ਨੰਦ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਡੋਲਿਉਂ ਫੜ ਕੇ ਆਪ ਕੀਰਤਨ ਵਾਲੇ ਘਰ ਜਾ ਪੁੱਜਦਾ।
ਫੱਤੂ ਉਹਨੀਂ ਅਠਾਰੀਂ ਘਰੀਂ ਆਖ ਕੇ ਮੁੜਿਆ, ਤਾਂ ਰਾਹ ਵਿਚ ਸੰਤੇ ਨਾਈ ਦੇ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਵਿਚ ਪੇਕੀਂ ਮਿਲਣ ਆਈ ਉਹਦੀ ਭੈਣ ਹਰ ਕੌਰ ਬੈਠੀ ਸੀ। ਹੋਰ ਟੱਬਰ ਅੰਦਰ ਸੀ। ਸੁੱਖ ਸਾਂਦ ਪੁੱਛ ਕੇ ਫੱਤੂ ਹਰ ਕੌਰ ਦੇ ਮੰਜੇ ਕੋਲ ਭੁੰਜੇ ਬੈਠ ਗਿਆ। ਉਹ ਬੀਤ ਸਮੇਂ ਦੀ ਉਸ ਸੁਆਹ ਨੂੰ ਫਰੋਲਦੇ ਰਹੇ ਜਿਹੜੀ ਕਦੀ ਲਟ-ਲਟ ਬਲਦੀ ਅੱਗ ਸੀ ਅਤੇ ਹੁਣ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਸੱਟਾਂ  ਨਾਲ, ਉਮਰ ਦੇ ਬੀਤਣ ਨਾਲ ਬੁੱਝਿਆਂ ਵਰਗੀ ਹੋਈ ਪਈ ਸੀ। ਉਠਣ ਲੱਗਿਆਂ ਫੱਤੂ ਆਪਣੇ ਕਮੀਜ਼ ਦੀ ਬਾਂਹ ਚਾੜ੍ਹਦਿਆਂ ਬੋਲਿਆ, ''ਹੁਣ ਤਾਂ ਹਰ ਕੁਰੇ ਧੌਲੇ ਵੀ ਆ ਗਏ। ਇਕ ਵਾਰੀ ਏਧਰ ਸਭ ਕੁਝ ਛੱਡਿਆ, ਪਰ ਗੁਰੂਸਰ ਦੇ ਮੇਲੇ ਤੋਂ ਲਿਆਂਦਾ ਤੇਰਾ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਤਵੀਤ ਅਜੇ ਵੀ ਮੇਰੇ ਡੌਲੇ ਨਾਲ ਬੰਨ੍ਹਿਆ ਹੋਇਐ।''
ਇਹਤੋਂ ਅੱਗੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰਹੀ ਅਤੇ ਉਥੋਂ ਉਠ ਕੇ ਬੜੇ ਕਾਹਲੇ-ਕਾਹਲੇ ਪੈਰੀਂ ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਘਰ ਵੱਲ ਤੁਰ ਪਿਆ।
ਅੱਲ੍ਹਾ ਖੈਰ ਆਖ ਕੇ ਫੱਤੂ ਸੁਖਵੰਤ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਖਲੋ ਗਿਆ, ''ਲੈ ਪ੍ਰਭਾ, ਉਹਨੀਂ ਅਠਾਰੀਂ ਘਰੀ ਹੋ ਆਇਆਂ। ਕਾਪੀ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਮਿਲਾ ਲੈ, ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦੇ ਹੀ ਨਾਂ ਕਹਿ ਆਇਆ ਹੋਵਾਂ।'' ਤੇ ੳਹਨੇ ਫੇਰ ਫ਼ਟਾ-ਫ਼ਟ ਘਰ ਗਿਣਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ, ''ਚਾਰੇ ਘਰ ਦਫ਼ੇਦਾਰਾਂ ਦੇ, ਤਿੰਨੇ ਘਰ ਸਰਪੰਚ ਕੇ, ਤਿੰਨੇ ਘਰ ਨੰਗ-ਪੈਰਿਆਂ ਦੇ, ਦੋਵੇਂ ਘਰ ਚਿੜੀਮਾਰਾਂ ਦੇ, ਸੁਰਜਨ ਕਾ....''
'ਬਸ ਬਸ, ਠੀਕ ਐ ਚਾਚਾ ਭਲਾ ਤੂੰ ਭੁੱਲ ਕੇ ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਘਰ ਆਖ ਦੇਵੇਂ!'' ਸੁਖਵੰਤ ਬੋਲਿਆ, ''ਚਾਹ ਹੁੰਦੀ ਐ, ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਪੀ ਕੇ ਹੀ ਜਾਈਂ।''
ਫੱਤੂ ਉਹਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਧਰਤੀ ਉਤੇ ਹੀ ਪੈਰਾਂ ਭਾਰ ਬੈਠ ਗਿਆ। ਸੁਖਵੰਤ ਫੱਤੂ ਨਾਲ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਜਦੋਂ ਤੋਂ ਫੱਤੂ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਮੁੜਿਆ ਸੀ ਤੇ ਯੂਸਫ ਨਾਲ ਇਕ ਦੋ ਵਾਰ ਸੁਖਵੰਤ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ, ਇਕ ਸਵਾਲ ਉਹਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਅਟਕਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਯੂਸਫ਼ ਕੋਲੋਂ ਉਹਦੇ ਇਸ ਸਵਾਲ ਦਾ ਕੋਈ ਜਵਾਬ ਨਹੀਂ ਸੀ ਮਿਲਿਆ। ਉਹ ਤਾਂ ਸਾਰਾ ਟੱਬਰ ਫੱਤੂ ਪਿੱਛੇ ਲੱਗਦੇ ਸਨ। ਜਿਵੇਂ ਉਹਨੇ ਕਿਹਾ, ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕੀਤਾ।
ਯੂਸਫ਼ ਦੇ ਦੱਸਣ ਅਨੁਸਾਰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਚਿਰ ਭਟਕ ਕੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਇਕ ਵਾਹਵਾ ਸਿਰ ਢੱਕਣ ਜੋਗਾ ਘਰ ਮਿਲ ਗਿਆ ਸੀ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਅਜੇ ਨਿੱਕਾ ਮੋਟਾ ਸਮਾਨ ਵੀ ਪਿਆ ਸੀ। ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਹਿੰਮਤ ਨਾਲ ਕਮਾਈ ਕਰ ਕੇ ਰੋਟੀ ਖਾਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ। ਫੇਰ ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਹੋਇਆ ਕਿ ਫੱਤੂ ਏਨੇਂ ਸਾਲਾਂ ਪਿਛੋਂ ਪਰਤ ਕੇ ਇੱਧਰ ਆ ਗਿਆ?
ਗੱਲਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਫੱਤੂ ਨੂੰ ਉਹਨੇ ਇਹ ਸਵਾਲ ਵੀ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ''ਚਾਚਾ, ਤੂੰ ਉਥੇ ਵਾਹਵਾ ਗੁਜ਼ਾਰੇ ਜੋਗਾ ਕੰਮ ਤੋਰ ਲਿਆ ਸੀ, ਫੇਰ ਤੈਨੂੰ ਏਥੇ ਆਉਣ ਦੀ ਕੀ ਸੁੱਝੀ?''
'ਪ੍ਰਭਾ, ਆਬਦੇ ਪ੍ਰਭ ਆਬਦੇ ਈ ਹੁੰਦੇ ਐ।'' ਉਹ, ਉਹਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਡੂੰਘਾ ਝਾਕਿਆ।
''ਚਾਚਾ, ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਯਾਦ ਕਰਕੇ ਦੁਖੀ ਨਾ ਹੋਈਂ, ਪਰ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਤੇਰਾ ਬਸ਼ੀਰਾ ਵੱਢ ਸੁੱਟਿਆ, ਤੇਰੀ ਨਿਆਮਤ ਨੂੰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿੱਥੇ ਖਪਾ ਦਿੱਤਾ, ਉਹ ਤੇਰੇ ਆਬਦੇ ਪ੍ਰਭ ਕਿਵੇਂ ਹੋਏ?'', ਸੁਖਵੰਤ ਉਹਦੇ ਨਾਲ ਵਾਪਰੀ ਚੇਤੇ ਕਰਕੇ ਭਾਵੁਕ ਹੋ ਗਿਆ।
ਫੱਤੂ ਇਕਦਮ ਉਦਾਸ ਹੋ ਗਿਆ। ਉਹਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਹਿ ਤੁਰੀਆਂ ਉਹ ਜਿਵੇਂ ਪੈਰਾਂ ਭਾਰ ਬੈਠਾ ਨਾ ਰਹਿ ਸਕਿਆ ਅਤੇ ਉਹਨੇ ਭੂੰਜੇ ਚੌਂਕੀ ਮਾਰ ਲਈ। ਦੋ ਮਿੰਟ ਉਹ ਚੁੱਪ ਬੈਠਾ ਮਿੱਟੀ ਫਰੋਲਦਾ ਰਿਹਾ, ਜਿਵੇਂ ਸੰਘ ਵਿਚੋਂ ਕੁਝ ਹੇਠਾਂ ਉਤਾਰ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਏਸ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਗਵਾਚੇ ਬਸ਼ੀਰੇ ਤੇ ਨਿਆਮਤ ਦੇ ਨਕਸ਼ ਲੱਭ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ। ਫੇਰ ਮੋਢੇ ਉਤੇ ਰੱਖੇ ਪਰਨੇ ਦੇ ਲੜ ਨਾਲ ਅੱਖਾਂ ਪੂੰਝ ਕੇ  ਸੰਭਾਲਦਿਆਂ ਉਹ ਬੋਲਿਆ, ''ਉਹ ਤਾਂ ਪ੍ਰਭਾ ਇਕ ਹਨ੍ਹੇਰੀ ਸੀ, ਕਾਲੀ-ਬੋਲੀ ਹਨ੍ਹੇਰੀ। ਸਭ ਦੀ ਮੱਤ ਮਾਰੀ ਗਈ ਸੀ, ਕਿਸੇ ਦਾ ਕੀ ਦੋਸ਼। ਉਹ ਤਾਂ ਅੱਲਾ ਦਾ ਹੀ ਕੋਈ ਕਹਿਰ ਸੀ। ਹਨ੍ਹੇਰੀ ਆਈ ਤੇ ਨੰਘ ਗਈ; ਹੁਣ ਯਾਦ ਕੀਤਿਆਂ ਕੀ ਫ਼ਾਇਦਾ?''
ਉਹਦੇ ਜਵਾਬ ਨਾਲ ਸੁਖਵੰਤ ਦੀ ਤਸੱਲੀ ਨਾ ਹੋਈ, ''ਨਹੀਂ ਚਾਚਾ, ਮੰਨ ਚਾਹੇ ਨਾ, ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਜ਼ਰੂਰ ਔਖਾ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇਂਗਾ। ਸੁਣਿਐ, ਉਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਏਧਰ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਮੰਦੀ ਐ?''
''ਹਾਲ-ਹੂਲ ਤਾਂ, ਪ੍ਰਭਾ ਸਾਰੇ ਹੀ ਇਹੋ ਜਿਐ। ਦਿਨ ਲੰਘੀ ਈ ਜਾਂਦੇ ਸੀ'', ਉਹਨੇ ਡੱਕੇ ਨਾਲ ਪੁੱਟੀ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਉਂਗਲਾਂ ਫੇਰਦਿਆਂ ਆਖਿਆ।
''ਪਰ ਫੇਰ ਤੈਨੂੰ ਕੀ ਆਫ਼ਤ ਪਈ ਸੀ। ਇਕ ਵਾਰ ਤਾਂ ਏਥੇ ਵਸਦਾ ਰਸਦਾ ਘਰ 'ਡਾਢਿਆਂ' ਦੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਬਣਾਉਣ ਉਤੇ ਛੱਡ ਗਿਆ ਸੀ। ਹੁਣ ਦੂਜੀ ਵਾਰ ਆਬਦਾ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਆਪੇ ਬਣਾ ਕੇ ਘਰ ਘਾਟ ਛੱਡ ਆਇਆ?''
ਫੱਤੂ ਨੀਵੀਂ ਪਾ ਕੇ ਚੁੱਪ ਕਰ ਗਿਆ। ਸੁਖਵੰਤ ਉਸ ਵੱਲ ਵੇਖਦਾ ਰਿਹਾ, ਪਰ ਬੋਲਿਆ ਕੁੱਝ ਨਾ। ਛੇਕੜ ਫੱਤੂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਤਿੱਖੀਆਂ, ਭੱਖਦੀਆਂ, ਅੱਖਾਂ ਉਹਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਅਤੇ ਬੋਲਿਆ, 'ਪ੍ਰਭਾ, ਉਹ ਘਰ ਘਾਟ ਮੇਰਾ ਕਾਹਦਾ ਸੀ? ਹਿੰਦੂਸਤਾਨੀ, ਸਾਨੂੰ ਰਹਿਣ ਨਹੀਂ ਸੀ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ, ਸਾਨੂੰ ਸਮਝਦਾ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਅਸੀਂ ਤਾਂ 'ਮੁਹਾਜ਼ਿਰ' ਸੀ, 'ਰਫਿਊਜੀ' ਵਿਚਾਰੇ!''
ਤੇ ਫੇਰ ਉਹਨੇ ਇਕ ਦਮ ਆਪਣੇ ਸਾਹਮਣਿਉਂ ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਮੁੱਠ ਚੁੱਕ ਕੇ ਅੱਖਾਂ ਮੀਟਦਿਆਂ ਮੱਥੇ ਨੂੰ ਲਾਈ, 'ਪ੍ਰਭਾ, ਮੈਨੂੰ ਇਹਦੀ ਖਿੱਚ ਨੇ ਮਾਰਿਆ। ਉਥੇ ਇਹ ਨ੍ਹੀਂ ਸੀ।''

 
ਗੋਕਲ ਤੋਂ ਗੁਰੂਕੁਲ ਤੀਕ
 
- ਸਰਬਜੀਤ ਸੋਢੀ ਉਹ ਤਾਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਨੇ......
ਕਨੱਈਆ ਰਾਸਲੀਲਾ ਹੀ ਕਰੇ,
ਗੋਪੀਆਂ ਵਿਚ ਮਗਨ ਹੀ ਰਹੇ,
ਕਿਤੇ ਕਨੱਹੀਏ ਤੋਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਨਾ ਬਣਜੇ !
ਪਰ ਕਨੱਈਆ ਹੁਣ ਬੱਚਾ ਨਹੀਂ
ਜੋ ਮਹਿਜ਼.......
ਮੱਖਣ ਨਾਲ ਵਰਚ ਜਾਵੇ
ਉਹ ਤਾਂ ਕਦੋਂ ਦਾ ਨਿਕਲ ਆਇਆ ਹੈ,
ਰਿਸ਼ੀ ਵੇਦਵਿਆਸ ਦੇ ਉਪਨਿਆਸ ਵਿਚੋਂ !
ਉਹ ਤਾਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਨੇ.......
ਕਨੱਈਆ ਕੈਫ਼ੇ ਵਿੱਚ ਬੈਠਾ
ਕੌਫ਼ੀ ਦੇ ਕੱਪ 'ਚੋਂ ਚੁਸਕੀਆਂ ਭਰਦਾ ਰਹੇ
ਤੇ ਘਟੀਆ ਚੁਟਕਲਿਆਂ 'ਤੇ
ਤਾੜੀਆਂ ਮਾਰਕੇ ਹੀ ਘਰ ਨੂੰ ਚਲਾ ਜਾਵੇ
ਉਹ ਗੋਪੀਆਂ ਦੇ ਫੰਡਿਆਂ 'ਤੇ ਰਹੇ
ਜਾਂ ਯਮੁਨਾ ਦੇ ਕੰਢਿਆਂ 'ਤੇ ਰਹੇ
ਪਰ ਲਾਮਬੰਦ ਹੋਕੇ......
ਕਦੀ ਸੜਕਾਂ 'ਤੇ ਨਾ ਆਏ !
ਉਹ ਤਾਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਨੇ.......
ਕਿ ਕਨੱਈਆ ਮੁਲਖ਼ ਦੀਆਂ
ਖੱਚ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਪੜਚੋਲ ਨਾ ਕਰੇ
ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਪਾਰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਬੈਠਾ.......
ਤਾੜਦਾ ਰਹੇ ਗੋਪੀਆਂ ਦੇ ਉਭਾਰਾਂ ਨੂੰ !
ਕੁਮੈਂਟ ਪਾਸ ਕਰਦਾ ਰਹੇ,
ਵਕਤ ਨਾਸ ਕਰਦਾ ਰਹੇ,
ਪਰ ਜੂਝਦੇ ਹੋਏ ਕਾਫ਼ਲਿਆਂ ਦਾ
ਕਦੇ ਮੋਹਰੀ ਨਾ ਬਣੇ !
ਉਹ ਤਾਂ ਚਾਹੁੰਦੇ ਨੇ......
ਕਿ ਕਨੱਈਆ ਫ਼ਰਕ ਨਾ ਕਰੇ
ਖ਼ਾਕੀ ਤੇ ਇਖ਼ਲਾਕੀ ਰੰਗਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ !
ਉਹ ਅੰਤਰ ਨਾ ਸਮਝੇ,
ਹਾਫ਼ ਨਿੱਕਰ ਤੇ ਪਤਲੂਨ ਦੇ ਵਿੱਚ !
ਉਹ ਸਿਰ 'ਤੇ ਮੱਖੀਆਂ ਦੇ ਭਿੰਨਭਨਾਉਣ ਨੂੰ
ਅਸਹਿਣਸ਼ੀਲਤਾ ਨਾ ਕਹੀ ਜਾਵੇ,
ਸਗੋਂ ਟਿੰਡ 'ਤੇ......
ਅਨੂਪਮ ਖੇਰ ਵਾਂਗ,
ਦੇਸ਼ਭਗਤੀ ਦੀ ਚਾਹਣੀ ਲਾਕੇ ਰੱਖੇ !
ਪਰ ਜੇਕਰ ਉਸਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ
ਬਾਂਸਰੀ ਦੀ ਥਾਂ 'ਤੇ,
ਲਾਲ ਪਰਚਮ ਹੋਇਆ
ਤਾਂ ਦੇਸ਼ਧ੍ਰੋਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਏਗਾ।
ਇਸਨੂੰ ਵਿਦਰੋਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਏਗਾ!!


ਕਵਿਤਾ
ਹਰ ਵਾਰ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ
 
- ਅਜੀਬ ਦਿਵੇਦੀਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦੇ ਨਾਗਪੁਰੀ ਪ੍ਰਮਾਣ ਪੱਤਰ!
ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਧ੍ਰੋਹ ਦੇ ਝੂਠੇ ਲੇਬਲ ਲੈ ਕੇ,
ਓਹ ਕੋਈ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਨਹੀਂ ਆਏ।
ਓਹ ਹਰ ਵਾਰ ਏਦਾਂ ਹੀ ਆਉਂਦੇ ਨੇ।
ਕਦੇ ਬਾਬਰ ਦੇ ਵੇਸ ਵਿਚ!
ਕਦੇ ਔਰੰਗੇ ਦੇ ਭੇਸ ਵਿਚ।
ਮੁਸੋਲੀਨੀ ਦਾ ਫਾਸ਼ੀਵਾਦ,
ਹਿਟਲਰ ਦਾ ਨਾਜ਼ੀਵਾਦ,
ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਲਹੂ 'ਚ ਘੁਲਿਆ ਹੋਇਐ।
ਅਨੇਕਾਂ ਬਲੀ-ਕੰਧਾਰੀਆਂ,
ਤੇ ਮਲਿਕ ਭਾਗੋਆਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝ ਭਿਆਲੀ ਪਾਈ!
ਓਹ ਬਹੁਤ ਵਾਰ ਆਏ ਨੇ।

ਓਹ ਜਿੰਨੀ ਵਾਰ ਵੀ ਆਏ ਨੇ!
ਹਰ ਵਾਰ ਹੀ ਧਰਤੀ ਦੇ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੇ,
ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਭਾਂਜ ਪਾਈ ਹੈ।
ਹਰ ਵਾਰ ਹੀ ਮਾਨਵਤਾ ਦੇ ਆਸ਼ਕਾਂ ਨੇ,
ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਮੂੰਹ ਭੰਨਿਆ ਹੈ।
ਹਰ ਵਾਰ ਹੀ ਕਿਰਤ ਦੇ ਰਾਖਿਆਂ ਨੇ,
ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਦੰਦ ਖੱਟੇ ਕੀਤੇ ਹਨ।
ਹਰ ਵਾਰ ਹੀ ਉਹ,
ਪੂਛ ਦਬਾ ਕੇ ਭੱਜੇ ਹਨ।
ਇਤਿਹਾਸ ਹੁਣ ਫਿਰ ਦੁਹਰਾਇਆ ਜਾਏਗਾ,
ਸੰਗਰਾਮੀ ਪਰਚਮ ਲਹਿਰਾਇਆ ਜਾਏਗਾ,
ਹਰ ਵਾਰ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਸ ਵਾਰ ਵੀ! 

उसको फांसी दे दो
 
- गोरख पांडेवह कहता है उसको रोटी-कपड़ा चाहिए
बस इतना ही नहीं, उसे न्याय भी चाहिए
इस पर से उसको सचमुच आजादी चाहिए
उसको फांसी दे दो।
    वह कहता है उसे हमेशा काम चाहिए
    सिर्फ काम ही नहीं, काम का फल भी चाहिए
    काम और फल पर बेरोक दखल भी चाहिए,
    उसको फांसी दे दो।
वह कहता है कोरा भाषण नहीं चाहिए
झुठे वादे हिंसक शासन नहीं चाहिए
भूखे-नंगे लोगों की जलती छाती पर
नकली जनतंत्री सिंहासन नहीं चाहिए
उसको फांसी दे दो।
    वह कहता है अब वह सबके साथ चलेगा
    वह शोषण पर टिकी व्यवस्था को बदलेगा
    किसी विदेशी ताकत से वह मिला हुआ है
    उसकी इस गद्दारी का फल तुरत मिलेगा
    आओ देशभक्त जल्लादो
    पूंजी के विश्वस्त प्यादो
    उसको फांसी दे दो।



ਗ਼ਜ਼ਲ
 
- ਅਜੇ ਤਨਵੀਰਆਪਣੀ ਉਡਾਨ ਖੁੱਲ੍ਹੇ ਅਸਮਾਨ ਵਿਚ ਭਰੇਗਾ
ਚਿੜੀਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਚੰਬਾ ਬਾਜਾਂ ਤੋਂ ਨਾ ਡਰੇਗਾ
    ਸਿਰ ਵਾਰਨੇ ਦੀ ਏਥੇ ਜਦ ਵੀ ਹੈ ਲੋੜ ਪੈਣੀ
    ਕਲਗੀ ਸਜਾ ਕੇ ਸੰਗਤ ਸਿੰਘ ਭੇਟ ਸਿਰ ਕਰੇਗਾ
ਦਰਿਆ ਸਿਤਮ ਤੇਰੇ ਦਾ ਹੈ ਸ਼ੂਕਦਾ ਕਦੋਂ ਦਾ
ਪਰ ਸਿਦਕ ਦਾ ਕਿਨਾਰਾ ਹਰਗਿਜ਼ ਨਹੀਂ ਖਰੇਗਾ
    ਹਰ ਹਾਲ ਯੁੱਧ ਲੜਨਾ ਅਧਿਕਾਰ ਆਪਣੇ ਲਈ
    ਇਹ ਕੌਣ ਸੋਚਦਾ ਫਿਰ ਜਿੱਤੇਗਾ ਜਾਂ ਹਰੇਗਾ
ਫਰਮਾਨ ਮਿਲ ਗਿਆ ਹੁਣ ਜੰਗਲ ਦਾ ਪੰਛੀਆਂ ਨੂੰ
ਅੱਜ ਤੋਂ ਕੋਈ ਵੀ ਬਹੁਤੀ ਚਹਿ-ਚਹਿ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ
    ਜੋ ਗਰਜਦਾ ਚਿਰਾਂ ਤੋਂ ਮਾਰੂਥਲਾਂ ਤੇ ਬੱਦਲ
    ਪੱਕਾ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਹੁਣ ਕਿਸ ਥਾਂ 'ਤੇ ਜਾ ਵਰੇਗਾ
ਇਸ 'ਨੇਰ੍ਹ ਘੁੱਪ ਘਰ ਨੂੰ ਹੈ ਲੋੜ ਰੌਸ਼ਨੀ ਦੀ,
ਉਸ ਵਾਸਤੇ ਵਸੀਲਾ 'ਤਨਵੀਰ' ਹੁਣ ਕਰੇਗਾ।

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਖੱਬੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਵਲੋਂ ਸੰਘ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਫਿਰਕੂ ਹਮਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲਾਮਿਸਾਲ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਅਤੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਖੱਬੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਨੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦੀ ਚੁਣੌਤੀ ਨੂੰ ਕਬੂਲਦਿਆਂ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੀਮਤ 'ਤੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੇ ਮਨਸੂਬਿਆਂ ਨੂੰ ਸਫਲ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਫ਼ਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਦੇ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਦੈਂਤ ਨੂੰ ਆਪਸੀ ਭਾਈਚਾਰਕ ਸਾਂਝ ਅਤੇ ਜਮਾਤੀ ਤਬਕਾਤੀ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਹੋਰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਤੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਏਕਤਾ ਰਾਹੀਂ ਨੱਥ ਮਾਰਨ, ਦੇਸ਼ ਭਰ ਅੰਦਰ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਲੋਕਾਂ 'ਚ ਵੰਡੀਆਂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਵਿਛਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹਿੰਦੂਤਵ ਦਾ ਜਾਲ ਕੱਟਣ ਲਈ ਸਮੂਹ ਖੱਬੀਆਂ ਤੇ ਇਨਕਲਾਬੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਾਂਗ ਸੂਬੇ ਭਰ 'ਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਲੋਕ ਲਹਿਰ ਖੜੀ ਕਰਨਗੀਆਂ। ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਹਾਲ ਜਲੰਧਰ ਵਿਖੇ ਸੂਬੇ ਦੀਆਂ ਅੱਠ ਖੱਬੀਆਂ ਤੇ ਇਨਕਲਾਬੀ ਧਿਰਾਂ ਵੱਲੋਂ 23 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਰਵਸਾਥੀ ਜੋਗਿੰਦਰ ਦਿਆਲ, ਅਜਮੇਰ ਸਿੰਘ, ਵਿਜੈ ਮਿਸ਼ਰਾ, ਹਰਕੰਵਲ ਸਿੰਘ, ਰਾਜਵਿੰਦਰ ਰਾਣਾ, ਨਰਾਇਣ ਦੱਤ, ਲੋਕ ਰਾਜ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋ. ਏ. ਕੇ ਮਲੇਰੀ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਹੇਠ ਸੱਦੀ ਗਈ ਸਾਂਝੀ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਵਲੋਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ।
ਮਈ 2014 ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਹਕੂਮਤ 'ਤੇ ਕਾਬਜ਼ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਫ਼ਿਰਕੂ ਲੀਹਾਂ 'ਤੇ ਵੰਡਣ, ਧਾਰਮਿਕ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀਆਂ, ਦਲਿਤਾਂ ਨੂੰ ਫ਼ਿਰਕੂ ਅੱਗ ਰਾਹੀਂ ਮਾਰਨ, ਕਤਲ ਕਰਨ, ਦਹਿਸ਼ਤਜ਼ਦਾ ਕਰਨ ਖਿਲਾਫ਼  ਲੋਕ ਸੰਘਰਸ਼ ਖੜਾ ਕਰਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ 'ਚ ਫ਼ਿਰਕੂ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਖਿਲਾਫ਼ ਇਕ ਸਾਂਝਾ ਮੰਚ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਵੀ ਸਰਬ ਸੰਮਤ ਰਾਇ ਬਣੀ। ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ 'ਚ ਬੋਲਦਿਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਪੂਨਾ ਫਿਲਮ ਇੰਸਟੀਚਿਊਟ, ਫਿਰ ਮਦਰਾਸ, ਫਿਰ ਸੈਂਟਰਲ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਹੈਦਰਾਬਾਦ ਅਤੇ ਹੁਣ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ 'ਚ ਇਸ ਫ਼ਿਰਕੂ ਜ਼ਹਿਰੀ ਨਾਗ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਇਨਸਾਫ਼ਪਸੰਦ ਲੋਕਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਅਨੇਕਾਂ ਸਵਾਲ ਖੜੇ ਕੀਤੇ ਹਨ।  ਹੈਦਰਾਬਾਦ 'ਚ ਰੋਹਿਤ ਵੇਮੁਲਾ ਨੂੰ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕਰਨਾ, ਜੇ ਐੱਨ ਯੂ 'ਚ ਬਕਾਇਦਾ ਸਾਜ਼ਿਸ਼ ਤਹਿਤ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਕਨ੍ਹੱਈਆ ਕੁਮਾਰ ਤੇ ਸਾਥੀਆਂ ਉਪਰ ਦੇਸ਼-ਧ੍ਰੋਹ ਦਾ ਪਰਚਾ ਦਰਜ਼ ਕਰਨਾ, ਪਟਿਆਲਾ ਹਾਊਸ ਕੋਰਟ 'ਚ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਦੇ ਗੁੰਡਿਆਂ ਵਲੋਂ ਵਕੀਲਾਂ, ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ, ਅਧਿਆਪਕਾਂ 'ਤੇ ਹਮਲੇ, ਦਿੱਲੀ ਤੇ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ 'ਚ ਸੀ ਪੀ ਐੱਮ  ਦਫ਼ਤਰਾਂ 'ਤੇ ਹਮਲੇ, ਆਦਿ ਸਾਰੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਜ਼ਾਹਰ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਫਰੰਟ 'ਤੇ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਅੰਨ੍ਹੀ ਕੌਮਪ੍ਰਸਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬਚਾਅ ਤੇ ਵਿਸਤਾਰ ਲਈ ਪੂਰੀ ਬੇਸ਼ਰਮੀ ਨਾਲ ਚੁੱਕ ਰਹੀ ਹੈ। ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਬੋਲਣ ਤੇ ਵਿਚਾਰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ 'ਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਫ਼ਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤਾਂ ਵੱਲੋਂ ਹਮਲਿਆਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਚੁਣੌਤੀ ਵਜੋਂ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜਮਹੂਰੀ ਹੱਕਾਂ ਨੂੰ ਪੈਰਾਂ ਹੇਠ ਰੋਲਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਿਰਤੀ ਕਦਾਚਿਤ ਨਹੀਂ ਦੇਣਗੇ। ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਨੇ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਲੋਂ ਰੋਹਿਤ ਵੇਮੁਲਾ ਨੂੰ ਇਨਸਾਫ਼ ਦਿਵਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਇਨਸਾਫ਼ ਮਾਰਚ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕਰਦਿਆਂ ਜੇ ਐੱਨ ਯੂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਗੂ ਕਨ੍ਹੱਈਆ ਕੁਮਾਰ ਖਿਲਾਫ਼ ਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਨੂੰ ਉਲਝਾਉਣ ਖਿਲਾਫ਼ ਰੋਸ ਜ਼ਾਹਰ ਕਰਦਿਆਂ ਸਾਰੇ ਕੇਸ ਰੱਦ ਕਰਨ ਤੇ ਕਨ੍ਹੱਈਆ ਕੁਮਾਰ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਦਿਅਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਅੰਦਰ ਪੁਲਸ ਦਾਖਲੇ ਨੂੰ ਬੰਦ ਕਰਨ ਦੀ ਜੇ ਅੱੈਨ ਯੂ ਦੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੀ  ਮੰਗ ਦਾ ਵੀ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ। ਇਕ ਮਤੇ ਰਾਹੀਂ ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਨੇ ਆਦਿਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਹੱਕੀ ਲੜਾਈ ਲੜ ਰਹੀ ਸਮਾਜਕ ਕਾਰਕੁਨ ਸੋਨੀ ਸੋਰੀ 'ਤੇ ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਹਮਲੇ ਦੀ ਸਖਤ ਨਿੰਦਾ ਕਰਦਿਆਂ ਹਮਲਾਵਰਾਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਖ਼ਤ ਕਾਨੂੰਨੀ ਕਾਰਵਾਈ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ। ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ 'ਚ ਬਿਗੁਲ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦਸਤਾ ਦੇ ਵਰਕਰ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ। ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਦੌਰਾਨ ਸਟੇਜ ਸਕੱਤਰ ਦੇ ਫਰਜ਼ ਸੀ ਪੀ ਆਈ ਆਗੂ ਸਾਥੀ ਜਗਰੂਪ ਨੇ ਨਿਭਾਏ।
ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਹਾਲਾਤ 'ਤੇ ਚਿੰਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਕਰਦਿਆਂ ਸੀ ਪੀ ਆਈ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਹਰਦੇਵ ਅਰਸ਼ੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਿੰਨੀ ਅਜੀਬ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਰਸੇ 'ਚ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਨਹੀਂ; ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿਛੋਕੜ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੱਦਾਰੀ ਵਾਲਾ ਹੈ, ਅੱਜ ਉਹ ਦੇਸ਼ਭਗਤੀ ਦੇ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਵੰਡ ਰਹੇ ਹਨ।
ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਦੇ ਪੋਤੜੇ ਫਰੋਲਦਿਆਂ ਸਾਥੀ ਅਰਸ਼ੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਗਵਾਹ ਹੈ ਕਿ ਸੰਘ ਦੇ ਪਿਤਾਮਾ ਗੋਲਵਾਲਕਰ ਨੂੰ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਨਹੀਂ, ਆਪਣਾ ਫਿਰਕੂ ਏਜੰਡਾ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਦੀ ਚਿੰਤਾ ਸੀ। ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਲੜ ਮਰਨ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ। ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ 'ਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਇਆ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਖੱਬੀ ਲਹਿਰ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾ ਸ਼ਹੀਦਾਂ 'ਤੇ ਫ਼ਖਰ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਸਦਕਾ ਪੰਜਾਬ ਅੱਜ ਭਾਰਤ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹੈ।
ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ-ਭਾਜਪਾ ਵਾਲੇ ਹਰ ਖੇਤਰ 'ਚ ਆਪਣੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਕਰਕੇ ਆਪਣਾ ਪੂਰਾ ਗਲਬਾ ਕਾਇਮ ਕਰਨ ਲਈ ਵਾਹ ਲਾਈ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾ ਇਸ ਮੌਕੇ ਸਾਰੀਆਂ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਸਾਂਝੇ ਮੰਚ ਨਾਲ ਜੁੜਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ।
ਸੀ ਪੀ ਆਈ (ਐੱਮ) ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਚਰਨ ਸਿੰਘ ਵਿਰਦੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਬਹੁਤ ਭਿਅੰਕਰ ਹਾਲਾਤ 'ਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਹੀ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਢੰਗ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਢਾਂਚੇ 'ਤੇ ਹਮਲਾ ਬੋਲਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਪਾਰਟੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ 'ਤੇ ਹੋਏ ਹਮਲਿਆਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਦਿਆਂ ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਵੱਖਵਾਦੀ ਖਾਲਿਸਤਾਨੀ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨੇ 'ਤੇ ਵੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਹਿਲੇ ਨੰਬਰ 'ਤੇ ਸਨ ਅਤੇ ਹੁਣ ਸੰਘ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨੇ 'ਤੇ ਵੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਹਿਲੇ ਨੰਬਰ 'ਤੇ ਹਨ। 
ਸੀ ਪੀ ਐਮ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਇਕੱਠ ਦਾ ਮਕਸਦ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿਰ 'ਤੇ ਮੰਡਰਾ ਰਹੇ ਖ਼ਤਰੇ ਬਾਰੇ ਜਾਗਰੂਕ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਆਰ ਐਸ ਐੱਸ-ਭਾਜਪਾ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈਦਰਾਬਾਦ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਦਲਿਤ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰ ਵਿਰੋਧੀ ਕਰਾਰ ਦੇ ਕੇ ਰੋਹਿਤ ਵੇਮੁੱਲਾ ਨਾਂਅ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰ ਵਿਰੋਧੀ ਕਰਾਰ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਉਹ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਤਾਕਤਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਚੁਣੌਤੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਵਾਲੇ ਅੱਜ ਇਸ ਚੁਣੌਤੀ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਾਂ।
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੰਗਾਰਦਿਆਂ ਸਾਥੀ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਆਜ਼ਾਦੀ ਸਿਰ ਦਿੱਤੇ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਮਿਲੀ ਤੇ ਇਸ ਦੀ ਰਾਖੀ ਵੀ ਸਿਰ ਦਿੱਤੇ ਬਿਨਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋਣੀ। ਫਿਰਕੂ-ਫ਼ਾਸ਼ੀਵਾਦੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਅੱਜ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਬਦਲਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਰਸਮੋ-ਰਿਵਾਜ਼ ਬਦਲੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਭਾਜਪਾ ਨੂੰ ਵੋਟਾਂ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਰਾਮਜ਼ਾਦੇ ਤੇ ਵਿਰੋਧ 'ਚ ਵੋਟ ਪਾਉਣ ਵਾਲੇ ਹਰਾਮਜ਼ਾਦੇ ਵਰਗੀਆਂ ਘਟੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਕੇ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੀ ਨੀਤੀ 'ਤੇ ਚੱਲਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਨੇ ਹਿਟਲਰ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਸੱਚ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦਿੱਤੇ ਸਨ, ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਘੀ ਫਾਸ਼ੀਵਾਦੀਆਂ ਦੇ ਸੁਪਨੇ ਵੀ ਸੱਚ ਨਹੀਂ ਹੋਣ ਦੇਵਾਂਗੇ।
ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਲਈ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਲਾ ਕੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਸੰਘ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦਾ ਮਤਲਬ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ 'ਤੇ ਚੱਲਣ ਵਾਲਾ, ਅੰਬੇਡਕਰ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲਾ ਉਨ੍ਹਾ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਧਰੋਹੀ ਹੈ। ਇਸੇ ਮਾਹੌਲ 'ਚ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਕਾਤਲ ਨੱਥੂ ਰਾਮ ਗੌਡਸੇ ਦੇ ਨਾਂਅ 'ਤੇ ਮੰਦਰ ਬਣਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ।
ਸਾਥੀ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਕੁਰਬਾਨੀਆ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ। ਗੁਰੂਆਂ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਸਮੇਤ ਪੂਰਾ ਪਰਵਾਰ ਵਾਰਨ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ। ਅੱਜ ਇਸ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਬਦਲਣ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਮੁਕੱਦਮਾ ਚਲਾਏ ਦੋਸ਼ੀ ਠਹਿਰਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਹੁਣ ਤੀਸਰਾ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਦਲਿਤ ਤੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਹਨ। ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੇ ਗੁੰਡਾ ਅਨਸਰ ਹੁਣ ਇਨ੍ਹਾਂ ਧਰਤੀ ਪੁੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਮੁਕਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਸਾਡੇ ਕੋਲੋਂ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਦਾ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਮੰਗ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾ ਵੰਗਾਰ ਕੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਸੰਘ ਦੇ ਕਿਸੇ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ। ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਮਿਲੇਗਾ ਗ਼ਦਰੀ ਸੂਰਬੀਰ ਬਾਬਾ ਜਵਾਲਾ ਸਿੰਘ ਤੋਂ, ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੇਣਾ ਹੈ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਸ ਗੱਲ 'ਤੇ ਖੁਸ਼ੀ ਜ਼ਾਹਰ ਕੀਤੀ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਲੜਨ ਵਾਲੀਆਂ ਲੱਗਭੱਗ ਸਾਰੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਇੱਕ ਮੰਚ 'ਤੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾ ਬਾਹਰ ਰਹਿ ਗਈਆਂ ਕੁਝ ਧਿਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਸਾਂਝੇ ਮੰਚ 'ਤੇ ਆਉਣ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ।
ਸੀ ਪੀ ਆਈ (ਐੱਮ ਐੱਲ) ਲਿਬਰੇਸ਼ਨ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ ਬਖਤਪੁਰਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਸਰਹੱਦਾਂ ਨਹੀਂ ਤੈਅ ਕਰਦੀਆਂ। ਪਾਕਿਸਾਤਨ ਨੂੰ ਗਾਲਾਂ ਕੱਢਣਾ ਹੀ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਉਹੀ ਹੈ, ਜੋ ਲੋਕ ਹਿੱਤਾਂ ਲਈ ਲੜੇ, ਕਿਉਂਕਿ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਦੀ ਜਹਿਨੀਅਤ ਵਿੱਚ ਹੀ ਫਾਸ਼ੀਵਾਦ ਹੈ। ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਿਰੋਧੀ ਵਿਚਾਰ ਨੂੰ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਕਰਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਨਹੀਂ। ਅੱਜ ਅੰਬੇਡਕਰ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਦਲਿਤ ਵੀ ਨਿਸ਼ਾਨੇ 'ਤੇ ਹਨ ਤੇ ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ 'ਤੇ ਚੱਲਣ ਵਾਲੇ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਦੀ ਇਹ ਚੁਣੌਤੀ ਸਵੀਕਾਰ ਹੈ। ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੀਮਤ 'ਤੇ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਨੂੰ ਦਨਦਨਾਉਣ ਨਹੀਂ ਦੇਵੇਗੀ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਦਾ ਇਹ ਇਕੱਠ ਐਲਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਫਾਸ਼ੀਵਾਦੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਜੰਗ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਕਰਨਗੇ। ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਦੇ ਦੇਸ਼ਭਗਤੀ ਦੇ ਸਰਟੀਫਿਕੇਟ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ, ਕਿਉਂਕਿ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ।
ਸੀ ਪੀ ਆਈ (ਐੱੰਮ ਐੱਲ) ਨਿਊ ਡੈਮਕਰੇਸੀ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂ ਸਾਥੀ ਦਰਸ਼ਨ ਸਿੰਘ  ਖਟਕੜ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੰਘ ਵੱਲੋਂ ਇਹ ਬਿਆਨ ਆਇਆ ਸੀ ਕਿ ਸੱਤ ਸੌ ਸਾਲ ਬਾਅਦ ਇੱਕ ਸਵੈਭਿਮਾਨੀ ਹਿੰਦੂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੱਤਾ 'ਤੇ  ਬੈਠਾ ਹੈ। ਉਦੋਂ ਹੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਹਾਲਾਤ ਕੀ ਹੋਣਗੇ। ਘਰ ਵਾਪਸੀ ਦੀ ਮੁਹਿੰਮ, ਦਾਦਰੀ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੇ ਖਤਰੇ ਦੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਸੰਕੇਤ ਦਿੱਤੇ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਤੋੜ ਮਰੋੜ ਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਗਲਤ ਹੱਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸਮੱਸਿਆ ਜਾਇਦਾਦ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੀ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਡਟ ਕੇ ਵਕਾਲਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਮਨੂੰ ਸਮਰਿਤੀ ਦੀ ਅੱਜ ਵੀ ਇਹ ਲੋਕ ਪੂਜਾ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਮਿਥਿਹਾਸ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਬਣਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਇਨਕਲਾਬੀ ਕੇਂਦਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਕੰਵਲਜੀਤ ਖੰਨਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ  ਪ੍ਰਗਤੀਵਾਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਸੰਘੀਆਂ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਹੈ। ਹੈਦਰਾਬਾਦ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਸਕਾਲਰ ਰੋਹਿਤ ਵੇਮੁੱਲਾ 'ਤੇ ਮਾਰਕਸਵਾਦ ਤੇ ਅੰਬੇਡਕਰ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਹੈ। ਇਹ ਲੋਕ ਉਹ ਹਰ ਇੰਸਟੀਚਿਊਟ ਖੋਹਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿੱਥੇ ਕੱਟੜਪੁਣੇ ਨੂੰ ਵੰਗਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜੇ ਐੱਨ ਯੂ 'ਤੇ ਹਮਲਾ ਇਸੇ ਸੇਧ ਵਿੱਚ ਹੈ।
ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਗਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਨੇ ਜਿਹਨਾਂ ਸਾਮਰਾਜੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਖਿਲਾਫ ਆਪਣੀਆਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀਆਂ ਲੇਖੇ ਲਾ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ, ਅੱਜ ਮੋਦੀ 'ਮੇਕ ਇਨ ਇੰਡੀਆ' ਦੇ ਨਾਂਅ ਹੇਠ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਸੱਦਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜਿੰਨੀ ਖੁੱਲ੍ਹਦਿਲੀ ਨਾਲ ਮੋਦੀ ਵੱਲੋਂ ਸਮਰਾਜੀ ਨੀਤੀਆਂ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਅਸੀਂ ਉਸੇ ਦਲੇਰੀ ਤੇ ਜਬ੍ਹੇ ਨਾਲ ਇਸ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਕਰਾਂਗੇ।
ਲੋਕ ਸੰਗਰਾਮ ਮੰਚ ਦੇ ਸਾਥੀ ਬਲਵੰਤ ਮਖੂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਹਰ ਹੁਕਮਰਾਨ ਨੇ ਬਾਗੀ ਸੁਰਾਂ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ, ਕਾਲੇ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ, ਜ਼ੁਲਮ ਸਿਤਮ ਹਰ ਹਰਬਾ ਵਰਤਿਆ, ਪਰ ਲੋਕ ਆਵਾਜ਼ ਦੱਬੀ ਨਹੀਂ। ਜੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਵਹਿਮ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਧਰਤੀ 'ਤੇ ਆਵਾਜ਼ਾਂ ਦੱਬ ਜਾਣਗੀਆਂ ਤਾਂ ਉਹਨੂੰ ਇਸ 'ਚੋਂ ਨਿਕਲ ਆਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।
ਜਮਹੂਰੀ ਅਧਿਕਾਰ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਪ੍ਰੋ. ਜਗਮੋਹਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅਸਲ ਲੜਾਈ ਲੋਕ ਹਿੱਤ ਬਨਾਮ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਹਿੱਤ ਦੀ ਹੈ। ਕੇਂਦਰ ਦੀ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਜਗਤ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰਦਗੀ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਸਾਰਾ ਬੱਜਟ ਇਸ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਬੱਜਟ 'ਚ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਬਦਮਾਸ਼ੀ ਤੋਂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਭਟਕਾਉਣ ਲਈ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਡਬਲਯੂ ਟੀ ਓ 'ਚ ਕੀਤੇ ਲੋਕ ਤੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਸਮਝੌਤਿਆਂ ਤੋਂ ਧਿਆਨ ਭਟਕਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ।
ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਕਿਰਦਾਰ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦਿਆਂ ਪ੍ਰੋ. ਜਗਮੋਹਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕ ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਫੈਸਲਾ ਕਿਸਾਨਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਖੋਹਣ ਦਾ ਹੀ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਕੋਲ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਲਈ ਤਾਂ ਪੈਸੇ ਨਹੀਂ, ਪਰ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ 'ਚ ਉੱਚੇ-ਉੱਚੇ ਝੰਡੇ ਲਾਉਣ 'ਤੇ 185 ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਖਰਚੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ, ਇਹ ਪੈਸਾ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜੇਬਾਂ 'ਚੋਂ ਦੇਸ਼ ਭਗਤੀ ਦਾ ਟੈਕਸ ਲਾ ਕੇ ਕੱਢਿਆ ਜਾਵੇਗਾ।
ਕਨਵੈਨਸ਼ਨ ਉਪਰੰਤ ਦੂਰਦਰਾਜ ਤੋਂ ਆਏ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ ਦੇ ਫ਼ਿਰਕੂ ਹਮਲਿਆਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਜਲੰਧਰ ਸ਼ਹਿਰ 'ਚ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਰੋਹ ਭਰਪੂਰ ਤੇ ਫ਼ਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਵਿਰੋਧੀ ਰੋਹਲੇ ਨਾਅਰੇ ਗੂੰਜਾਉਂਦਿਆਂ ਵਿਰੋਧ ਮਾਰਚ ਕੀਤਾ। ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਫੜੀ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਆਰ ਐੱਸ ਐੱਸ ਦੇ ਖਤਰਨਾਕ ਮਨਸੂਬਿਆਂ ਵੱਲ ਖਿੱਚਿਆ। 

ਅਲਾਦੀਨਪੁਰ ਦੇ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਪਰਵਾਰਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਜਿੱਤ

ਠੀਕ ਹੀ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿਸੇ ਨੇ ''ਉਜਾੜੇ ਵਾਲਾ ਵਿਕਾਸ'', ਅਜੋਕੇ ਮੋਦੀਨੁਮਾ ਵਿਕਾਸ ਮਾਡਲ ਬਾਰੇ। ਇਸ ਵਿਕਾਸ ਨਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਹੋਏ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਲਾਭਾਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਜੋ ਛਿੱਛਪੱਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਵੀ ਖੁਸ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਠੀਕ ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਹੋਇਆ ਤਰਨਤਾਰਨ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਪਿੰਡ ਅਲਾਦੀਨਪੁਰ ਵਾਸੀ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਦਲਿਤ ਪਰਵਾਰਾਂ ਨਾਲ। ਇਹ ਪਿੰਡ ਤਰਨਤਾਰਨ ਤੋਂ ਹਰੀਕੇ ਮਾਰਗ 'ਤੇ ਐਨ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਨਾਲ ਲੱਗਦਾ ਹੈ। ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹੀ ਬਣਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਸੜਕਾਂ ਨੂੰ ਚਹੁੰ-ਮਾਰਗੀ, ਛੇ-ਮਾਰਗੀ ਬਨਾਉਣ ਦੀ ਜਨੂੰਨੀ ਹਿੰਡ ਅਧੀਨ ਇਕ ਪ੍ਰੋਜੈਕਟ ਪਾਸ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਸ਼੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਸ਼੍ਰੀ ਗੰਗਾਨਗਰ ਬਰਾਸਤਾ ਬਠਿੰਡਾ ਸੜਕ ਨੂੰ ਛੇ-ਮਾਰਗੀ ਬਨਾਉਣ ਦਾ। ਜਾਹਿਰ ਹੈ ਸੜਕ 'ਚ ਆਉਂਦੀ ਜ਼ਮੀਨ, ਮਕਾਨ, ਦੁਕਾਨ, ਸਕੂਲ, ਹਸਪਤਾਲ, ਜੀਵਨ ਰੱਖਿਅਕ ਬਿਰਖ ਆਦਿ ਸਭ ਦਾ ਸਫਾਇਆ ਹੋਣਾ ਸੀ। ਇਸੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਮਾਰ ਹੇਠ ਆ ਗਿਆ ਪਿੰਡ ਅਲਾਦੀਨਪੁਰ ਵੀ। ਪਿੰਡ ਦੇ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਦੀ ਸੜਕ ਦੇ ਦੋਹੀਂ ਪਾਸੀਂ ਵਸੇ ਘਰਾਂ ਦੇ ਵੀ ਢਹਿਣ ਦਾ ਫਰਮਾਨ ਆ ਗਿਆ। ਮੁੱਢਲੇ ਵਿਰੋਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਿਵਾਇਤ ਅਨੁਸਾਰ ਕਈ ਲੋਕੀਂ ਮੁਆਵਜ਼ੇ ਆਦਿ ਨਾਲ ਵਰਚਾ ਲਏ ਗਏ। ਪਰ ਸਭ ਤੋਂ ਜੱਗੋਂ ਤੇਰ੍ਹਵੀ ਹੋਈ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਦਲਿਤ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨਾਲ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸੜਕ 'ਤੇ ਉਸਾਰੀਆਂ ਕਰਨ ਵੇਲੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਮੁੱਲ ਲੈ ਲਈ ਸੀ ਉਹ ਖੁਦ ਇਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਨਹੀਂ ਸਨ ਬਲਕਿ ਪੰਚਾਇਤੀ ਜ਼ਮੀਨ 'ਤੇ ਕਾਬਜ਼ ਸਨ। ਥੁੜ੍ਹਾਂ ਮਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਕੱਚੀਆਂ ਜਾਂ ਅਸ਼ਟਾਮੀ ਲਿਖਤਾਂ ਆਦਿ ਕਰਕੇ ਜ਼ਮੀਨ ਮੁੱਲ ਲੈ ਲਈ ਅਤੇ ਘਰ ਆਦਿ ਬਣਾ ਲਏ। ਪਿਛੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਘਰਾਂ ਦੇ ਮੂਹਰਲੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਹੱਟੀਆਂ ਬਣਾ ਲਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ 'ਚ ਵਧੇਰੇ ਕਰਕੇ ਦਸਤਕਾਰੀ ਦਾ ਕੰਮ ਚਲਦਾ ਸੀ। ਪਰ ਅਸਲੀ ਮੁੱਦਾ ਉਦੋਂ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਇਆ ਜਦੋਂ ਸੜਕ ਚੌੜੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਬਜ਼ਾਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਘਰਾਂ ਵਾਲੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮੁਆਵਜ਼ੇ ਦੇ ਚੈਕ ਗ੍ਰਾਮ ਪੰਚਾਹਿਤ ਦੇ ਨਾਂਅ 'ਤੇ ਬਣ ਕੇ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਅੱਗੋਂ ਗਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਕੋਈ ਥੜ੍ਹੇ ਥੂਹ ਨਾ ਲੱਗਣ ਦੇਵੇ। ਸਾਰਿਆਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋਏ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਅਖੀਰ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਕੋਲ ਪਹੁੰਚ ਕੀਤੀ। ਸਭਾ ਦੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਕਮੇਟੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਨਸਾਫ ਦਿਵਾਉਣ ਦਾ ਭਰੋਸਾ ਦਿੰਦਿਆਂ ਸੰਘਰਸ਼ ਆਰੰਭ ਦਿੱਤਾ। ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਮੁਆਵਜ਼ੇ ਤੋਂ ਆਨਾਕਾਨੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਪੰਚਾਇਤ ਦੀ ਢਾਲ ਬਣੀ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ. ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੇ ਦਫਤਰ ਮੂਹਰੇ ਪੱਕਾ ਮੋਰਚਾ ਲਾਉਣ ਤੋਂ ਹੋਈ। ਇਹ ਮੋਰਚਾ  ਸੰਤਾਲੀ ਦਿਨ ਚੱਲਿਆ।
ਧਰਨੇ ਦੌਰਾਨ ਲਗਭਗ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਹੀ ਤਰਨਤਾਰਨ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਇਸ ਅਨਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ। ਸਥਾਨਕ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਕਰਤੇ ਧਰਤੇ ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਜਮਾਤੀ ਖਾਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਡਾਢੇ ਔਖੇ ਰਹੇ।
ਪ੍ਰੰਤੂ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਸ਼ਹਿਰ 'ਚੋਂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਭਰਪੂਰ ਸਹਿਯੋਗ ਮਿਲਦਾ ਰਿਹਾ। ਆਪਣੇ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਕਿਰਦਾਰ ਦੇ ਅਨੁਰੂਪ ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੀ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ ਅਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਇਸ ਹੱਕੀ ਘੋਲ ਦੇ ਹਰ ਵੇਲੇ ਅੰਗ ਸੰਗ ਰਹੀਆਂ। ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਆਸ਼ਾ ਵਰਕਰਜ਼, ਮਿਡ ਡੇ ਮੀਲ ਵਰਕਰਜ਼, ਜਨਵਾਦੀ ਇਸਤਰੀ ਸਭਾ, ਪੰਜਾਬ ਨਿਰਮਾਣ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਆਦਿ ਸੰਗਠਨ ਵੀ ਭਰਵੀਂ ਮਦਦ ਦਿੰਦੇ ਰਹੇ।
ਹਾਕਮਾਂ ਨੇ ਪੀੜਤਾਂ ਦਾ ਦਰਦ ਸੁਣਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਉਲਟਾ ਬੌਖਲਾਹਟ ਭਰੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ। ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਇਹ ਹੀਜ਼ ਪਿਆਰ ਲੋਕਾਂ 'ਚ ਬੇਪਰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਪਿੰਡਾਂ 'ਚ ਪੋਲ ਖੋਲ ਮਾਰਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਿਸਨੂੰ ਪੇਂਡੂ ਵਸੋਂ ਨੇ ਬਣਦਾ ਸਹਾਰਾ ਅਤੇ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ।
ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਮਜ਼ਦੂਰ ਪਰਵਾਰ ਨਿੱਕੇ-ਨਿੱਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਅਤੇ ਵਡੇਰੀ ਉਮਰ ਦੇ ਬਜ਼ੁਰਗਾਂ ਸਮੇਤ ਕਹਿਰਾਂ ਦੀ ਠੰਡ ਵਿਚ ਮੋਰਚੇ 'ਚ ਹੀ ਰਾਤਾਂ ਕੱਟਦੇ ਰਹੇ।
'ਸਿਤਮਜਰੀਫ਼ੀ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਸਿਦਕ ਦਾ ਠੁੰਮਣਾ' ਦੀ ਰਿਵਾਇਤ ਅਨੁਸਾਰ ਮਜ਼ਦੂਰ ਪਰਵਾਰਾਂ ਨੇ 2016 ਦੀ ਲੋਹੜੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਵੀ ਮੋਰਚੇ 'ਚ ਹੀ ਮਨਾਇਆ।
ਲੋਕਾਂ 'ਚ ਹੁੰਦੀ ਥੂਹ ਥੂਹ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਅਫਸਰਸ਼ਾਹੀ ਬੇਡੋਲ ਖੜੋ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਵੱਲ ਝਾਕਦੀ ਰਹੀ। ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੀ ਸੂਬਾਈ ਟੀਮ ਨੇ ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਘੋਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਲੈਂਦਿਆਂ ਤਿੰਨ ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਤਰਨਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਉਜਾੜਾ ਵਿਰੋਧੀ ਸੂਬਾਈ ਰੈਲੀ ਰੱਖ ਦਿੱਤੀ। ਉਪਰਲੀਆਂ ਪੰਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਦਰਜ ਭਰਾਤਰੀ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ ਹੋਈ ਭਰਵੀਂ ਰੈਲੀ ਪਿਛੋਂ ਮੇਨ ਰੋਡ 'ਤੇ ਘੰਟਿਆਂ ਬੱਧੀ ਜਾਮ ਲਾਇਆ ਗਿਆ। ਪੁਲਸ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂਆਂ ਦੀ ਸੂਬੇ ਦੇ ਉਪ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਨਾਲ ਮੀਟਿੰਗ ਕਰਵਾਈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਪ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ  ਨੇ ਭਰੋਸਾ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਉਹ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਤਰਨਤਾਰਨ ਦੀ ਡਿਊਟੀ ਲਾ ਕੇ ਮਸਲੇ ਦਾ ਯੋਗ ਹੱਲ ਕੱਢਣਗੇ। ਸੂਬਾਈ ਟੀਮ ਨੇ ਇਸ ਭਰੋਸੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਾਮ ਤਾਂ ਚੱਕ ਲਿਆ ਪਰ ਲਗਾਤਾਰ ਚਲਦਾ ਪੱਕਾ ਮੋਰਚਾ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ। ਡੀ. ਸੀ. ਤਰਨਤਾਰਨ ਨਾਲ ਹੋਈ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂਆਂ ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਦਾਊਦ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ, ਦਰਸ਼ਨ ਨਾਹਰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਨੇ ਅਲਾਦੀਨਪੁਰ ਦੇ ਉਜਾੜੇ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਮਿਲਣ ਦਾ ਪੱਖ ਬੜੇ ਬਾਦਲੀਲ ਢੰਗ ਨਾਲ ਰੱਖਿਆ। ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਕੋਲ ਜਵਾਬ ਤਾਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਬਸ ਐਵੇਂ ਜਿਦ ਹੀ ਫੜੀ ਬੈਠੇ ਸਨ। ਗਲ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਅਤੇ ਉਚ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਤੱਕ ਪੁੱਜੀ। ਉਥੇ ਹੋਈ ਗੱਲਬਾਤ ਦੇ ਫੈਸਲਿਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ 'ਤੇ 19 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਜਲੰਧਰ ਡਿਵੀਜਨ ਦੇ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਨੇ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂਆਂ ਨਾਲ ਕਈ ਗੇੜਾਂ 'ਚ ਮੀਟਿਗਾਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਉਚ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਤੇ ਸਭਾ ਦੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਟੀਮ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਕੱਤਰ ਕ੍ਰਮਵਾਰ ਚਮਨ ਲਾਲ ਦਰਾਜਕੇ ਅਤੇ ਜਸਪਾਲ ਸਿੰਘ ਝਬਾਲ ਵੀ ਮੀਟਿੰਗਾਂ 'ਚ ਹਾਜ਼ਰ ਰਹੇ।
ਅਖੀਰ ਸਾਰੀਆਂ ਸਬੰਧਤ ਧਿਰਾਂ ਦੀ ਸਹਿਮਤੀ ਨਾਲ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਕਿ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਜੋ ਘਰ, ਦੁਕਾਨਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਕਦ ਮੁਆਵਜ਼ਾ 41 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ 'ਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਰ ਪਰਵਾਰ ਦੀ ਅਕੁਆਇਰ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਉਸ ਤੋਂ ਡੇਢ ਗੁਣਾ ਜਮੀਨ ਮੁੱਲ ਲੈ ਕੇ ਪੀੜਤ ਪਰਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ ਅਤੇ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਰਜਿਸਟਰੀ ਇੰਤਕਾਲ ਆਦਿ ਦੇ ਖਰਚੇ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਹੀ ਕਰੇਗੀ। ਨਵੀਂ ਜਗ੍ਹਾ ਬਾਰੇ ਵੀ ਦੋਹਾਂ ਧਿਰਾਂ 'ਚ ਸਹਿਮਤੀ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ। ਇੰਝ ਇਹ 47 ਦਿਨ ਚੱਲਿਆ ਨਿਆਂਈ ਸੰਗਰਾਮ ਮਾਨ ਕਰਨ ਯੋਗ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਨੇਪਰੇ ਚੜ੍ਹਿਆ। ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਨੇ ਘੋਲ ਦੀ ਕਾਮਯਾਬੀ ਲਈ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸਭਨਾਂ ਧਿਰਾਂ ਦਾ ਤਹਿਦਿਲੋਂ ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਅਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਸੂਬਾਈ ਟੀਮ ਵਲੋਂ ਸਿਦਕ ਦਿਲੀ ਨਾਲ ਘੋਲ ਲੜਨ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਅਲਾਦੀਨਪੁਰ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਯੋਗ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਤਰਨਤਾਰਨ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਸੰਗਰਾਮੀ ਮੁਬਾਰਕਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ।

ਜਨਤਕ ਲਾਮਬੰਦੀ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਮਾਰਚ 2016)

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ. ਦਫਤਰਾਂ ਅੱਗੇ ਧਰਨੇ 
8 ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੋਰਚੇ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ 15, 16, 17 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਭਰ ਵਿਚ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਧਰਨੇ ਮਾਰ ਕੇ ਹਰੇਕ ਤਹਿਸੀਲ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਐੱਸ.ਡੀ.ਐੱਮ. ਰਾਹੀਂ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜੇ ਗਏ। ਮਾਰਚ ਮਹੀਨੇ ਦੀ 15, 16 ਤੇ 17 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਵਿਚ 3 ਦਿਨ ਪੱਕਾ ਮੋਰਚਾ ਲਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਹਨਾ ਧਰਨਿਆਂ ਵਿਚ ਕੁਲ ਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ, ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਮੋਰਚਾ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ, ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ (ਮਸ਼ਾਲ) ਸਮੇਤ ਕੁੱਲ 8 ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ। 
ਇਹਨਾਂ ਧਰਨਿਆਂ ਵਿਚ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਜਨਤਕ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਵਾਲਾ ''ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰੀ ਤੇ ਨਿੱਜੀ ਜਾਇਦਾਦ ਭੰਨ ਤੋੜ ਰੋਕੂ ਕਾਨੂੰਨ 2014 ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰੱਦ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ, ਮਨਰੇਗਾ ਸਕੀਮ ਅਧੀਨ ਸਾਰੇ ਪਰਵਾਰ ਨੂੰ ਸਾਰਾ ਸਾਲ ਕੰਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤੇ ਦਿਹਾੜੀ ਘੱਟੋ ਘੱਟ 500 ਰੁਪਏ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਨਰਮਾ ਪੱਟੀ ਵਿਚ ਹੋਈ ਨਰਮੇ ਦੀ ਤਬਾਹੀ ਨਾਲ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਹੋਏ ਨੁਕਸਾਨ ਦਾ ਤੁਰੰਤ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਵੰਡਿਆ ਜਾਵੇ, ਸਾਰੇ ਲੋੜਵੰਦ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ 10-10 ਮਰਲੇ ਦੇ ਪਲਾਟ, ਰੂੜੀਆਂ ਸੁੱਟਣ ਲਈ ਟੋਏ ਤੇ ਮਕਾਨ ਉਸਾਰੀ ਲਈ ਢੁਕਵੀਂ ਗਰਾਂਟ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ। ਪੰਚਾਇਤੀ, ਸ਼ਾਮਲਾਟ ਤੇ ਮਕਾਨ ਉਸਾਰੀ ਲਈ ਢੁਕਵੀਂ ਗਰਾਂਟ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ। ਪੰਚਾਇਤੀ, ਸ਼ਾਮਲਾਟ ਤੇ ਲਾਲ ਲਕੀਰ ਅੰਦਰਲੀਆਂ ਥਾਵਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕੀ ਹੱਕ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ, ਪੰਚਾਇਤੀ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦਾ ਤੀਜਾ ਹਿੱਸਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਆਮ ਠੇਕੇ ਦੇ ਤੀਜੇ ਹਿੱਸੇ 'ਤੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ। ਪਬਲਿਕ ਵੰਡ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਕੇ ਸਾਰੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਡੀਪੂਆਂ ਰਾਹੀਂ ਸਬਸਿਡੀ 'ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ, ਰਹਿੰਦੇ ਨੀਲੇ ਕਾਰਡ ਤੁਰੰਤ ਬਣਾਏ ਜਾਣ, ਬੁਢਾਪਾ, ਵਿਧਵਾ ਤੇ ਅੰਗਹੀਣ ਪੈਨਸ਼ਨ 3000 ਰੁਪਏ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਘਰੇਲੂ ਬਿੱਲ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਮੁਆਫ ਕੀਤੇ ਜਾਣ, ਗਰੀਬੀ ਕਾਰਨ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਵਾਰਸਾਂ ਨੂੰ 5-5 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ, ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ 'ਤੇ ਹੁੰਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਜਬਰ ਤੇ ਪੁਲਸ ਜਬਰ ਬੰਦ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ, ਵਿਦਿਆ ਤੇ ਸਿਹਤ ਸਹੂਲਤਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣ, ਬਾਲ ਮਜ਼ੂਰੀ ਐਕਟ ਤੇ ਕਿਰਤ ਕਨੂੰਨਾਂ ਵਿਚ ਬੇਲੋੜੀਆਂ ਸੋਧਾਂ ਵਾਪਸ ਲਈਆਂ ਜਾਣ, ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਜਮਾਨਤ ਦੇਣ ਵੇਲੇ ਜ਼ਮੀਨ ਮਾਲਕੀ ਦੀ ਸ਼ਰਤ ਖਤਮ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ। ਇਹਨਾਂ ਧਰਨਿਆਂ ਨੂੰ ਸਾਰੀਆਂ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਜੋਰਾ ਸਿੰਘ ਨਸਰਾਲੀ, ਲਛਮਣ ਸਿੰਘ ਸੇਵੇਵਾਲਾ, ਰਾਮ ਸਿੰਘ ਨੂਰਪੁਰੀ, ਗੁਰਮੇਸ਼ ਸਿੰਘ, ਦਰਸ਼ਨ ਨਾਹਰ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਦਾਊਦ, ਹਰਵਿੰਦਰ ਸੇਮਾ, ਭਗਵੰਤ ਸਿੰਘ, ਸਵਰਨ ਸਿੰਘ ਜਾਗੋਕੇ, ਗੁਲਜਾਰ ਗੋਰੀਆ, ਤਰਸੇਮ ਪੀਟਰ, ਹੰਸ ਰਾਜ ਪੱਬਵਾਂ, ਸੰਜੀਵ ਮਿੰਟੂ, ਜੈਲ ਸਿੰਘ ਚੱਪਾਰਿੜਕੀ, ਦਰਬਾਰਾ ਸਿੰਘ ਫੂਲੇ ਵਾਲ, ਗਿੰਦਰ ਰੋਡੇ ਆਦਿ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ। ਸੂਬਾਈ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਧਰਨਾਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਜੇਕਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ ਤਾਂ 15, 16, 17 ਮਾਰਚ 2016 ਦੇ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਲਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪੱਕੇ ਮੋਰਚੇ ਦੀ ਕਾਮਯਾਬੀ ਲਈ ਦਿਨ-ਰਾਤ ਇਕ ਕਰ ਦੇਣ। ਸਮੁੱਚੇ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ. ਦਫਤਰਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਇਹ ਧਰਨੇ ਮਾਰਕੇ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਦਿਤੇ ਗਏ ਹਨ। ਸੂਬਾਈ ਦਫਤਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਰਿਪੋਰਟਾਂ ਹੇਠ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ :
 
ਪੱਟੀ : ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੋਰਚੇ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਹੱਕੀ ਤੇ ਵਾਜਬ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਪੱਟੀ ਦੇ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਤਹਿਸੀਲ ਪ੍ਰਧਾਨ ਹਰਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਚੂੰਘ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਵੱਲੋਂ ਬਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਜਾਣੇਕੇ ਅਤੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜੁਗਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵਲਟੋਹਾ ਨੇ ਕੀਤੀ।
ਇਸ ਮੌਕੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਮੀਤ ਪ੍ਰਧਾਨ ਚਮਨ ਲਾਲ ਦਰਾਜਕੇ, ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸਵਰਨ ਸਿੰਘ ਨਾਗੋਕੇ, ਕੁੱਲ ਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਲਛਮਣ ਦਾਸ ਪੱਟੀ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਰਾਣਾ ਮਸੀਹ ਚੂਸਲੇਵੜ, ਨਿਰਪਾਲ ਸਿੰਘ ਜੌਣਕੇ, ਰਛਪਾਲ ਸਿੰਘ, ਕਾਮਰੇਡ ਚਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਭਿੱਖੀਵਿੰਡ, ਭਜਨ ਸਿੰਘ ਨਾਰਲਾ, ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਲੋਹਕਾ, ਸੁਖਵੰਤ ਸਿੰਘ ਮਨਿਆਲਾ, ਗੁਰਬੀਰ ਸਿੰਘ ਭੱਟੀ ਰਾਜੋਕੇ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ। ਅੰਤ ਵਿੱਚ 12 ਮੰਗਾਂ ਵਾਲਾ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਪੱਟੀ ਰਾਹੀਂ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ।
 
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ  : ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੋਰਚੇ ਵੱਲੋਂ ਐਸ ਡੀ ਐਮ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਦਫਤਰ ਬਾਹਰ ਧਰਨਾ ਲਗਾਇਆ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਦੀ  ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਦੇਸਾ ਸਿੰਘ ਮਰੜੀ ਕੁਲਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਲੱਖਾ ਸਿੰਘ ਪੱਟੀ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ, ਗੁਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ਗਿਰਵਾਲੀ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਵੱਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ।
ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂ ਨਿਰਮਲ ਛੱਜਲਵੱਡੀ, ਪਵਨ ਕੁਮਾਰ ਮੋਹਕਮਪੁਰਾ, ਲੱਖਾ ਸਿੰਘ ਪੱਟੀ, ਗੁਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ਗਿੱਲਵਾਲੀ, ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਕੈਰੋਂਨੰਗਲ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਤਲਵੰਡੀ ਘੁਮਣ, ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿੰਘ, ਪਵਨ ਕੁਮਾਰ ਬੀਬੀ ਰਾਣੀ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਲੋਹੀਆ ਖਾਸ : ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਤਹਿਸੀਲ ਸ਼ਾਹਕੋਟ ਦੇ ਕਸਬਾ ਲੋਹੀਆਂ ਖਾਸ ਤੋਂ ਜਥਾ ਮਾਰਚ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ, ਜੋ ਲੋਹੀਆਂ ਖਾਸ ਤੋਂ ਪਿੰਡ ਸਿੱਧੂਪੁਰ, ਨਵਾਂ ਪਿੰਡ ਖਾਲੇਵਾਲ, ਕੰਗ ਖੁਰਗ, ਕੰਗ ਕਲਾਂ, ਕੋਟਲੀ ਕੰਬੋਜ, ਸੀਂਧੜਾ, ਹੇਰਾਂ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੋਇਆ ਸਹਿਕਾਰੀ ਸੁਸਾਇਟੀ ਪੂਨੀਆਂ ਅੱਗੇ ਰੈਲੀ ਕਰਕੇ ਸਮਾਪਤ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਜਥੇ ਮਾਰਚ ਦੌਰਾਨ 17 ਫਰਵਰੀ  ਨੂੰ ਸ਼ਾਹਕੋਟ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਵਧ-ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਪੱਜਣ ਦਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ।
ਹੋਰਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਇਸ ਜਥੇ ਨੂੰ ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਕੌਰ ਸਾਦਿਕਪੁਰ, ਜੀ ਐੱਸ ਅਟਵਾਲ, ਸੋਨੂੰ ਅਰੋੜਾ ਲੋਹੀਆਂ, ਨਿਰਮਲ ਸਿੰਘ, ਹਰਬੰਸ ਮੱਟੂ, ਮਲਕੀਤ ਭੋਇਪੁਰੀ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਸੰਧੂ ਅਤੇ ਲਵਲੀ ਪੂਨੀਆਂ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਮਾਨਸਾ : ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝ ਮੋਰਚੇ ਵੱਲੋਂ ਡੀ.ਸੀ ਦਫਤਰ ਮਾਨਸਾ ਵਿਖੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਤਹਿਸੀਲ ਪੱਧਰਾ ਧਰਨਾ ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਮੋਰਚਾ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਵੱਲੋਂ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਮੋਰਚਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਕਾਮਰੇਡ ਭਗਵੰਤ ਸਿੰਘ ਸਮਾਂਓ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਬਬਲੀ ਅਟਵਾਲ, ਪੰਜਾਬ ਕਿਸਾਨ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਭੂਰਾ ਸਿੰਘ ਮਾਨ, ਨਰਿੰਦਰ ਕੌਰ,  ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਖਾਰਾ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਕਾਮਰੇਡ ਬੰਤ ਸਿੰਘ ਝੱਬਰ ਨੇ ਇਨਕਲਾਬੀ ਗੀਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ।
 
ਮੁਕਤਸਰ : ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਸਥਾਨਕ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ. ਦਫ਼ਤਰ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਰੋਸ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਜਗਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੱਸੇਆਣਾ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਹਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਮਦਰੱਸਾ, ਤਰਸੇਮ ਸਿੰਘ ਖੁੰਡੇਹਲਾਲ, ਕਾਕਾ ਸਿੰਘ, ਨਾਨਕ ਚੰਦ ਬਜਾਜ, ਗੁਰਮੁੱਖ ਸਿੰਘ, ਮਹਿੰਗਾ ਰਾਮ, ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਜੰਗ ਸਿੰਘ, ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਗੁਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਅਮਰੀਕ ਸਿੰਘ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਦੇਸਾ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ : ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜਦੂਰ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਝੇਂ ਮੋਰਚੇ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਐੱਸ.ਡੀ.ਐੱਮ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ ਦੇ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਇਸ ਧਰਨੇ ਨੂੰੰ ਦਿਹਾਤੀ ਮਹਜਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂ ਮਿੱਠੂ ਸਿੰਘ ਘੁੱਦਾ, ਨਰਿੰਦਰ ਕੁਮਾਰ ਸੋਮਾ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਜਿਲ੍ਹਾ ਆਗੂ ਬਬਲੀ ਬੁਢਲਾਡਾ, ਨਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਆਹਲੂਪੁਰ, ਭਰਾਤਰੀ ਜੱਥੇਬੰਦੀ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾਂ ਦੇ ਤਹਿਸੀਲ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਕਰੰਡੀ ਅਤੇ ਸੂਬਾਈ ਆਗੂ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ ਲਾਲ ਚੰਦ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ  ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਐੱਸ.ਡੀ. ਐੱਮ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ ਨੇ ਧਰਨੇ ੱਿਵਚ ਆ ਕੇ ਹਾਸਲ ਕੀਤਾ।
 
ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ : ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਪਾਰਕ ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ਵਿਖੇ ਪੇਂਡੂ ਅਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜੰਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੋਰਚੇ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਅਤੇ ਧਰਨਾ ਦੇ ਕੇ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਵਿਰੁੱਧ ਤਿੱਖੇ ਰੋਹ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਧਰਨੇ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਕਾਲਾ ਮਸੀਹ, ਰਮੇਸ਼ ਲਾਲ ਪੰਡੋਰੀ, ਦਰਸ਼ਨ ਲਾਲ ਦੇ ਅਧਾਰਤ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਮੁਜ਼ਾਹਰਾਕਾਰੀ ਰੈਲੀ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ ਦੇ ਦਫਤਰ ਪਹੁੰਚੇ ਅਤੇ ਇਥੇ ਧਰਨਾ ਮਾਰਨ ਉਪਰੰਤ ਮੰਗਾਂ ਦਾ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਵੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਮਾਸਟਰ ਪ੍ਰੇਮ ਚੰਦ, ਵਿਜੇ ਕੁਮਾਰ ਸੁਹਲ, ਜਸਬੀਰ ਬੁੱਟਰ, ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਪਨਿਆੜ, ਮੱਖਣ ਸਿੰਘ ਕੁਹਾੜ, ਸੁਭਾਸ਼ ਕੈਰੇ, ਕੁਲਦੀਪ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਸ਼ਾਹਕੋਟ : ਅੱਠ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੰਚ ਵੱਲੋਂ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਦਫਤਰ ਸ਼ਾਹਕੋਟ ਅੱਗੇ ਸੈਂਕੜੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਰਵਾਰ ਸਹਿਤ ਧਰਨਾ ਲਾਇਆ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਰੋਸ ਮਾਰਚ  ਕੀਤਾ। 
ਧਰਨੇ ਨੂੰ  ਹੋਰਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਆਗੂ  ਹਰਮੇਸ਼ ਮਾਲੜੀ, ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੀ ਆਗੂ ਗੁਰਬਖ਼ਸ਼ ਕੌਰ ਸਾਦਿਕਪੁਰ, ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਨਿਰਮਲ ਸਿੰਘ ਸਹੋਤਾ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਚਰਨਜੀਤ ਥੰਮੂਵਾਲ, ਕੁਲ ਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਮਲਕੀਤ ਭੋਇਪੁਰੀ, ਸੁਖਵਿੰਦਰ ਲਾਲੀ, ਹਰਭਜਨ ਮਲਸੀਆਂ, ਹਰਬੰਸ ਲਾਲ ਮੱਟੂ, ਗੁਰਮੇਲ ਸੋਹਲ, ਰੂੜਾ ਰਾਮ ਪਰਜੀਆਂ, ਹਰਪਾਲ ਬਿੱਟੂ, ਹੰਸ ਰਾਜ ਪੱਬਵਾਂ ਅਤੇ ਸੁਸ਼ੀਲ ਕੁਮਾਰ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਜਲੰਧਰ : ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਮੰਚ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀਆਂ ਮੰਨੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਦੇ ਨਿਪਟਾਰੇ ਲਈ ਸੈਂਕੜੇ ਕਿਰਤੀਆਂ ਨੇ ਡੀ ਸੀ ਦਫ਼ਤਰ ਅੱਗੇ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ।
ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਧਰਨਾਕਾਰੀ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਹਾਲ ਦੇ ਵਿਹੜੇ 'ਚ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ, ਜਿੱਥੋਂ ਸ਼ਹਿਰ 'ਚ ਰੋਹ ਭਰਿਆ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਕਰਕੇ ਡੀ ਸੀ  ਦਫ਼ਤਰ ਅੱਗੇ ਪੁੱਜੇ, ਜਿੱਥੇ ਧਰਨੇ ਦੌਰਾਨ ਸਹਾਇਕ ਕਮਿਸ਼ਨਰ (ਜਨਰਲ) ਸ਼ਿਖਾ ਭਗਤ ਵੱਲੋਂ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਲੈ ਕੇ ਸਰਕਾਰ ਤੱਕ ਪੁਚਾਉਣ ਅਤੇ ਸਥਾਨਕ ਮੰਗਾਂ ਦਾ ਜਲਦੀ ਹੱਲ ਕਰਨ ਦਾ ਭਰੋਸਾ ਦਿੱਤਾ। ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਕੱਤਰ ਕਸ਼ਮੀਰ ਸਿੰਘ ਘੁੱਗਸ਼ੋਰ, ਕੇ ਐੱਸ ਅਟਵਾਲ, ਕੁੱਲ ਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਵਾਸਦੇਵ ਜਮਸ਼ੇਰ, ਬਲਦੇਵ ਨੂਰਪੁਰੀ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਤਲਵੰਡੀ ਸਾਬੋ : ਅੱਠ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸੱਦੇ ਉਪਰ ਸਮੁੱਚੇ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਐੱਸ ਡੀ ਐੱਮ ਦਫਤਰਾਂ ਅੱਗੇ ਆਪਣੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿੱਚ ਮਾਰੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਧਰਨਿਆਂ ਦੀ ਲੜੀ ਦੇ ਚੱਲਦਿਆਂ ਤਹਿਸੀਲ ਕੰਪਲੈਕਸ ਤਲਵੰਡੀ ਸਾਬੋ ਵਿਖੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ।
ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਜ਼ੋਰਾ ਸਿੰਘ ਨਸਰਾਲੀ ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ, ਜਰਨੈਲ ਸਿੰਘ ਚਨਾਰਥਲ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਮੋਰਚਾ ਦੇ ਆਗੂ ਪ੍ਰਿਤਪਾਲ ਸਿੰਘ, ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਆਗੂ ਮਿੱਠੂ ਸਿੰਘ ਘੁੱਦਾ, ਕਾਮਰੇਡ ਮੱਖਣ ਸਿੰਘ ਗੁਰੂਸਰ ਅਤੇ ਕਾਮਰੇਡ ਹਰਬੰਸ ਸਿੰਘ ਬਠਿੰਡਾ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਮਾਲੇਰਕੋਟਲਾ : ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਅੱਠ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜਦੂਰ ਸਭਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸੰਗਰੂਰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਕਾਮਰੇਡ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿੰਘ ਨਿਆਮਤਪੁਰ, ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਸਰਿੰਦਰ ਕੁਮਾਰ ਭੈਣੀ ਕਲਾਂ, ਕੁੱਲ ਹਿੰਦ ਖੇਤ ਮਜਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਤਹਿਸੀਲ ਮਾਲੇਰਕੋਟਲਾ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਮਹੋਲੀ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਹੇਠ ਐੱਸ.ਡੀ.ਐਮ ਦਫਤਰ ਦੇ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਰੋਸ ਰੈਲੀ ਕਰਨ ਉਪਰੰਤ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ ਅਮਿਤ ਬੈਂਬੀ ਨੂੰ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਸੋਪਿਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਕਾਮਰੇਡ ਭਰਪੂਰ ਸਿੰਘ ਬੁੱਲਾਪੁਰ, ਪੰਜਾਬ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ, ਗੁਲਜ਼ਾਰ ਗੋਰੀਆ ਡਿਪਟੀ ਜਰਨਲ ਸਕੱਤਰ ਭਾਰਤੀ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰ ਐਸ.ਡੀ.ਐਮ ਦਫਤਰ ਮਾਲੇਰਕੋਟਲਾ ਦੇ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਰੋਸ ਰੈਲੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਤੇ ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਮੰਗ ਪੱਤਰ ਐੱਸ.ਡੀ.ਐਮ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ।
ਰੋਸ ਰੈਲੀ ਦੌਰਾਨ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਗਈ ਕਿ ਕਨੱਈਆ ਕੁਮਾਰ ਨੂੰ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਰਤ ਰਿਹਾਅ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਵਿੱਦਿਅਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਫਿਰਕੂ ਜ਼ਹਿਰ ਨਾ ਘੋਲਿਆ ਜਾਵੇ। 
 
ਗੜ੍ਹਸ਼ੰਕਰ : 17 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਏਥੇ ਮਾਰੇ ਗਏ ਧਰਨੇ ਵਿਚ 250 ਤੋਂ ਵੱਧ ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਧਰਨਾ ਮਾਰਿਆ ਜਿਸ ਨੂੰ ਸਰਵਸਾਥੀ ਗੁਰਮੇਸ਼ ਸਿੰਘ, ਮਹਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਖੈਰੜ, ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਪਿਆਰਾ ਸਿੰਘ, ਹਰਭਜਨ ਅਟਵਾਲ ਤੇ ਸ਼ਾਦੀ ਰਾਮ ਕਪੂਰ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।

ਪੰਜਾਬ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਦੀਆਂ ਸਰਗਰਮੀਆਂਪੰਜਾਬ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਵਲੋਂ ਵਿਦਿਆ ਦੇ ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਵਪਾਰੀਕਰਨ ਅਤੇ ਭਗਵਾਕਰਨ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਆਦਿ ਦੇ ਮਸਲਿਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਵਿਦਿਆਥੀਆਂ ਦੀ ਲਾਮਬੰਦੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਜਿਸਦੀ ਕੜੀ ਵਜੋਂ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਾਲਜਾਂ, ਸਿੱਖਿਅਕ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਮੀਟਿੰਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਨਕ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਅੰਸ਼ਕ ਜਿੱਤਾਂ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ। ਵੱਖ ਵੱਖ ਥਾਂਵਾ 'ਤੇ ਹੋਏ ਐਕਸ਼ਨਾਂ ਦੌਰਾਨ ਹੋਏ ਇਕੱਠਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਅਜੈ ਫਿਲੌਰ, ਮਨਜਿੰਦਰ ਢੇਸੀ, ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ, ਸੋਨੂੰ ਢੇਸੀ, ਸੰਦੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਮੂਹਿਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਿਆ ਸਿਰਫ ਇਕ ਖਾਸ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਲਈ ਰਾਖਵੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਤੋਂ ਦੂਰ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਫਿਰਕੂਕਰਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਤੋੜ ਮਰੋੜ ਕੇ ਮਿਥਿਹਾਸ ਨਾਲ ਜੋੜ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਰਹੀਆਂ ਮਾੜੀਆਂ ਮੋਟੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਹਾਕਮ ਖੋਹਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਪੋਸਟ ਮੈਟ੍ਰਿਕ ਸਕਾਲਰਸ਼ਿਪ ਸਕੀਮ ਨੂੰ ਹੌਲੀ ਹੌਲੀ ਬੰਦ ਕੀਤਾ ਜਾਣਾ ਇਸਦਾ ਇਕ ਹਿੱਸਾ ਹੀ ਹੈ। ਬਸ ਪਾਸ ਸਹੂਲਤਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਐਕਟ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਣਦੇਖਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਅੰਨ੍ਹੇਵਾਹ ਲੁੱਟ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਪੈਸ਼ਲ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਬੱਸਾਂ ਅਤੇ ਲੈਪਟਾਪ ਦੇ ਵਾਅਦੇ ਕਰਕੇ ਸੱਤਾ ਉਪਰ ਕਾਬਜ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਸਰਕਾਰ ਆਪਣੇ ਵਾਅਦਿਆਂ ਤੋਂ ਭੱਜ ਚੁੱਕੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨਿੱਜੀ ਤੇ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣਿਆਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਲੁੱਟ ਕਰਨ ਦੀ ਖੁੱਲ ਦੇ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਪੋਸਟ ਮੈਟ੍ਰਿਕ ਸਕੀਮ ਨੂੰ ਬੰਦ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ, ਬਸ ਪਾਸ ਸਹੂਲਤ ਜਾਰੀ ਰੱਖੀ ਜਾਵੇ, ਬੱਸਾਂ ਵਿਚ ਗੰਦੇ ਲੱਚਰ ਗੀਤਾਂ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਜਾਵੇ। ਲੜਕੀਆਂ ਨੂੰ ਪੋਸਟ ਗ੍ਰੈਜੂਏਸ਼ਨ ਪੱਧਰ ਤੱਕ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਮੁਫ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ। ਸਿੱਖਿਆ ਅਦਾਰਿਆਂ ਵਿਚ ਪਈਆਂ ਖਾਲੀ ਅਸਾਮੀਆਂ ਤੁਰੰਤ ਭਰੀਆਂ ਜਾਣ। ਜ਼ਿਲ੍ਹਾਵਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਰਿਪੋਰਟਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ :
 
ਜਲੰਧਰ :  ਜਲੰਧਰ ਅੰਦਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵਲੋਂ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਹਾਲ ਵਿਚ ਹੋਏ ਇਕੱਠ ਨੂੰ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਅਜੈ ਫਿਲੌਰ, ਮਨਜਿੰਦਰ ਢੇਸੀ, ਸੁਖਬੀਰ ਸੁੱਖ, ਸੰਨੀ ਫਿਲੌਰ, ਮਨੋਜ ਕੁਮਾਰ, ਕਮਲਦੀਪ, ਬੌਬੀ, ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਬਿੱਪਨ ਕੁਮਾਰ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਪੀ.ਐਸ.ਯੂ. ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਜਸਕਰਨ ਆਜ਼ਾਦ ਤੇ ਗੁਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਫਿਲੌਰ : ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਵਲੋਂ ਪੀ.ਐਸ.ਐਫ. ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਸ਼ਹਿਰ ਅੰਦਰ ਜਬਰਦਸਤ ਰੋਸ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਕਾਲਜਾਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਲੁੱਟ ਵਿਰੁੱਧ ਜੰਮ ਕੇ ਨਾਹਰੇਬਾਜ਼ੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸੁਖਬੀਰ ਸੁਖ, ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ, ਮਨੀਸ਼ਾ ਆਦਿ ਨੇ ਕੀਤੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਇਕੱਠਾਂ ਨੂੰ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਅਜੈ ਫਿਲੌਰ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸੰਦੀਪ ਸਿੰਘ, ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ, ਗਗਨਦੀਪ, ਸੰਨੀ ਫਿਲੌਰ, ਪ੍ਰਭਾਤ ਕਵੀ, ਰਾਧਿਕਾ ਆਦਿ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਬੰਗਾ : ਇੱਥੇ ਪੀ.ਐਸ.ਐਫ. ਵਲੋਂ ਪੋਸਟ ਮੈਟ੍ਰਿਕ ਸਕਾਲਰਸ਼ਿਪ ਸਕੀਮ ਅਤੇ ਬੱਸਾਂ ਨੂੰ ਕਾਲਜ ਦੇ ਗੇਟ ਸਾਹਮਣੇ ਰੁਕਵਾਉਣ ਆਦਿ ਮੰਗਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰੋਸ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਜਿਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸੰਦੀਪ ਸਿੰਘ, ਯੁੱਧਵੀਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਕੀਤੀ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਅਜੈ ਫਿਲੌਰ, ਮਨਜਿੰਦਰ ਢੇਸੀ ਆਦਿ ਨੇ ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
 
ਫਗਵਾੜਾ : ਜੇ.ਐਨ.ਯੂ. ਦਿੱਲੀ ਅੰਦਰ ਵਾਪਰੀ ਘਟਨਾ ਅਤੇ  ਵਿਦਿਆਥੀ ਆਗੂ ਘਨ੍ਹਈਆ ਕੁਮਾਰ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਪੂਰੇ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਫਗਵਾੜਾ ਦੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਕਾਲਜਾਂ ਅੰਦਰ ਮੁਕੰਮਲ ਹੜਤਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਭਗਵਾਂਕਰਨ ਕੀਤੇ ਜਾਣ, ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ ਦਬਾਉਣ ਵਾਲੇ ਕੇਂਦਰੀ ਹਾਕਮਾਂ ਖਿਲਾਫ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਫਿਰਕੂ ਜਥੇਬੰਦੀ ਆਰ.ਐਸ.ਐਸ. ਉਪਰ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾਉਣ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ।
ਰਾਮਗੜੀਆ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸੈਂਟ ਸੋਲਜਰ ਕਾਲਜ, ਕਮਲਾ ਨਹਿਹੂ ਕਾਲਜ, ਸੁਖਚੈਨੀਆਣਾ ਕਾਲਜ, ਖਾਲਸਾ ਕਾਲਜ ਜਲੰਧਰ, ਦੋਆਬਾ ਕਾਲਜ, ਸਿੱਖ ਨੈਸ਼ਨਲ ਕਾਲਜ ਬੰਗਾ, ਡੀ.ਏ.ਵੀ. ਕਾਲਜ, ਗੌਰਮਿੰਟ ਕਾਲਜ ਜੰਡਿਆਲਾ ਆਦਿ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਅੰਦਰ ਮੁਕੰਮਲ ਹੜਤਾਲ ਕੀਤੀ ਗਈ।


ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਰੂੜ੍ਹੀਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ 'ਚ ਮਰਾੜ ਕਲਾਂ ਪਿੰਡ 'ਚ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਰੂੜ੍ਹੀ ਦੇ ਲਈ ਜਗ੍ਹਾ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਰੋਸ ਰੈਲੀ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਮਾਰਚ ਕੀਤਾ। ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਹਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਵਿੱਤ ਸਕੱਤਰ ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਜਗਸੀਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਲੰਮੇਂ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪਿੰਡ ਦੇ ਛੱਪੜ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ 'ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਰੂੜ੍ਹੀ ਲਗਾ ਰੱਖੀ ਸੀ, ਪਰ ਮਰਾੜ ਕਲਾਂ ਦੀ ਪੰਚਾਇਤ ਤੇ ਅਕਾਲੀ ਜਥੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਤੋਂ ਰੂੜ੍ਹੀ ਵਾਲੀ ਜਗ੍ਹਾ ਖੋਹ ਲਈ ਹੈ। ਜਦਕਿ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਮਕਾਨਾਂ ਦੀ ਵੀ ਭੰਨਤੋੜ ਕੀਤੀ। ਜੇਕਰ ਪੰਚਾਇਤ ਨੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਖੋਹਣੀ ਸੀ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬਦਲਵੀਂ ਜਗ੍ਹਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ। ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਪੰਚਾਇਤੀ ਜ਼ਮੀਨ 'ਚੋਂ ਪੰਜ ਮਰਲੇ ਦੇ ਰਿਹਾਇਸ਼ੀ ਪਲਾਟ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ, ਇਕ ਮਰਲਾ ਰੂੜ੍ਹੀ ਲਗਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਜਗ੍ਹਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ। ਉਹਨਾਂ ਚਿਤਾਵਨੀ ਦਿੰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹੋਣਗੇ ਅਤੇ 16 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਡਿਪਟੀ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਦਫ਼ਤਰ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਧਰਨਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਬਲਵੀਰ ਸਿੰਘ, ਦਰਸ਼ਨ ਸਿੰਘ, ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ, ਜਗਮੀਤ ਸਿੰਘ, ਦਰਸ਼ਨ ਕੌਰ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਕੌਰ, ਬਲਜੀਤ ਕੌਰ, ਜੰਗ ਸਿੰਘ, ਬੋਹੜ ਸਿੰਘ, ਹਰਪਾਲ ਸਿੰਘ, ਸੁਖਦੇਵ ਕੌਰ ਆਦਿ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।