Monday 31 October 2016

आर.एम.पी.आई की स्थापना; पृष्ठभूमि तथा भविष्य नक्शा

17 सितम्बर 2016 को देश-भगत यादगार कंप्लैक्स जालन्धर (पंजाब) के ‘विष्णु गणेश पिंगले हाल’ में, ‘रैवोल्यिूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ (भारतीय इंकलाबी माकर््सवादी पार्टी (आरएमपीआई) का किया गया गठन, निश्चय ही यह एक सम्भावना भरपूर घटना है। इस उद्देश्य के लिये आयोजित की गई स्थापना-कान्फ्रेंस में केरल,तामिलनाडू, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा चंडीगढ -(यू.टी.) आदि 7 राज्यों के लगभग 250 कम्युनिस्ट कार्यकर्ता शामिल हुए। आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा दिल्ली से भी साथियों द्वारा इस कान्फैंस के मूल उद्देश्यों से सहमति जताते हुए शुभकामना संदेश प्राप्त हुए हैं। इस नई बनी पार्टी ने अपनी समूची सामाजिक-राजनीतिक तथा सांगठनिक गतिविधियों को चलाने के लिये हमेशा माकर््सवादी संसार दृष्टिकोण से मार्गदर्शन लेने का प्रण किया है। यह ऐलान भी किया गया है कि भारतीय जनसमुहों को हर प्रकार की सामाजिक-आर्थिक कठिनाईयों से मुक्त करने के लिये, बीते समय के दौरान भारतीय जन-पक्षीय विद्वानों तथा राजनीतिक-योद्धाओं द्वारा डाले गये बहुमुल्य सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक योगदान से भी उचित रहनुमाई ली जायेगी। इस तरह से यह पार्टी सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक तथा संस्कृतिक क्षेत्रों में, माक्र्सवाद-लैनिनवाद की सैद्धांतिक स्थापनाओं को भारतीय अवस्थाओं के अनुसार रचनात्मक ढंग से लागु करते हुए, यहां जातपात, संसाधनों के अन्यायपूर्ण वितरण तथा हर तरह के उत्पीडऩ से मुक्त, समानता पर आधारित, समाजवादी समाज कायम करने के लिये सतत संघर्षशील रहेगी।  इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस नई पार्टी का गठन, चुनाव के मौसम में चुनावी हिसाब-किताब को ध्यान में रख कर, कुकरमुत्तों की तरह पैदा हो रहे राजनीतिक दलों जैसी घटना नहीं है; बल्कि यह तो भारत के गरीबों- सर्वहारा वर्ग की मुक्ति के लिये चल रही जद्दोजहद के तीखे चढाव-उतराव वाले लम्बे तथा संकटों भरे मार्ग पर, संघर्षशील तथा समविचारक लोगों के साथ मिलकर, जीवनभर कदम मिला कर आगे बढऩे की वचबद्धता है। इसलिये नया क्रांतिकारी दल ‘रैवोल्यिूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ (भारतीय क्रांतिकारी माकर््सवादी पार्टी) की स्थापना कान्फ्रैंस ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इसमें एकत्रित समस्त पक्षों के अधिकतर नेता-कार्यकर्ता सी.पी.आई.(एम) तथा उसके नेतृत्व में काम करते जन-संगठनों के अग्रणी पक्तियों के नेता अथवा सरगर्म कार्यकत्र्ता रहे हैं। कुछेक तो 1964 से पहले अविभाजित सीपीआई के समय से पार्टी सदस्य-नेता रहे हैं। सारे ही उस पार्टी की राजनीतिक लाइन के बारे में पैदा हुए गम्भीर सैद्धांतिक मतभेदों अथवा काबिज नेतृत्व की गैर-माक्र्सवादी तथा नुक्सदार कार्यप्रणाली के कारण उस पार्टी को त्याग कर, समय समय पर बाहर आये थे। वो निराश हो कर अपने घरों में नहीं बैठे तथा न ही किसी बुर्जआ पार्टी में शामिल हुए, बल्कि अपनी-अपनी स्थिति तथा सामथ्र्य के अनुसार लगातार इन्कलाबी कार्यों व संघर्षों में जुटे रहे हैं। वो ऐसे राष्ट्रीय स्तर के मंच की तलाश में भी रहे है जो कि भारतीय आवाम की दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही मुसीबतों के खात्मे के लिये सही, सार्थक तथा विश्वसनीय राजनीतिक दिशा प्रदर्शित करने की हामी भरता हो। इस तरह यहां, वे चुनावी अवसरवाद अथवा राजनीतिक तिकड़मबाजी से अपने निजी हित साधने के लिये नहीं आये; बल्कि मेहनतकश लोगों के अधिकारों व हितों के लिये कुछ कर गुजरने के इरादे तथा उद्देश्य से प्रेरित होकर एकजुट हुए हैं। इसलिये इस पार्टी से अच्छी सम्भावनाओं की आशा है, क्योंकि सामुहिक सह्ृदयता तथा दृढ़ इरादा भी जन-पक्षीय सम्भावनाओं को उभारने में अक्सर अच्छी भूमिका निभाता है।           
बेशक, भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इस आंदोलन के नेताओं के दायें अथवा बाएं भटकाव का शिकार हो कर, क्रांतिकारी रास्ते से भटक जाने के कारण ऐसे अवसर पैदा होते रहे हैं। जिससे इस आंदोलन में दरारें उभरती रहीं हैं। 1964 में सी.पी.आई. से अलग हो कर सी.पी.आई.(एम) के बनने से भी यहां बड़े सैद्धान्तिक भ्रम पैदा हुए थे । श्री एस.ऐ. डांगे के नेतृत्व में सी.पी.आई. अपने ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक इन्कलाब’ के प्रोग्राम अधीन भारत के शासक वर्ग-पूंजीपति, जगीरदारों, की प्रतिनिधित्व करती प्रमुख राजनीतिक पार्टी-कांग्रेस पार्टी से अपने सहयोग को निरन्तर बढ़ाती गई जिससे कांग्रेस पर यह दल अधिक से अधिक निर्भर होता गया। जबकि सी.पी.आई.(एम) ने ‘जनवादी इन्कलाब’ का आह्वान किया तथा समय की जरूरतों के अनुसार, जनता की लामबंदी पर  आधारित कुर्बानियों भरपूर जन संघर्ष संगठित किये तथा अपने जन-आधार के अनुसार संसदीय संघर्षों में शमुलियत भी जारी रखी। आपातकाल के काले दौर तक पँहुचते-पँहुचते, एक दशक बीतते-बीतते दोनों प्रकार की राजनीतिक लाइनों के मध्य अन्तर स्पष्ट दिखाई देने लगा। भारत के राजनीतिक दृश्यपटल से ‘माँ—पार्टी’ कहलाती सी.पी.आई. हाशिये पर चली गई। जबकि सी.पी.आई(एम) ने देश के राजनीतिक परिदृश्य पर वामपक्ष को एक नई राजनीतिक शक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया। इसी काल के दौरान ही दुस्साहसवाद के वाम भटकाव  का शिकार कुछ तत्वों ने भी सी.पी.आई.(एम) को जुझारू जन-संघर्षों की क्रांतिकारी पटड़ी से उतार कर संकीर्णतावादी दुस्साहसवादी के अतिवाम भटकाव पर अग्रसर करने के जोरदार प्रयत्न किये; जिसके दुखदायी परिणाम अब अधिक व्याख्या की मांग नहीं करते। पर, अब सी.पी.आई(एम) पर काबिज नेतृत्व के संसदीय  अवसरवाद के कीचड़ में बुरी तरह धंसते जाने के कारण यह पार्टी भी दो राज्यों में वामपक्ष की सरकारों के नेतृत्व में होने के बावजूद राष्ट्रीय दृष्टिकोण से न केवल स्वयं तेजी से अप्रासंगिक  होती जा रही है, बल्कि देश में कम्युनिस्ट आंदोलन की विश्वसनीयता को भी भारी पतन की ओर ले जाने का साधन बन रही है। ऐसी परिस्थितियों में, सही क्रांतिकारी दिशा को समर्पित , मजदूर वर्ग के राजनीतिक पक्ष को खड़ा करके शोषित मेहनतकश जनता के लिये कोई उम्मीद का दीप जगाना, समय की एक अहम तथा ऐतिहासिक आवश्यकता है। इसी पृष्ठ्भुमि में, माक्र्सवाद-लैनिनवाद की वैज्ञानिक समझदारी द्वारा प्रमाणित संग्रामी दिशा-निर्देशों के अनुसार, संसदीय तथा गैर-संसदीय सघंर्षों का माकूल मिश्रण करते हुए किन्तु गैर-संसदीय सघंर्षों को प्रमुखता देने के दावपेंचों के प्रति सम्पूर्ण सह्ृदयता का दम भरते साथियों द्वारा, पहलकदमी करते, ऐसे ठोस प्रयास को स्वागतम तो कहा ही जाना चाहिये। इस सब के अतिरिक्त, अब तो देश की बाहरमुखी सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी दिन प्रति दिन ज्यादा चिन्ताजनक होती जा रही है। व्यापक रूप में फैली हुई गरीबी, महंगाई तथा बेरोजगारी ने मिलकर आम जन का जीना हराम कर दिया है। बड़ी संख्या में देशवासी भरपेट भोजन से वंचित हैं तथा न ही उनके पास सिर ढकने के लिये छत ही है। साफ-सुथरे तथा सेहतमंद आवासीय प्रबंध तो सपनों की बात हैं।  करोड़ों देशवासी न तो अपने बच्चों को रोजगारयोग्य शिक्षा दिलवा पाने में सक्षम हैं तथा न ही बिमारी की हालत में उचित इलाज करवा पाने में समर्थ हैं। यहां तक कि करोड़ों दरिद्रनारायणों को साफ शुद्ध जल भी मुअस्सर नहीं। जबकि मु_ी भर अमीर-कारपोरेट घराने, बडे व्यापारी तथा बड़े भूपति, सत्ताधारी राजनीतिज्ञों के परिवार तथा सगे-सम्बंधी तथा अफसरशाह दिन-प्रतिदिन मालामाल होते जा रहे हैं। अमीरी व गरीबी के मध्य रोज बढ़ता जा रहा अन्तर, नित्य नई प्रकार की सामाजिक समस्याओं व विषमताओं को जन्म दे रहा है। देश का शासक वर्ग तथा उसके हितों की रक्षा करने वाली मोदी सरकार पूरी तरह से सामराज्यवादी शक्तियों के नीचे लग चुकी है। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा भी अब इनके हाथों में सुरक्षित नहीं रही। जनतांत्रिक सस्थाओं-परम्पराओं का लगातार ह्रास किया जा रहा है। सामराज्यवादी अंग्रेज के अन्नय भक्त  रहे तथा आज भी उसी चरित्र के अनुरूप कार्यरत संघ-परिवार का बोलबाला हो रहा है। एक ओर देश में सम्प्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है व दूसरी ओर सांस्कृतिक पतन तेज हो रहा है। जिस के कारण अल्पसंख्यकों पर ही नहीं, बल्कि दलितों, औरतों, आदिवासियों और अन्य शोषित आवाम पर भी प्रशासनिक अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं व इन पर अति घिनौने हमले भी हो रहे हैं। इन सब त्रासदिक अवस्थायों का मुंह मोडऩे के लिये जरूरी है कि चुनाव के हिसाब-किताब पर निर्भर रहने की बजाय प्रथम, तत्काल प्रभावशाली जनशक्ति को संगठित करने की ओर अधिक से अधिक ध्यान दिया जाये। मेहनतकश जनसमुहों का जागरूक तथा संगठित होना इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये पहली शर्त है। इसके साथ ही, छोटे-मोटे सैद्धान्तिक मतभेदों के चलते बिखरी हुई, वाम शक्तियों की अमल में एकता निर्मित करने के लिये हर सम्भव उपाय किया जायें; दलित, अल्पसंख्यक, महिलाओं, आदिवासियों तथा अन्य पिछड़े जनसमुहों से हो रही ज्यादतियों के विरूद्ध जूझ रहे जन-आंदोलनों को तथा प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिये लड़ रहे लोगों को भी इस लड़ाकू जनशक्ति का अटूट अंग बनाया जाये। ऐसी अजेय जनशक्ति का निर्माण करके ही चुनावों की मौजूदा प्रणाली में से कोई सार्थक व जनहित परिणाम हासिल किये जा सकते हैं, संपूर्ण मौकापरस्ती पर आधारित बनाये गये गैर-सैद्धांतिक चुनावी गठजोड़ों से कदाचित नहीं।   
रैवोल्यूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया (भारतीय इंकलाबी माकर््सवादी पार्टी) उपरोक्त खरी-इन्कलाबी दिशा पर पूरी मजबूती सहित पहराबरदारी करने का इकरार करती है। यह बात ठीक है कि इस मजबूती की असल परीक्षा तो भविष्य में, पार्टी के व्यवहारिक कार्यकलापों से ही होगी। परन्तु यहां हम इस पार्टी में शामिल हुई पंजाब में पिछले 15 सालों कार्यरत पार्टी के किरदार को जरूर इसके एक प्रमाण के तौर से देख सकते हैं। इस पक्ष द्वारा, सी.पी.आई. एम पंजाब के बैनर तले, हर प्रकार की ज्यादतियों तथा वहशी बदलाखोरी का मुकाबला करते हुए भी जिस तरह वामपंथी तथा संघर्षशील शक्तियों को एकजुट करने के लिये बार-बार प्रयास किये गए हैं, किसी भी प्रकार की राजनीतिक कमजोरी को अपने पास भी नहीं आने दिया, तथा जिस तरह वाम शक्तियों व मजदूरों, किसानों, खेत-मजदूरों, कर्मचारियों तथा नौजवान-विद्यार्थिओं संगठनों का सहयोग प्राप्त करके भिन्न भिन्न वर्गों के संयुक्त अन्दोलन संगठित करने के लिये सिरतोड़ यत्न किये हैं, वो सारे प्रयास उपरोक्त दिशा में हमारी मजबूती की ठोस गवाही देते हैं। ऐसी, हर पक्ष पर ठीक उतरती सार्थक व सिद्धांतों पर आधारित राजनीतिक पहुंच तो आगे भी लाजमी जारी रहेगी।  यदि चुनौतियों भरपूर बाहरमुखी जरूरतों की पूर्ति के लिये पार्टी को आवश्यक संख्या में बलिदानी काडर मिलते तथा विकसित होते रहे तो जरूरी ही यह पार्टी क्रांतिकारी संघर्षों के भविष्य के मार्ग पर नित्य नई मंजिलें तय करती हुई लाजमी तौर पर आगे की ओर कदम बढ़ाती जायेगी।       
- हरकंवल सिंह  (संपादकीय अक्तूबर 2016 अंक)

ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਪਿੜ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਨਵੰਬਰ 2016)

ਰਵੀ ਕੰਵਰ
 
ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣ 
ਸੰਯੁਕਤ ਰਾਜ  ਅਮਰੀਕਾ, ਜਿਸਨੂੰ ਆਮ ਤੌਰ 'ਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਵਜੋਂ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਵਿਚ 8 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣ ਹੋਣ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਆਗੂ ਇਸ ਸਾਮਰਾਜੀ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿਚ ਕਹਿਣ ਨੂੰ ਵਿਵਸਥਾ ਭਾਵੇਂ ਬਹੁਪਾਰਟੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਦੀ ਹੈ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਇੱਥੇ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦੋ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਲਾਗੂ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੱਧੇ-ਅਸਿੱਧੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨਾਂ ਤੱਕ ਰਸਾਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ, ਜਿਹੜੇ ਇਸ ਚੋਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਵਿਚ ਬੇਅਥਾਹ ਪੈਸਾ ਖਰਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਇਨ੍ਹ੍ਰਾਂ ਦੋਹਾਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੇ ਹੀ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ ਲੁੱਟ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਅਮਰੀਕੀ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਚੰਦੇ ਵਜੋਂ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਸੁਭਾਵਕ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਵਲੋਂ ਮਚਾਈ ਜਾਂਦੀ ਲੁੱਟ ਵਿਚ ਸਹਾਈ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਬਲਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਆਰਥਕ ਤੇ ਸਮਾਜਕ ਨੀਤੀਆਂ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵਿਦੇਸ਼ ਨੀਤੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਧੁਰਾ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਹਿੱਤ ਹੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।
ਵੋਟਾਂ ਭਾਵੇਂ 8 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਪੈਣਗੀਆਂ, ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਨਾਲ ਦੀ ਨਾਲ ਨਤੀਜੇ ਵੀ ਐਲਾਨ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣਗੇ ਪਰ ਚੁਣਿਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਉਮੀਦਵਾਰ ਜਨਵਰੀ 2017 ਵਿਚ ਮੌਜੂਦਾ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਬਰਾਕ ਓਬਾਮਾ ਦਾ ਕਾਰਜਕਾਲ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਅਹੁਦਾ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰੇਗਾ। ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਪ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੀ ਵੀ ਚੋਣ ਹੋਵੇਗੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਲਈ ਇਕੋ ਹੀ ਵੋਟ ਪਵੇਗੀ ਅਤੇ ਸਮੁੱਚੇ ਬਾਲਗ ਨਾਗਰਿਕ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਵੋਟਰਾਂ ਵਜੋਂ ਰਜਿਸਟਰਡ ਹਨ, ਵੋਟ ਪਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਕਾਰਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਨਗੇ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਅੱਗੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ-ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਇਕ ਜੁੱਟ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਨਗੇ। ਚੁਣੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਚੋਣਕਾਰ, ਜਿਸ ਉਮੀਦਵਾਰ ਲਈ ਚੁਣੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਸ ਪ੍ਰਤੀ ਪ੍ਰਤਿਬੱਧ ਹੋਣਗੇ। ਉਹ ਦੂਜੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਨੂੰ ਵੋਟ ਨਹੀਂ ਪਾ ਸਕਣਗੇ। ਕੁਲ ਚੋਣਕਾਰ 538 ਚੁਣੇ ਜਾਣਗੇ। ਹਰ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿਚੋਂ ਜਿੰਨੇ ਉਸਦੇ ਸੰਸਦ ਮੈਂਬਰ ਹਨ, ਉਨੇ ਹੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਚੋਣਕਾਰ ਹੋਣਗੇ, ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ 100 ਸੀਨੇਟਰ ਵੀ ਚੋਣਕਾਰ ਹੋਣਗੇ ਅਤੇ 3 ਚੋਣਕਾਰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਵਾਸ਼ਿੰਗਟਨ ਡੀ.ਸੀ. ਤੋਂ ਚੁਣੇ ਜਾਣਗੇ।
ਦੋਵੇਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਪਾਰਟੀਆਂ, ਅਸਲ ਵਿਚ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਜੁੱਟ ਭਾਵ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ-ਉਪ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੁਣਿਆ ਜਾਣਾ ਹੈ ਉਹ ਹਨ, ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਪਾਰਟੀ। ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦੇਸ਼ ਦੀ 2009-2013 ਦਰਮਿਆਨ ਮੌਜੂਦਾ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਬਰਾਕ ਓਬਾਮਾ ਨਾਲ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਰਹੀ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਨਾਲ ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਨ, ਟਿਮ ਕਾਇਨ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਮੌਜੂਦਾ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਵਿਰਜੀਨੀਆ ਹਲਕੇ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰਦਗੀ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਰਿਪਬਲਿਕ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਨ, ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਕੋ ਇਕ ਯੋਗਤਾ ਅਰਬਪਤੀ ਵਪਾਰੀ ਹੋਣਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਹਨ, ਮਾਇਕ ਪੇਂਸ, ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਇੰਡੀਆਨਾ ਸੂਬੇ ਦੇ ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਟਿਕਟ 'ਤੇ ਚੁਣੇ ਗਏ ਗਵਰਨਰ ਹਨ। ਜਿਵੇਂ ਅਸੀਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਹਿ ਚੁੱਕੇ ਹਾਂ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਇਕ ਜੁਟ ਨੇ ਹੀ ਚੁਣੇ ਜਾਣਾ ਹੈ। ਪ੍ਰੰਤੂ, ਫਿਰ ਵੀ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਜੁੱਟ ਵੀ ਚੋਣ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਹਨ, ਗਰੀਨ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਜਿੱਲ ਸਟੀਨ, ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਮੈਸਾਚੁਸਟਸ ਰਾਜ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਇਕ ਡਾਕਟਰ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਨਾਲ ਅਜਾਮੁ ਬਾਰਾਕਾ ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਹਨ, ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਕਾਰਕੁੰਨ ਹਨ। ਲਿਬੇਰਟਰੀਅਨ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਗੈਰੀ ਜੋਹਨਸਨ, ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ 2009-13 ਦਰਮਿਆਨ ਨਿਊ ਮੈਕਸੀਕੋ ਪ੍ਰਾਂਤ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਰਹੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਹਨ, 1991-1997 ਤੱਕ ਮੈਸਾਚੁਸਟਸ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਰਹੇ ਵੀਲੀਅਮ ਵੈਲਡ ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਲਈ। ਕੰਸਟੀਚਿਊਸ਼ਨ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਡਾਰੇਲ ਕੈਸਲ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਅਤੇ ਸਕਾਟ ਬ੍ਰੈਡਲੇ ਉਪਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਲਈ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਨ। ਦੋ ਮੁੱਖ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੇ ਜੁੱਟਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡਕੇ ਬਾਕੀ ਹੋਰ 24 ਜੁੱਟ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲਿਬੇਰਟਰੀਅਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਹੀ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਦੀ ਸਿਰਫ ਦੇਸ਼ ਦੇ 50 ਸੂਬਿਆਂ ਤੱਕ ਰਸਾਈ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗਰੀਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਕਾਰਕੁੰਨ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਕੋਲ ਵੀ ਕਾਫੀ ਸੂਬਿਆਂ ਵਿਚ ਵੋਟ ਹਨ। ਇਹ ਜੁੱਟ 2012 ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਵੀ ਲੜ ਚੁੱਕਾ ਹੈ।
ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਇਸ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣ ਦੌਰਾਨ ਪਾਰਟੀਆਂ ਵਲੋਂ ਉਮੀਦਵਾਰ ਚੁਨਣ ਸਮੇਂ ਵੀ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਲਈ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਇਕ ਚੋਣ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਚਲਦੀ ਹੈ, ਇਹ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ ਤਾਂ ਕਾਫੀ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਸ ਰਾਹੀਂ ਹੀ ਚੁਣਿਆ ਗਿਆ ਉਮੀਦਵਾਰ ਉਸ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਉਮੀਦਵਾਰ ਬਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਲਈ ਉਪ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦੀ ਚੋਣ ਉਹ ਖੁਦ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਹ ਅੰਤਰ-ਪਾਰਟੀ ਚੋਣ ਸਿਰਫ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿਚ ਘੱਟਾ ਪਾ ਕੇ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕਰਨ ਲਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਰਵਉਚ ਸਥਾਨ ਹਾਸਲ ਹੈ। 2016 ਦੀ ਇਸ ਚੋਣ ਦੌਰਾਨ ਹੋਈਆਂ ਦੋਹਾਂ ਹੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੀ ਅੰਤਰ-ਪਾਰਟੀ ਚੋਣ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੇ ਇਸਦੇ ਪਾਜ ਉਧੇੜ ਦਿੱਤੇ ਹਨ। ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਉਮੀਦਵਾਰ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਬਹੁਤ ਹੀ ਬੇਹੂਦਾ, ਅਸ਼ਲੀਲ ਅਤੇ ਸਮਾਜਕ ਮਿਆਰਾਂ ਦੇ ਹੱਦਾਂ ਬੰਨੇ ਤੋੜਦਿਆਂ ਬੇਹੂਦਾ ਗੱਲਾਂ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਜਿੱਤ ਗਿਆ, ਜਦੋਂਕਿ ਉਸਨੂੰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾਂ ਕੋਈ ਤਜ਼ੁਰਬਾ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਸਿਰਫ ਉਸ ਕੋਲ ਅਥਾਹ ਪੈਸਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਅੰਤਰ-ਪਾਰਟੀ ਚੋਣ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਦੌਰਾਨ ਹੋਇਆ। ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ 'ਤੇ ਬਰਨੀ ਸੈਂਡਰਸ ਉਮੀਦਵਾਰ ਬਨਣ ਲਈ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ। ਉਹ ਮੌਜੂਦਾ ਸੰਸਦ ਵਿਚ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਸੀਨੇਟਰ ਹੈ, ਉਹ ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਤੇ ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵਲੋਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਜੰਗਬਾਜ ਨੀਤੀਆਂ, ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਪੱਖੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਢਾਂਚੇ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਨੀਤੀਆਂ ਜਿਸ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੇ 99% ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅੱਤ ਦੀਆਂ ਦੁੱਖ ਤਕਲੀਫਾਂ ਝਲਣੀਆਂ ਪੈ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਤੋਂ ਰਾਹਤ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਨ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਉਸਨੂੰ ਚੋਣ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਦੌਰਾਨ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਸਮਰਥਨ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ। ਉਸਦੀਆਂ ਰੈਲੀਆਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਤੇ ਦੱਬੇ-ਕੁਚਲੇ ਲੋਕਾਂ ਖਾਸਕਰ ਨੌਜਵਾਨਾਂ, ਅਫਰੀਕੀ ਤੇ ਏਸ਼ੀਆਈ ਮੂਲ ਦੇ ਅਮਰੀਕੀਆਂ ਤੇ ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਜੋਸ਼ ਭਰਪੂਰ ਸਮਰਥਨ ਵੀ ਹਾਸਲ ਸੀ। ਉਹ ਕਈ ਗੇੜ ਜਿੱਤਿਆ ਵੀ ਪ੍ਰੰਤੂ ਅੰਤ ਉਸਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਦਿਓਕਦ ਬਹੁਕੌਮੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਹਾਸਲ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਸਾਹਮਣੇ ਗੋਡੇ ਟੇਕਣੇ ਪਏ। ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਫੰਡ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਸਮਰਥਨ ਦੇਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ।
ਕੁੱਲ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਮਰਥਕ ਸਿਧਾਂਤਕਾਰ, ਰਾਜਨੀਤੀਵਾਨ ਅਤੇ ਮੀਡੀਆ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਨੂੰ ਇਕ ਆਦਰਸ਼ ਵਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਉਥੇ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣਾਂ ਅਤੇ ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਬਹਿਸਾਂ ਨੂੰ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਦਾ ਮੀਡੀਆ ਵਡਿਆਉਂਦਾ ਨਹੀਂ ਥਕਦਾ, ਪਰ ਜੇਕਰ ਨੀਝ ਨਾਲ ਦੇਖੀਏ ਤਾਂ ਇਸਦਾ ਮਿਆਰ ਸਾਡੀਆਂ ਬੁਰਜ਼ੁਆ ਪਾਰਟੀਆਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ, ਭਾਜਪਾ, ਕਾਂਗਰਸ ਅਤੇ ਆਪ ਵਲੋਂ ਆਪਸ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੇਠਲੇ ਦਰਜੇ ਦੀ ਇਲਜਾਮਤਰਾਸ਼ੀ, ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਧਮਕਾਉਣ, ਇਕ ਦੂਜੇ ਪ੍ਰਤੀ ਘਟੀਆ ਗਾਲੀ-ਗਲੋਚ ਵਾਲੀ ਭਾਸ਼ਾ ਅਪਨਾਉਣ ਤੋਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੱਖਰਾ ਨਹੀਂ। ਜਿਵੇਂ ਸਾਡੇ ਇੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿੰਦਗੀਆਂ ਨੂੰ ਛੋਂਹਦੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਮੁੱਦਿਆਂ ਨੂੰ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਕੇਂਦਰੀ ਮੁੱਦਾ ਬਣਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਥੇ ਚਲਾਵੇਂ ਤੇ ਝੂਠੇ ਸੱਚੇ ਵਾਅਦੇ ਕਰਕੇ ਮੁੱਖ ਜੋਰ ਇਕ ਦੂਜੇ 'ਤੇ ਨਿੱਜੀ ਹਮਲਿਆਂ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨਾਲ ਸਬੰਧ ਨਾ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀਆਂ ਬੇਲੋੜੀਆਂ ਗੱਲਾਂ 'ਤੇ ਕੇਂਦਰਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਅਮਰੀਕਾ ਦੀਆਂ ਸਭ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਇਹੋ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਰਿਪਬਲਿਕਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਨੇ ਤਾਂ ਆਪਣੀ ਚੋਣ ਦਾ ਆਗਾਜ ਹੀ ਗੁਆਂਢੀ ਦੇਸ਼ ਮੈਕਸੀਕੋ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਬਲਾਤਕਾਰੀ ਐਲਾਨਣ, ਮੈਕਸੀਕੋ ਨਾਲ ਲੱਗਦੀ ਸਰਹੱਦ 'ਤੇ ਕੰਧ ਉਸਾਰਨ, ਮੁਸਲਿਮ ਧਰਮ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦਾਖਲਾ ਬੰਦ ਕਰਨ, ਪ੍ਰਵਾਸੀਆਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦਾਖਲਾ ਬੰਦ ਕਰਨ, ਪਹਿਲਾਂ ਵਸੇ ਪ੍ਰਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ, ਅਪੰਗਤਾ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮਜਾਕ ਉਡਾਉਣ ਅਤੇ ਈਰਾਕ ਦੀ ਜੰਗ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਜਾਨ ਤੱਕ ਦੇ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਮੁਸਲਿਮ ਫੌਜੀ ਦੇ ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ ਦੀ ਹੱਤਕ ਕਰਨ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਨੇ ਵੀ ਸੀਨੇਟਰ ਬਰਨੀ ਸੈਂਡਰਸ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੇ 99% ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਸੀ, ਨੂੰ ਦੌੜ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਕਰਨ ਲਈ ਹਰ ਹਥਕੰਡਾ ਵਰਤਿਆ ਸੀ। ਇੱਥੇ ਇਹ ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿਚ ਕੁੱਲ ਅਬਾਦੀ ਦੇ 1% ਧਨਾਢਾਂ ਕੋਲ 2014 ਵਿਚ ਕੁਲ ਦੌਲਤ ਦਾ 40% ਸੀ, ਸਭ ਤੋਂ ਹੇਠਲੇ 80% ਕੋਲ ਸਿਰਫ 7% ਹੀ ਦੌਲਤ ਸੀ।
ਹੁਣ ਆਪਾਂ ਦੋਹਾਂ ਮੁੱਖ ਪ੍ਰਚਾਰੇ ਜਾਂਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਅਤੇ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦਰਮਿਆਨ ਹੋਈਆਂ 3 ਬਹਿਸਾਂ ਉਤੇ ਝਾਤ ਮਾਰਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਸਮਰਥਕ ਅਮਰੀਕੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਦੇ ਵੱਡੇ ਸਿਹਤਮੰਦ ਲੱਛਣ ਵਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ।
ਦੋਹਾਂ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਅਤੇ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦਰਮਿਆਨ ਪਹਿਲੀ ਬਹਿਸ 26 ਸਿਤੰਬਰ ਨੂੰ ਹੇਮਪਸਟੀਡ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਹੋਈ ਹੈ। ਇਸ ਬਹਿਸ ਦੌਰਾਨ ਦੋਹਾਂ ਹੀ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਨੇ ਮੱਧ ਪੂਰਬ ਏਸ਼ੀਆ ਵਿਚ ਚਲ ਰਹੀ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਸੈਂਕੜੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਖਾਜਾ ਬਨਾਉਣ ਵਾਲੀ ਜੰਗ, ਜਿਸਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਸਾਮਰਾਜੀ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿੱਧੇ ਦਖਲ ਕਾਰਨ ਹੋਈ ਹੈ ਬਾਰੇ ਇਕ ਵੀ ਸ਼ਬਦ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ। ਨਾ ਹੀ ਦੋਹਾਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਪਸਰੀ ਬੇਰੋਜ਼ਗਾਰੀ, ਨਿੱਤ ਦਿਨ ਪੁਲਸ ਵਲੋਂ ਕਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਕਤਲਾਂ ਅਤੇ ਨਿਰੰਤਰ ਵੱਧ ਰਹੀ ਅਸਮਾਨਤਾ ਤੇ ਗਰੀਬੀ ਵਰਗੇ ਵਿਸਫੋਟਕ ਮਸਲਿਆਂ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਛੋਹੀ। ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਹਮਲਾ ਜਿਹੜਾ ਹਿਲੇਰੀ 'ਤੇ ਕੀਤਾ ਸੀ, ਉਹ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਬਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲਣ ਜੋਗਾ ਦਮ-ਖਮ ਨਹੀਂ ਹੈ ਹਾਸੋਹੀਣੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਬਾਰੇ ਉਸਨੇ ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਸਨੂੰ ਹੋਏ ਨਮੂਨੀਏ ਨੂੰ ਅਧਾਰ ਬਣਾਇਆ। ਜਦੋਂਕਿ ਹਿਲੇਰੀ ਨੇ ਟਰੰਪ ਉਤੇ ਨਸਲਪ੍ਰਸਤ, ਕਾਮੁਕ ਹੋਣ ਅਤੇ ਟੈਕਸ ਦੀ ਚੋਰੀ ਕਰਨ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਲਾਏ। ਟਰੰਪ ਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਾਣ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਕ ਵਪਾਰੀ ਵਜੋਂ ਘੱਟ ਟੈਕਸ ਭਰਨਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਉਸਨੂੰ ਇਕ ਚੁਸਤ ਚਲਾਕ ਵਪਾਰੀ ਸਿੱਧ ਕਰਦਾ ਹੈ।  ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਪੋਲ ਖੋਲ੍ਹਦਿਆਂ ਉਸ ਇਹ ਦਾਅਵਾ ਵੀ ਕੀਤਾ ਕਿ ਟੈਕਸ ਚੋਰੀ ਕਰਨ ਦੇ ਕਾਨੂੰਨੀ ਮਘੋਰਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਉਸ ਦਾ ਹੱਕ ਹੈ। ਇਹ ਸੀ, ਉਸ 'ਮਹਾਨ ਬਹਿਸ' ਦੇ ਮੁੱਖ ਨੁਕਤੇ ਜਿਸਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਢੰਡੋਰਚੀ ਅਮਰੀਕੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਦੇ ਵੱਡੇ ਗੁਣ ਵਜੋਂ ਪ੍ਰਚਾਰਦੇ ਹਨ। ਇਸਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਏ ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਕਲਿੰਟਨ ਨੂੰ 90 ਮਿੰਟ ਦੀ ਇਸ ਬਹਿਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 62% ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸਮਰਥਨ ਦਿੱਤਾ ਜਦੋਂਕਿ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਸਮਰਥਨ ਸਿਰਫ 27% ਸੀ। ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਟਰੰਪ ਨੇ ਇਸ ਬਹਿਸ ਵਿਚ ਪਿੱਛੇ ਰਹਿਣ ਦਾ ਭਾਂਡਾ ਸਾਉਂਡ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੇ ਨਾਕਸ ਹੋਣ 'ਤੇ ਭੰਨਿਆ।
ਹੁਣ ਆਪਾਂ 9 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਸੈਂਟ ਲੁਈਸ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਦੂਜੀ ਬਹਿਸ 'ਤੇ ਝਾਤੀ ਮਾਰਦੇ ਹਾਂ। ਇਸ ਬਹਿਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 7 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਅਖਬਾਰ ਵਾਸ਼ਿੰਗਟਨ ਪੋਸਟ ਨੇ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਦੀ 2005 ਦੀ ਇਕ ਵੀਡਿਓ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ, ਉਸ ਵੇਲੇ ਉਹ ਇਕ ਟੀ.ਵੀ. ਸ਼ੋਅ 'ਦੀ ਅਪ੍ਰੈਂਟਿਸ' ਦੀ ਮੇਜਬਾਨੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਚ ਉਸਨੇ ਔਰਤਾਂ ਬਾਰੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਟਿਪਣੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿ ਛਾਪਣਯੋਗ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਉਸਨੇ ਔਰਤਾਂ ਦੇ ਸਰੀਰਕ ਅੰਗਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰਦਿਆਂ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਇਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਅਕਤੀ ਹੈ, ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਔਰਤ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਬਹਿਸ ਦੌਰਾਨ ਉਸਨੇ ਇਸ ਉਤੇ ਪਛਤਾਵਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਜਾਂ ਮਾਫੀ ਮੰਗਣ ਦੀ ਥਾਂ ਇਸ ਟੇਪ ਨੂੰ ਝੂਠਾ ਅਤੇ ਬਨਾਉਟੀ ਕਰਾਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਸਦੇ ਜੁਆਬ ਵਜੋਂ ਉਸਨੇ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦੇ ਪਤੀ ਸਾਬਕਾ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਬਿਲ ਕਲਿੰਟਨ ਨਾਲ ਸਬੰਧ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚਾਰ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਕੀਤੀ ਪ੍ਰੈਸ ਕਾਨਫਰੰਸ ਵਿਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇਸ ਮੁੱਦੇ ਤੋਂ ਧਿਆਨ ਲਾਂਭੇ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ -''ਮੈਂ ਕੁੱਝ ਬੇਵਕੂਫੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਵਲੋਂ ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕੁਕਰਮ ਕਰਨ ਦਰਮਿਆਨ ਵੱਡਾ ਅੰਤਰ ਹੈ। ਬਿਲ ਕਲਿੰਟਨ ਨੇ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਖਰਾਬ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਹਿਲੇਰੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਿਕਾਰ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਧਮਕਾਇਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ 'ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ।'' ਇਹ ਹੈ, ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਅਖੌਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਰਵਉਚ ਅਹੁਦੇ ਲਈ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਚੋਣ ਦਾ ਮਿਆਰ। ਇਸੇ ਬਹਿਸ ਦੌਰਾਨ ਟਰੰਪ ਨੇ ਹਿਲੇਰੀ 'ਤੇ 30000 ਈਮੇਲਾਂ ਆਪਣੇ ਨਿੱਜੀ ਸਰਵਰ ਤੋਂ ਕਰਨ ਦਾ ਇਲਜਾਮ ਲਾਉਂਦਿਆਂ ਬਿਲਕੁਲ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਿਲੇਰੀ ਨੂੰ ਜੇਲ੍ਹ ਭੇਜਣ ਦੀ ਧਮਕੀ ਦਿੱਤੀ, ਜਿਵੇਂ ਅਮਰਿੰਦਰ, ਬਾਦਲ ਅਤੇ ਕੇਜਰੀਵਾਲ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ।
ਹੁਣ ਆਈਏ ਬੀਬੀ ਰਾਣੀ ਦਿਸਣ ਵਾਲੀ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਵੱਲ। ਜਿਸ ਦਿਨ ਵਾਸ਼ਿੰਗਟਨ ਪੋਸਟ ਵਿਚ ਟਰੰਪ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਵਿਡੀਓ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਤ ਹੋਈ ਉਸੇ ਦਿਨ ਗੁਪਤ ਦਸਤਾਵੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵੈਬਸਾਈਟ 'ਵਿਕੀਲਿਕਸ' ਨੇ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦੇ ਕੁੱਝ ਗੁਪਤ ਭਾਸ਼ਣਾਂ ਦੇ ਛਪੇ ਰੂਪ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਸਨ। ਇਹ ਭਾਸ਼ਨ ਉਸਨੇ 2013-14 ਦਰਮਿਆਨ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਦਾ ਅਹੁਦਾ ਛੱਡਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ ਬੈਂਕਾਂ ਅਤੇ ਨਿਵੇਸ਼ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਵਪਾਰਕ ਆਗੂਆਂ ਦੇ ਇਕੱਠਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਦਿੱਤੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਉਸਨੇ ਲੱਖਾਂ ਡਾਲਰ ਲਏ ਸਨ। ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ, ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਜਿਹੜੇ ਬੈਂਕ ਅਤੇ ਨਿਵੇਸ਼ ਕੰਪਨੀਆਂ ਚਲਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਨਿਊਯਾਰਕ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਹੈ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਕਲਿੰਟਨ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਦੀ ਚੋਣ ਲੜਨ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾ ਚੁੱਕੀ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਭਾਸ਼ਣਾਂ ਵਿਚ ਉਸਨੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਵਿਚ ਜਿਸ ਗੱਲ 'ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਉਹ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ ਨੂੰ ਅੱਗੋਂ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਵਿੱਤੀ ਸੁਧਾਰਾਂ ਵਿਚ ਵੀਟੋ ਪਾਵਰ ਹਾਸਲ ਹੋਵੇਗੀ। ਉਸਨੇ ਆਪਣੇ ਬਾਗੋ-ਬਾਗ ਹੋਏ ਸਰੋਤਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਹਾ ਸੀ ''ਲੋਕ ਜਿਹੜੇ ਸਨਅਤ ਨੂੂੰ ਵਧੇਰੇ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਉਸ ਸਨਅਤ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ।'' ਜਦੋਂ ਕਿ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜਨਤਕ ਮੁਹਿੰਮ ਵਿਚ ਹਿਲੇਰੀ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਬੈਂਕਾਂ ਨੇ ਅਰਥਚਾਰੇ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ 'ਤੇ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਸਖਤ ਨਿਯਮ ਲਾਗੂ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਲੋਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਚ ਦਖਲ ਬੰਦ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ 9 ਅਕਤੂਬਰ ਦੀ ਬਹਿਸ ਵਿਚ ਉਹ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸੀਰੀਆ ਉਤੇ 'ਨੋ-ਫਲਾਈ' ਜੋਨ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਉਹ ਵਾਲ ਸਟਰੀਟ ਦੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ ਤੁਸੀਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸੀਰੀਆਈਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਜਾ ਰਹੇ ਹੋ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਇੰਕਸ਼ਾਫਾਂ ਦੇ ਪਰਛਾਵੇਂ ਹੇਠ ਹੋਈ 9 ਅਕਤੂਬਰ ਦੀ ਬਹਿਸ ਵਿਚ ਵੀ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕੋਈ ਵੀ ਮੁੱਦਾ ਬਹਿਸ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਨਹੀਂ ਬਣਿਆ। ਸਿਰਫ ਇਕ ਦੂਜੇ ਉਤੇ ਘਟੀਆ ਕਿਸਮ ਦੀ ਇਲਜ਼ਾਮਤਰਾਸ਼ੀ ਤੱਕ ਹੀ ਇਹ ਬਹਿਸ ਸੀਮਤ ਰਹੀ। ਬਹਿਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਏ ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਵਿਚ ਫੇਰ ਜਿੱਤ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦੀ ਹੀ ਹੋਈ। ਕਲਿੰਟਨ ਨੂੰ 57% ਸਮਰਥਨ ਅਤੇ ਟਰੰਪ ਨੂੰ 34% ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਮਿਲਿਆ।
ਤੀਜੀ ਅਤੇ ਆਖਰੀ ਬਹਿਸ 20 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਲਾਗ ਵੇਗਾਸ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਆਫ ਨੇਵਾਦਾ 'ਚ ਹੋਈ ਸੀ। ਸਮੁੱਚੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲੀਆਂ ਬਹਿਸਾਂ ਬਾਰੇ ਨੁਕਤਾਚੀਨੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਸ ਬਹਿਸ ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਮੀਡੀਆ ਸੰਸਥਾ ਫੋਕਸ ਨਿਊਜ ਦੇ ਬਹਿਸ ਦੇ ਮੋਡਰੇਟਰ ਨੇ ਖਾਸ ਧਿਆਨ ਰੱਖਿਆ ਪ੍ਰੰਤੂ ਫਿਰ ਵੀ ਬਹਿਸ ਦੇਸ਼ ਤੇ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਦੇ ਮੁਦਿਆਂ 'ਤੇ ਕੇਂਦਰਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕੀ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਤਾਂ ਟਰੰਪ ਨੇ ਸਿਰਾ ਹੀ ਲਾ ਦਿੱਤਾ ਜਦੋਂ ਉਸਨੇ 8 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲੇ ਨਤੀਜੇ ਪ੍ਰਤੀ ਹੀ ਪ੍ਰਤੀਬੱਧ ਹੋਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰਦਿਆਂ ਇੱਥੋਂ ਤੱਕ ਕਹਿ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਜੇ ਮੈਂ ਹਾਰ ਗਿਆ ਤਾਂ ਨਤੀਜੇ ਪ੍ਰਵਾਨ ਨਹੀਂ ਕਰਾਂਗਾ। ਉਸਨੇ ਮੀਡੀਆ 'ਤੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟ ਹੋਣ ਅਤੇ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਨੂੰ ਜਿਤਾਉਣ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਵੀ ਲਗਾ ਦਿੱਤਾ। ਇਸ ਅੰਤਮ ਫੈਸਲਾਕੁੰਨ ਬਹਿਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਏ ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦਾ ਜਿੱਤਣਾ ਲਗਭਗ ਤੈਅ ਹੈ। ਉਸਨੂੰ 48.5% ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਹਾਸਲ ਹੈ ਜਦੋਂਕਿ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਨੂੰ 42.1%।
ਬੀ.ਬੀ.ਸੀ. ਵਲੋਂ ਜਾਰੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਆਫ ਆਕਸਫੋਰਡ ਦੇ ਅਧਿਐਨ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਜਾਣਕਾਰੀ 19 ਅਕਤੂਬਰ ਦੀਆਂ ਅਖਬਾਰਾਂ ਵਿਚ ਛਪੀ ਰਿਪੋਰਟ ਦੀ ਵੀ ਪੋਲ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤੀ ਗਈ ਜਾਲਸਾਜੀ ਬਾਰੇ ਇੰਕਸ਼ਾਫ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। 26 ਸਿਤੰਬਰ ਨੂੰ ਹੋਈ ਪਹਿਲੀ ਬਹਿਸ ਬਾਰੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਰਵੇਖਣ ਵਿਚ ਦੋਹਾਂ ਹੀ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਨੇ ਕੰਪਿਊਟਰ ਅਧਾਰਤ ਪ੍ਰਣਾਲੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਟਵੀਟ ਕਰਵਾਏ ਹਨ। ਟਰੰਪ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ 18 ਲੱਖ ਅਤੇ ਹਿਲੇਰੀ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ 6 ਲੱਖ 13 ਹਜ਼ਾਰ ਅਜਿਹੇ ਟਵੀਟ ਹਨ। ਇਸ ਤੋਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਖੌਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਜਮਹੂਰੀਅਤ ਵਿਚ ਰਾਏਆਮਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹੁੰਦੇ ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਵਾਂਗ ਹੀ ਧੋਖਾਧੜੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨ ਇਸ ਅਮਰੀਕੀ ਚੋਣ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਤੇ ਖਾਸ ਕਰਕੇ ਦੋ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਪ੍ਰਤੀ ਕਾਫੀ ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਦੌਰਾਨ ਟਵਿਟਰ 'ਤੇ ਇਕ ਗਰੁੱਪ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਿਸਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸੇ ਦੇ ਵੀ ਜਿੱਤ ਜਾਣ ਤੋਂ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿਸੇ ਬਾਹਰੀ ਗ੍ਰਹਿ ਦੇ ਧਰਤੀ ਨਾਲ ਟਕਰਾਉਣ ਕਰਕੇ ਇਹ ਗਰਕ ਹੀ ਹੋ ਜਾਵੇ। ਸਰਵੇਖਣਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਦੇਸ਼ ਦੇ 25% ਨੌਜਵਾਨ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਦੇ ਸਮਰਥਕ ਹਨ। ਇਕ ਹੋਰ ਸਰਵੇਖਣ ਮੁਤਾਬਕ ਇਹ ਗਿਣਤੀ 34% ਹੈ।
ਦੁਨੀਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਇਸ ਵੇਲੇ ਦੋ ਮੁੱਦੇ ਅਜਿਹੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਦੁਨੀਆਂ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਕੀ ਇਸ ਦੁਨੀਆਂ ਨੇ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣਾ ਹੈ ਜਾਂ ਇਸਦੀ ਹੋਂਦ, ਖਾਸ ਕਰਕੇ ਇਸ ਉਤੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਸਦਾ-ਸਦਾ ਲਈ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਣੀ ਹੈ। ਇਹ ਮੁੱਦੇ ਹਨ ਪਰਿਆਵਰਣ ਦਾ ਨਿਰੰਤਰ ਨਿਘਾਰ, ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਹੈ, ਦੁਨੀਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਖੜਾ ਪ੍ਰਮਾਣੂ ਜੰਗ ਦਾ ਖਤਰਾ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਮੁੱਦਿਆਂ ਵਿਚ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਹੈ। ਪਿਛਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਪਰਿਆਵਰਨ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਕਈ ਸੰਮੇਲਨ ਹੋਏ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕਾਰਬਨ ਗੈਸਾਂ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਲਈ ਟੀਚੇ ਮਿੱਥੇ ਗਏ ਹਨ। ਅਮਰੀਕਾ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੈਸਾਂ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਉਸਦੀ ਸਨਅਤ ਉਤੇ ਵੀ ਕੋਲੇ, ਗੈਸ ਤੇ ਤੇਲ ਨੂੰ ਵੇਚਣ ਅਤੇ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ 'ਤੇ ਰੋਕਾਂ ਲੱਗੀਆਂ ਹਨ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਡੋਨਾਲਡ ਟਰੰਪ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਹ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਬਣਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਕੋਲਾ, ਗੈਸ ਤੇ ਤੇਲ ਕੰਪਨੀਆਂ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਸ਼ੀਦ ਕਰਨ, ਵੇਚਣ ਤੇ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੀ ਪੂਰੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਦੇ ਦੇਵੇਗਾ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟਰੰਪ ਦੇ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ ਬਣਨ 'ਤੇ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਖਤਰਾ ਹੋਰ ਵੱਧ ਜਾਵੇਗਾ।
ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਟਰੰਪ ਵਿਰੁੱਧ ਵੱਡੀ ਜਿੱਤ ਹਾਸਲ ਹੋਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਹੈ। ਜਿਸਨੂੰ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਗਲੇਨ ਫੋਰਡ ਵਰਗੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਕ ਉਸਨੂੰ ਰੂਸ ਵਿਰੁੱਧ ਜੰਗ ਲਈ ਮਿਲੇ ਫਤਵੇ ਵਜੋਂ ਦੇਖਦੇ ਹਨ। ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਲਾਜ਼ਮੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਇਕ ਪ੍ਰਮਾਣੂ ਜੰਗ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰੇਗੀ। ਓਬਾਮਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਵਲੋਂ ਯੂਕਰੇਨ ਵਿਚ ਰੂਸ ਵਿਰੋਧੀ ਸੱਜ ਪਿਛਾਖੜੀ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ, ਰੋਮਾਨੀਆ ਵਿਚ ਮਿਜਾਇਲ ਡਿਫੈਂਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਐਲਾਨ ਅਤੇ ਸੀਰੀਆ ਵਿਚ ਅਸਦ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਲਾਂਭੇ ਕਰਨ ਲਈ ਚੱਲੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਖਾਸ ਕਰਕੇ ਅਲੈਪੋ ਵਿਚ ਅੱਲ-ਨੁਸਰਾ ਵਰਗੇ ਜਿਹਾਦੀ ਗਰੁੱਪਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ, ਉਸ ਬਿਗਨਿਉ ਪ੍ਰਾਜੈਕਟ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹਨ, ਜਿਸਦਾ ਮਕਸਦ ਰੂਸ ਦੀ ਹੱਤਕ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਇਸ ਪ੍ਰਤੀ ਹਿਲੇਰੀ ਵੀ ਪ੍ਰਤੀਬੱਧ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿਚ ਤੀਜੀ ਸੰਸਾਰ ਜੰਗ ਦਾ ਮੁੱਢ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਥੇ ਇਹ ਵੀ ਜ਼ਿਕਰਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਰੂਸ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਮੰਤਰੀ ਵਲੋਂ ਵੀ ਪਿਛਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹੀ ਧਮਕੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾ ਚੁੱਕੀ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਚਿੱਟੇ ਦਿਨ ਵਾਂਗ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਬਣਨ ਵਾਲਾ ਨਵਾਂ ਰਾਸ਼ਟਰਪਤੀ, ਜੋ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਵਾਂ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਇਕ ਨੇ ਬਣਨਾ ਹੈ, ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੁਆਰੇਗਾ ਬਲਕਿ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਖਤਰੇ ਨੂੰ ਹੋਰ ਨੇੜੇ ਹੀ ਲੈ ਕੇ ਆਵੇਗਾ। ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਖਾਸੇ ਮੁਤਾਬਕ ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ 'ਤੇ ਦੁੱਖ ਅਤੇ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਹੀ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਲੱਦੇਗਾ।
ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ। ਕਈ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਧਿਰਾਂ ਨੇ ਇਹ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਬਰਨੀ ਸੈਂਡਰਸ ਅੰਤਰ-ਪਾਰਟੀ ਚੋਣ ਹਾਰਨ ਤੋਂ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਆਜ਼ਾਦ ਉਮੀਦਵਾਰ ਵਜੋਂ ਚੋਣ ਲੜੇ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਵਲੋਂ ਪੇਸ਼ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਡੈਮੋਕ੍ਰੇਟਿਕ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨਾਲੋਂ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਿੰਨ ਹੈ। ਉਹ ਨਵੀਂ ਪਾਰਟੀ ਵੀ ਬਣਾ ਲਵੇ ਜਿਹੜੀ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਹੋਵੇ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਸਨੇ ਇਹ ਗੱਲ ਪਰਵਾਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ਟਰੰਪ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਹਿੱਤ ਹਿਲੇਰੀ ਕਲਿੰਟਨ ਦੇ ਸਮਰਥਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ।
ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਕਈ ਖੱਬੀਆਂ ਧਿਰਾਂ ਗਰੀਨ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਜਿੱਲ ਸਟੀਨ ਤੇ ਅਜਾਮੂ ਬਾਰਾਕਾ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਜੰਗੀ ਮਸ਼ੀਨ ਪੈਂਟਾਗਨ ਨੂੰ ਨੱਥ ਪਾਉਣ, ਚੁਗਿਰਦੇ ਦੀ ਸੰਭਾਲ ਪੱਖੀ ਹੰਢਣਯੋਗ ਅਰਥਚਾਰਾ ਉਸਾਰਨ, ਸਭ ਲਈ ਸਿਹਤ ਬੀਮਾ, ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਤਨਖਾਹ ਵਿਚ ਤਿੱਖਾ ਵਾਧਾ ਕਰਨ, ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਨੂੰ ਜਥੇਬੰਦਕ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮੁੜ ਕਾਨੂੰਨੀ ਬਨਾਉਣ ਅਤੇ ਕਾਲਜ ਪੱਧਰ ਤੱਕ ਮੁਫਤ ਸਿੱਖਿਆ ਸਮੇਤ ਹੋਰ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਕਦਮਾਂ ਨੂੰ ਚੁੱਕਣ ਦਾ ਵਾਅਦਾ ਕੀਤਾ ਹੈ।                
(21.10.2016)

ਲੋਕ ਮਸਲੇ: ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ

ਨਿੱਤ ਵੱਧਦੀ ਮਹਿੰਗਾਈ, ਸੀਮਤ ਰੋਜ਼ਗਾਰ, ਰਵਾਇਤੀ ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਵਸੀਲਿਆਂ ਦੇ ਖੁਰਦੇ ਜਾਣ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਪੈਦਾ ਹੋਈਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੇ ਚਲਦਿਆਂ ਗੈਰ ਜਥੇਬੰਦ ਖੇਤਰ 'ਚ ਕਿਰਤੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਪੱਖੋਂ ਅਹਿਮ ਹੈ ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ 'ਚ ਵੀ ਵਿਸ਼ਾਲ ਭਾਗ ਅੱਗੋਂ ਔਰਤਾਂ ਦਾ ਹੈ।
ਘਰਾਂ 'ਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਇਹ ਮਰਦ ਔਰਤਾਂ ਅਤੀ ਨਿਗੂਣੀਆਂ ਉਜਰਤਾਂ 'ਤੇ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਮਜ਼ਬੂਰ ਹਨ।
(ੳ) ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਿਤੇ ਵੀ ਕੋਈ ਰਜਿਸਟਰੇਸ਼ਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ।
(ਅ) ਹਾਜਰੀ ਤੱਕ ਨਹੀਂ ਲੱਗਦੀ, ਲੱਗਣੀ ਅਗਲੇਰੇ ਕਿਰਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਅਧੀਨ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ (ਨਗੂਣੇ) ਲਾਭ ਤਾਂ ਕਿਧਰੇ ਦੂਰ ਦੀ ਗੱਲ ਰਹੀ।
(ੲ) ਹਫ਼ਤਾਵਾਰੀ ਛੁੱਟੀ, ਬੀਮਾਰੀ ਦੀ ਛੁੱਟੀ, ਪ੍ਰਸੂਤਾ ਛੁੱਟੀ ਆਦਿ ਦਾ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਸੁਪਨਾ ਤੱਕ ਵੀ ਨਹੀਂ ਲਿਆ।
(ਸ) ਅਕਸਰ ਜਦੋਂ ਮਰਜ਼ੀ ਕੰਮ ਤੋਂ ਹਟਾ ਦੇਣਾ,
(ਹ) ਉਜਰਤਾਂ ਮਾਰ ਲੈਣੀਆਂ
(ਕ) ਦੁਰਵਿਹਾਰ
(ਖ) ਜਿਣਸੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ
(ਗ) ਦੁਰਘਟਨਾ ਜਾਂ ਬੀਮਾਰੀ ਸਮੇਂ ਇਲਾਜ ਤੋਂ ਹੱਥ ਖਿੱਚ ਲੈਣੇ ਆਦਿ ਆਮ ਵਾਪਰਣ ਵਾਲੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਹਨ।
ਇਸੇ ਲਈ ਸੀ.ਟੀ.ਯੂ. ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਨਿਰਮਾਣ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਨੇ ਪਹਿਲਕਦਮੀ ਕਰਦਿਆਂ ਪੰਜਾਬ ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ (૿7$") ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਬੜੀਆਂ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਇਕੱਤਰਤਾਵਾਂ ਪਠਾਨਕੋਟ ਵਿਖੇ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਚੁੱਕੀਆਂ ਹਨ। ਪੀ.ਜੀ.ਐਮ.ਯੂ. ਨੇ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਉਕਤ ਮੰਗਾਂ ਦੇ ਨਾਲ, ਪੈਨਸਨਾਂ, ਰਿਹਾਇਸ਼ੀ ਮਕਾਨਾਂ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ, ਵਜ਼ੀਫ਼ੇ, ਬੀਮਾ ਆਦਿ ਸਾਰੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਸੰਗਰਾਮ ਲੜਿਆ ਜਾਵੇ। ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਯੂਨੀਅਨ ਨੇ ਉਸਾਰੀ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਤਰਜ 'ਤੇ ਇਕ ''ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਭਲਾਈ ਬੋਰਡ'' ਦੇ ਗਠਨ ਅਤੇ ''ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਭਲਾਈ ਫੰਡ'' ਦੀ ਕਾਇਮੀ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਯੂਨੀਅਨ ਨੇ ਆਪਣਾ ਘੇਰਾ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਤੱਕ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਠੋਸ ਪਲੈਨਿੰਗ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਆਉਂਦੀ 11 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਪਠਾਨਕੋਟ ਵਿਖੇ ਇਸ ਮੁਹਿੰਮ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਰੈਲੀ ਕਰਕੇ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। 
- ਸੁਭਾਸ਼ ਸ਼ਰਮਾ

ਸਾਹਿਤ ਤੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਨਵੰਬਰ 2016)

ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ ਊਰਦੂ ਕਹਾਣੀ
 
ਗੌਤਮ ਦਾ ਕਤਲ
 
- ਤੌਕੀਰ ਚੁਗ਼ਤਾਈ 
 ਯਸ਼ੋਧਰਾ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਮੇਰੇ ਕੰਨਾਂ ਵਿਚ ਪਈ। ਉਹ ਸਾਡੀ ਗਵਾਂਢਣ ਏ। ਯਸ਼ੋਧਰਾ ਗੌਤਮ ਦੇ ਤਰਲੇ ਲੈ ਰਹੀ ਸੀ ਕਿ ਮੇਰੇ ਲਈ ਤੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਲਈ ਘਰ ਮੁੜ ਕੇ ਆ ਜਾ। ਕਿਉਂ ਬੂਹੇ-ਬੂਹੇ ਭਿੱਖਿਆ ਮੰਗ ਕੇ ਸਾਡੀ ਪੱਤ ਨੂੰ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਰੋਲਦਾ ਪਿਆ ਏਂ। ਤੇਰਾ ਪਿਉ ਇਕ ਰਿਆਸਤ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ ਏ ਤੇ ਤੂੰ ਭਿੱਖਿਆ?
''ਦੁਨੀਆਂ ਬਹੁਤ ਦੁਖੀ ਏ ਯਸ਼ੋਧਰਾ! ਗੁਆਂਢੀ ਨੂੰ ਮਾਰਨ, ਉਸਦਾ ਘਰ ਉਜਾੜਨ ਅਤੇ ਪੈਲੀਆਂ ਸਾੜਨ ਦੇ ਮਨਸੂਬੇ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਏ। ਲੋਕੀ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਤੇ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਵਿਚ ਘਿਰੇ ਹੋਏ ਨੇ। ਮੈਥੋਂ ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਵੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ। ਮੈਂ ਦੁੱਖਾਂ ਭਰੀ ਇਸ ਦੁਨੀਆਂ ਨੂੰ ਛੱਡਿਆ, ਰਿਆਸਤ ਦੇ ਕਾਰ ਵਿਹਾਰ ਨੂੰ ਛੱਡਿਆ, ਐਸ਼ ਭਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਛੱਡਿਆ ਤੇ ਜਾ ਤੈਨੂੰ ਵੀ ਛੱਡਿਆ।''
''ਮੈਂ ਅਮਨ, ਸੁਖ ਤੇ ਚੈਨ ਦੀ ਆਸ ਲੈ ਕੇ ਗਵਾਂਢੀ ਰਿਆਸਤ ਨੂੰ ਜਾ ਰਿਹਾਂ। ਮੈਂ ਸੁਣਿਆ ਏ ਉਥੇ ਦੇ ਵਾਸੀ ਭੁੱਖ, ਦੁੱਖ, ਜੰਗ ਤੇ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਫਸੇ ਹੋਏ ਨੇ।''
ਹਾਲੀ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਤੀਕਰ! ਹਾਂ, ਸਿਰਫ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਤੀਕਰ ਇਕ ਜੋਗੀ ਜ਼ਿੰਦਾ ਸਲਾਮਤ ਤੇ ਜਿਉਂਦਾ ਸੀ। ਮੈਂ ਆਪ ਆਪਣੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨੂੰ ਵੇਖਿਆ ਸੀ। ਉਹ ਯਸ਼ੋਧਰਾ ਨੂੂੰ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ, ''ਦੁਨੀਆਂ ਬੜੀ ਦੁੱਖੀ ਏ ਤੇ ਇਹ ਸਾਰੇ ਦੁੱਖ ਬੰਦਿਆਂ ਦੇ ਆਪਣੇ ਸਹੇੜੇ ਹੋਏ ਨੇ। ਵੇਖ ਤਾਂ ਸਹੀ। 'ਸਾਕੀਆ' ਕਬੀਲੇ ਨੇ ਇਕ ਇਹੋ ਜਿਹੇ ਬੰਬ ਬਣਾਇਆ ਏ ਜੀਹਦੇ ਫਟਣ ਨਾਲ 'ਕੱਵਲਿਆ' ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਬੰਦੇ ਮਰ ਜਾਣਗੇ। ਸਬਜ਼ਾ (ਹਰਿਆਵਲ) ਸੜ ਜਾਏਗਾ ਤੇ ਪੇਸ਼ਵਾ ਦੀ ਨਸਲ ਉਕੀ ਮੁੱਕ ਜਾਏਗੀ। ਸਾਕੀਆ ਦੀ ਵੇਖਿਆ ਵੇਖੀ 'ਕਵੱਲਿਆ' ਕਬੀਲੇ ਨੇ ਵੀ ਬੰਬ ਬਣਾ ਲਿਆ ਤੇ ਹੁਣ ਵੇਖਦਿਆਂ ਈ ਵੇਖਦਿਆਂ ਦੋਹਾਂ ਧਿਰਾਂ ਨੇ ਬੰਬਾਂ ਦੇ ਢੇਰਾਂ ਦੇ ਢੇਰ ਲਾ ਦਿੱਤੇ। ਉਹ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਹੋਇਆ ਇਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਦੀ ਦੁਸ਼ਮਨੀ ਨੇ ਏਡਾ ਜ਼ੋਰ ਨਾ ਫੜ੍ਹਿਆ ਬਸ ਐਵੇਂ ਕਦੀ ਕਦਾਈ ਕਿਧਰੇ ਨਾ ਕਿਧਰੇ ਨਿੱਕਾ-ਮੋਟਾ ਸਿਆਪਾ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਏ।''
ਕੱਲ ਦੀ ਗੱਲ ਏ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਇਕ ਬੁੱਢੜੀ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਚੁੱਕ ਕੇ ਲਿਆਈ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗੀ, ''ਇਹਦੇ ਕਲਬੂਤ ਵਿਚ ਜਿੰਦ ਪਾ ਦਿਓ।''
''ਮੈਂ ਉਹਦੇ ਕੋਲੋਂ ਪੁਛਿਆ ਤੇਰਾ ਪੁੱਤ ਕਿਉਂ ਮਰਿਆ?''
ਕਹਿਣ ਲੱਗੀ, ''ਸਾਡੇ ਕਬੀਲੇ ਤੇ ਗਵਾਂਢੀ ਕਬੀਲੇ ਕਵੱਲਿਆ ਵਿਚ ਇਕ ਏਹੋ ਜਿਹੇ ਪੜਾੜ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਬਾਰੇ ਲੜਾਈ ਚੱਲ ਰਹੀ ਏ ਜੋ ਦੋਹਾਂ ਧਿਰਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਨਹੀਂ ਉਥੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਏ। ਹੁਣ ਇਕ ਕਬੀਲਾ ਕਹਿੰਦਾ ਏ ਕਿ ਇਹ ਪਹਾੜ ਮੇਰਾ ਏ ਜਦ ਕਿ ਦੂਜਾ ਕਹਿੰਦਾ ਏ ਇਹ ਮੇਰਾ ਏ। ਏਸ ਮੇਰੇ ਤੇਰੇ ਦੇ ਝਗੜੇ ਵਿਚ ਈ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਬੰਦਾ ਫੜ੍ਹ ਹੁੰਦਾ ਏ। ਏਸੇ ਝਗੜੇ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਮੇਰਾ ਪੁੱਤਰ ਮਰ ਗਿਆ ਏ। ਮੇਰਾ ਇਕੋ ਈ ਪੁੱਤ ਸੀ, ਇਹਦੇ ਵਿਚ ਸਾਹ ਪਾ ਦਿਓ।''
''ਮੈਂ ਬੁੱਢੜੀ ਨੂੰ ਆਖਿਆ! ਤੂੰ ਨਾਲ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਟੁਰ ਜਾ। ਉਥੇ ਦੇ ਇਕ ਅਜਿਹੇ ਘਰ ਵਿਚੋਂ ਸਰ੍ਹੋਂ ਦੇ ਬੀ ਦੀ ਮੁੱਠ ਭਰ ਕੇ ਲਿਆ ਜਿਸ ਘਰ ਦਾ ਕੋਈ ਜੀ ਕਦੀ ਨਾ ਮਰਿਆ ਹੋਵੇ।'' ਬੁੱਢੜੀ ਨੇ ਇਕ-ਇਕ ਘਰ ਭਾਲਿਆ ਪਰ ਉਹਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਘਰ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸ ਦਾ ਕੋਈ ਜੀ ਨਾ ਮਰਿਆ ਹੋਵੇ। ਉਹ ਚੁੱਪ ਕਰਕੇ ਮੁੜ ਆਈ। ਮੈਂ ਉਹਨੂੰ ਆਖਿਆ, ''ਹਰ ਜੀ ਨੇ ਮਰਨਾ ਏ ਪਰ ਇੰਜ ਨਹੀਂ ਮਰਨਾ ਜਿਵੇਂ ਸਾਕੀਆ ਤੇ ਕਵੱਲਿਆ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਜਵਾਨ ਪਏ ਮਰਦੇ ਨੇ। ਮੌਤ ਤੇ ਹਰ ਬੰਦੇ ਤੇ ਵਾਜਬ ਏ। ਮਰਨੋਂ ਬਾਝ ਛੁਟਕਾਰਾ ਨਹੀਂ ਪਰ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਲੜਣਾ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਦੁੱਖ ਦੇਣਾ, ਜਾਂ ਕਤਲ ਕਰਨਾ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਾਜਬ ਨਹੀਂ।''
ਉਹਦੀ ਮਤਰੇਈ ਮਾਂ ਕਰਿਸ਼ਮਾ ਗੌਤਮੀ ਨੇ ਆਖਿਆ, ''ਜਿਵੇਂ ਤੂੰ ਭਿੱਖਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਜਮਾਤ ਉਸਾਰੀ ਏ ਉਵੇਂ ਈ ਤੀਵੀਆਂ ਦੀ ਵੀ ਇਕ ਜਮਾਤ ਦੀ ਵੀ ਲੋੜ ਏ।''
ਗੌਤਮ ਨੇ ਉਹਨੂੰ ਆਖਿਆ, ''ਨਿੱਤ ਦੀਆਂ ਲਾਮਾਂ ਲੜ-ਲੜ ਕੇ ਮਰਦਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਤੀਵੀਆਂ ਨਾਲੋਂ ਘੱਟ ਰਹੀ ਏ। ਇਹਦੇ ਵਿਚ ਸਾਰਾ ਕਸੂਰ ਮਰਦਾਂ ਦਾ ਏ। ਲੜਾਈ ਦਾ ਸਭ ਨਾਲੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅਸਰ ਤੀਵੀਆਂ ਉਤੇ ਹੁੰਦਾ ਏ। ਸਾਡੇ ਵਸੇਬ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਵਿਚ ਤੀਵੀਆਂ ਵੀ ਓਨਾ ਈ ਭਰਪੂਰ ਹਿੱਸਾ ਪਾ ਸਕਦੀਆਂ ਨੇ ਜਿੰਨਾ ਕਿ ਮਰਦ।''
ਕਪਲ-ਵਸਤੂ ਦਾ ਰਾਜਪਾਟ, ਰਾਜਕੁਮਾਰੀ ਯਸ਼ੋਧਰਾ ਤੇ ਨਿੱਕੇ ਜਿਹੇ ਰਾਹੁਲ ਨੂੰ ਸੁੱਤਿਆਂ ਛੱਡ ਕੇ ਬੇਲੇ ਟੁਰ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਗੌਤਮ  ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਬਿਲਕੁੱਲ ਜਿਉਂਦਾ ਜਾਗਦਾ ਸੀ।
ਉਹ ਕੋਈ ਪੈਗੰਬਰ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਨਾ ਈ ਕਿਸੇ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖਣ ਵਾਲਾ ਕੋਈ ਅਵਤਾਰ। ਉਹ ਤਾਂ ਆਪਣੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਗਣ ਵਾਲਾ ਅਜਿਹਾ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਸੀ ਜਿਹੜਾ ਆਪਣੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਛੱਡ ਕੇ ਆਮ ਲੋਕਾਈ ਵਿਚ ਆਣ ਰਲਿਆ ਤੇ ਗਿਆਨ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਲਈ ਜੰਗਲ ਬੇਲੇ ਘੁੰਮਣ ਲੱਗ ਪਿਆ। ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਜ਼ਰ, ਜ਼ਮੀਨ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਨੇ।
ਕਈ ਬੰਦੇ ਚੰਗੇ ਜਾਂ ਮੰਦੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਜੁੱਪੇ ਰਹਿੰਦੇ ਨੇ। ਗ਼ੌਤਮ ਨੇ ਜੂਨ, ਜ਼ਰ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਨਾਲ ਇਕ ਨਵੇਂ ਜੰਮੇ ਪੁੱਤ ਨੂੰ ਵੀ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ। ਸ਼ਾਇਦ ਸੱਚ ਨੂੰ ਹਾਸਲ ਕਰਨਾ ਉਹਦੇ ਲਈ ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ।
''ਹਾਂ! ਹਾਂ! ਬਸ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਏ ਉਹ ਬਿਲਕੁੱਲ ਜਿਉਂਦਾ ਜਾਗਦਾ ਸਾਡੇ ਮੁਹੱਲੇ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਿਆ ਸੀ। ਉਹ ਕੱਲਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਸਗੋਂ ਉਹਦੇ ਨਾਲ ਸੱਚ ਨੂੰ ਭਾਲਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਇਕ ਪੂਰੀ ਢਾਣੀ ਸੀ ਜੋ ਬੀਹੇ ਦੀ ਬੂਹੇ-ਬੂਹੇ ਜਾ ਕੇ ਕੁੰਡੀ ਖੜਕਾਉਂਦੇ ਤੇ ਭਿੱਖਿਆ ਵਿਚ ਜੋ ਕੁਝ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਉਹਨੂੰ ਰਲ਼ ਕੇ ਖਾ ਲੈਂਦੇ। ਉਹ ਸਾਰੇ ਇਕੋ ਜਿਹੇ ਸਨ। ਨੰਗੇ ਸਿਰ, ਨੰਗੇ ਪੈਰ ਤੇ ਥੋੜ੍ਹੇ ਜਿਹੇ ਕੇਸਰੀ ਲੀੜਿਆਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡੇ ਨੂੰ ਲੁਕਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ।''
ਮੈਂ ਗੌਤਮ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, ''ਬਾਬਾ! ਤੂੰ ਚੰਮ ਦੀਆਂ ਜੁੱਤੀਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਲੱਕੜ ਦੀਆਂ ਖੜਾਵਾਂ ਕਿਉਂ ਪਾਈਆਂ ਹੋਈਆਂ ਨੇ? ਤੇਰੇ ਪੈਰ ਨਹੀਂ ਦੁੱਖਦੇ?'' ਉਹਦੇ ਸੁੱਕੇ ਹੋਏ ਬੁੱਲ੍ਹ ਕੰਬੇ ਅਤੇ ਇਕ ਨਰਮ ਜਿਹੀ ਆਵਾਜ਼ ਆਈ, ''ਖੜਾਵਾਂ ਪਾਉਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਏ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੁਣ ਕੇ ਕੀੜੇ-ਕੀੜੀਆਂ ਤੇ ਸੱਪ-ਠੂੰਹੇਂ ਇੱਧਰ-ਉਧਰ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਮੇਰੇ ਪੈਰਾਂ ਹੇਠ ਆ ਕੇ ਮਰਨ ਤੋਂ ਬਚ ਜਾਣ।''
''ਤੁਹਾਡੇ ਮੂੰਹ ਉਤੇ ਦੁੱਖ ਤੇ ਥਕੇਵਾਂ ਕਾਹਦਾ ਏ?'' ਮੈਂ ਪੁੱਛਿਆ।
''ਦੁਨੀਆਂ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਘਰ ਏ। ਇੱਥੇ ਕੌਣ ਹੈ ਜੋ ਸੁਖੀ ਏ। ਸਿਰਫ਼ ਉਹੀ ਸੁਖੀ ਏ ਜਿਸਦੇ ਅਮਲ ਚੰਗੇ ਹਨ ਜੋ ਦੁਨੀਆਂ ਨੂੰ ਦੁੱਖ ਨਹੀਂ ਦੇਂਦੇ। ਮੈਂ ਗਵਾਂਢ ਦੀ ਰਿਆਸਤ ਨੂੰ ਜਾ ਰਿਹਾਂ। ਸੁਣਿਆ ਏ ਉਥੇ ਦੇ ਵਾਸੀ ਦੁੱਖ, ਭੁੱਖ ਤੇ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਫਸੇ ਹੋਏ ਨੇ।''
ਤੇ ਉਹ ਅਮਨ, ਸੁੱਖ ਤੇ ਚੈਨ ਦਾ ਸੁਨੇਹਾ ਲੈ ਕੇ ਗਵਾਂਢੀ ਰਿਆਸਤ ਵੱਲ ਵਧਿਆ। ਉਹਨੇ ਵੇਖਿਆ ਰਿਆਸਤ ਦੇ ਹਰ ਵਾਸੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਗ਼ਲ ਵਿਚ ਹਾਰਾਂ ਤੇ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਲੋਹੇ ਦੇ ਕੜੇ ਜਿਹੇ ਪਾਏ ਹੋਏ ਨੇ ਜਿਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਹ ਸੰਕੂਕ ਦਾ ਨਾਂ ਦੇਂਦੇ ਸਨ।  ਹਰ ਪਾਸਿਓਂ ਬਾਰੂਦ ਦੀ ਬਦਬੂ ਤੇ ਪਟਾਕਿਆਂ ਦੀਆਂ ਆਵਾਜ਼ਾਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਸੀ। ਲੋਕੀ ਦੁੱਖ ਤੇ ਭੁੱਖ ਦੇ ਮਾਰੇ ਹਾਏ-ਹਾਏ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਪਹਿਲੇ ਦੂਜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵੱਲ ਨੱਸ ਗਏ ਸਨ। ਬਾਕੀ ਮਰ ਗਏ ਸਨ। ਜੋ ਜ਼ਿੰਦਾ ਸਨ ਉਹ ਮਰਿਆਂ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਭੈੜੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਸਨ। ਨਿੱਤ ਨਿੱਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੇ ਕਿਸੇ ਦੀ ਲੱਤ, ਕਿਸੇ ਦੀ ਅੱਖ, ਕਿਸੇ ਦਾ ਹੱਥ ਵੰਜਾਹ ਛੱਡਿਆ ਸੀ।
ਗੌਤਮ ਨੇ ਰਾਹ ਜਾਂਦੇ ਇਕ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, ''ਭਾਈ ਕੀਹ ਗੱਲ ਏ ਤੁਹਾਡੀ ਰਿਆਸਤ ਵਿਚ ਏਡੀ ਵਿਰਾਨੀ ਕਾਹਨੂੂੰ ਏ? ਕੋਈ ਬੱਚਾ, ਕੋਈ ਤੀਵੀਂ, ਕੋਈ ਜਵਾਨ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ। ਜੇ ਕੋਈ ਹੈ ਵੀ ਤਾਂ ਉਹ ਨਾ ਹੋਇਆਂ ਵਰਗਾ ਲੱਗਦਾ ਏ। ਨਾਲੇ ਤੁਸੀਂ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਕਿਉਂ ਲੜਦੇ ਓ? ਲੜਨਾ ਭਿੜਣਾ ਬੰਦ ਕਰੋ; ਤੁਸੀਂ ਦੁੱਖਾਂ ਦਰਦਾਂ, ਭੁੱਖਾਂ, ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਲੜਦੇ?''
''ਇੰਜ ਲੱਗਦਾ ਏ ਜਿਵੇਂ ਤੂੰ ਸਾਡੀ ਰਿਆਸਤ ਵਿਚ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਵੜ੍ਹਿਆ ਏਂ! ਸ਼ਾਇਦ ਤੈਨੂੰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਇੱਥੇ ਸਿਰਫ ਸਾਡੇ ਧਰਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਹੀ ਰਹਿ ਸਕਦੇ ਨੇ। ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਏ ਤੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਧਰਮ ਦਾ ਬੰਦਾ ਏਂ?''
''ਨਾ ਮੇਰਾ ਕੋਈ ਧਰਮ ਏ ਤੇ ਨਾ ਈ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਆਂ। ਸਾਰੇ ਧਰਮ ਨੇਕੀ ਦਾ ਪੈਗਾਮ ਦਿੰਦੇ ਨੇ। ਮੈਂ ਤੇ ਬੰਦੇ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੂੰ ਸਿਰਫ਼ ਚਾਰ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਏ। ਭੁੱਖ, ਬੁਢਾਪਾ, ਬੀਮਾਰੀ ਤੇ ਮੌਤ। ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੇ ਬੰਦਾ ਹੋਰ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ। ਜਿਹਨੇ ਇਹਨਾਂ ਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪਾ ਲਿਆ, ਸੱਚ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸ਼ੈਅ ਹੋਰ ਕੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਏ।'' ਏਨਾਂ ਸੁਣਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਬੰਦੇ ਨੇ ਰੌਲਾ ਪਾ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਵੇਖਦਿਆਂ ਈ ਵੇਖਦਿਆਂ ਉਹਦੇ ਵਰਗੇ ਚੋਖੇ ਸਾਰੇ ਬੰਦੇ ਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ।
ਇਕ ਦੂਸਰੀ ਢਾਣੀ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ, ਕੀਹ ਗੱਲ ਏ? ਭਗਵੇਂ ਕੱਪੜਿਆਂ ਵਾਲਾ ਸਾਧੂ ਕੌਣ ਏ ਤੇ ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ ਇਹਦੇ ਪਿੱਛੇ ਕਿਉਂ ਪਏ ਓ?''
''ਨਾਲ ਦੀ ਰਿਆਸਤ ਦਾ ਕੋਈ ਜੋਗੀ ਸਾਡੀ ਬੁੱਧੀ ਨੂੰ ਖਰਾਬ ਕਰਨ ਲਈ ਸੋਹਣੀਆਂ ਅਕਲੀ ਬਾਂਦਰ-ਬਾਂਦਰੀਆਂ ਵਿਖਾ ਕੇ ਸਾਨੂੰ ਬੇਖ਼ੌਫ਼ ਬਣਾਉਣ ਡੇਹਾ ਏ।''
''ਇਹਨੂੰ ਛੱਡ ਦਿਓ। ਇਹਨੇ ਕੋਈ ਵੀ ਮਾੜੀ ਗੱਲ ਮੂੰਹੋਂ ਨਹੀਂ ਕੱਢੀ, ਇਹ ਠੀਕ ਕਹਿੰਦਾ ਏ।'' ਇਕ ਬੰਦੇ ਨੇ ਆਖਿਆ।
''ਤੂੰ ਸਾਡੇ ਧਰਮ ਦਾ ਹੋ ਕੇ ਸਾਨੂੰ ਕੁਰਾਹੇ ਪਾ ਰਿਹਾ ਏਂ?'' ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੋਰ ਬੋਲਿਆ।
''ਗੱਲ ਧਰਮ ਦੀ ਨਹੀਂ, ਸੱਚ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਆਏ ਨੇ।'' ਉਹਨੇ ਆਖਿਆ ਪਰ ਉਸ ਦੀ ਗੱਲ ਕਿਸੇ ਨਾ ਸੁਣੀ ਤੇ ਸਾਰੇ ਗ਼ੌਤਮ ਨੂੰ ਧਰੂੰਦਿਆਂ ਇਕ ਵੱਡੀ ਪਹਾੜੀ ਦੇ ਲਾਗੇ ਲੈ ਗਏ। ਫੇਰ ਇਕ ਜ਼ੋਰ ਦਾ ਧਮਾਕਾ ਹੋਇਆ ਤੇ ਜਦੋਂ ਧੂੜ ਬੈਠੀ ਤਾਂ ਪਹਾੜ ਦੇ ਚਾਰੇ ਪਾਸੇ ਗੌਤਮ ਦੇ ਹੱਥ ਖਿੱਲਰੇ ਹੋਏ ਸਨ।
ਹਾਲੀ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਤੀਕਰ ਉਹ ਜੋਗੀ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਜਿਉਂਦਾ ਜਾਗਦਾ ਸੀ। ਉਹਦੇ ਮੂੰਹ ਤੇ ਸੱਚ ਦਾ ਨੂਰ ਲਸ਼-ਲਸ਼ ਪਿਆ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਗੌਤਮ, ਜਿਹਨੂੰ ਭੁੱਖ, ਇਕਲਾਪਾ ਤੇ ਵੀਰਾਨੀ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਸਦੀਆਂ ਦੇ ਹਨ੍ਹੇਰੇ ਵਿਚ ਡੁੱਬੀ ਤਾਰੀਖ਼ ਵੀ ਕਤਲ ਨਾ ਕਰ ਸਕੀ, ਗਵਾਂਢੀ ਰਿਆਸਤ ਦੇ ਕੁੱਝ ਬੰਦਿਆਂ ਹੱਥੋਂ ਕਤਲ ਹੋ ਗਿਆ।
ਸੁਣਿਆ ਏ ਉਸ ਰਿਆਸਤ ਵਿਚ ਅਮਨ ਤੇ ਭੁੱਖ ਚੈਨ ਦੀਆਂ ਨਿਸ਼ਾਨੀਆਂ ਇਨਸਾਨੀਅਤ ਦਾ ਇਤਬਾਰ ਬਣਿਆ ਸੀ। ਹੁਣ ਉਹਨਾਂ ਬਦਨਸੀਬਾਂ ਤੇ ਕੋਈ ਕੀਹ ਇਤਬਾਰ ਕਰੇਗਾ ਜੋ ਨੇਕ ਬੰਦਿਆਂ ਦੇ ਕਤਲ ਨੂੰ ਵੀ ਸ਼ਵਾਬ ਦਾ ਨਾਂ ਦੇਂਦੇ ਪਏ ਨੇ।




ਕਵਿਤਾ
ਬੇਦਾਵਾ
- ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ
 

ਭਰਤੀ ਹੋਣ ਲਈ
ਮਿੱਤਰਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡ ਆਇਆਂ ਸਾਂ।
ਰੋਂਦਾ ਨਹੀਂ ਦੇਖ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਬਾਪ,
ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ 'ਚ ਵਗਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਝੀਲ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਕੇ,
ਸਰਹੱਦਾਂ 'ਤੇ
ਆ ਪਹੁੰਚਾ ਸਾਂ ਮਰਨ ਖ਼ਾਤਰ।
ਤਾਂ ਕਿ ਸਾਡੇ ਲੋਕ ਜਿਉਂਦੇ ਰਹਿਣ।
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਮੁੰਡੇ, ਕੁੜੀਆਂ, ਬੁਢਿਆਂ
ਤੇ ਦਿਹਾੜੀਦਾਰਾਂ ਨੂੰ
ਦੱਸ ਆਇਆਂ ਸਾਂ।
ਹੁਣ ਤੁਸੀਂ ਭੁੱਖੇ ਨਹੀਂ ਮਰੋਗੇ।
ਬੇਕਾਰੀ ਭੱਜ ਜਾਏਗੀ।
ਬੱਚੇ ਪੜ੍ਹਨਗੇ।
ਡਾਕਟਰ ਰੋਗੀ ਲੱਭਦੇ ਫਿਰਨਗੇ!
ਦੁਸ਼ਮਣ ਸੰਗ ਦੋ ਦੋ ਹੱਥ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਿੱਛੋਂ,
'ਅੱਤਵਾਦ' ਦਾ ਭੁਤ ਦਫਨ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ,
ਸਭ ਕੁੱਝ ਠੀਕ ਹੋਵੇਗਾ।

ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਤਾਂ ਇਹੋ ਇਕਰਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ਮੇਰੇ ਨਾਲ,
ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਵੇਲੇ।
ਸਮਾਂ ਆਉਣ ਤੇ ਮੈਂ ਲੜਿਆ,
ਭਿੜਿਆ,
ਜੂਝਿਆ, ਪਰ ਅੰਤ ਨੂੂੰ ਮਰਿਆ।
ਕਈਆਂ ਨੂੂੰ ਮਾਰ ਕੇ।

ਮੇਰੀ ਚਿਖਾ ਦੀ ਸੁਆਹ ਠੰਡੀ ਹੋਣ ਤੋਂ ਵੀ ਪਹਿਲਾਂ,
ਤੁਸੀਂ ਖੂਬ ਹੱਸੇ,
ਫੁਲਝੜੀਆਂ, ਪਟਾਖੇ ਚਲਾਏ।
ਮੇਰੇ ਮਰਨ 'ਤੇ ਕੀਰਨੇ ਪਾਉਣ ਦੀ ਥਾਂ
'ਸ਼ਹਿਨਸ਼ਾਹ' ਦੇ ਫਿਲਮੀ ਡਾਇਲਾਗ ਸੁਣੇ।
ਮੈਂ ਖੁਸ਼ ਹਾਂ ਆਪਣਾ ਇਕਰਾਰ ਪੂਰਾ ਕਰਕੇ।
ਪਰ ਅਫਸੋਸ
ਤੁਸੀਂ ਕੋਈ ਵਾਇਦਾ ਵੀ ਵਫਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ।
ਨਾ ਕੰਮ, ਨਾ ਦੰਮ,
ਨਾ ਸਿਰ ਢਕਣ ਜੋਗਾ ਕੋਠੜਾ।
ਸਭ ਕੁਝ ਭੁਲ ਗਏ ਹੋ।
ਜਸ਼ਨਾਂ ਵਿਚ ਡੁਲ੍ਹ ਗਏ ਹੋ।

ਮੇਰੇ ਯਾਰ ਕਿੰਨੇ ਪੀਲੇ ਹੋ ਗਏ?
ਚਿੱਟਾ ਪੀਂਦਿਆਂ, ਹੌਕੇ ਭਰਦਿਆਂ।
ਵਾਇਦਾ ਪੂਰਾ ਨਾ ਕਰਨਾ
ਅਕਿਰਤਘਣਤਾ ਹੈ,
ਮੈਂ ਮਰ ਕੇ ਵੀ ਆਖਾਂਗਾ।

ਹੁਣ ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਅਗਲਾ ਸਿਪਾਹੀ
ਸੌ ਵਾਰ ਸੋਚੇਗਾ।
ਪਿਓ ਦੀਆਂ ਲੇਰਾਂ
ਮਾਂ ਦੇ ਹੌਕੇ,
ਭੈਣ ਦੇ ਤਰਲੇ ਦੇਖਕੇ
ਲੜਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ।
ਆਪਣੀ ਜਾਤ, ਗੋਤ, ਕੁਣਬੇ
ਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਸਮਝੇਗਾ।
ਨਫੇ ਤੇ ਨੁਕਸਾਨ ਨੂੰ ਜਾਣੇਗਾ।
ਉਹ ਲੜੇਗਾ
ਬਾਪ ਸਿਰੋਂ ਕਰਜ਼ਾ ਉਤਾਰਨ ਲਈ,
ਬੱਚੇ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਲਈ,
ਬਿਮਾਰ ਪੁੱਤ ਨੂੂੰ ਬਚਾਉਣ ਲਈ,
ਭੈਣ ਦੇ ਬਾਂਹੀਂ ਲਾਲ ਚੂੜਾ ਚੜ੍ਹਾਉਣ ਲਈ।

ਤੁਸਾਂ ਦੀ ਝੂਠੀ ਆਰਤੀ,
ਦਿਲ ਨੂੰ ਧਰਵਾਸ ਨਹੀਂ ਦੇਂਦੀ
ਨਕਲੀ ਤਮਗਿਆਂ ਤੇ ਅਕਿਰਤਘਣ ਹੱਥਾਂ ਤੋਂ
ਕੁਝ ਲੈਣ ਦੀ ਥਾਂ,
ਲੜਨਾ ਤੇ ਮਰਨਾ ਚਾਹਾਂਗੇ
ਆਪਣੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ।
ਦੁਸ਼ਮਣ ਨੂੰ ਪਹਿਚਾਣਾਂਗੇ
ਹਾਲਾਤ ਦੀ ਬੇਰਹਿਮੀ ਨੂੰ ਟਕਰਾਂਗੇ।
ਸਮੁੰਦਰੋਂ ਪਾਰ ਬੈਠੇ ਸ਼ਾਤਰ ਲੂੰਬੜ ਦੀ ਚਾਲ ਨੂੰ ਸਮਝਾਂਗੇ।
ਆਪਣੀ ਧਰਤ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਾਂਗੇ,
ਮੁਆਫ ਕਰਨਾ!
ਇਨ੍ਹਾਂ ਬੋਲਾਂ ਨੂੰ ਸਾਡਾ 'ਬੇਦਾਵਾ' ਸਮਝ ਲੈਣਾ।



ਗ਼ਜਲ
 ਸਰਵਨ ਰਾਹੀ
 

ਅੱਜ ਨਾ ਚੰਚਲ ਗੱਲਾਂ ਭਾਵਣ ਭੁੱਖੇ ਢਿੱਡ ਨੂੰ ਪਿਆਰ ਦੀਆਂ।
ਅੱਜ ਤਾਂ ਜੋਬਨ ਵਾਂਗੂੰ ਚੜ੍ਹੀਆਂ ਪੰਡਾਂ ਸਿਰੀਂ ਉਧਾਰ ਦੀਆਂ।
ਖ਼ਾਲੀ ਜੇਬਾਂ ਸੱਖਣੇ ਹੱਥ ਨੇ ਕੰਮ ਧੰਦਾ ਕੋਈ ਮਿਲਦਾ ਨਹੀਂ,
ਲਹੂ ਪੀਣੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵੇਖੋ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਕਿੰਜ ਖਾਰਦੀਆਂ।
ਮੇਰੇ ਘਰਦੀ ਸ਼ੋਖ ਚਾਨਣੀ ਆਟੇ ਦੇ ਲਈ ਤਰਸ ਰਹੀ,
ਕੂਲੀਆਂ ਕੂਲੀਆਂ ਰਿਸ਼ਮਾਂ ਜਾਪਣ ਪੀਲੀਆਂ ਭੂਕ ਬਹਾਰ ਦੀਆਂ।
ਲੱਕ ਤੋੜਵੀਂ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੇ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਮਿਲਾਇਆ ਹੈ,
ਲਹੂ ਪਸੀਨਾ ਡੋਹਲ ਕੇ ਲੋੜਾਂ ਪੂਰਾਂ ਨਾ ਪਰਵਾਰ ਦੀਆਂ।
ਲਾਸ਼ਾਂ ਵਾਂਗੂੰ ਫਿਰਦੇ ਲੋਕੀਂ ਬੋਝਲ ਬੋਝਲ ਨਗਰੀ ਵਿਚ,
ਹਰ ਬੂਹੇ ਤੇ ਦਸਤਕ ਦਿੰਦੀਆਂ ਚੀਕਾਂ 'ਵਾਜਾਂ ਮਾਰਦੀਆਂ।
ਦੇਸ਼ ਮੇਰੇ ਦੇ ਕੁਝ ਧਨਵਾਨਾਂ ਦੇਸ਼ ਮੇਰਾ ਹੱਥਿਆਇਆ ਹੈ,
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਲਹੂ ਲੁਹਾਨ ਕੀਤੀਆਂ ਮਹਿਕਾਂ ਇਸ ਗੁਲਜ਼ਾਰ ਦੀਆਂ।
ਜਿਉਂਦੇ ਅਤੇ ਜਾਗਦੇ 'ਰਾਹੀ' ਜ਼ੁਲਮ ਜਬਰ ਪਏ ਸਹਿੰਦੇ ਹਾਂ।
ਰੰਜੋ ਗ਼ਮ ਵਿਚ ਡੁੱਬ ਗਈਆਂ ਨੇ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਸਭ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ।



ਕਵਿਤਾ
ਚਿੱਟਾ ਜ਼ਹਿਰ
- ਸ਼ਿਵਨਾਥ
 

ਇਹ ਚਿੱਟਾ ਜ਼ਹਿਰ ਕੀ ਕਰਦੈ ਅਸਰ
ਬੰਦਿਆਂ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ 'ਤੇ
ਇਹ ਸੁਣਿਆਂ ਤਾਂ ਸੀ ਕਈ ਵਾਰੀ
ਮਗਰ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਦੇ ਵੀ ਵੇਖਿਆ
ਮੈਂ ਨਾਲ ਅੱਖਾਂ ਦੇ।

    ਮੇਰੇ ਅੱਗੇ ਸੀ ਬੈਠਾ ਭੀੜ ਵਿਚ
    ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਗੱਭਰੂ
    ਪਰ ਉਸ ਅੰਦਰ ਕੀ ਛੱਡਿਆ ਸੀ
    ਨਸ਼ੇ ਨੇ ਗੱਭਰੂਆਂ ਵਰਗਾ?

ਉਹਦੇ ਅੱਖਾਂ ਵੀ ਸਨ,
ਅੱਖਾਂ 'ਚ ਪਰ ਨਾ ਚਮਕ ਸੀ,
ਨਾ ਆਬ ਸੀ ਅੱਖਾਂ ਜਿਹੀ ਉਕਾ!
ਮਗਰ ਮੂੰਹ ਸਹੀ-ਸਲਾਮਤ ਸੀ
ਜੋ ਕੁਝ ਪੁੱਛਣ ਤੇ ਇਕ ਵੀ ਸ਼ਬਦ
ਮੂੰਹੋਂ ਬੋਲ ਨਾ ਸੱਕਿਆ
ਤੇ ਨਾ ਸੰਕੇਤ ਕਰ ਸੱਕਿਆ
ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿਸਮ ਦਾ ਸਾਨੂੰ।

    ਉਹ ਸਭ ਕੁਝ ਵੇਖਦਾ ਹੋਇਆ ਵੀ
    ਸਭ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਝਾਕੇ
    ਜਿਵੇਂ ਉਸਨੂੰ ਅਜੇ ਤੀਕਰ ਵੀ
    ਇਹ ਸੋਝੀ ਨਹੀਂ ਆਈ
    ਕਿ ਇੰਨੇ ਲੋਕ ਕਿਉਂ ਅੱਜ
    ਉਸਨੂੰ ਇੱਥੇ ਘੇਰੀ ਬੈਠੇ ਨੇ।

ਬੜੀ ਬੇ-ਵੱਸ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਈ
ਪੁਲਸ ਵੀ ਸਾਡੀ,
ਇਹ ਉਸਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਭਾਵੇਂ ਸੀ
ਇਕ ਤਫ਼ਤੀਸ਼ ਦਾ ਮਸਲਾ ਕਿ
ਕਿਥੋਂ ਮਿਲ ਰਹੀ ਏ 'ਪੰਜ ਰਤਨੀ'
ਇਹ ਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ?
ਜੋ ਢਾਹ ਅੱਜ ਲਾ ਰਹੀ ਏ ਦੇਸ਼ ਦੀ
ਸਮਰੱਥ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ।

    ਮਗਰ ਉਹ ਚੁੱਪ ਸੀ! -ਖਾਮੋਸ਼ ਸੀ
    ਉਸ ਗੇੜ ਵਿਚ ਆ ਕੇ
    ਜਿਦ੍ਹੇ ਵਿਚ ਉਸ ਲਈ ਕੁਝ ਆਖਣਾ
    ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਸ਼ਾਇਦ।

ਮਿਲੇ ਨੰਬਰ,
ਫਟਾ ਫੱਟ ਆ ਗਈ ਗੱਡੀ
ਜੋ ਉਸਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਜਾਏਗੀ
ਪਲਾਂ ਅੰਦਰ ਸ਼ਫ਼ਾਖ਼ਾਨੇ।


 

ਉਹ ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਨੇ
- ਗੁਰਭਜਨ ਗਿੱਲ
 

ਉਹ ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ
ਰਾਂਝੇ ਦੀ ਵੰਝਲੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ
ਕਨੱਈਆ ਦੀ
ਬੋਲਦੀ ਬੰਸਰੀ ਤੋੜਨ ਤੀਕ ।
    ਮੇਰੀਆਂ ਹੇਕਾਂ ਨੂੰ
    ਕੰਠ ਵਿੱਚ ਹੀ ਦਫ਼ਨਾਉਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ
    ਸਾਹਾਂ ਨੂੰ ਕਸ਼ੀਦਣ ਤੀਕ ।
    ਖਿਝੇ ਹੋਏ ਹਨ
    ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
ਜਨੂੰਨ ਦੇ ਬੁਖ਼ਾਰ ਵਿੱਚ
ਇਨਸਾਫ਼ ਦੀ ਤੱਕੜੀ ਤੋੜ ਕੇ
ਛਾਬੇ ਮੂਧੇ ਮੂੰਹ ਪਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
ਕਚਿਹਰੀਆਂ 'ਚ
ਤਰੀਕ  ਭੁਗਤਣ ਆਈ ਦਰੋਪਦੀ ਦਾ
ਚੀਰ ਹਰਣ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
    ਇਹ ਨਾ ਕੌਰਵ ਹਨ
    ਨਾ ਹੀ ਪਾਂਡਵ
    ਇਹ ਤਾਂਡਵ ਪੰਥੀ ਤਮਾਸ਼ਬੀਨ ਹਨ ।
    ਚਿੜੀਆਂ ਦੀ ਮੌਤ ਤੇ ਗੰਵਾਰਾਂ ਵਾਂਗ
    ਹੱਸਦੇ ਹੱਸਦੇ
    ਇਹ ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।
ਕਿਸ ਦੇ ਵਕੀਲ ਹਨ ਇਹ
ਜੋ  ਨਾ ਦਲੀਲ ਸੁਣਦੇ ਹਨ
ਨਾ ਅਪੀਲ ਵਾਚਦੇ ਨੇ ।
    ਨਵੀਂ ਨਸਲ ਦੇ ਮਹਾਂਬਲੀ
    ਕਿਹੜੀ ਬੋਲੀ ਬੋਲਦੇ ਹਨ ।
    ਜੋ ਸਾਨੂੰ ਵੀ ਸਿਖਾਉਂਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
    ਤੀਰ ਤਲਵਾਰ ਹਥਿਆਰ
    ਮੂੰਹ ਵਿੱਚ ਅਗਨ
    ਹਰ ਪਲ ਇੱਕੋ ਲਗਨ
    ਇਹ ਮੰਨਵਾਉਣ ਦੀ ਜ਼ਿਦ ਕਰਦੇ ।
    ਕਿ
    ਇਹ ਆਰੀਆਵ੍ਰਤ ਸਾਡਾ ਹੈ ।
    ਭਾਰਤ ਦੇਸ਼ ਹਮਾਰਾ ।
    ਬੀਜ ਰਹੇ ਨੇ ਬੇਗਾਨਗੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ।
    ਭੁੱਲ ਗਏ ਨੇ
    ਬੜੀ ਔਖੀ ਹੈ ਕੱਟਣੀ
    ਬੇ ਵਿਸਾਹੀ ਦੀ ਫ਼ਸਲ ।
ਜੇ ਇਹ ਵਤਨ ਸਿਰਫ਼ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੈ
ਤਾਂ ਫੇਰ ਸਾਡਾ ਕਿਹੜਾ ਹੈ ?
ਜਿੱਥੇ
ਕਿਛੁ ਸੁਣੀਏ ਕਿਛੁ ਕਹੀਏ
ਦੀ ਧੁਨ ਸੁਣੇ ।
ਮਰਦਾਨੇ ਦੀ  ਰਬਾਬ ਨਾਲ
ਮੇਰਾ ਬਾਪੂ ਗਾਵੇ ।
ਗਗਨ ਮਹਿ ਥਾਲ
ਰਵਿ ਚੰਦ ਦੀਪਕ ਬਣੇ,
ਤਾਰਿਕਾ ਮੰਡਲ  ਜਨਕ ਮੋਤੀ ।
    ਮਾਣਕ ਮੋਤੀ ਖਿਲਾਰਦੇ
    ਖ੍ਵਾਬ ਉਡਾਰੀਆਂ ਮਾਰਦੇ ।
    ਵਿਰੋਧ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ
    ਮੁੱਕੀਆਂ ਵਾਂਗ ਉਲਾਰਦੇ ।
ਕਿਸ ਦੀ ਬੋਲੀ ਬੋਲਦੇ ਨੇ
ਇਹ ਨਵੇਂ ਨਕੋਰ ਖ਼ੁਦ ਸਾਖ਼ਤਾ ਯੋਧੇ ।
ਧਰਤੀ ਦੇ ਸਾਈਂ ਬਣ ਬੈਠੇ ਨੇ ।
ਜੋ ਇਹੀ ਅਲਾਪਦੇ ਨੇ ।
ਜੋ ਕਹੀਏ ਸੋ ਖਾਓ
ਜੋ ਕਹੀਏ ਸੋ ਪਾਓ ।
    ਇਹ ਦਸਤਾਰਾਂ ਤੋਂ ਤੁਰਨਗੇ ।
    ਸਲਵਾਰਾਂ ਤੇ ਪਹੁੰਚਣਗੇ ।
    ਤਕਰਾਰਾਂ ਤੋਂ ਤੁਰਦੇ ਤੁਰਦੇ
    ਇਹ ਸਾਨੂੰ
    ਹਥਿਆਰਾਂ ਤੀਕ ਲੈ ਜਾਣਗੇ ।
ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਲੜਦਿਆਂ ਨੂੰ
ਸ਼ਸਤਰ ਦੀ ਭਾਸ਼ਾ ਸਿਖਾਉਣਗੇ ।
ਬਾਰ ਬਾਰ ਆਉਣਗੇ, ਸਮਝਾਉਣਗੇ ।
ਤੁਸੀਂ ਖ਼ੜਗ ਭੁਜਾ ਹੋ ।
ਆਪ
ਅਕਲ ਭੁਜਾ ਬਣ ਬਣ ਵਿਖਾਉਣਗੇ ।
ਰਿਗ ਵੇਦ ਦੀ ਧਰਤੀ ਨੂੰ
ਲਿਖਿਆ ਲਿਖਾਇਆ
ਪੜ੍ਹਿਆ ਪੜ੍ਹਾਇਆ ਭੁਲਾਉਣਗੇ
ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਵਾਲੀ ਪੰਥ ਭੂਮੀ ਨੂੰ
ਚਿੱਟੇ ਚਾਨਣੇ ਦਿਨ ਕੁਰਾਹੇ ਪਾਉਣਗੇ ।
    ਸਾਵਧਾਨ......
    ਇਹ ਕੁਰਸੀ ਲਈ
    ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਨੇ ।
    ਮਰ ਨਹੀਂ ਮਾਰ ਸਕਦੇ ਨੇ ।
    ਡੋਬ ਕੇ ਅਸਥੀਆਂ ਤਾਰ ਸਕਦੇ ਨੇ
    ਕੁਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੇ ਨੇ।

ਜਨਤਕ ਲਾਮਬੰਦੀ (ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ-ਨਵੰਬਰ 2016)

ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ 109ਵੇਂ ਜਨਮ ਦਿਨ 'ਤੇ ਰੈਲੀ ਤੇ ਮਾਰਚ  
ਦੇਸ਼ ਦੀ ਜਵਾਨੀ ਦੇ ਸਦੀਵੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਆਦਰਸ਼ ਬਣ ਚੁੱਕੇ ਸ਼ਹੀਦ-ਇ-ਆਜ਼ਮ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ 109ਵੇਂ ਜਨਮ ਦਿਨ ਮੌਕੇ 6 ਨੌਜਵਾਨ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਨੇ 28 ਸਤੰਬਰ ਨੂੂੰ ਜਲੰਧਰ 'ਚ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਰੈਲੀ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ। ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੀ ਵਿਰਾਸਤ ਸੰਭਾਲੀ ਬੈਠੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਕੰਪਲੈਕਸ ਵਿਚ ''ਇਨਕਲਾਬ ਜ਼ਿੰਦਾਬਾਦ, ਸਾਮਰਾਜਵਾਦ ਮੁਰਦਾਬਾਦ'' ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਲਾਉਂਦੇ ਲਾਲ, ਨੀਲੇ, ਚਿੱਟੇ ਰੰਗਾਂ ਦੇ ਝੰਡਿਆਂ ਵਾਲੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ-ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਇਹ ਕਾਫ਼ਲੇ ਸਵੇਰ ਸਾਰ ਹੀ ਪੁੱਜਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਲੜਕੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪੱਖੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸੀ। 
ਇਸ ਵਿਲੱਖਣ ਇਕੱਠ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸਰਬ ਭਾਰਤ ਨੌਜੁਆਨ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਪਰਮਜੀਤ ਢਾਬਾਂ, ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜੁਆਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ-ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਢੇਸੀ, ਇਨਕਲਾਬੀ ਨੌਜੁਆਨ ਸਭਾ ਦੇ ਸੂਬਾ ਕਨਵੀਨਰ ਹਰਮਨ ਹਿੰਮਤਪੁਰਾ, ਆਲ ਇੰਡੀਆ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸੀਨੀਅਰ ਮੀਤ ਪ੍ਰਧਾਨ ਚਰਨਜੀਤ ਛਾਂਗਾਰਾਏ, ਪੰਜਾਬ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਨਵਦੀਪ ਕੋਟਕਪੂਰਾ ઠਅਤੇ ਆਲ ਇੰਡੀਆ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਰਾਮਾਨੰਦੀ ਨੇ ਕੀਤੀ। ਸੂਬੇ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿੱਦਿਅਕ ਅਦਾਰਿਆਂ, ਪਿੰਡਾਂ, ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੋਂ ਨੌਜੁਆਨਾਂ ਦੇ ਕਾਫਲੇ ਝੰਡੇ ਚੁੱਕੀ, ਨਾਅਰੇ ਲਾਉਂਦੇ ਪੂਰੇ ਜੋਸ਼ੋ-ਖਰੋਸ਼ ਨਾਲ ਪਹੁੰਚੇ।"''ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇਰੀ ਸੋਚ 'ਤੇ ਪਹਿਰਾ ਦਿਆਂਗੇ ਠੋਕ ਕੇ, "ਇਨਕਲਾਬ ਜ਼ਿੰਦਾਬਾਦ, "ਸਭ ਲਈ ਵਿੱਦਿਆ, ਸਭ ਲਈ ਰੁਜ਼ਗਾਰ''" ਦੇ ਨਾਅਰਿਆਂ ਨੇ ਫਿਜ਼ਾ ਵਿੱਚ ਇਨਕਲਾਬੀ ਰੰਗ ਘੋਲ ਦਿੱਤਾ। ਨੌਜੁਆਨ ਅਤੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਇਹ ਗੱਲ ਜ਼ੋਰ ਦੇ ਕੇ ਕਹੀ ਕਿ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਕਿਸੇ ਟੋਪੀ ਜਾਂ ਪਗੜੀ ਦਾ ਮੁਥਾਜ਼ ਨਹੀਂ, ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤਾਂ ਇੱਕ ਵਿਚਾਰ ਦਾ ਨਾਂਅ ਹੈ, ਇੱਕ ਵਰਤਾਰੇ ਦਾ ਨਾਂਅ ਹੈ। ਵਿਚਾਰ ਕਦੇ ਮਰਿਆ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਤੇ ਵਰਤਾਰਾ ਕਦੇ ਰੁਕਦਾ ਨਹੀਂ। ਉਨ੍ਹਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹੁਕਮਰਾਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਕਸ ਨੂੰ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਭਾਰਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਨ੍ਹਾ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨੂੰ, ਉਹਨਾ ਦੇ ਫਲਸਫੇ ਨੂੰ ਮਿੱਟੀ-ਘੱਟੇ ਰੋਲਣ ਦੀ ਇੱਕ ਸਾਜ਼ਿਸ਼ ਹੈ। ਹੁਕਮਰਾਨ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪਿਛਲੱਗ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇਨਕਲਾਬ ਜ਼ਿੰਦਾਬਾਦ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਨੂੰ ਤਾਂ ਉਭਾਰਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦ ਮੁਰਦਾਬਾਦ ਦੇ ਨਾਅਰੇ 'ਤੇ ਪਰਦਾ ਪਾਉਣ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਬਾਕੀ ਨਹੀਂ ਛੱਡਦੀਆਂ। ਉਹ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਪਿਸਤੌਲ ਫੜੀ ਇੱਕ ਫਿਲਮੀ ਨਾਇਕ ਵਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਇਸ ਮਹਾਨ ਸ਼ਹੀਦ ਨੂੰ ਘਟਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਕ ਸ਼ਾਤਰਾਨਾ ਚਾਲ ਹੈ। 
ਨੌਜਵਾਨ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬੌਧਿਕ ਪੱਖ ਨੂੰ ਉਭਾਰਨ ਤੇ ਉਹਨਾ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨਕ ਇਨਕਲਾਬੀ ਫਲਸਫੇ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਸੁਪਨਿਆਂ ਨੂੰ ਹਕੀਕਤ 'ਚ ਬਦਲਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਅੱਜ ਸਾਡੇ ਮੋਢਿਆਂ 'ਤੇ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਪ੍ਰਗਤੀਸ਼ੀਲ ਨੌਜਵਾਨ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਸਾਂਝੇ ਮੰਚ 'ਤੇ ਆਉਣ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਇਹ ਗੱਲ ਜ਼ੋਰ ਦੇ ਕੇ ਕਹੀ ਕਿ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਧਿਐਨ 'ਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ। ਆਪਣੇ ਆਖਰੀ ਪਲਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਉਹ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬ ਪੜ੍ਹ ਰਹੇ ਸਨ। ਜਦ ਉਹਨਾ ਨੂੰ ਫਾਂਸੀ ਦਾ ਬੁਲਾਵਾ ਆਇਆ ਤਾਂ ਉਹਨਾ ਉਹ ਕਿਤਾਬ ਉਸੇ ਪੰਨੇ ਨੂੰ ਮੋੜ ਕੇ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਸੀ।
ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਦੀ ਨੌਜਵਾਨ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੀ ਇਹ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਬਣ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਹੁਰਾਂ ਦੀ ਉਸੇ ਕਿਤਾਬ ਨੂੰ ਫੜ ਕੇ, ਜਿੱਥੋਂ ਉਹਨਾ ਉਹ ਕਿਤਾਬ ਬੰਦ ਕੀਤੀ, ਉਸ ਦਾ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਫੋਲਣ। ਇਹ ਅਗਲਾ ਵਰਕਾ ਜਿੱਥੇ ਸਾਮਰਾਜਵਾਦ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਹਿਲਾ ਦੇਵੇਗਾ, ਉੱਥੇ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਮਨੁੱਖ ਹੱਥੋਂ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਲੁੱਟ ਦੇ ਖਾਤਮੇ ਵਾਲੇ ਨਿਜ਼ਾਮ ਦਾ ਮੁੱਢ ਵੀ ਬੰਨ੍ਹੇਗਾ।
ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ "ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੁਪਨਿਆਂ ਦਾ ਬਰਾਬਰਤਾ ਵਾਲਾ ਦੇਸ਼ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਨੌਜੁਆਨ ਅੱਜ ਦੇਸ਼ 'ਚ ਕਾਣੀ-ਵੰਡ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਨਕਾਰਨ। ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਰਮਾਏਦਾਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤਹਿਤ ਅਸਾਵਾਂ ਵਿਕਾਸ ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਕੁਝ ਵਿਆਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਰੋੜਾਂ ਨਿਪੁੰਨ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕੰਮ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਧੱਕ ਕੇ ਸਾਧਨ ਵਿਹੂਣੇ ਬਣਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਨਿੱਜੀਕਰਨ, ਵਪਾਰੀਕਰਨ ਅਤੇ ਉਦਾਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ  ਤਹਿਤ ਕਰੋੜਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿੱਦਿਆ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਧੱਕਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟਣ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਦੇ ਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਕੌਡੀਆਂ ਦੇ ਭਾਅ ਲੁਟਾ ਕੇ ਕਿਰਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅਮੀਰੀ ਲਈ ਕਰੋੜਾਂ ਨੌਜੁਆਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿੱਦਿਆਂ ਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇਣਾ ਸਮੇਂ ਦੀ ਅਣਸਰਦੀ ਲੋੜ ਹੈ। ਏ ਆਈ ਵਾਈ ਐੱਫ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਸੁਖਜਿੰਦਰ ਮਹੇਸ਼ਰੀ, ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜੁਆਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਮਨਦੀਪ ਰਤੀਆ, ਆਰ ਵਾਈ ਏ ਦੇ ਅਸ਼ਵਨੀ ਕੁਮਾਰ ਹੈਪੀ, ਪੀ ਐੱਸ ਐੱਫ ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਅਜੈ ਫਿਲੌਰ, ਏ ਆਈ ਐੱਸ ਐੱਫ ਦੇ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰ ਵਿੱਕੀ ਮਹੇਸ਼ਰੀ ਅਤੇ ਆਈਸਾ ਦੇ ਸੋਨੀਆ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਰੈਗੂਲਰ ਭਰਤੀ ਰਾਹੀਂ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਨੌਜੁਆਨਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇਣ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਗਰੰਟੀ ਕਰਦਾ ਕਾਨੂੰਨ, ਜੋ ਅਣਸਿੱਖਿਅਤ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਉੱਚ ਸਿੱਖਿਅਤ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਗਰੰਟੀ ਕਰੇ, ਦੇਸ਼ ਦੀ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਵਿੱਚ ਪਾਸ ਹੋਵੇ, ਸਰਕਾਰੀ ਕਾਲਜਾਂ, ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਧਾਉਣ, ਬੱਸ ਪਾਸ ਸਹੂਲਤ ਸਾਰੀਆਂ ਸਰਕਾਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਬੱਸਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕਰਨ, 3 ਲੱਖ ਤੋਂ ਘੱਟ ਆਮਦਨ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਸਕਾਲਰਸ਼ਿਪ ਅਧੀਨ ਮੁਫਤ ਵਿੱਦਿਆ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਆਗੂਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਸਦਾ ਹੀ ਨੌਜੁਆਨਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦੀ ਰਹੇਗੀ। ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸੂਬੇ ਅੰਦਰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਲੜਨ ਵਾਲੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਗਰੁੱਪਾਂ/ ਯੂਨੀਅਨਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਬੇਰਹਿਮੀ ਨਾਲ ਕੁੱਟਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਥਾਂ ਨਸ਼ੇ ਵੰਡ ਕੇ ਸਰਕਾਰ ਨੌਜੁਆਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦਾ ਘਾਣ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ। ਇੱਕਠ ਨੇ ਇੱਕ ਮਤੇ ਰਾਹੀਂ ਵਿੱਦਿਆ, ਸਿਹਤ ਅਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੀ ਲੜਾਈ ਲੜ ਰਹੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਮੋਢੇ ਨਾਲ ਮੋਢਾ ਲਾ ਕੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਾਲ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ। ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਬੀਬੀ ਰਘਬੀਰ ਕੌਰ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਦਾ ਇਹ ਇੱਕਠ ਪਿਛਲੇ ਸਮੇਂ ਦੀ ਸਰਗਰਮੀ ਦਾ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਸਿੱਟਾ ਹੈ। ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਕੇ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀ ਇਸ ਸਾਂਝੀ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਤੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਰੋਕ ਸਕਦਾ, ਲੋੜ ਇਸ ਦਾ ਘੇਰਾ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਹੈ।
ਇਸ ਸਮੇਂ ਏ ਆਈ ਵਾਈ ਐੱਫ ਦੇ ਸਾਬਕਾ ਕੌਮੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਅਤੇ ਟਰੱਸਟੀ ਪ੍ਰਿਥੀਪਾਲ ਸਿੰਘ ਮਾੜੀਮੇਘਾ ਦੀ ਕਿਤਾਬ 'ਗਦਰ ਲਹਿਰ ਦੇ ਸੂਹੇ ਪੰਨੇ' ਰਿਲੀਜ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਬੀਬੀ ਡਾ. ਰਘਬੀਰ ਕੌਰ, ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਮੁਹਿੰਮ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਲਾਹਕਾਰ ਸਾਥੀ ਜਗਰੂਪ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਹਾਲ ਦੇ ਟਰੱਸਟੀ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੌਰ  'ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਕੇ ਨੌਜੁਆਨਾਂ ਦੇ ਇਸ ਇੱਕਠ ਨੂੰ ਥਾਪੜਾ ਦੇ ਕੇ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦਾ ਹੌਸਲਾ ਦਿੱਤਾ। ਸੂਬੇ ਅੰਦਰ ਗਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ, ਅਜ਼ਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ ਦੇ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਦਗਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲੋਕ ਮਨਾਂ 'ਚੋਂ ਵਿਸਾਰਨ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਜਾਣਬੁੱਝ ਕੇ ਅਣਦੇਖੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ, ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੀਆਂ ਯਾਦਗਰਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਜੱਦੀ ਘਰਾਂ, ਘਟਨਾ ਸਥਲਾਂ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਣ ਲਈ ਮਤੇ ਪਾਸ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਲਵੇ ਅਤੇ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਕਿ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਕੁਤਾਹੀ ਅਤੇ ਅਣਦੇਖੀ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਇੱਕ ਮਤੇ ਰਾਹੀਂ ਸਖਤੀ ਨਾਲ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸ਼ਹੀਦ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਦਾ ਅਪਮਾਨ ਜੁਝਾਰੂ ਲੋਕ ਕਦੇ ਵੀ ਬਰਦਾਸ਼ਤ ਨਹੀਂ ਕਰਨਗੇ। ਉਹਨਾਂ ਮਤਾ ਪਾਸ  ਕਰਕੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ 'ਚੀ ਗਵੇਰਾ' ਦੀ ਫੋਟੋ ਵਾਲੇ ਫੁਟਵੀਅਰ ਤਰੁੰਤ ਬੰਦ ਕਰਵਾਏ ਜਾਣ। ਆਲ ਇੰਡੀਆ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਦੇ ਕੌਮੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੱਯਦ ਵਲੀ ਉਲਾ ਕਾਦਰੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਵਾਲੀ ਨੀਤੀ ਹੀ ਅਸਲੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਦੇ ਨੌਜੁਆਨ ਆਪਣੀ ਸਰਗਰਮੀ ਤੇਜ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਹਨਾ ਵਿਸ਼ਾਲ ਇੱਕਠ 'ਤੇ ਆਪਣੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦਾ ਇਜ਼ਹਾਰ ਵੀ ਕੀਤਾ।
ਨੌਜੁਆਨ ਆਗੂ ਨਰਿੰਦਰ ਕੌਰ ਸੋਹਲ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਲੜਕੀਆਂ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਈ ਜਾਵੇ, ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਅਤੇ ਨੌਜੁਆਨ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਵਾਲਾ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਸਮਾਜ, ਜਿਸ ਦੀ ਬੁਨਿਆਦ ਹਰ ਇੱਕ ਨੂੰ ਕੰਮ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਅਤੇ ਤਨਖਾਹ ਕੰਮ ਹੋਵੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਸਾਰਨ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਪਿੜ ਮੱਲਣ। ਉਹਨਾ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਕਿਸਾਨ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਵਿੱਦਿਆ ਦੇ ਸਵਾਲ 'ਤੇ ਬੋਲਣ ਦੀ ਬਜਾਇ ਨਸ਼ੇ, ਸਿਆਸੀ ਗੁੰਡਾਗਰਦੀ, ਧਰਮ-ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ 'ਤੇ ਭੜਕਾਹਟ ਅਤੇ ਸਰਹੱਦੀ ਤਣਾਅ ਜਿਹੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਨਾਲ ਗੁੰਮਰਾਹ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ।ਇੱਕਠ ਨੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਪੇਸ਼ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਨੌਜੁਆਨ ਭਾਈਚਾਰਕ ਸਾਂਝ ਬਰਾਬਰਤਾ ਦੇ ਅਧਾਰ 'ਤੇ ਪੂਰਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਾਲੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਨੂੰ ਤਰਜੀਹ ਦੇਣ, ਲੁਭਾਵੇਂ ਨਾਹਰਿਆਂ ਦੀ ਥਾਂ ਤਰਕ ਅਤੇ ਤੱਥਾਂ ਦੇ ਅਧਾਰ 'ਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਕਰਨ।
ਇਸ ਮੌਕੇ ਜੱਥੇਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ 17 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਜਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲੇ ਬਾਗ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ઠਨੌਜੁਆਨਾਂ-ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਦੀ ਰਣਨੀਤੀ ਤੈਅ ਕਰਦਾ ਯੂਥ-ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਐਲਾਨਨਾਮਾ ਜਾਰੀ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਬਲਦੇਵ ਪੰਡੋਰੀ, ਜਸਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਬੱਧਨੀ, ਮਨਜਿੰਦਰ ਢੇਸੀ, ਸੰਦੀਪ ਸਿੰਘ, ਗੁਰਦਿਆਲ ਘੁਮਾਣ, ਕੁਲਵੰਤ ਮੱਲੋਨੰਗਲ, ਵਰਿੰਦਰ ਪਾਤੜਾਂ, ਸੁਖਦੇਵ ઠਧਰਮੂਵਾਲਾ, ਗੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਰੁਪਿੰਦਰ ਕੌਰ, ਪਰਮਪ੍ਰੀਤ ਪੜ੍ਹਤੇਵਾਲਾ, ਸ਼ਮਸ਼ੇਰ ਬਟਾਲਾ, ਸੁਖਵੀਰ ਸੁੱਖ, ਮਨਦੀਪ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ, ਸੁਭਾਸ਼ ਕੈਰੇ, ਡਾ. ਮਨਿੰਦਰ ਧਾਲੀਵਾਲ, ਅਮਨ ਰਤੀਆ, ਸੰਦੀਪ ਦੌਲੀਕੇ, ਨੀਲੇ ਖਾਂ, ਮੰਗਤ ਰਾਏ, ਲਖਵਿੰਦਰ ਗੋਪਾਲਪੁਰਾ, ਵਿਸ਼ਾਲ ਵਲਟੋਹਾ, ਮੱਖਣ ਫਿਲੌਰ, ਸੰਜੀਵ ਅਰੋੜਾ ਤੇ ਗੁਰਚਰਨ ਮੱਲ੍ਹੀ ਆਦਿ ਵੀ ਮੌਜੂਦ ਸਨ। ਰੈਲੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਇਕ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਮਾਰਚ ਵੀ ਕੀਤੀ ਗਿਆ।
 

केरल में आर.एम.पी.आई. द्वारा डीसी दफ्तरों के समक्ष प्रदर्शन 
भारतीय क्रांतिकारी माक्र्सवादी पार्टी (आर.एम.पी.आई.) की केरला ईकाई द्वारा 30 सितंबर 2016 को कोझीकोट व त्रिशूर जिला प्रशासनिक कार्यालयों के समक्ष जन मांगों को लेकर प्रभावशाली मार्च एवं प्रदर्शनों का आयोजित किया गया। प्रदर्शनों का मुख्य उद्देश्य यह था कि केरल की पी. विजयन सरकार केंद्र की मोदी सरकार की जनविरोधी साम्राज्यवाद परस्त नीतियों का हूबहू अनुकरण बंद करते हुए जनपक्षीय नीतियों पर चले। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे कि केंद्र की तर्ज पर राष्ट्रीय राजमार्गों का अंधाधुंध निजीकरण किया जा रहा है। महंगाई बेलगाम बढ़ रही है और इस बढ़ौत्तरी के जिम्मेदारों की तरफ ठीक मोदी की ही तरह केरल सरकार आँखें मूंदे बैठी है। इतना ही नहीं केंद्रीय सरकार का किसी की भी न सुनने वाला मनमाना रवैय्या केरल सरकार का भी लक्षण बन चुका है। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह रवैय्या केरल की जनवादी परम्पराओं का भी घोर हनन है। उन्होंने आगाह किया कि सिर्फ नाम से वाम जनतांत्रिक होने से भ्रमित नहीं होना चाहिए, देशी विदेशी कारपोरेट  घरानों के हित साधने बंद होने ही किसी सरकार के वर्गीय झुकाव की असली पहचान होते हैं। कोझीकोड में एन.वेनू राज्य सचिव आर.एम.पी.आई. ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया। त्रिशूर में पार्टी के राज्य चेयरमैन टी. संतोष ने नेतृत्व किया तथा के.के. रेमा, के एस. हरिहरन, के.पी. प्रकासन, पी कुमारनकुट्टी तथा पी.जे. मोंसी ने संबोधन किया। कार्यक्रम को समर्थन देते हुए एसयूसीआई सचिव एम. शेखर भी शामिल हुए।                            
रिपोर्ट : के एस. हरिहरन
ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਅਜਨਾਲਾ ਵਿਖੇ ਜੰਗ ਵਿਰੋਧੀ ਮਾਰਚ 

ਅਜਨਾਲਾ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਬਜ਼ਾਰਾਂ 'ਚ ਭਾਰਤੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ (ਆਰ. ਐੱਮ. ਪੀ. ਆਈ) ਦੇ ਤਹਿਸੀਲ ਭਰ ਦੇ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਦੁਸਹਿਰੇ ਦੇ ਤਿਉਹਾਰ ਮੌਕੇ ਸਾਮਰਾਜੀ ਜੰਗਬਾਜ਼ ਰਾਵਣਾਂ ਦੀਆਂ ਯੁੱਧ ਲਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮਾਨਵ ਵਿਰੋਧੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਪਰਦਾਫਾਸ਼ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅਮਨ ਪਸੰਦ ਤਾਕਤਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਦਾ ਹੋਕਾ ਦਿੰਦਿਆਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਚੌਕ 'ਚ ਸੜਕੀ ਜਾਮ ਲਗਾ ਕੇ ਪੁਤਲਾ ਫੂਕ ਕੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਕੀਤਾ। ਰੋਸ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸੂਬਾ ਸਕੱਤਰੇਤ ਮੈਂਬਰ ਡਾ ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਅਜਨਾਲਾ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਮੁਜ਼ਾਹਰਾਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ 'ਚ ਲਾਲ ਝੰਡੇ ਫੜੇ ਹੋਏ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਭਾਰਤ-ਪਾਕਿ ਜੰਗ ਨਾ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਸਮੇਤ ਸਾਰੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਤੇ ਬਹਿਰੂਨੀ ਮਸਲਿਆਂ ਦਾ ਦੋਵੇਂ ਦੇਸ਼ ਗੱਲਬਾਤ ਰਾਹੀਂ ਹੱਲ ਕੱਢਣ ਆਦਿ ਨਾਅਰੇ ਲਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਡਾ. ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਅਜਨਾਲਾ ਨੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨੀ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦਾਂ ਵੱਲੋਂ ਜੰਮੂ-ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਉੜੀ ਸੈਕਟਰ ਵਿਖੇ ਬੁਜ਼ਦਿਲਾਨਾ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕੀਤੇ ਗਏ ਭਾਰਤੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੇ ਪਰਵਾਰਾਂ ਨਾਲ ਹਮਦਰਦੀ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਕਰਦਿਆਂ ਜਿੱਥੇ ਸਰਹੱਦ ਪਾਰੋਂ ਹੋ ਰਹੀ ਘੁੱਸਪੈਠ ਰੋਕਣ ਲਈ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ 'ਤੇ ਜੋਰ ਦਿੱਤਾ ਉੱਥੇ ਸੰਘ ਪਰਵਾਰ 'ਤੇ ਕੇਂਦਰ ਦੀ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਸਮੇਤ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੇ ਹਾਕਮਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਜੰਗ ਦੀ ਬਜਾਏ ਗਰੀਬੀ, ਮਹਿੰਗਾਈ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰੀ ਖਤਮ ਕਰਨ ਤੇ ਜੋਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਉਮਰਪੁਰਾ,ਸ਼ੀਤਲ ਸਿੰਘ ਤਲਵੰਡੀ,ਕੁਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਮੱਲੂਨੰਗਲ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਧਰਾਏ, ਬੀਬੀ ਅਜੀਤ ਕੌਰ ਕੋਟ ਰਜ਼ਾਦਾ,ਜਗੀਰ ਸਿੰਘ ਸਾਰੰਗਦੇਵ, ਹਰਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸੋਹਲ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਭੂਰੇਗਿੱਲ, ਸਤਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਓਠੀਆਂ,ਦਲਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬੱਲੜਵਾਲ, ਜਸਬੀਰ ਸਿੰਘ ਮਾਝੀਮੀਆਂ,ਰਾਜਪਾਲ ਸਿੰਘ ਕਾਮਲਪੁਰਾ,ਪਿਆਰਾ ਸਿੰਘ ਕੋਟਲਾ, ਬਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਟਲਾ, ਸੁੱਚਾ ਸਿੰਘ ਘੋਗਾ, ਜਸਬੀਰ ਸਿੰਘ ਜਸਰਾਊਰ, ਮਨਜੀਤ ਕੌਰ ਵੰਝਾਵਾਲਾ, ਮਨਜੀਤ ਕੌਰ ਭੂਰੇਗਿੱਲ, ਆਦਿ ਆਗੂ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।


ਆਰ.ਐਮ.ਪੀ.ਆਈ. ਵਲੋਂ ਹਲਕਾ ਮੁਕੇਰੀਆਂ ਲਈ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦਾ ਐਲਾਨ 

ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ  : ਅਗਾਮੀ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਇਥੋਂ ਦੀ ਫਰੈਂਡਜ਼ ਕਾਲੋਨੀ ਵਿਖੇ ਰੈਵੋਲਿਊਸ਼ਨਰੀ ਮਾਰਕਸਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਆਫ ਇੰਡੀਆ (ਆਰ.ਐੱਮ.ਪੀ.ਆਈ) ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਤੇ ਖਣਨ ਰੋਕੋ ਅਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਬਚਾਓ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਸਰਗਰਮ 26 ਸਾਲਾ ਆਗੂ ਸਾਥੀ ਧਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸਿੰਬਲੀ ਦੇ ਚੋਣ ਦਫਤਰ ਦਾ ਉਦਘਾਟਨ ਆਰ.ਐੱਮ.ਪੀ.ਆਈ. ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਕਮੇਟੀ ਮੈਬਰ ਹਰਕੰਵਲ ਸਿੰਘ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਵੱਲੋਂ ਸਾਂਝੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਹਾਜ਼ਰ ਮਜ਼ਦੂਰ, ਕਿਸਾਨ, ਆਗੂਆਂ ਤੇ ਹਲਕੇ ਦੇ ਪਤਵੰਤਿਆਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਸਾਥੀ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਹਲਕਾ ਮੁਕੇਰੀਆਂ ਤੋਂ ਨੌਜਵਾਨ ਉਮੀਦਵਾਰ ਧਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸਿੰਬਲੀ ਸੰਘਰਸ਼ੀ ਯੋਧਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿੱਚ ਚੱਲ ਰਹੀ ਖਣਨ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਲਈ ਅਨੇਕਾਂ ਸੰਘਰਸ਼ ਲੜੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਨਾ ਸਿਰਫ ਪੁਲਸ ਜਬਰ ਝੱਲਿਆ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਝੂਠੇ ਕੇਸਾਂ ਵਿੱਚ ਜੇਲ੍ਹ ਵੀ ਕੱਟੀ ਹੈ। ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਡੀ ਲੜਾਈ ਕੋਈ ਨਿੱਜੀ ਲੜਾਈ ਜਾਂ ਝੂਠੇ ਲਾਰੇ ਲਾ ਕੇ ਕੁਰਸੀ ਹਥਿਆਉਣ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਚੋਣ ਜਨਤਕ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦੀ ਮਜ਼ਬੂਤੀ ਅਤੇ ਕਾਮਯਾਬੀ ਲਈ ਰਾਜਨੀਤਕ ਲੜਾਈ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਖੱਬੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦਾ ਸਾਂਝਾ ਮੋਰਚਾ ਬਣਾ ਕੇ ਲੜਿਆ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਜਿੱਤ ਤੱਕ ਲਿਜਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦੀ ਵੱਡੀ ਸਮੱਸਿਆ ਹੈ, ਔਰਤਾਂ 'ਤੇ ਜਬਰ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ, ਦਲਿਤਾਂ ਤੇ ਪੱਛੜਿਆਂ ਨੂੰ ਦਬਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਮਹਿੰਗਾਈ ਛਾਲਾਂ ਮਾਰ ਮਾਰ ਕੇ ਵੱਧ ਰਹੀ ਹੈ, ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਨੌਜਵਾਨੀ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰੁੜ੍ਹ ਗਈ ਹੈ। ਕਿਰਸਾਨੀ ਨੂੰ ਖੁਦਕਸ਼ੀਆਂ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪੜ੍ਹਾਈ ਅਤੇ ਇਲਾਜ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵੱਸ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਜ ਕਰਦੇ ਗਠਜੋੜ, ਆਪ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਉਪਰੋਕਤ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਅਦੇ ਤਾਂ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਇਹ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਹੱਲ ਕਿਵੇਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣੀਆਂ ਹਨ, ਇਸ ਦਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਕੋਈ ਉਤਰ ਨਹੀਂ ਹੈ।
ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਸਿਰਫ ਖੱਬੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਸਰਮਾਏਦਾਰ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਝੂਠੇ ਲਾਰੇ ਧਰਮ, ਜਾਤ, ਗੋਤ, ਨਸ਼ੇ, ਲਾਲਚ ਅਤੇ ਹੋਰ ਅਨੈਤਿਕ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਵੋਟਾਂ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਲਈ ਬਦਲਵੀਂਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਗਰੀਬ ਅਤੇ ਮਿਹਨਤਕਸ਼ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰਾਹਤ ਦੇਣ ਲਈ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਘਰ-ਘਰ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਚੋਣ ਵਿੱਚ ਪੂਰਾ ਜ਼ੋਰ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧਰਮਿੰਦਰ ਵਰਗੇ ਨਿਸ਼ਕਾਮ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜਾਏ ਨੂੰ ਜਿਤਾਉਣ ਲਈ ਹਰ ਵਰਕਰ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਜ਼ੋਰ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਹਰਕੰਵਲ ਸਿੰਘ ਕੇਂਦਰੀ ਕਮੇਟੀ ਮੈਂਬਰ ਰੈਵੋਲਿਊਸ਼ਨਰੀ ਮਾਰਕਸਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਆਫ ਇੰਡੀਆ, ਮਾ: ਯੋਧ ਸਿੰਘ, ਸਾਥੀ ਪਿਆਰਾ ਸਿੰਘ ਪਰਖ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਕੱਤਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਮਾਰਕਸੀ ਪਾਰਟੀ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਮਹਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਖੈਰੜ, ਸਵਰਨ ਸਿੰਘ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ ਅਤੇ ਅਮਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕਾਨੂੰਨਗੋ ਨੇ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਰਾਜਨੀਤਕ ਲੜਾਈ ਲਈ ਪੂਰਾ ਜ਼ੋਰ ਲਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ।


ਸੁਜਾਨਪੁਰ ਅਤੇ ਭੋਆ ਹਲਕਿਆਂ 'ਚ ਚੋਣ ਮੁਹਿੰਮ ਦਾ ਆਗਾਜ਼ 

ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਜਗੀਰਦਾਰ ਹਾਕਮ ਜਮਾਤਾਂ ਦੀ ਨੁਮਾਇੰਦਗੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ, ਭਾਰਤ ਦੀ ਬਿਹਤਰੀਨ ਕਿਰਤ ਸ਼ਕਤੀ 'ਤੇ ਮਾਲਾਮਾਲ ਕੁਦਰਤੀ ਖਜ਼ਾਨਿਆਂ ਦੀ ਬੇਰਹਿਮ ਲੁੱਟ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਉਦੇਸ਼ ਲਈ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀਆਂ ਇਕਸਾਰ ਹਿਮਾਇਤੀ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ, ਕਾਂਗਰਸ ਆਪ ਅਤੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਹੋਰ ਰੋਜ ਉਗਦੀਆਂ ਹੋਰ ਚੁਣਾਵੀ ਖੁੰਭਾ ਦੇ  ਗੰਭੀਰ, ਝੂਠੇ, ਨੀਅਤ ਦੇ ਖੋਟੇ ਚੋਣ ਪ੍ਰਚਾਰ 'ਚ ਆਖਰ ਇਕ ਨਿਵੇਕਲੀ, ਲੋਕ ਪੱਖੀ, ਗਰਜਵੀਂ ਸੁਰ ਉਭਰੀ ਹੈ। 22 ਅਤੇ 23 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਪਠਾਨਕੋਟ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਭੋਆ (ਰਾਖਵਾਂ) ਅਤੇ ਸੁਜਾਨਪੁਰ (ਜਨਰਲ) ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਸਭਾ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿਚ ਹੋਈਆਂ ਦੋ ਅਤੀ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਜਨਸਭਾਵਾਂ 'ਚ ਭਾਰਤੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ (ਆਰ.ਐਮ.ਪੀ.ਆਈ.) ਦੇ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਕਾਮਰੇਡ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ ਨੇ ਪਾਰਟੀ ਵਲੋਂ ਸਰਵ ਸਾਥੀ ਲਾਲ ਚੰਦ ਕਟਾਰੂਚੱਕ ਅਤੇ ਨੱਥਾ ਸਿੰਘ ਢਡਵਾਲ ਵਲੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੀਟਾਂ ਤੋਂ ਚੋਣ ਲੜਨ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ।
ਇਸ ਮੌਕੇ ਕਾਮਰੇਡ ਰਘਬੀਰ ਸਿੰਘ ਪਕੀਵਾਂ ਮੈਂਬਰ ਕੇਂਦਰੀ ਕਮੇਟੀ, ਹਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਰੰਧਾਵਾ ਅਤੇ ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਮੈਬਰਾਨ ਸੂਬਾ ਕਮੇਟੀ ਤੋਂ ਇਲਾਕਾ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਜਨ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦੇ ਹਰ ਪੱਧਰ ਦੇ ਆਗੂ 'ਤੇ ਕਾਰਕੁੰਨ ਮੌਜੂਦ ਸਨ।
ਆਪਣੇ ਸੰਬੋਧਨ ਵਿਚ ਸਾਥੀ ਪਾਸਲਾ ਅਤੇ ਬਾਕੀ ਸਾਰੇ ਬੁਲਾਰਿਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਰੇ ਰੰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਹਾਕਮ ਜਮਾਤੀ ਰਾਜਸੀ ਪਾਰਟੀਆਂ ਇਕ ਪਾਸੇ ਅਤੇ ਆਰ.ਐਮ.ਪੀ.ਆਈ. ਸਮੇਤ ਜੁਝਾਰੂ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਟਰੈਕ ਰਿਕਾਰਡ ਅਤੇ ਜਮਾਤੀ ਕਿਰਦਾਰ ਅਨੁਸਾਰ ਚੋਣ ਮੈਦਾਨ 'ਚ ਹਨ। ਜਿੱਥੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਕੁਰੱਪਸ਼ਨ, ਭਾਈ ਭਤੀਜਾਵਾਦ, ਨਸ਼ਾ ਵਿਉਪਾਰ ਨੂੰ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਛੁੱਟੀ, ਕਿਸਮ ਕਿਸਮ ਦੇ ਮਾਫੀਆ ਨੂੰ ਪੂਰਨ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ, ਪੁਲਸ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਸਿਆਸੀਕਰਣ, ਜਾਤਪਾਤੀ ਜਬਰ, ਸੰਘਰਸ਼ੀ ਲੋਕਾਂ 'ਤੇ ਜਬਰ ਦੇ ਖੂਨੀ ਧੱਬਿਆਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਪਿਆ ਹੈ, ਉਥੇ ਖੱਬੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ ਜਾਨਾਂ ਵਾਰ ਕੇ ਉਕਤ ਲੋਕ ਦੋਖੀ ਵਰਤਾਰਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਸੰਗਰਾਮਾਂ ਅਤੇ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਹਾਕਮ ਜਮਾਤੀ ਪਾਰਟੀਆਂ ਸਿੱਧਾ ਸਿੱਧਾ ਅਤੇ ਲੁਕਵੇਂ ਢੰਗਾਂ ਰਾਹੀਂ ਅਤਵਾਦ-ਵੱਖਵਾਦ, ਧਾਰਮਿਕ ਟਕਰਾਅ, ਜਾਤਪਾਤੀ ਤੇ ਭਾਸ਼ਾਈ ਟਕਰਾਅ ਨੂੰ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦਾ ਬੜ੍ਹਾਵਾ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਉਥੇ ਖੱਬੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਏਕਤਾ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਜਾਨਾਂ ਵਾਰੀਆਂ ਜਿਸ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਸਬੂਤ ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਅੱਤਵਾਦ ਦੇ ਕਾਲੇ ਦਿਨਾਂ 'ਚ ਸੈਂਕੜੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸ਼ਹਾਦਤਾਂ ਹਨ।
ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕਿ ਹਾਕਮ ਜਮਾਤੀ ਪਾਰਟੀਆਂ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਚੌਤਰਫਾ ਲੁੱਟ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਹਰ ਹਾਲਤ 'ਚ ਜਾਰੀ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਆਰ.ਐਮ.ਪੀ.ਆਈ. ਤੇ ਸਮੁੱਚੀ ਲੜਾਕੂ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਜਨਮਦਾਤਾ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਲੋਕ ਤਾਕਤ ਰਾਹੀਂ ਫਸਤਾ ਵੱਢਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਹਿੰਝ ਖੱਬੀਆਂ ਪਾਰਟੀਆਂ 2017 ਦੀ ਅਸੈਂਬਲੀ ਚੋਣਾਂ 'ਚ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਪਹਿਲੀ 'ਤੇ ਸੁਭਾਵਕ ਪਸੰਦ ਹੋਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਅਸੀਂ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਦੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਾਰਟੀ ਨਾਲ ਚੋਣਾਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜਾਂ ਬਾਅਦ 'ਚ ਕੋਈ ਸਾਂਝ ਨਹੀਂ ਰੱਖਾਂਗੇ।


ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਵੱਲੋਂ ਬੀ ਡੀ ਪੀ ਓ ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਧਰਨਾ 

 ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲੋਂ ਮਾਨਾ ਮਸੀਹ ਬਾਲੇਵਾਲ ਅਤੇ ਸ਼ਿੰਦਾ ਛਿੱਥ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿੱਚ ਬਟਾਲਾ ਦੇ ਪਿੰਡ ਘਸੀਟਪੁਰ ਕਲਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਮਲਾਟ ਜ਼ਮੀਨ 'ਤੇ ਕਥਿਤ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜ਼ੇ ਖਿਲਾਫ ਰੋਸ ਮਈ ਧਰਨਾ ਬੀ ਡੀ ਪੀ ਓ ਦਫਤਰ ਬਟਾਲਾ ਅੱਗੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਗਈ ਕਿ ਪਿੰਡ ਘਸੀਟਪੁਰ ਕਲਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਮਲਾਟ ਜ਼ਮੀਨ 'ਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜ਼ੇ ਨੂੰ ਰੋਕਿਆ ਜਾਵੇ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਬੀ ਡੀ ਪੀ ਓ ਨੇ ਧਰਨਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਭਰੋਸਾ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਇਹ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜ਼ਾ ਰੋਕਣ ਦੀ ਹਦਾਇਤ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜਾਇੰਟ ਸਕੱਤਰ ਮਾਸਟਰ ਰਘਬੀਰ ਸਿੰਘ ਪਕੀਵਾ, ਜਨਵਾਦੀ ਇਸਤਰੀ ਸਭਾ ਦੇ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਨੀਲਮ ਘੁਮਾਣ ਅਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਦੇ ਮੀਤ ਪ੍ਰਧਾਨ ਗੁਰਦਿਆਲ ਘੁਮਾਣ, ਸ਼ਮਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨਵਾਂ ਪਿੰਡ, ਪਰਮਜੀਤ ਘਸੀਟਪੁਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਬੀ ਡੀ ਪੀ ਓ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਨਜਾਇਜ਼ ਕਬਜ਼ਾ ਨਾ ਰੋਕਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਤਿੱਖਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਬੀ ਡੀ ਪੀ ਓ  ਦਫਤਰ ਅੱਗੇ ਪੱਕਾ ਮੋਰਚਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ, ਜਿਸ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਹੋਵੇਗੀ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਪ੍ਰੇਮ ਸਿੰਘ ਘਸੀਟਪੁਰ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਸਾਬਕਾ ਸਰਪੰਚ ਸਰੂਪਵਾਲੀ ਕਲਾਂ, ਬਚਨ ਕੌਰ ਛਿੱਥ, ਪ੍ਰੇਮ  ਸਿੰਘ, ਅਸ਼ੋਕ ਕੁਮਾਰ, ਗੁਰਮੇਜ ਸਿੰਘ, ਸੁਖਚੈਨ ਸਿੰਘ, ਸਤਪਾਲ ਸਿੰਘ ਘਸੀਟਪੁਰ ਆਦਿ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।


ਦਿਹਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਵਲੋਂ ਹਕੂਮਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜਬਰ ਵਿਰੁੱਧ ਲਾਮਬੰਦੀ  

ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬੇਜ਼ਮੀਨੇ ਅਤੇ ਦਲਿਤਾਂ ਵਿਚ ਆਪਣੇ 'ਤੇ ਹੁੰਦੇ ਸਮਾਜਕ ਜਬਰ ਦੇ ਖਾਤਮੇ ਅਤੇ ਆਰਥਕ-ਸਮਾਜਕ ਬਰਾਬਰੀ ਲਈ ਚੇਤਨਾ ਦਿਨੋਂ ਦਿਨ ਤਿੱਖੀ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਆਪ ਮੁਹਾਰੇ ਅਤੇ ਸੰਗਠਿਤ ਘੋਲ ਵੱਧ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹ ਘੋਲ ਸਮਾਜਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਈ ਜੂਝ ਰਹੀਆਂ ਧਿਰਾਂ, ਨਿਰੋਲ ਜਾਤੀਵਾਦੀ ਮੁੱਦਿਆਂ 'ਤੇ ਲੜਨ ਵਾਲੇ ਸੰਗਠਨਾਂ ਅਤੇ ਇਕ ਸ਼ੁਭ ਲੱਛਣ ਵਜੋਂ ਉਕਤ ਦੋਹਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਾਂਝ ਪਾ ਕੇ ਵੀ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਹਨ। ਜਿੰਨੀ ਤੇਜੀ ਨਾਲ ਇਹ ਚੇਤਨਾ ਅਤੇ ਸੰਗਰਾਮ ਵੱਧ ਰਹੇ ਹਨ ਉਸ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਤੇਜੀ ਨਾਲ ਪਿਛਾਖੜੀ 'ਤੇ ਸਥਾਪਤੀ ਪੱਖੀ ਹਕੂਮਤੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਇਸ ਚੇਤਨਾ ਤੇ ਜਨਸੰਗਰਾਮਾਂ ਨੂੰ ਮੁੱਢੋਂ ਹੀ ਖਤਮ ਕਰਨ ਲਈ ਚੌਤਰਫਾ ਜਾਬਰ ਹੱਲਾ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਉਪਰੋਕਤ ਵਰਤਾਰੇ ਦੀਆਂ ਭੱਦੀਆਂ ਜ਼ਾਲਮ ਵੰਨਗੀਆਂ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਹੀ ਦੇਖੀਆਂ ਜਾ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ। ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਮੌਜੂਦਾ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਲਗਾਤਾਰ ਦੋ ਕਾਰਜਕਾਲਾਂ ਦਾ ਸਮਾਂ ਉਪਰੋਕਤ ਚੌਖਟੇ ਪੱਖੋਂ ਅਤੀ ਜਾਲਮਾਨਾ ਅਤੇ ਨਿਖੇਧੀਯੋਗ ਸਾਬਤ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ ਉਪਰੋ ਥੱਲੀ ਵਾਪਰੀਆਂ ਦੋ ਵਹਿਸ਼ੀ ਘਟਨਾਵਾਂ ਇਸ ਤੱਥ ਦਾ ਜਿਉਂਦਾ ਜਾਗਦਾ ਸਬੂਤ ਹਨ। ਪਹਿਲੀ ਘਟਨਾ ਹੈ ਝਲੂਰ ਪਿੰਡ ਦੇ ਬੇਜਮੀਨਿਆਂ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਨਿਆਂਈ ਵੰਡ ਦੇ ਸਵਾਲ 'ਤੇ ਵਾਪਰਿਆ ਹਕੂਮਤੀ ਕਹਿਰ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਹੈ ਮਾਨਸਾ ਦੇ ਇਕ ਪਿੰਡ ਘਰਾਂਗਣਾ ਵਿਖੇ 20 ਸਾਲ ਦਲਿਤ ਨੌਜਵਾਨ ਦਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਵਹਿਸ਼ੀਆਨਾ ਕਤਲ। ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਇਕਾਈ ਨੇ 16-17 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਬੇਪਰਦ ਕਰਨ ਅਤੇ ਜਬਰ ਵਿਰੁੱਧ ਲਾਮਬੰਦੀ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਲਈ ਪਿੰਡਾਂ 'ਚ ਮੀਟਿੰਗਾਂ, ਰੈਲੀਆਂ, ਜਥਾ ਮਾਰਚਾਂ, ਪੁਤਲਾ ਫੂਕ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਾਂ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਪੇਸ਼ ਹਨ ਉਸ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾਵਾਰ ਸੰਖੇਪ ਰਿਪੋਰਟਾਂ :
 
ਮੁਕਤਸਰ : ਦਲਿਤਾਂ 'ਤੇ ਹੋ ਰਹੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਬੰਦ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਵੱਲੋਂ ਸੋਮਵਾਰ ਨੂੰ ਪਿੰਡ ਮਦਰੱਸਾ 'ਚ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਪੁਤਲਾ ਫੂਕਿਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਪੁਲਸ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਜੰਮਕੇ ਨਾਅਰੇਬਾਜ਼ੀ ਵੀ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਸਭਾ ਦੇ ਆਗੂ ਹਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਮਦਰੱਸਾ ਅਤੇ ਜਗਜੀਤ ਸਿੰਘ ਜੱਸੇਆਣਾ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਦਲਿਤਾਂ 'ਤੇ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀ ਦਿਨ ਜ਼ੁਲਮ ਵਧਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਚਿਤਾਵਨੀ ਦਿੰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਨਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਤਾਂ ਉਹ ਰਾਜ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੋਰ ਤਿੱਖਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਗੋਨਿਆਣਾ ਰੋਡ ਦੀ ਗੁਰਦਿੱਤ ਬਸਤੀ, ਪਿੰਡ ਅਕਾਲਗੜ੍ਹ 'ਚ ਵੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਕਰਨ ਸਿੰਘ, ਬਲਕਾਰ ਸਿੰਘ, ਕਸ਼ਮੀਰ ਸਿੰਘ, ਲੱਖਾ ਸਿੰਘ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਬੱਬੂ ਸਿੰਘ, ਪਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ, ਨਸੀਬ ਸਿੰਘ, ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਤੋਂ ਆਗੂ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ।
 
ਬਠਿੰਡਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਘੁੱਦਾ, ਜਸੀ ਬਾਗਵਾਲੀ ਅਤੇ ਪੱਕਾ ਕਲਾਂ ਵਿਖੇ ਉਕਤ ਸੱਦੇ ਤਹਿਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਮੀਟਿੰਗਾਂ ਹੋਈਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਾਥੀ ਮਿੱਠੂ ਸਿੰਘ ਘੁੱਦਾ, ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੱਕਾ, ਦਰਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਬਾਜਕ, ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ ਜੈ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ, ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਕੁਮਾਰ, ਸ਼ਿੰਦਰ ਖਾਂ, ਮਨੋਹਰ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।
ਤਲਵੰਡੀ ਸਾਬੋ ਵਿਖੇ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ ਅਤੇ ਸਾਂਝੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਮੇਟੀ ਵਲੋਂ ਸਾਂਝੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਅਰਥੀ ਫੂਕੀ ਗਈ ਜਿਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਮੱਖਣ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਜਸਪਾਲ ਗਿੱਲ ਨੇ ਕੀਤੀ।
 
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ : ਇੱਥੇ ਖਲਚੀਆਂ, ਸੁਧਾਰ, ਕੋਹਾਟਵਿੰਡ, ਬੁਤਾਲਾ, ਮਹਿਸਮਪੁਰ, ਵਰਪਾਲ ਵਿਖੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਇਕੱਤਰਤਾਵਾਂ ਹੋਈਆਂ। ਅਮਰੀਕ ਸਿੰਘ ਦਾਊਦ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਭਿੰਡਰ, ਨਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵਡਾਲਾ, ਨਿਰਮਲ ਸਿੰਘ ਛੱਜਲਵੱਡੀ, ਗੁਰਨਾਮ ਸਿੰਘ ਉਮਰਪੁਰਾ ਆਦਿ ਸਾਥੀਆਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।


ਭੱਠਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ 
ਲਾਲ ਝੰਡਾ ਪੰਜਾਬ ਭੱਠਾ ਲੇਬਰ ਯੂਨੀਅਨ (ਸੀ.ਟੀ.ਯੂ. ਪੰਜਾਬ) ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ, ਢਿੱਲੋਂ ਬਰਿਕਸ ਕੰਪਨੀ ਘੁੱਦਾ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਬਠਿੰਡਾ ਦੇ ਮਾਲਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ਪਥੇਰ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਤੈਅ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਉਜਰਤ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦਾ ਲੰਮਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਨਮਾਨਜਨਕ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸੰਪੰਨ ਹੋਇਆ। 2015-16 ਸੀਜਨ ਦੌਰਾਨ ਉਕਤ ਭੱਠੇ 'ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਭੱਠੇ ਦੇ ਮਾਲਕਾਂ ਅਤੇ ਹਿਸੇਦਾਰਾਂ ਵਲੋਂ ਕਿਰਤ ਵਿਭਾਗ ਵਲੋਂ ਤੈਅ ਸ਼ੁਦਾ ਉਜਰਤ ਸੂਚੀ ਅਨੁਸਾਰ ਬਣਦੇ ਕੀਤੇ ਕੰਮ ਦੇ ਪੈਸੇ ਦੇਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਹੀ ਭੱਠਾ ਮਾਲਕਾਂ ਨੇ ਭੱਠਾ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਆਗੂਆਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਕਰਿੰਦਿਆਂ ਦੀ ਬੇਵਜ੍ਹਾ ਲੜਾਈ ਕਰਾ ਕੇ ਪੁਲਸ ਕੇਸਾਂ ਵਿਚ ਉਲਝਾਉਣ ਦੀ ਕੋਝੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਵੀ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਦਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਏਕੇ ਅਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਨਾਲ ਸਫਲ ਟਾਕਰਾ ਕੀਤਾ।
ਤੈਅਸ਼ੁਦਾ ਉਜਰਤਾਂ ਲੈਣ ਲਈ ਭੱਠਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਭੱਠਾ ਮਾਲਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ 13 ਛੋਟੇ ਵੱਡੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਕੀਤੇ। ਅਨੇਕਾਂ ਪਿੰਡਾਂ 'ਚ ਜਥਾ ਮਾਰਚਾਂ ਰਾਹੀਂ ਮਾਲਕਾਂ 'ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤ ਪਾਲਕ ਸਿਆਸੀ ਆਗੂਆਂ ਦੇ ਪੁਤਲੇ ਫੂਕੇ। ਦੋ ਵਾਰ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਹਲਕਾ ਇੰਚਾਰਜ ਬੀਬੀ ਪਰਮਜੀਤ ਕੌਰ ਗੁਲਸ਼ਨ (ਸਾਬਕਾ ਐਮ.ਪੀ.) ਦਾ ਸੰਗਤ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਦੌਰਾਨ ਘਿਰਾਓ ਕੀਤਾ। ਪਿੰਡ ਘੁੱਦਾ ਦੀ ਮੇਨ ਰੋਡ (ਬਠਿੰਡਾ-ਬਾਦਲ) ਰੋਡ 'ਤੇ ਆਜਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ ਦੇ ਜਸ਼ਨਾਂ ਦੌਰਾਨ 15 ਅਗਸਤ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਵਿਰੋਧੀ ਰੈਲੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ। ਸਮੁੱਚੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੌਰਾਨ ਦਿਹਾਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਭਾ, ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ, ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ, ਪੰਜਾਬ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਦੇ ਆਗੂ ਮਿੱਠੂ ਸਿੰਘ ਘੁੱਦਾ, ਗੁਰਜੰਟ ਸਿੰਘ, ਦਰਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਬਾਜਕ, ਦਰਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਫੁੱਲੋ ਮਿੱਠੀ, ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ ਜੈ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ, ਮਨੋਹਰ ਸਿੰਘ, ਸੰਦੀਪ ਸਿੰਘ, ਗੁਰਜੰਟ ਸਿੰਘ ਜੈ ਸਿੰਘ ਵਾਲਾ, ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ ਪਲ-ਪਲ ਭੱਠਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਅੰਗ ਸੰਗ ਰਹੇ। ਭੱਠੇ 'ਤੇ ਭੱਠਾ ਮਾਲਕਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋਏ ਅਰਥੀ ਫੂਕ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਵਿਚ ਉਪਰੋਕਤ ਸੰਗਠਨਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਇਨਸਾਫ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਅਰਗੀਨਾਈਜੇਸ਼ਨ ਪੰਜਾਬ, ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਅਤੇ ਟੈਟ ਪਾਸ ਈ.ਟੀ.ਟੀ. ਬੇਰੋਜ਼ਗਾਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਆਗੂ ਵੀ ਦਲ-ਬਲ ਨਾਲ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ। ਭੱਠਾ ਮਾਲਕਾਂ ਨੂੰ ਸਥਾਨਕ ਅਕਾਲੀ ਆਗੂਆਂ ਦੀ ਹਿਮਾਇਤ ਹੋਣ ਦਾ ਗਰੂਰ ਅਖੀਰ ਤਿਆਗਣਾ ਪਿਆ। ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਵਲੋਂ ਨਿਪਟਾਰੇ ਲਈ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤੇ ਗਏ ਕੰਵਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੋਲਡੀ ਨਾਇਬ ਤਹਿਸੀਲਦਾਰ ਬਠਿੰਡਾ ਦੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿਚ ਕਈ ਗੇੜਾਂ ਦੀ ਗੱਲਬਾਤ ਮਗਰੋਂ ਆਖਰ ਭੱਠਾ ਮਾਲਕਾਂ ਨੂੰ ਤੈਅਸ਼ੁਦਾ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਉਜਰਤਾਂ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਦਾ ਕੌੜਾ ਘੁੱਟ ਭਰਨਾ ਪਿਆ।
ਵਰਣਨਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਮੀਡੀਆ ਕਰਮੀਆਂ ਨੇ ਭੱਠਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਇਸ ਹੱਕੀ ਘੋਲ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸੁਹਿਰਦਤਾ ਨਾਲ ਕਵਰੇਜ਼ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਅਖਬਾਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਖਬਰ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਪੂਰੀ ਬਣਦੀ ਥਾਂ ਦਿੱਤੀ। ਨੋਟ ਕਰਨਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਨਾਲ ਬਣਾਏ ਹਿਸਾਬ ਅਨੁਸਾਰ ਜਿੱਥੇ ਭੱਠਾ ਮਾਲਕ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਤੋਂ 70 ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਰੁਪਏ ਮੰਗਦੇ ਸਨ; ਉਥੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਦਕਾ ਉਲਟਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ 2 ਲੱਖ 4 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਹੋਰ ਅਦਾ ਕਰਨੇ ਪਏ। ਸਾਰੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੌਰਾਨ ਕਿਰਤ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਬੜੀ ਘਟੀਆ ਰਹੀ। ਵਾਰ ਵਾਰ ਅਰਜੀਆਂ ਦੇਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਕੇਵਲ ਇਕ ਵਾਰ ਕਿਰਤ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਗਰੇਡ-1 ਭੱਠੇ ਤੇ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਹ ਵੀ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਬਿਨਾਂ ਪਰਤ ਗਿਆ।  ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਸੂਬਾਈ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਨੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਜਿੱਤ ਦੀ ਵਧਾਈ ਦਿੰਦਿਆਂ ਸਭਨਾਂ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ ਹੈ।                         
ਰਿਪੋਰਟ : ਜਸਪਾਲ ਸਿੰਘ ਪਾਲੀ, ਘੁੱਦਾ

ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਸੰਤੋਖਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਜਨਵਾਦੀ ਇਸਤਰੀ ਸਭਾ ਦੀ ਇਕਾਈ ਦਾ ਗਠਨ

 ਜਲੰਧਰ ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਸੰਤੋਖਪੁਰਾ ਵਿਖੇ ਜਨਵਾਦੀ ਇਸਤਰੀ ਸਭਾ ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਮੀਟਿੰਗ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਪਾਰਵਤੀ ਸੰਤੋਖਪੁਰਾ ਨੇ ਕੀਤੀ। ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਘਰੇਲੂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਔਰਤਾਂ ਨੇ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ। ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਜਨਵਾਦੀ ਇਸਤਰੀ ਸਭਾ ਦੀ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਨੀਲਮ ਘੁਮਾਣ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਮੌਜੂਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਚ ਔਰਤਾਂ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਮਾੜਾ ਸਮਾਂ ਗੁਜ਼ਾਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਜਿੱਥੇ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਲੋਕਮਾਰੂ ਨੀਤੀਆਂ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਦਾ ਹਰ ਵਰਗ ਦੁਖੀ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਔਰਤ ਵੀ ਆਰਥਿਕ ਤੰਗੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੈ ਤੇ ਮਜਬੂਰੀਵੱਸ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਕੰਮ ਕਰਨ ਜਾਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੈ। ਉਹਨੂੰ ਨੂੰ ਕਈ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ।  ਜਿੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਕਿਰਤ ਦੀ ਲੁੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਉਸ ਦੀ ਇੱਜ਼ਤ ਵੀ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਔਰਤਾਂ ਉਪਰ ਹੋ ਰਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜਬਰ ਅੱਜ ਸਿਖਰਾਂ 'ਤੇ ਹੈ। ਔਰਤਾਂ ਆਪਣੇ ਉਪਰ ਹੋ ਰਹੇ ਜਬਰ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਲੈਣ ਲਈ ਜਥੇਬੰਦ ਹੋਣ।
ਇਸ ਸਮੇਂ 23 ਮੈਂਬਰੀ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਚੋਣ ਕੀਤੀ ਗਈ, ਜੋ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੈ- ਪਾਰਵਤੀ, ਮੀਰਾ, ਕੰਚਨ ਸਿੰਘ, ਸਰੋਜ, ਮੀਨਾ, ਬਿਮਲਾ, ਚੰਦਾ, ਬਿੰਦੂ, ਮਮਤਾ, ਸ਼ੀਲਾ, ਲਛਮੀ, ਸ਼ਰਮੀਲੀ, ਰੇਨੂੰ ਦੇਵੀ, ਮੁੰਨਾ ਰਾਜੀ, ਪੂਜਾ, ਸੋਨਾ, ਉਰਮੀਲਾ, ਸੰਗੀਤਾ, ਸੁਨੀਤਾ, ਰਾਧਿਕਾ, ਵੁਰਮੀਲਾ ਦੇਵੀ, ਚੰਦਰਾਵਤੀ ਦੇਵੀ, ਬਿੰਦੂ ਦੇਵੀ ਅਤੇ ਸਰਵਸੰਮਤੀ ਨਾਲ ਪਾਰਵਤੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਅਤੇ ਕੰਚਨ ਸਿੰਘ ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਚੁਣੀਆਂ ਗਈਆਂ।  ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪੰਜਾਬ ਨਿਰਮਾਣ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਆਗੂ ਸਾਥੀ ਹਰੀਮੁਨੀ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।


हरियाणा में संयुक्त किसान आंदोलन
अपनी तानाशाह कार्यशैली के लिए कुख्यात हरियाणा की खट्टर सरकार द्वारा विगत दिनों एक और एकतरफा नादिरशाही ऐलान किया गया है। किसान तथा कृषि विभाग के अधिकारियों से परामर्श तथा किसान प्रतिनिधियों से गहन विचार विमर्श किए बिना ही तथा माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों को नजरअंदाज कर ढिंढोरा पीट दिया कि धान की फसल का कटाई उपरांत खेत में खड़ा रह गया निम्न भाग (पराली) जलाने वालों से बनता जुर्माना वसूला जाएगा एवं पुलिस कार्यवाही करते हुए जेल यात्रा कराई जाएगी। मामले का तुरंत उचित संज्ञान लेते हुए राज्य के सभी किसान संगठनों, जिन में जम्हूरी किसान सभा तथा अखिल भारतीय किसान सभा भी शामिल हैं, ने बैठक कर संयुक्त किसान संघर्ष समिति का गठन करते हुए 19 अगस्त को खंड स्तर पर सांझा किसान प्रतिरोध संगठित करने का आह्वान किया। इसी के तहत राज्य के अनेक खंड कार्यालयों पर जुझारू प्रदर्शन कर सरकार को अपना निर्णय पांच दिन के भीतर वापस लेने का अल्टीमेटम देते हुए संघर्ष समिति को बातचीत का न्यौता देने की मांग की गई। इन प्रदर्शनों में किसान नेताओं ने कहा कि एक भी किसान पर्यावरण विरोधी नहीं परंतु पहले ही घाटे में चल रहे किसानों पर पडऩे वाले अतिरिक्त बोझ के बारे में कुछ सोचे बगैर सरकार मूर्खतापूर्ण व्यवहार कर रही है। 
रिपोर्ट : तेजिन्द्र थिंद



ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਵਲੋਂ ਕਾਨਫਰੰਸ ਅਤੇ ਨਾਟਕ ਮੇਲਾ 
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ-ਹਰਿਆਣਾ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਸਟੂਡੈਂਟਸ ਫੈਡਰੇਸ਼ਨ ਵਲੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਜਨਮ ਦਿਨ ਅਤੇ ਉਘੇ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਆਗੂ ਸਾਥੀ ਨਰਿੰਦਰ ਕੁਮਾਰ ਸੋਮਾ ਦੀ ਯਾਦ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਕਾਨਫਰੰਸ ਅਤੇ ਨਾਟਕ ਮੇਲਾ 2 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਕਸਬਾ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਇਸ ਮੇਲੇ ਵਿਚ ਕਸਬਾ ਅਤੇ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕੀਤੀ। ਕਾਨਫਰੰਸ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ-ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਤੇ ਸਕੱਤਰ ਕ੍ਰਮਵਾਰ ਸਾਥੀ ਜਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਢੇਸੀ ਤੇ ਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ ਰਤੀਆ, ਸੂਬਾ ਕਮੇਟੀ ਮੈਂਬਰ ਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ ਸੰਧੂ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਆਗੂ ਬੰਸੀ ਲਾਲ ਤੇ ਪਰਮਵੀਰ ਕੁਮਾਰ, ਸਕਾਨਕ ਆਗੂ ਦਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਪੀ.ਐਸ.ਐਫ.ਆਗੂ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ  ਮਹਾਨ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਚੌਖਟੇ ਵਾਲੇ ਬਰਾਬਰਤਾ ਅਧਾਰਤ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੀ ਲੁੱਟ ਚੋਂਘ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਸਮਾਜ ਸਿਰਜਣ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮਾਂ ਨੂੰ ਸਰਗਰਮ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਅਤੇ ਬਹੁਪੱਖੀ ਇਮਦਾਦ ਰਾਹੀਂ ਤਕੜਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਦੇ ਦੌਰ 'ਚ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮ ਦਾ ਸਿੱਧਾ ਸੰਬੰਧ ਸਾਮਰਾਜ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅੱਜ ਮਿਹਨਤੀ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਮਿੱਤਰ ਅਤੇ ਵੈਰੀ ਦੀ ਪਛਾਣ ਦਾ ਇਕੋ ਇਕ ਪੈਮਾਨਾ ਇਹੋ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਕੌਣ ਸਾਮਰਾਜ ਪ੍ਰਸਤ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ 'ਚ ਨਿਤਰਿਆ ਹੈ ਕੌਣ ਸਾਮਰਾਜ ਭਗਤੀ ਦਾ ਰਾਹ 'ਤੇ ਚਲਦਿਆਂ ਉਕਤ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਹਿਮਾਇਤ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਧਰਮ-ਜਾਤ-ਇਲਾਕਾ ਜਾਂ ਭਾਸ਼ਾ ਆਦਿ ਮੁੱਦਿਆਂ 'ਤੇ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਕਤਲੇਆਮ ਦੇ ਰਾਹ ਤੋਰ ਰਹੀਆਂ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੀਆਂ ਫੁਟਪਾਊ ਤਾਕਤਾਂ, ਨੀਤੀਆਂ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਾਮਰਾਜ ਭਗਤਾਂ ਦਾ ਰਾਹ ਪੱਧਰਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਕਾਰਗਰ ਤਰੀਕਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਅਤੇ ਪੀ.ਐਸ.ਐਫ. ਦੀ ''ਬਰਾਬਰ ਵਿਦਿਆ ਸਿਹਤ ਤੇ ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਸਭ ਨੂੰ ਹੋਵੇ ਇਹ ਅਧਿਕਾਰ'' ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਚਲ ਰਹੇ ਸੰਗਰਾਮ ਦੀ ਸਫਲਤਾ ਲਈ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸਭਨਾ ਮਿਹਨਤੀ ਵਰਗਾਂ ਨੂੰ ਸਹਿਯੋਗ ਦੀ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ। ਨੌਜਵਾਨ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਉਘੇ ਜਨਤਕ ਆਗੂ ਅਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ-ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕਾਂ 'ਚੋਂ ਇਕ ਮਰਹੂਮ ਸਾਥੀ ਨਰਿੰਦਰ ਕੁਮਾਰ ਸੋਮਾ ਨੂੰ ਸਨਮਾਨ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦਿਆਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਦਚਿੰਨ੍ਹਾਂ 'ਤੇ ਚੱਲਣ ਦੀ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ।
ਲੋਕ ਕਲਾ ਮੰਚ ਮੰਡੀ ਮੁੱਲਾਂਪੁਰ ਦੀ ਟੀਮ ਵਲੋਂ  ਸਮਾਜਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮਾਂ ਨੂੰ ਤਕੜਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੋਕਾ ਦਿੰਦੇ ਨਾਟਕ ਅਤੇ ਕੋਰੀਉਗ੍ਰਾਫੀਆਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀਆਂ।
ਰਿਪੋਰਟ : ਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ ਸਰਦੂਲਗੜ੍ਹ 



ਨਿਰਮਾਣ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਧਰਨਾ ਪੰਜਾਬ ਨਿਰਮਾਣ ਮਜ਼ਦੂਰ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਸੱਦੇ 'ਤੇ ਭਾਰੀ ਗਿਣਤੀ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਕਿਰਤ ਵਿਭਾਗ ਬਟਾਲਾ ਦੇ ਦਫਤਰ ਮੁਹਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਰੋਸ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤਾ। ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੇ ਦੋਸ਼ ਲਾਇਆ ਕਿ ਵਿਭਾਗੀ ਅਧਿਕਾਰੀ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਅਤੇ ਆਸ਼੍ਰਿਤ ਪਰਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਵਜੀਫ਼ਾ, ਸ਼ਗਨ ਸਕੀਮ, ਸਾਈਕਲ ਆਦਿ ਦੀ ਅਦਾਇਗੀ ਨੂੰ ਬੇਲੋੜਾ ਲਮਕਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਮਹੀਨਿਆਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਰਜੀਆਂ 'ਚ ਸਵੈ ਘੋਸ਼ਣਾ ਪੱਤਰਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਜਦਕਿ ਇਹ ਹਿਦਾਇਤਾਂ ਨਵੀਆਂ ਅਰਜੀਆਂ ਤੇ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਦੋਸ਼ ਲਾਇਆ ਕਿ ਇਹ ਅੜਿੱਕੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਡਾਹੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਸੂਬਾ ਹਕੂਮਤ ਆਪਣੇ ਵਲੋਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਨਿਗੂਣੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਭੱਜਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਧਰਨਾਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਜਗਤਾਰ ਸਿੰਘ ਕਿਲਾ ਲਾਲ ਸਿੰਘ, ਅਵਤਾਰ ਸਿੰਘ ਨਾਗੀ, ਸਤਨਾਮ ਸਿੰਘ ਦਕੋਹਾ, ਦਾਤਾਰ ਸਿੰਘ ਠੱਕਰਸੰਧੂ, ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ ਚੰਦੂ ਨੰਗਲ, ਪਰਵੇਜ਼ ਮਸੀਹ, ਰਾਮ ਸਿੰਘ ਲੋਈ ਨੰਗਲ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ।       
ਰਿਪੋਰਟ : ਸ਼ਮਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਬਟਾਲਾ 

Tuesday 4 October 2016

ਆਰ.ਐਮ.ਪੀ.ਆਈ. ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਪਿਛੋਕੜ ਤੇ ਭਵਿੱਖ-ਨਕਸ਼ਾ

ਸੰਪਾਦਕੀ  
17 ਸਤੰਬਰ ਨੂੰ, ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਜਲੰਧਰ ਦੇ 'ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਗਨੇਸ਼ ਪਿੰਗਲੇ ਹਾਲ' ਵਿਚ, ''ਰੈਵੋਲਿਊਸ਼ਨਰੀ ਮਾਰਕਸਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਆਫ ਇੰਡੀਆ'' ਦਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਗਠਨ, ਨਿਸ਼ਚੇ ਹੀ ਇਕ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਭਰਪੂਰ ਘਟਨਾ ਹੈ। ਇਸ ਮੰਤਵ ਲਈ ਆਯੋਜਿਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸਥਾਪਨਾ-ਕਾਨਫਰੰਸ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ, ਕੇਰਲ, ਤਾਮਿਲਨਾਡੂ, ਮਹਾਰਾਸ਼ਟਰ, ਹਰਿਆਣਾ, ਹਿਮਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ-ਯੂ.ਟੀ. ਸਮੇਤ 7 ਰਾਜਾਂ ਦੇ ਤਕਰੀਬਨ 250 ਕਮਿਊਨਿਸਟ-ਕਾਰਕੁੰਨ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ। ਆਂਧਰਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ ਅਤੇ ਦਿੱਲੀ ਤੋਂ ਵੀ ਕੁਝ ਕਾਮਰੇਡਾਂ ਵਲੋਂ ਇਸ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਨਕਸ਼ੇ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤੀ ਪ੍ਰਗਟਾਉਂਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਮਿਲੇ ਹਨ।
ਇਸ ਨਵੀਂ ਬਣੀ ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਮੁੱਚੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ-ਰਾਜਨੀਤਕ ਅਤੇ ਜਥੇਬੰਦਕ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਵਾਸਤੇ ਹਮੇਸ਼ਾ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਸੰਸਾਰ-ਦਰਿਸ਼ਟੀਕੋਨ ਤੋਂ ਸੇਧਤ ਰਹਿਣ ਦਾ ਅਹਿਦ   ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਹ ਐਲਾਨ ਵੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਜਨਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ-ਆਰਥਿਕ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ, ਬੀਤੇ ਸਮਿਆਂ ਦੌਰਾਨ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕ-ਪੱਖੀ ਵਿਚਾਰਵਾਨਾਂ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤਕ-ਘੁਲਾਟਿਆਂ ਵਲੋਂ ਪਾਏ ਗਏ ਵੱਡਮੁੱਲੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਤੇ ਵਿਵਹਾਰਕ ਯੋਗਦਾਨ ਤੋਂ ਵੀ ਬਣਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਜ਼ਮੀ ਲਈ ਜਾਵੇਗੀ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ, ਇਹ ਪਾਰਟੀ ਸਾਰੇ ਹੀ ਖੇਤਰਾਂ (ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ, ਸਭਿਆਚਾਰਕ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਆਦਿ) ਵਿਚ, ਮਾਰਕਸਵਾਦ-ਲੈਨਿਨਵਾਦ ਦੀਆਂ ਸਿਧਾਂਤਕ ਸਥਾਪਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਰਚਨਾਤਮਿਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਲਾਗੂ ਕਰਦਿਆਂ, ਏਥੇ ਜਾਤਪਾਤ, ਕਾਣੀਵੰਡ ਤੇ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜਬਰ ਤੋਂ ਮੁਕਤ, ਬਰਾਬਰਤਾ 'ਤੇ ਆਧਾਰਤ, ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਸਿਰਜਣ ਲਈ ਨਿਰੰਤਰ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਰਹੇਗੀ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਨਵੀਂ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਬਨਣਾ, ਚੋਣਾਂ ਦੀ ਰੁੱਤੇ ਚੁਣਾਵੀ ਗਿਣਤੀਆਂ-ਮਿਣਤੀਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੋ ਕੇ, ਖੁੰਬਾਂ ਵਾਂਗ ਉਗਦੀਆਂ ਰਾਜਨੀਤਕ ਪਾਰਟੀਆਂ ਵਰਗਾ ਵਰਤਾਰਾ ਨਹੀਂ ਹੈ; ਸਗੋਂ ਇਹ ਤਾਂ ਭਾਰਤ ਦੇ ਗਰੀਬਾਂ-ਭਾਈ ਲਾਲੋਆਂ ਦੀ ਬੰਦ ਖਲਾਸੀ ਲਈ ਚਲ ਰਹੀ ਜੱਦੋ ਜਹਿਦ ਦੇ ਤਿੱਖੀਆਂ ਚੜ੍ਹਾਈਆਂ-ਉਤਰਾਈਆਂ ਵਾਲੇ ਲੰਬੇ ਤੇ ਬਿਖੜੇ ਮਾਰਗ ਉਪਰ, ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਤੇ ਹਮਖਿਆਲ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲਕੇ, ਜੀਵਨ ਭਰ ਪੈਰੋ-ਪੈਰ ਤੁਰਦੇ ਰਹਿਣ ਦਾ ਅਹਿਦਨਾਮਾ ਹੈ।
ਇਸ ਨਵੀਂ ਇਨਕਲਾਬੀ ਪਾਰਟੀ  ''ਭਾਰਤ ਦੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ'' ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ-ਕਾਨਫਰੰਸ ਨੇ ਇਹ ਵੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਜੁੜੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਹੀ ਧਿਰਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤੇ ਆਗੂ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਅਵਾਮੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਪਹਿਲੀ ਪਾਲ ਦੇ ਆਗੂ ਜਾਂ ਸਰਗਰਮ ਕਾਰਕੁੰਨ ਰਹੇ ਹਨ। ਕੁਝ ਤਾਂ 1964 ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ, ਅਣਵੰਡੀ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ. ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਵੀ ਹਨ। ਸਾਰੇ ਹੀ ਉਸ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਲਾਈਨ ਬਾਰੇ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਗੰਭੀਰ ਸਿਧਾਂਤਕ ਮਤਭੇਦਾਂ ਜਾਂ ਭਾਰੂ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਦੀ ਗੈਰ ਮਾਰਕਸੀ ਤੇ ਨੁਕਸਦਾਰ ਕਾਰਜਪ੍ਰਣਾਲੀ ਕਾਰਨ ਉਸ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਤਿਲਾਂਜਲੀ ਦੇ ਕੇ, ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ 'ਤੇ, ਬਾਹਰ ਆਏ ਸਨ। ਉਹ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਘਰੀਂ ਨਹੀਂ ਬੈਠੇ, ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਬੁਰਜ਼ਵਾ ਪਾਰਟੀ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਏ, ਬਲਕਿ ਆਪੋ ਆਪਣੀਆਂ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਨਿਰੰਤਰ ਇਨਕਲਾਬੀ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿਚ ਜੁਟੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਹ ਅਜੇਹੇ ਦੇਸ਼-ਪੱਧਰੀ ਮੰਚ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ ਵਿਚ ਵੀ ਰਹੇ ਹਨ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਵੱਧਦੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਦੇ ਖਾਤਮੇਂ ਲਈ ਸਹੀ, ਸਾਰਥਕ ਤੇ ਭਰੋਸੇਯੋਗ ਰਾਜਨੀਤਕ ਦਿਸ਼ਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਸ ਉਪਰ ਸੁਹਿਰਦਤਾ ਸਹਿਤ ਅਮਲ ਕਰਨ ਦੀ ਹਾਮੀ ਭਰਦਾ ਹੋਵੇ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਏਥੇ, ਉਹ ਚੁਣਾਵੀ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਜਾਂ ਰਾਜਸੀ ਠੱਗੀਆਂ-ਠੋਰੀਆਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਨਿੱਜ ਪਾਲਣ ਲਈ ਨਹੀਂ ਆਏ; ਬਲਕਿ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਹਿੱਤਾਂ ਲਈ ਕੁਝ ਕਰ ਗੁਜ਼ਰਨ ਦੇ ਇਰਾਦੇ ਤੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਇਕਜੁੱਟ ਹੋਏ ਹਨ। ਏਸੇ ਲਈ ਇਸ ਪਾਰਟੀ ਤੋਂ ਚੰਗੀਆਂ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦੀ ਆਸ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਬਣਦੀ ਹੈ; ਕਿਉਂਕਿ ਸਾਮੂਹਿਕ ਸੁਹਿਰਦਤਾ ਤੇ ਸਿਦਕਦਿਲੀ ਵੀ ਲੋਕ-ਪੱਖੀ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਉਭਾਰਨ ਵਿਚ ਅਕਸਰ ਚੰਗੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ।
ਉਂਝ, ਭਾਰਤ ਦੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਲਹਿਰ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਅਜੇਹਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਿਹਾ। ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਇਸ ਲਹਿਰ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਦੇ, ਸੱਜੇ ਜਾਂ ਖੱਬੇ ਕੁਰਾਹੇ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਕੇ, ਇਨਕਲਾਬੀ ਰਾਹ ਤੋਂ ਥਿੜਕ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਮੰਦਭਾਗੇ ਮੌਕੇ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਜਿਹਨਾਂ ਨਾਲ ਇਸ ਲਹਿਰ ਅੰਦਰ ਤਰੇੜਾਂ ਉਭਰਦੀਆਂ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। 1964 ਵਿਚ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ. ਨਾਲੋਂ ਵੱਖ ਹੋ ਕੇ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਦੇ ਬਣਨ ਨਾਲ ਵੀ ਏਥੇ ਬੜਾ ਸਿਧਾਂਤਕ ਤੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਰੋਲ ਘਚੋਲਾ ਪਿਆ ਸੀ। ਕਾਮਰੇਡ ਐਸ.ਏ.ਡਾਂਗੇ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ., ਆਪਣੇ ''ਕੌਮੀ ਜਮਹੂਰੀ ਇਨਕਲਾਬ'' ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਅਧੀਨ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਹਾਕਮ ਜਮਾਤਾਂ-ਸਰਮਾਏਦਾਰਾਂ ਤੇ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ, ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਨਿੱਧਤਾ ਕਰਦੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਰਾਜਸੀ ਧਿਰ-ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ, ਨਾਲ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਂਝਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰੰਤਰ ਗੂੜੀਆਂ ਕਰਦੀ ਗਈ ਤੇ ਉਸ ਉਪਰ ਆਪਣੀ ਨਿਰਭਰਤਾ ਵਧਾਉਂਦੀ ਗਈ। ਜਦੋਂ ਕਿ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਨੇ ''ਲੋਕ ਜਮਹੂਰੀ ਇਨਕਲਾਬ'' ਦਾ ਹੋਕਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਲੋਕ ਲਾਮਬੰਦੀ 'ਤੇ ਟੇਕ ਰੱਖਕੇ, ਜਾਨ ਹੂਲਵੇਂ ਜਨਤਕ ਸੰਘਰਸ਼ ਉਸਾਰੇ, ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਜਨਤਕ ਆਧਾਰ ਅਨੁਸਾਰ ਪਾਰਲੀਮਾਨੀ ਘੋਲਾਂ 'ਚ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਵੀ ਜਾਰੀ ਰੱਖੀ। ਐਮਰਜੈਂਸੀ ਦੇ ਕਾਲੇ ਦੌਰ ਤੱਕ ਪੁੱਜਦਿਆਂ ਪੁੱਜਦਿਆਂ, ਦਸ ਕੁ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਵਿਚ ਹੀ, ਦੋਵਾਂ ਰਾਜਸੀ ਲਾਈਨਾਂ ਵਿਚਲਾ ਫਰਕ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਦਰਿਸ਼ ਵਿਚ ''ਮਾਂ-ਪਾਰਟੀ'' ਕਹਾਉਂਦੀ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ. ਹਾਸ਼ੀਏ 'ਤੇ ਚਲੀ ਗਈ। ਜਦੋਂਕਿ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ. (ਐਮ) ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਰਾਜਸੀ ਸੀਨ ਉਪਰ ਖੱਬੀ ਧਿਰ ਨੂੰ ਇਕ ਨਵੀਂ ਰਾਜਸੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਜੋਂ ਸਥਾਪਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਹੀ ਮਾਅਰਕੇਬਾਜ਼ੀ ਦੇ ਖੱਬੇ ਕੁਰਾਹੇ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਏ ਕੁਝ ਤੱਤਾਂ ਨੇ ਵੀ ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਨੂੰ ਜੁਝਾਰੂ ਜਨਤਕ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਪਟੜੀ ਤੋਂ ਲਾਹ ਕੇ ਸੰਕੀਰਨਤਾਵਾਦੀ ਮਾਅਰਕੇਬਾਜ਼ੀ ਦੇ ਖੱਬੇ ਕੁਰਾਹੇ ਦੀ ਪੌੜੀ ਚੜ੍ਹਾਉਣ ਦੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਯਤਨ ਕੀਤੇ; ਜਿਹਨਾਂ ਦੇ ਦੁਖਾਂਤਕ ਸਿੱਟੇ ਤੇ ਸਬਕ ਹੁਣ ਵਧੇਰੇ ਵਿਆਖਿਆ ਦੀ ਮੰਗ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ। ਐਪਰ, ਹੁਣ, ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਦੀ ਭਾਰੂ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਦੇ ਪਾਰਲੀਮਾਨੀ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤੀਆਂ ਦੀ ਦਲਦਲ ਵਿਚ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਧੱਸਦੇ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਪਾਰਟੀ ਵੀ ਦੋ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਕੌਮੀ ਦਰਿਸ਼ਟੀਕੋਨ ਤੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪ ਹੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਗੈਰਪ੍ਰਸੰਗਿਕ ਹੁੰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ, ਬਲਕਿ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਲਹਿਰ ਦੀ ਭਰੋਸੇਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਵੀ ਭਾਰੀ ਢਾਅ ਲਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਅਜੇਹੀ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਏਥੇ, ਸਹੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਦਿਸ਼ਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਣਾਈ ਹੋਈ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦੀ ਰਾਜਸੀ ਧਿਰ ਖੜੀ ਕਰਕੇ ਲੁੱਟੇ-ਪੁੱਟੇ ਜਾ ਰਹੇ ਕਿਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਵਾਸਤੇ ਕੋਈ ਆਸ ਦਾ ਦੀਪਕ ਜਗਾਉਣਾ, ਸਮੇਂ ਦੀ ਇਕ ਅਹਿਮ ਤੇ ਇਤਿਹਾਸਕ ਲੋੜ ਹੈ। ਇਸ ਪਿਛੋਕੜ ਵਿਚ, ਮਾਰਕਸਵਾਦ-ਲੈਨਿਨਵਾਦ ਦੀ ਵਿਗਿਆਨਕ ਸਮਝਦਾਰੀ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰਵਾਨਤ ਸੰਗਰਾਮੀ ਸੇਧ ਅਨੁਸਾਰ, ਪਾਰਲੀਮਾਨੀ ਤੇ ਗੈਰ ਪਾਰਲੀਮਾਨੀ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਦਾ ਢੁਕਵੇਂ ਘੋਲ ਰੂਪਾਂ ਰਾਹੀਂ ਸੁਮੇਲ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਵੀ ਗੈਰ-ਪਾਰਲੀਮਾਨੀ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਮੁੱਖਤਾ ਦੇਣ ਦੇ ਦਾਅਪੇਚਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸੰਪੂਰਨ ਸੁਹਿਰਦਤਾ ਦਾ ਦਮ ਭਰਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਵਲੋਂ, ਪਹਿਲਕਦਮੀ ਕਰਕੇ, ਅਜੇਹਾ ਠੋਸ ਹੰਭਲਾ ਮਾਰਨ ਨੂੰ ਸਵਾਗਤਯੋਗ ਤਾਂ ਆਖਿਆ ਹੀ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ।
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ, ਹੁਣ ਤਾਂ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਬਾਹਰਮੁਖੀ ਸਮਾਜਿਕ-ਆਰਥਿਕ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਵੀ ਦਿਨ ਪ੍ਰਤੀ ਦਿਨ ਵਧੇਰੇ ਚਿੰਤਾਜਨਕ ਹੁੰਦੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਵਿਆਪਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਫੈਲੀ ਹੋਈ ਗਰੀਬੀ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਤੇ ਮਹਿੰਗਾਈ ਨੇ ਮਿਲਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਜੀਣਾ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਰਾਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਨਾ ਸੰਤੁਲਿਤ ਭੋਜਨ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਜੀਵਨ ਬਸਰ ਲਈ ਸਾਫ ਸੁਥਰੇ ਤੇ ਸਿਹਤਮੰਦ ਰਿਹਾਇਸ਼ੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹਨ। ਨਾ ਉਹ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੜ੍ਹਾ-ਲਿਖਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਬਿਮਾਰ ਹੋਣ 'ਤੇ ਤਸੱਲੀਬਖਸ਼ ਇਲਾਜ ਕਰਵਾ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਏਥੋਂ ਤੱਕ ਕਿ ਕਰੋੜਾਂ ਦੇਸ਼ ਵਾਸੀਆਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਪੀਣ ਲਈ ਸਾਫ ਪਾਣੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ। ਜਦੋਂਕਿ ਮੁੱਠੀਭਰ ਅਮੀਰ-ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣੇ, ਵੱਡੇ ਵਪਾਰੀ ਤੇ ਵੱਡੇ ਭੂਮੀਪਤੀ, ਹਾਕਮ ਸਿਆਸਤਦਾਨਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਤੇ ਸਕੇ-ਸਬੰਧੀ ਅਤੇ ਅਫਸਰਸ਼ਾਹ ਦਿਨੋਂ ਦਿਨ ਮਾਲਾ ਮਾਲ ਹੁੰਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਅਮੀਰੀ ਤੇ ਗਰੀਬੀ ਵਿਚਕਾਰ ਵੱਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਇਹ ਵੱਡਾ ਪਾੜਾ ਨਿੱਤ ਨਵੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਹਾਕਮ ਜਮਾਤਾਂ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਸਾਮਰਾਜੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵੱਡੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਥੱਲੇ ਲੱਗ ਚੁੱਕੀ ਹੈ। ਏਥੋਂ ਤੱਕ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਵੀ ਹੁਣ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿਚ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਨਹੀਂ ਜਾਪਦੀ। ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ, ਜਮਹੂਰੀ ਕਦਰਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਹਾਕਮਾਂ ਵਲੋਂ, ਗਿਣਮਿਥਕੇ ਖੋਰਾ ਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਸੰਘ-ਪਰਿਵਾਰ ਵਰਗੀਆਂ ਪਿਛਾਖੜੀ ਤਾਕਤਾਂ ਦਾ ਏਥੇ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਕ ਪਾਸੇ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਫਿਰਕੂ ਤਣਾਅ ਵੱਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਭਿਆਚਾਰਕ ਨਿਘਾਰ ਤਿੱਖਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀਆਂ ਉਪਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਦਲਿਤਾਂ, ਔਰਤਾਂ, ਆਦਿਵਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਦੱਬੇ ਕੁਚਲੇ ਲੋਕਾਂ ਉਪਰ ਵੀ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਜਬਰ ਵੱਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅਤੀ ਘਿਨਾਉਣੇ ਹਮਲੇ ਵੀ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਤਰਾਸਦਿਕ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਮੂੰਹ ਮੋੜਨ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਚੁਣਾਵੀ ਗਿਣਤੀਆਂ-ਮਿਣਤੀਆਂ 'ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਹਿਣ ਦੀ ਬਜਾਏ ਪਹਿਲਾਂ, ਫੌਰੀ ਤੌਰ 'ਤੇ, ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਲੋਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਵੱਲ ਪਾਸੇ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ। ਕਿਰਤੀ ਜਨਸਮੂਹਾਂ ਦਾ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋਣਾ ਤੇ ਜਥੇਬੰਦ ਹੋਣਾ ਇਸ ਮੰਤਵ ਲਈ ਪਹਿਲੀ ਤੇ ਲਾਜ਼ਮੀ ਸ਼ਰਤ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ, ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਮਤਭੇਦਾਂ ਕਾਰਨ ਬਿਖਰੀਆਂ ਹੋਈਆਂ, ਖੱਬੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੀ ਅਮਲ ਵਿਚ ਏਕਤਾ ਉਸਾਰਨ ਲਈ ਹਰ ਸੰਭਵ ਉਪਰਾਲਾ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ; ਦਲਿਤਾਂ, ਘੱਟ ਗਿਣਤੀਆਂ ਔਰਤਾਂ, ਆਦਿਵਾਸੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪਛੜੇ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀਆਂ ਜ਼ਿਆਦਤੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜੂਝ ਰਹੀਆਂ ਜਨਤਕ ਲਹਿਰਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਪਰਿਆਵਰਨ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਲੜ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਸ ਲੜਾਕੂ ਲੋਕਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਅਟੁੱਟ ਅੰਗ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇ। ਅਜਿਹੀ ਅਜਿੱਤ ਲੋਕਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਕੇ ਹੀ ਚੋਣਾਂ ਦੀ ਮੌਜੂਦਾ ਪ੍ਰਣਾਲੀ 'ਚੋਂ ਕੋਈ ਲੋਕ-ਪੱਖੀ ਸਿੱਟੇ ਕੱਢੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ, ਨਿਰੋਲ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤੀ 'ਤੇ ਆਧਾਰਤ ਬਣਾਏ ਗਏ ਬੇਅਸੂਲੇ ਚੋਣ ਗੱਠਜੋੜਾਂ ਰਾਹੀਂ ਨਹੀਂ।
ਰੈਵੋਲਿਊਸ਼ਨਰੀ ਮਾਰਕਸਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਆਫ ਇੰਡੀਆ ਉਪਰੋਕਤ ਖਰੀ-ਇਨਕਲਾਬੀ ਸੇਧ 'ਤੇ ਦਰਿੜਤਾ ਸਹਿਤ ਪਹਿਰਾਬਰਦਾਰੀ ਕਰਨ ਦਾ ਇਕਰਾਰ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਗੱਲ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਦਰਿੜਤਾ ਦੀ ਅਸਲ ਪਰਖ ਤਾਂ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ, ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਅਮਲੀ ਕੰਮ-ਕਾਰ ਤੋਂ ਹੀ ਹੋਵੇਗੀ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਏਥੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਪਾਰਟੀ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਈ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚਲੀ ਧਿਰ ਦੇ ਪਿਛਲੇ 15 ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਕਿਰਦਾਰ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਇਸਦੇ ਇਕ ਪ੍ਰਮਾਣ ਵਜੋਂ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ। ਇਸ ਧਿਰ ਵਲੋਂ, ਸੀ.ਪੀ.ਐਮ.ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਬੈਨਰ ਹੇਠ, ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਆਦਤੀਆਂ ਤੇ ਵਹਿਸ਼ੀ ਬਦਲਾਖੋਰੀ ਦਾ ਟਾਕਰਾ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਵੀ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੱਬੀਆਂ ਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਇਕਜੁੱਟ ਕਰਨ ਲਈ ਵਾਰ ਵਾਰ ਉਪਰਾਲੇ ਕੀਤੇ ਹਨ, ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਸਿਆਸੀ ਥਿੜਕਣ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨੇੜੇ ਨਹੀਂ ਆਉਣ ਦਿੱਤਾ, ਅਤੇ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੱਬੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ, ਖੇਤ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ, ਕਿਸਾਨਾਂ, ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਤੇ ਨੌਜਵਾਨ-ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਵੱਖ ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਸਾਂਝੇ ਅੰਦੋਲਨ ਲਾਮਬੰਦ ਕਰਨ ਲਈ ਸਿਰਤੋੜ ਯਤਨ ਕੀਤੇ ਹਨ, ਉਹ ਸਾਰੇ ਯਤਨ ਉਪਰੋਕਤ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿਚ ਸਾਡੀ ਦਰਿੜਤਾ ਦੀ ਠੋਸ ਗਵਾਹੀ ਭਰਦੇ ਹਨ। ਅਜੇਹੀ, ਹਰ ਪੱਖੋਂ ਸਹੀ, ਸਾਰਥਕ ਤੇ ਬਾਅਸੂਲ ਸਿਆਸੀ ਪਹੁੰਚ ਤਾਂ ਅੱਗੋਂ ਵੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਜਾਰੀ ਰਹੇਗੀ। ਜੇਕਰ ਚਨੌਤੀਆਂ ਭਰਪੂਰ ਬਾਹਰਮੁਖੀ ਲੋੜਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਲੋੜੀਂਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਆਪਾਵਾਰੂ ਕਾਡਰ ਮਿਲਦੇ ਤੇ ਵਿਕਸਤ ਹੁੰਦੇ ਰਹੇ ਤਾਂ ਇਹ ਵੀ ਲਾਜ਼ਮੀ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਪਾਰਟੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਜਦੋ ਜਹਿਦ ਦੇ ਭਵਿੱਖੀ ਮਾਰਗ 'ਤੇ ਨਿੱਤ ਨਵੀਆਂ ਮੰਜਲਾਂ ਤੈਅ ਕਰਦੀ ਹੋਈ ਲਾਜ਼ਮੀ ਤੌਰ 'ਤੇ ਅਗਾਂਹ ਵਧਦੀ ਜਾਵੇਗੀ।
- ਹਰਕੰਵਲ ਸਿੰਘ






ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੇਨਕਾਬ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦਾ ਲੋਕ ਮਾਰੂ ਚਿਹਰਾ

ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪਾਸਲਾ 
ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ 2017 ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਅਸੈਂਬਲੀ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਹਰ ਹਰਬਾ ਵਰਤਣ ਲਈ ਪੂਰੀ ਯੋਜਨਾਬੰਦੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਪਿਛਲੇ 10 ਸਾਲ ਚੇਤਾ ਨਹੀਂ ਆਇਆ, ਹੁਣ ਵੋਟਾਂ ਬਟੋਰਨ ਲਈ ਉਹ ਕੰਮ ਵੀ ਸਿਰੇ ਚਾੜ੍ਹਨ ਦਾ ਢੌਂਗ ਰਚਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਕਿਸੇ ਮੂਰਖ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇਰ ਨਾਲ ਪੁੱਜਣ ਦੀ ਕਸਰ ਪੂਰੀ ਕਰਨ ਲਈ ਪਿੰਡ ਦੇ ਗੇੜੇ ਕੱਢਣ ਵਾਂਗ ਹੈ। ਨਵੇਂ ਬਿਜਲੀ ਕੁਨੈਕਸ਼ਨ, ਪਹਿਲਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਮਾਮੂਲੀ ਜਿਹੀਆਂ  ਸਮਾਜਿਕ ਸਹੂਲਤਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧਿਆਂ ਦੇ ਐਲਾਨ, ਕਈ ਅਦਾਲਤੀ ਖਰਚਿਆਂ ਵਿਚ ਕਟੌਤੀਆਂ ਇਤਿਆਦਿ ਅਨੇਕਾਂ ਲਾਲਚ ਦੇ ਕੇ ਵੋਟਾਂ ਪੱਕੀਆਂ ਕਰਨ ਦਾ ਯਤਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ''ਨੌਜਵਾਨ ਅਕਾਲੀ ਸੈਨਾ'' ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਸਾਰਾ ਕੰਮ 'ਹਰ ਹੀਲੇ' ਸਿਰੇ ਚਾੜ੍ਹਨ ਲਈ ਖੜੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਧਨ ਦੌਲਤ ਦੀ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਕੋਈ ਕਮੀ ਨਹੀਂ ਪੰਥਕ ਆਗੂਆਂ ਕੋਲ!
ਪਿਛਲੇ ਦਸ ਸਾਲਾਂ ਦੌਰਾਨ ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਪਿਛਲੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵੱਲ ਥੋੜੀ ਜਿਹਾ ਨਿਗਾਹ ਮਾਰਨੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ। ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਸਵਾਲਾਂ ਬਾਰੇ ਉਚਿਤ ਫੈਸਲੇ ਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੀ ਜੰਗ ਵਿਚ (ਭਾਵੇਂ ਪੱਛੜ ਕੇ) ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਕੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਤੇ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਭਲੇ ਲਈ ਚੰਗੇ ਆਸ਼ੇ ਲੈ ਕੇ ਇਸ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ। ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚਲੇ ਸਮੁੱਚੇ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਿੱਖ ਜਨ ਸਮੂਹਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਦੂਸਰੇ ਫਿਰਕਿਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵੀ ਚੋਖਾ ਭਾਗ ਸੀ, ਭਾਵੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਤੱਕ ਸੀਮਤ ਰੱਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਖਾਤੇ ਪਾਉਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਨ ਦੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਪ੍ਰੰਪਰਾਵਾਂ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਸਫ਼ਿਆਂ ਤੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਮਿਟਾ ਸਕਦਾ। ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮ ਤੇ ਗੁਲਾਮੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਜਿੱਥੇ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਨੇ ਚੰਗਾ ਨਾਮਣਾ ਖੱਟਿਆ ਤੇ ਜਨ ਅਧਾਰ ਕਾਇਮ ਕੀਤਾ, ਉਥੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਇਕ ਹਿੱਸੇ ਨੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਉਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸ਼ਖਸ਼ੀਅਤਾਂ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵੀ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ, ਸਾਮਰਾਜੀ ਜਰਵਾਣਿਆਂ ਦੇ ਝੋਲੀ ਚੁੱਕਾਂ ਵਾਲੇ ਕਈ ਨਿਖੇਧੀ ਯੋਗ ਕੰਮ ਵੀ ਕੀਤੇ। ਜਲਿਆਂਵਾਲੇ ਬਾਗ ਵਿਚ ਸੰਨ 1919 ਵਿਚ ਵਾਪਰੇ ਖੂਨੀ ਕਾਂਡ ਦੇ ਜ਼ਿੰਮੇਦਾਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜਨਰਲ ਡਾਇਰ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਸਰਵਉਚ ਅਸਥਾਨ ਸ਼੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਵਿਖੇ ਸਿਰੋਪਾਓ ਦੇਣਾ ਤੇ ਉਸਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਸਿੱਖ ਰਹਿਤ ਮਰਿਆਦਾ ਦੇ ਪਾਬੰਦ ਹੋਇਆਂ ਵੀ 'ਅੰਮ੍ਰਿਤਧਾਰੀ' ਬਣਨ ਲਈ ਤਰਲੇ ਪਾਉਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਘਟੀਆ ਤੇ ਨਿੰਦਣਯੋਗ ਕਾਰਵਾਈ ਸੀ। ਇਹ ਹਕੀਕਤ ਹੈ ਕਿ ਕੂਕਾ ਲਹਿਰ, ਗਦਰ ਲਹਿਰ, ਬੱਬਰ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ, ਕਿਰਤੀ ਕਿਸਾਨ ਲਹਿਰ, ਸ਼ਹੀਦ-ਇ-ਆਜ਼ਮ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਨੌਜਵਾਨ ਭਾਰਤ ਸਭਾ ਦੀ ਲਹਿਰ ਤੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਅਣਗਿਣਤ ਸਿੱਖ ਨਾਇਕਾਂ ਨੇ ਭਾਗ ਲਿਆ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਨੇ ਕਦੀ ਸਿੱਖ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਜਾਂ ਦੂਸਰੇ ਧਰਮਾਂ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਨਫਰਤ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਯੋਧਿਆਂ ਨੇ ਧਰਮ ਨੂੰ ਹਰ ਇਨਸਾਨ ਦਾ  ਨਿੱਜੀ ਮਾਮਲਾ ਦੱਸ ਕੇ ਧਰਮ ਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੇ ਸੁਮੇਲ ਤੋਂ ਹਮੇਸ਼ਾ ਕਿਨਾਰਾਕਸ਼ੀ ਕੀਤੀ। ਇਕ ਇਲਾਕਾਈ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ, ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠਲੀਆਂ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ, ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਦੌਰ ਵਿਚ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਅਲੱਗ, ਸੂਬੇ ਅੰਦਰ ਕਈ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਕਦਮ ਵੀ ਪੁੱਟੇ। ਰਾਜਨੀਤਕ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਮਾਤ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਅਧਾਰ ਉਪਰ ਪੰਜਾਬੀ ਸੂਬੇ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਵਿਚ ਇਸਦਾ ਆਗੂ ਰੋਲ ਸੀ। 1975 ਦੀ ਐਮਰਜੈਂਸੀ ਵਿਰੁੱਧ ਮੋਰਚਾ, ਰਾਜਾਂ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਦੂਸਰੀਆਂ ਮੰਗਾਂ ਜਿਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਦਰਿਆਈ ਪਾਣੀਆਂ ਦੀ ਨਿਆਈਂ ਵੰਡ, ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਵਾਉਣ, ਰਹਿੰਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਬੋਲਦੇ ਇਲਾਕੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਆਦਿ ਮੰਗਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਨੇ ਕਈ ਮੋਰਚੇ ਲਗਾਏ ਤੇ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ। ਭਾਵੇਂ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਹਠਧਰਮੀ ਤੇ ਅਕਾਲੀ ਆਗੂਆਂ ਦੀਆਂ ਆਪਣੀਆਂ ਕਮਜ਼ੋਰੀਆਂ ਤੇ ਜਮਾਤੀ ਸੀਮਾਵਾਂ ਕਾਰਨ, ਵੱਡੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ, ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਹਕੀਕੀ ਮੰਗਾਂ ਦਾ  ਇਨਸਾਫਪੂਰਨ ਨਿਪਟਾਰਾ ਅਜੇ ਤੱਕ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਇਸ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਜਨ ਅਧਾਰ ਦਾ ਕੋਈ ਦੋਸ਼ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤ ਤੇ ਧਨੀ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਦਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਮੁਫਾਦ ਲਈ ਹੀ ਵਰਤਿਆ ਤੇ ਖਾਲਿਸਤਾਨੀ ਦਹਿਸ਼ਤਗਰਦੀ ਦੇ ਦੌਰ ਸਮੇਂ ਕਾਂਗਰਸ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਵਲੋਂ ਅਪਣਾਈ ਗਈ ਦੋਗਲੀ ਪਹੁੰਚ ਤੇ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਨੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਸਫੋਟਕ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ।
ਜਿਵੇਂ ਜਿਵੇਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਰਾਜ ਸੱਤਾ ਦੇ ਸੁੱਖ ਮਾਨਣ ਦਾ ਆਦੀ ਹੋ ਗਿਆ ਤੇ ਇਸ ਉਪਰ ਸਰਮਾਏਦਾਰ-ਜਗੀਰਦਾਰ ਤੱਤਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਇਹ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਵਿਚ ਸਰਮਾਏਦਾਰ-ਜਗੀਰਦਾਰ ਜਮਾਤਾਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਪਾਰਟੀ ਤੇ ਸੰਘ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਰਾਜਸੀ ਵਿੰਗ, ਭਾਜਪਾ, ਨਾਲ ਰਾਜ ਸੱਤਾ ਵਿਚ ਭਾਗੀਦਾਰ ਬਣਿਆ, ਤਿਵੇਂ ਤਿਵੇਂ ਇਸਦਾ ਜਮਹੂਰੀ ਚਰਿੱਤਰ ਮੁਕਦਾ ਗਿਆ ਤੇ ਸਰਮਾਏਦਾਰਾਂ-ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਹੱਕਾਂ ਦਾ ਰਖਵੈਲ ਤੇ ਫਿਰਕੂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਚਾਰਨ ਵਾਲਾ ਰਾਜਸੀ ਦਲ ਬਣਦਾ ਗਿਆ। ਹੁਣ ਪੂਰਨ ਰੂਪ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਪੱਖ ਤੋਂ ਸਰਮਾਏਦਾਰ-ਜਗੀਰਦਾਰ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਹੈ, ਜੋ ਆਪਣਾ ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਰਦਾਰ ਗੁਆ ਕੇ ਆਪ ਇਕ ਫਿਰਕੂ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਵੱਡੀ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤ ਸ਼ਕਤੀ, ਆਰ.ਐਸ.ਐਸ. ਦਾ ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਸਾਮਰਾਜ ਨਿਰਦੇਸ਼ਤ ਨਵ ਉਦਾਰਵਾਦੀ ਆਰਥਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਝੰਡਾ ਬਰਦਾਰ ਹੈ।
ਇਹਨਾਂ ਉਪਰੋਕਤ ਤੱਥਾਂ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਪਿਛਲੇ 10 ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਅਪਣਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਆਰਥਿਕ, ਰਾਜਨੀਤਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਪਰਖਿਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵਾਂਗ ਬਾਦਲ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸਾਰੇ ਮਹਿਕਮਿਆਂ, ਕਾਰੋਬਾਰਾਂ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦਾ ਪੂਰਨ ਜਾਂ ਅੰਸ਼ਿਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ/ਕਾਲਜਾਂ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਵਾਲੀ ਤਨਖਾਹ ਤੇ ਕੰਮ ਦੀਆਂ ਹਾਲਤਾਂ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਕੇ ਨਵੇਂ ਅਧਿਆਪਕ ਭਰਤੀ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਨਿਗੂਣੀਆਂ ਤਨਖਾਹਾਂ ਤੇ ਠੇਕੇਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਰਾਹੀਂ ਭਰਤੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿਹਤ ਸਹੂਲਤਾਂ, ਸੜਕੀ ਆਵਾਜਾਈ, ਪੀ.ਡਬਲਿਊ.ਡੀ., ਵਾਟਰ ਸਪਲਾਈ, ਸਫਾਈ ਦਾ ਕੰਮ ਭਾਵ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਸਰਕਾਰੀ ਹਿੱਸੇਦਾਰੀ ਘਟਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਤੇ ਨਿੱਜੀਕਰਨ ਵਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਠੇਕੇਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵਿਚ ਤਨਖਾਹਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਾ ਪੱਧਰ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਅਤਿਅੰਤ ਨੀਵਾਂ ਤੇ ਭੁੱਖੇ ਮਰਨ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੈ। ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲਾਂ, ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਮਹਿਕਮਿਆਂ ਵਿਚ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਹੀ ਅਸਾਮੀਆਂ ਖਾਲੀ ਪਈਆਂ ਹਨ, ਜੋ ਭਰੀਆਂ ਨਹੀਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ।
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਖੇਤੀ ਸੰਕਟ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦਾ ਯਤਨ ਬਿਲਕੁਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ, ਹਲ ਕਰਨਾ ਤਾਂ ਦੂਰ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਖੇਤੀ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮਹਿੰਗੀਆਂ ਤੇ ਨਕਲੀ ਦੁਆਈਆਂ, ਖਾਦ, ਨਕਲੀ ਬੀਜ ਤੇ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਮੰਡੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ਹੋਣਾ ਕਿਸਾਨੀ ਸਿਰ ਚੜ੍ਹੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਾ ਮੂਲ ਕਾਰਨ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਖਤਮ ਹੋ ਰਹੇ ਪਾਣੀ ਬਾਰੇ ਕਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਨਿੱਠ ਕੇ ਨਾ ਆਪ ਸੋਚਿਆ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਦੂਸਰੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਰਾਇ ਲਈ ਹੈ। ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਪਾਣੀ ਅੱਤ ਦੀ ਨੀਵੀਂ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਪੁੱਜ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਕੁੱਝ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਤ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦਾ ਕਾਲ ਪੈਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਨ ਕਾਰਨ ਸਮੁੱਚਾ ਵਾਤਾਵਰਨ ਤੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਲਾ ਪਾਣੀ ਪੀਣ ਦੇ ਕਾਬਲ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ, ਜਿਸ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਕੈਂਸਰ, ਪੀਲੀਆ ਇਤਿਆਦੀ ਨਾ ਮੁਰਾਦ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਜਕੜ ਲਿਆ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਦਲਿਤਾਂ ਤੇ ਪੇਂਡੂ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਸਿਰਫ ਵੋਟ ਬੈਂਕ ਲਈ ਵਰਤਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਸਦਕਾ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਵੱਲ ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕਦੀ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ। ਛੂਆ ਛਾਤ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਤਿਆਚਾਰ, ਪੁਲਸ ਧੱਕੇਸ਼ਾਹੀਆਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਬੋਝ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਹ ਕਿਰਤੀ ਵਰਗ ਆਪਣੇ ਸਿਰਾਂ ਉਪਰ ਚੁੱਕੀ ਤੁਰਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਦੂਸਰੀਆਂ ਪਛੜੀਆਂ ਸ੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਲੋਕ ਭਲਾਈ ਸਕੀਮਾਂ ਦਾ ਸਰਕਾਰੀ ਕਾਗਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਖਾਨਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਛੋਟੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰਾਂ ਤੇ ਛੋਟੇ ਵਿਉਪਾਰੀਆਂ ਦੀ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ ਦੀ ਥੋਕ ਤੇ ਪ੍ਰਚੂਨ ਵਪਾਰ ਵਿਚ ਬਰਾਮਦ ਨੇ ਰੱਤ ਨਚੋੜ ਛੱਡੀ ਹੈ। ਇਹ ਸਾਰਾ ਕੁੱਝ ਬਾਦਲ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਕੁਲ ਆਰਥਿਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਨਿਚੋੜ ਹੈ।
ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਕਾਲੀਕਰਨ ਤੇ ਭਗਵਾਕਰਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਕੋਈ ਮਹਿਕਮਾ ਵੀ ਕਾਨੂੰਨ ਮੁਤਾਬਕ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਅਕਾਲੀ ਪਾਰਟੀ ਤੇ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਾਂ ਉਪਰ ਚਲਦਾ ਹੈ। ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਪੁਲਸ ਅਫਸਰ ਜਾਂ ਹੋਰ ਅਧਿਕਾਰੀ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਨਾਂਹ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਉਪਰ ਵੀ ਸਰਕਾਰੀ ਕਹਿਰ ਟੁੱਟ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਵੈਸੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸ਼ਨ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਤੇ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਇਸ਼ਾਰਿਆਂ ਉਪਰ ਨੱਚਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਰਾਜਸੀ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਉਪਰ ਕਤਲਾਂ ਤੇ ਇਰਾਦਾ ਕਤਲਾਂ ਦੇ ਝੂਠੇ ਮੁਕੱਦਮੇ ਦਰਜ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਆਪਣਿਆਂ ਨੂੰ ਹਰ 'ਜ਼ੁਰਮ' ਕਰਨ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਛੋਟ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ। ਰੇਤ ਮਾਫੀਆ, ਜ਼ਮੀਨ ਮਾਫੀਆ, ਗੁੰਡਾ ਗੈਂਗ, ਨਸ਼ਿਆਂ ਦਾ  ਵਿਉਪਾਰ, ਇਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਇਕ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਇਸ ਲਈ ਪਿਛਲੇ ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਦਾ ਦਸ ਸਾਲਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਭਾਗ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੈ।
ਪੁਲੀਸ ਦੀ ਸਿਰਫ ਗਿਣਤੀ ਵਧਾ ਕੇ ਵੱਧ ਰਹੀ ਗੁੰਡਾਗਰਦੀ, ਲੁੱਟਾਂ-ਖੋਹਾਂ ਤੇ ਚੋਰੀਆਂ ਉਪਰ ਕਾਬੂ ਨਹੀਂ ਪਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਇਸ ਲਈ ਵਿਹਲੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਦਿਆ ਤੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਕੇ ਅਰਥ ਭਰਪੂਰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿੱਤੇ ਬਿਨਾਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਸਰੀ ਅਰਾਜਕਤਾ ਤੇ ਗੁੰਡਾਗਰਦੀ ਨੂੰ ਨੱਥ ਨਹੀਂ ਪੈ ਸਕਦੀ। ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ੱਕ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਰਾਹੀਂ ਧਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਨੀਤੀ ਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੇ ਅਪਰਾਧੀਕਰਨ ਸਦਕਾ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਦਿਨਾਂ ਅੰਦਰ ਘਰਾਂ ਦੇ ਕੁੰਡੇ ਲਾ ਕੇ ਵੀ ਅਪਰਾਧੀ ਤੱਤਾਂ ਵਲੋਂ ਲੁੱਟਾਂ ਖੋਹਾਂ ਤੇ ਚੋਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕੇਗਾ। ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੀ ਠੀਕ ਮਾਤਰਾ ਤਾਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਤੇ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਦੀ 10 ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਦੀ ਜਾਇਦਾਦ ਤੇ ਹੁਣ ਦੀ ਜਾਇਦਾਦ ਦਾ ਅੰਤਰ ਕੱਢ ਕੇ ਹੀ ਮਾਪੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਸੰਗਤ ਦਰਸ਼ਨ ਰਜਵਾੜਾਸ਼ਾਹੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਰਾਜ ਭਾਗ ਚਲਾਉਣ ਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਖਜ਼ਾਨੇ ਦੀ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਕਰਕੇ ਜਨ ਸਮੂਹਾਂ ਦੀਆਂ ਵੋਟਾਂ ਲੈਣ ਖਾਤਰ ਧੋਖਾ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਡਰਾਮੇਬਾਜ਼ੀ ਹੈ। ਇਹ ਗੈਰ ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਤੇ ਅਨੈਤਿਕ ਵੀ ਹੈ।
ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਦੇ ਰਾਜ ਸਮੇਂ ਰਾਜ ਸੱਤਾ ਉਪਰ ਕਬਜ਼ਾ ਜਮਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਦਾ ਹਥਿਆਰ ਵੀ ਵਰਤਿਆ ਗਿਆ। ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਬੇਅਦਬੀ ਦੀਆਂ ਨਿੰਦਣਯੋਗ ਘਟਨਾਵਾਂ, ਕੁਰਾਨ ਸ਼ਰੀਫ ਦੀ ਬੇਅਦਬੀ ਤੇ ਨਾਮ ਨਿਹਾਦ ਗਊ ਰੱਖਿਅਕਾਂ (ਸੰਘੀਆਂ) ਵਲੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਗੁੰਡਾਗਰਦੀ ਇਕ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਛਡਯੰਤਰ ਅਧੀਨ ਕੀਤੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਹਨ। ਫਿਰਕੂ ਤੇ ਅੱਤਵਾਦੀ ਤੱਤਾਂ ਨਾਲ ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਹੀ ਦੋਸਤੀ ਤੇ ਦੁਸ਼ਮਣੀ ਤੈਅ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ, ਜਿਸਨੇ ਸਾਡੀ ਸਮੁੱਚੀ ਭਾਈਚਾਰਕ ਏਕਤਾ ਤੇ ਇਕਮੁੱਠਤਾ ਦਾ ਭਾਰੀ ਨੁਕਸਾਨ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਫਿਰਕੂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਡੇਰਿਆਂ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਵੋਟਾਂ ਹਾਸਲ ਕਰਨਾ ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ, (ਕਾਂਗਰਸ ਤੇ ਆਪ ਸਮੇਤ ਸਾਰੀਆਂ ਬੁਰਜ਼ਵਾ ਪਾਰਟੀਆਂ ਲਈ) ਇਕ ਹਥਿਆਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਸਾਮਰਾਜ ਨਿਰਦੇਸ਼ਤ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਆਰਥਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਲਾਗੂ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਭਾਜਪਾ ਵਰਗੀ ਫਿਰਕੂ ਪਾਰਟੀ ਨਾਲ ਨਹੁੰ-ਮਾਸ ਦਾ ਰਿਸ਼ਤਾ ਦੱਸਕੇ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਨੇ ਜਮਹੂਰੀ ਪਾਰਟੀ ਹੋਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਆ ਲਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦੀਆਂ ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਿਸਾਨ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ, ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਮੰਗਦੇ ਪੜ੍ਹੇ ਲਿਖੇ ਨੌਜਵਾਨ ਲੜਕੇ ਤੇ ਲੜਕੀਆਂ ਤੇ ਕਿਸੇ ਕਿਸਮ ਦੀ ਵੀ ਧੱਕੇਸ਼ਾਹੀ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦੇ ਲੋਕਾਂ ਉਪਰ ਪੁਲਸ ਜਬਰ ਕਰਨ ਦੀ ਪਾਲਿਸੀ ਨੇ ਪਿਛਲੇ ਸਾਰੇ ਰਿਕਾਰਡ ਤੋੜ ਦਿੱਤੇ ਹਨ। ਐਮਰਜੈਂਸੀ ਵਿਰੁੱਧ ਮੋਰਚਾ ਲਾਉਣ ਤੇ ਪਾਣੀਆਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਕੀਤੀ ਜਦੋ-ਜਹਿਦ ਕਰਨ ਬਾਰੇ ਜਦੋਂ ਵੱਡੇ ਅਕਾਲੀ ਨੇਤਾ ਆਪਣਾ ਗੁਣਗਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਮਹਿੰਗਾਈ, ਭੁਖਮਰੀ, ਬੇਕਾਰੀ, ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ, ਕਰਜ਼ੇ ਤੇ ਨਸ਼ੇ ਦੀ ਮਾਰ ਝੱਲ ਰਹੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਵਿਚੋਂ ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਆਗੂਆਂ ਵਾਸਤੇ ਬਦ-ਦੁਆਵਾਂ ਤੇ ਦੁਰਸੀਸਾਂ ਦੇ ਸਿਵਾਏ ਹੋਰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦਾ।
ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ 2017 ਦੀਆਂ ਅਸੈਂਬਲੀ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਕਾਂਗਰਸ ਰੂਪੀ ਦੈਂਤ ਖੜ੍ਹਾ ਹੈ, ਜਿਸਨੇ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਜਨਤਾ ਦਾ ਲੰਮਾ ਸਮਾਂ ਖੂਨ ਪੀਤਾ ਹੈ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗਰੀਬੀ ਤੇ ਬੇਕਾਰੀ ਵਰਗੀਆਂ ਲਾਹਨਤਾਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਹੋਰ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ। 'ਆਪ' ਨੂੰ ਸਾਮਰਾਜੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਵਲੋਂ ਇਕ ਬਦਲਵੀਂ ਯੋਜਨਾ ਅਧੀਨ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਚ ਲਿਆ ਖੜ੍ਹਾ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਜੋ ਪੂਰਨ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਤੇ ਸਾਮਰਾਜੀ ਹਿਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਕਾਲੀ ਦਲ-ਭਾਜਪਾ ਸਰਕਾਰ ਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਕੁਕਰਮਾਂ ਦਾ ਅੰਤ ਕਰਨ, ''ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਖਤਮ ਕਰਨ'' ਤੇ ਹਰ ਵਰਗ ਨੂੰ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੇਣ (ਜੋ ਅਜੋਕੇ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਅਸੰਭਵ ਹਨ) ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਦੁੱਖ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੇ ਧੋਖੇ ਭਰੇ ਨਾਅਰੇ ਦੇ ਕੇ ਵੋਟਾਂ ਪਾਉਣ ਲਈ ਆਖ ਰਹੇ ਹਨ। 'ਆਮ ਆਦਮੀ' ਦੇ ਨਾਂਅ ਉਪਰ 'ਆਪ' ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣਿਆਂ ਤੇ ਧਨਵਾਨ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਛੁਪਣ ਦੀ ਪਨਾਹਗਾਹ ਹੈ। ਇਸਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਮਕਸਦ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਖੋਖਲੇ ਨਾਅਰਿਆਂ ਰਾਹੀਂ ਮੌਜੂਦਾ ਸਰਕਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਤੋਂ ਬੇਚੈਨ ਜਨਤਾ ਨੂੰ ਇਨਕਲਾਬੀ ਖੇਮੇ ਵਿਚ ਜਾਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣਾ ਹੈ। ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਮਾਨਦਾਰ ਲੋਕ ਵੀ ਇਸ ਧੋਖੇ ਵਿਚ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਹਰ ਨਿੱਤ ਨਵੇਂ ਦਿਨ 'ਆਪ' ਦੀ ਅਸਲ ਹਕੀਕਤ ਜਗ ਜਾਹਰ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ।
ਖੱਬੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਭਾਵੇਂ ਕਈ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅਜੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹਨ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹਰ ਕੋਨੇ ਵਿਚ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਧਿਰਾਂ ਸੰਗ ਖੜੋਤੀਆਂ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਹ ਖੱਬੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਹੀ ਹਨ ਜੋ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਗਰੀਬੀ, ਬੇਕਾਰੀ, ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਤੇ ਨਸ਼ਾਖੋਰੀ ਵਰਗੇ ਮਸਲਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਕਦਮ ਉਠਾ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜ਼ੁਰਮਾਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਸਰਦਾਰ ਹਥਿਆਰ ''ਜਨਤਕ ਲਹਿਰ'' ਖੜ੍ਹੀ ਕਰ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ। ਸਾਮਰਾਜੀ ਚੁੰਗਲ ਤੇ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਦੇ ਜ਼ਹਿਰ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਵਾਸਤੇ ਖੱਬੀਆਂ ਤੇ ਜਮਹੂਰੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਣਾ ਅਤੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ। ਕਹਿਣੀ ਤੇ ਕਰਨੀ ਵਿਚ ਪੂਰੀ ਉਤਰਨ ਵਾਲੀ ਖੱਬੇ ਪੱਖੀ ਲਹਿਰ ਹੀ ਇਕੋ ਇਕ ਸ਼ਕਤੀ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਤੇ ਇਸਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ।

ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੰਕਟ ਤੋੜਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਬੁਨਿਆਦੀ ਖੇਤੀ ਢਾਂਚਾ

ਰਘਬੀਰ ਸਿੰਘ
 
ਭਾਰਤ ਦਾ ਖੇਤੀ ਸੰਕਟ ਬਹੁਤ ਹੀ ਗੰਭੀਰ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਰੂਪ ਬਹੁਪੱਖੀ ਅਤੇ ਬਹੁਪਰਤੀ ਹੈ। ਹਰ ਦਿਨ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਕਿਸਾਨਾਂ-ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀਆਂ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਇਸ ਸੰਕਟ ਦੀ ਸਿਖਰਲੀ ਚੋਟੀ ਬਣ ਗਈ ਹੈ। ਪਿਛਲੇ 20-25 ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਲਗਭਗ ਚਾਰ ਲੱਖ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਦੇ ਹੋਣ ਦੀ ਹਕੀਕਤ ਮਨੁੱਖ ਕਦਰਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਦੀ ਹੋ ਰਹੀ ਨਿਰਾਦਰੀ ਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸਬੂਤ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਵਰਗੇ ਵਿਕਾਸਸ਼ੀਲ, ਗਰੀਬਾਂ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਖੇਤੀ ਕਿੱਤਾ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਜੀਵਨ ਰੇਖਾ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਸੰਕਟ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਰਥਕਤਾ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਉਦਯੋਗ ਅਤੇ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਵੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਵੀ ਸਹਿਜੇ ਸਹਿਜੇ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਕਟਗ੍ਰਸਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਖੇਤੀ ਕਿੱਤੇ ਦਾ ਸੰਕਟ ਜਿਸ 'ਤੇ 65 ਤੋਂ 70% ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਨਿਰਭਰਤਾ ਹੈ ਦੇ ਮੰਦਵਾੜੇ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਸਮਾਜਕ ਢਾਂਚਾ ਵੀ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੜਖੜਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਗਰੀਬ ਲੋਕ ਵਿਸੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਪੇਂਡੂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਕੁਪੋਸ਼ਣ ਅਤੇ ਘਟ ਖੂਨ ਹੋਣ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਨੌਜਵਾਨ ਬੇਰੁਜਗਾਰੀ ਦੀ ਦਲਦਲ ਵਿਚ ਫਸ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਮੁੱਖ ਧਾਰਾ ਤੋਂ ਲਾਂਭੇ ਧੱਕਿਆ ਜਾਣ ਕਰਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਜ਼ੁਰਮ ਕਰਨ ਅਤੇ ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਤਬਾਹਕੁੰਨ ਘੁੰਮਣਘੇਰੀ ਵਿਚ ਫਸ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
 
ਸੰਕਟ ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਉਪਜ 
ਕੇਂਦਰ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਚਲਾ ਰਹੇ ਆਗੂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਝੰਡਾ ਬਰਦਾਰ ਖੇਤੀ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਵਪਾਰ ਦੇ ਮਾਹਰ ਇਸ ਸੰਕਟ ਨੂੰ ਕਿਸਾਨ ਦੀ ਗਲਤ ਸਮਝਦਾਰੀ, ਉਸਦੇ ਪਰਵਾਰਕ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਲੋਂ ਹੱਥੀਂ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਦਤ ਵਿਆਹਾਂ-ਸ਼ਾਦੀਆਂ 'ਤੇ ਫਜੂਲ ਖਰਚੀ ਕਰਨਾ, ਕਣਕ, ਝੋਨੇ ਦੇ ਰਵਾਇਤੀ ਚੱਕਰ ਵਿਚੋਂ ਬਾਹਰ ਨਾ ਨਿਕਲਣ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਆਫਤਾਂ ਸਿਰ ਮੜ੍ਹਕੇ ਆਪ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੁੱਧ ਧੋਤੇ ਬਣਨ ਦਾ ਜਤਨ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਕਿਸਾਨ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹੱਡਬੀਤੀ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਦੁੱਖਾਂ ਦੇ ਪਰਗਟਾਵੇ ਦੀ ਅਵਾਜ ਬਣੇ ਲੋਕ-ਡਾ. ਸਵਾਮੀਨਾਥਨ, ਡਾ. ਸੁੱਚਾ ਸਿੰਘ ਗਿੱਲ, ਡਾ. ਗਿਆਨ ਸਿੰਘ, ਡਾ. ਗੁਰਦੇਵ ਸਿੰਘ ਖੁਸ਼ ਅਤੇ ਡਾ. ਸੁਖਪਾਲ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਅਨੇਕਾਂ ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਖੇਤੀ ਵਿਗਿਆਨੀ ਅਤੇ ਆਰਥਕ ਮਾਹਰ ਕੂਕ-ਕੂਕ ਕੇ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹ ਸਾਰਾ ਸੰਕਟ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਹੈ। ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਤਿੱਖੀਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਖੇਤੀ ਵਿਚ ਤਿੱਖੀਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਕਰਕੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਖੇਤੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਛੋਟੀ ਅਤੇ ਦਰਮਿਆਨੀ ਖੇਤੀ ਬਚਾਈ ਜਾਣੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਨੂੰ ਲਾਹੇਵੰਦ ਧੰਦਾ ਬਣਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਆਜ਼ਾਦ ਭਾਰਤ ਦੇ ਖੇਤੀ ਖੇਤਰ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਗਵਾਹ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਪਹਿਲੀ, ਦੂਜੀ ਯੋਜਨਾ ਵਿਚ ਕੁਝ ਕਿਸਾਨ ਪੱਖੀ ਨੀਤੀਆਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਅਤੇ ਹਰੇ ਇਨਕਲਾਬ ਦਾ ਨਾਹਰਾ ਦਿੱਤਾ, ਖੇਤੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕਾਫੀ ਸੁਧਾਰ ਹੋਇਆ। ਖੇਤੀ ਉਪਜ ਕਈ ਗੁਣਾ ਵੱਧ ਗਈ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਅਨਾਜ ਬਾਹਰੋਂ ਮੰਗਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ ਨਾ ਰਹੀ। ਇਸ ਨਾਲ ਕਿਸਾਨ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਵੀ ਕੁਝ ਸੁਧਾਰ ਹੋਇਆ। ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਮਹਿਕਮੇਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਜ਼ਬੂਤ ਤਾਣਾਬਾਣਾ ਉਸਾਰਿਆ ਗਿਆ। ਖੇਤੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਨੇ ਵੱਡੇ ਵੱਡੇ ਖੇਤੀ ਵਿਗਿਆਨੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ। ਨਵੇਂ ਤੋਂ ਨਵੇਂ ਬੀਜ਼ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਨਵੀਂ ਨਸਲ ਦਾ ਪਸ਼ੂਧਨ ਵੀ ਪੈਦਾ ਕੀਤਾ। ਹਰੇ ਇਨਕਲਾਬ ਵਾਲੇ ਖੇਤਰਾਂ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਹਾਇਕ ਕੀਮਤਾਂ ਤੇ ਕਿਸਾਨੀ ਜਿਣਸਾਂ ਖਰੀਦਣ ਦਾ ਭਰੋਸੇਯੋਗ ਸਰਕਾਰੀ ਮੰਡੀਕਰਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਸਾਰਿਆ ਗਿਆ ਪਰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਅੱਖਾਂ ਬਦਲ ਲਈਆਂ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵਪਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਪਤੀਆਂ ਦੇ ਹਿੱਤ ਭਾਰੂ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਤ ਕਰਨ ਲਈ ਖੇਤੀ ਸੈਕਟਰ ਅਤੇ ਇਸਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਿਸਾਨਾਂ-ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਹਿਤਾਂ ਦੀ ਬਲੀ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। 1991 ਤੋਂ ਅਪਣਾਈਆਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਕਿਸਾਨ ਵਿਰੋਧੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਹਨੇਰੀ ਲਿਆ ਦਿੱਤੀ। ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਇਸ ਹਨੇਰੀ ਨੇ ਖੇਤੀ ਸੰਕਟ ਨੂੰ ਲੱਖਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਖੇਤੀ ਸੈਕਟਰ ਵਿਚੋਂ ਜਨਤਕ ਪੂੰਜੀ ਨਿਵੇਸ਼ ਲਗਾਤਾਰ ਘੱਟ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਕਾਣੀ ਵੰਡ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਆਰਥਕ ਖੇਤਰਾਂ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਾਲੀ ਜ਼ਮੀਨ ਗੈਰ ਖੇਤੀ ਕੰਮਾਂ ਲਈ ਹਥਿਆ ਕੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦੇਣ ਦੀ ਲਾਠੀ ਗੋਲੀ ਦੀ ਨੀਤੀ ਰਾਹੀਂ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਡੂੰਘਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਮਹਿਕਮਿਆਂ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੋਰਾ ਲਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਨਾਲ ਫਸਲਾਂ ਦੇ ਬੀਜਾਂ 'ਤੇ ਵੱਡੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਮੰਡੀਕਰਨ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਹਸਤ ਹੀਣ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਮੰਡੀ ਵਿਚ ਕਿਸਾਨ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਿਨ ਦੀਵੀਂ ਲੁੱਟ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਉਸਨੂੰ ਆੜਤੀਆਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਨਿੱਜੀ ਸਾਹੂਕਾਰਾਂ ਦੇ ਗਲਘੋਟੂ ਕਰਜਾ ਜਾਲ ਵਿਚ ਫਸਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਖੇਤੀ ਕਰਜ਼ੇ ਲਈ ਉਸਦੀ ਬਾਂਹ ਫੜਨ ਵਾਲੀਆਂ ਖੇਤੀ ਸਹਿਕਾਰੀ ਸਭਾਵਾਂ, ਸਹਿਕਾਰੀ ਖੰਡ ਮਿੱਲਾਂ ਅਤੇ ਮਾਰਕਫੈਡ ਵਰਗੇ ਖੇਤੀ ਵਪਾਰਕ ਅਦਾਰੇ ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੀ ਭੇਂਟ ਚਾੜ੍ਹ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ। ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣ ਰਹੇ ਕੁਝ ਕਿਸਾਨ ਪੱਖੀ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦਾ ਹੇਠਾਂ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਕਰਨ ਦਾ ਜਤਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀ ਉਨਤੀ ਲਈ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਰੋਲ ਨਿਭਾਇਆ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਨੇ ਨਵੇਂ ਉੱਨਤ ਅਤੇ ਵਧੇਰੇ ਝਾੜ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਬੀਜਾਂ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਕੱਢੀਆਂ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਭਰਸੋਯੋਗ ਅਤੇ ਸਸਤੇ ਬੀਜ ਸਪਲਾਈ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਪਸ਼ੂਧਨ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਨਸਲਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਕੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਹਾਇਕ ਧੰਦੇ ਡੇਅਰੀ ਫਾਰਮਿੰਗ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁਲਤ ਕੀਤਾ। ਹਰੇ ਇਨਕਲਾਬ ਵਾਲੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿਚ ਇਹਨਾਂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਦਾ ਰੋਲ ਬਹੁਤ ਉਘਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਕੰਮ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀ ਫਾਰਮਾਂ ਲਈ ਵੱਡੀ ਪੱਧਰ ਤੇ ਜਮੀਨਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਖੋਜਾਂ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਫੰਡ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਵਾਏ। ਪਰ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਰਾਹੀਂ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਤਬਾਹੀ ਵੱਲ ਧੱਕਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲੋੜੀਂਦੇ ਫੰਡ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਅਤੇ ਉਹ ਗੰਭੀਰ ਮਾਲੀ ਸੰਕਟ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਨਵੇਂ ਅਤੇ ਸੁਧਰੇ ਬੀਜਾਂ ਅਤੇ ਚੰਗੀਆਂ ਪਸ਼ੂ ਨਸਲਾਂ ਦੀਆਂ ਖੋਜਾਂ ਲਗਭਗ ਬੰਦ ਹਨ। ਬੀਜਾਂ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਿੱਜੀ ਬੀਜ ਉਤਪਾਦਕਾਂ 'ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਨਰਮੇ, ਮੱਕੀ, ਸਬਜੀਆਂ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਇਹ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਤੇਜੀ ਨਾਲ ਵਾਪਰੀ ਹੈ। ਬੀ.ਟੀ. ਕਾਟਨ ਦੇ ਬੀਜ 'ਤੇ ਮੋਨਸੈਂਟੋ ਕੰਪਨੀ ਦਾ ਮੁਕੰਮਲ ਕਬਜਾ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਖੇਤੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਮੱਕੀ ਖੋਜ ਕੇਂਦਰ ਲਈ ਮੋਨਸੈਂਟੋ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਹ ਨਿੱਜੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਬੀਜ ਬਹੁਤ ਮਹਿੰਗੇ ਅਤੇ ਗੈਰ ਭਰੋਸੇਯੋਗ ਨਿਕਲਦੇ ਹਨ। ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਮਟਰਾਂ ਦਾ ਬੀਜ 50 ਰੁਪਏ ਕਿਲੋ ਦੀ ਥਾਂ 250 ਰੁਪਏ ਕਿਲੋ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਜੋ ਵੱਡੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਜਾਅਲੀ ਸਾਬਤ ਹੋਇਆ। ਕਿਸਾਨ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਦਬਾਅ ਹੇਠਾਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਮਿਲ ਸਕਿਆ। ਬੀਜਾਂ ਤੇ ਵੱਡੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਮੁਕੰਮਲ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਜੈਨੀਟੀਕਲੀ ਮਾਡੀਫਾਈਡ ਸੀਡਜ ਲਿਆਂਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਖੁਰਾਕੀ ਵਸਤਾਂ ਸਰ੍ਹੋਂ, ਬੈਂਗਣ ਅਤੇ ਹੋਰ ਫਲ ਸਬਜੀਆਂ ਵਿਚ ਆਉਣ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਤੇ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਵੇਗਾ।
 
ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਮਹਿਕਮਾ  
ਖੇਤੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਖੋਜਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸਾਨਾਂ ਤੱਕ ਲੈ ਜਾਣ ਦਾ ਕੰਮ ਹਰ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿਚ ਸਰਕਾਰੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਮਹਿਕਮਾ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਅਧਾਰਤ ਬੁਨਿਆਦੀ ਅਗਵਾਈ ਟਰੇਨਿੰਗ ਕੈਂਪ ਲਾ ਕੇ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ। ਨਵੇਂ ਖੇਤੀ ਸੰਦਾਂ ਦੀ ਕਾਢ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ। ਫਸਲਾਂ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਲੱਗਣ 'ਤੇ ਉਸਦੇ ਇਲਾਜ ਲਈ ਇਸ ਮਹਿਕਮੇਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਕਿਸਾਨ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਨਵੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਵੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਹਸੱਤਹੀਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਮਹਿਕਮੇ ਵਿਚ ਨਵੀਂ ਭਰਤੀ ਬੰਦ ਹੈ ਅਤੇ ਅਨੇਕਾਂ ਅਸਾਮੀਆਂ ਖਾਲੀ ਪਈਆਂ ਹਨ। ਇਕ ਇਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨੂੰ ਕਈ ਕਈ ਬਲਾਕਾਂ ਦਾ ਚਾਰਜ ਦਿੱਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਹੇਠਲੇ ਅਮਲੇ ਦੀ ਹੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਘਾਟ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ ਖੇਤੀ ਗਿਆਨ ਦੇ ਪਸਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਲਗਭਗ ਠੱਪ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ।
ਸਹਿਕਾਰੀ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦੀ ਤਬਾਹੀ
ਭਾਰਤ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਛੋਟੀ ਮਾਲਕੀ ਵਾਲੀ ਖੇਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਦੀ ਲਹਿਰ ਦੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਭੂਮਿਕਾ ਸੀ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭਕ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਲਹਿਰ ਨੇ ਖੇਤੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਕਾਫੀ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਇਆ। ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਖੁੱਲ੍ਹੀਆਂ ਕਰਜਾ ਸਭਾਵਾਂ ਵਲੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਸਤਾ ਫਸਲੀ ਕਰਜਾ ਬੜੀ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਇਹਨਾਂ ਵਲੋਂ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਖੇਤੀ ਲਈ ਕੀਟਨਾਸ਼ਕ ਦਵਾਈਆਂ, ਖਾਦਾਂ ਅਤੇ ਵਾਢੀ ਲਈ ਸੰਦ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਵਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਖੇਤੀ ਅਧਾਰਤ ਸਨਅਤਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਵਿਚ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਲਹਿਰ ਨੇ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਪਾਇਆ। ਇਸਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਉਘੜਵੀਂ ਮਿਸਾਲ ਸੋਲਾ ਸਹਿਕਾਰੀ ਮਿੱਲਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਮਿੱਲਾਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਜਮੀਨਾਂ ਖੁਸ਼ੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦਿੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਸਰਮਾਇਆ ਵੀ ਦਿੱਤਾ। ਇਹਨਾਂ ਮਿੱਲਾਂ ਵਿਚ ਇਲਾਕੇ ਦੇ ਕਿਸਾਨ ਹਿੱਸੇਦਾਰ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਬੰਧਕੀ ਕਮੇਟੀਆਂ ਦੀਆਂ ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਚੋਣਾਂ ਕਰਾਉਣ ਦਾ ਡਰਾਮਾ ਵੀ ਰਚਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਖੇਤੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਰਮਾਏ ਦਾ ਦਖਲ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਹੋ ਰਿਹਾ ਸੀ ਦੀਆਂ ਬਰੀਕੀਆਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਾਲੇ ਖੇਤੀ ਆਰਥਕ ਮਾਹਰ ਸਦਾ ਇਸ ਗੱਲ 'ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੰਦੇ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਅਤੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇ ਅਤੇ ਇਸਨੂੰ ਫਸਲਾਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਅਤੇ ਮੰਡੀਕਰਨ ਵਿਚ ਵੀ ਲਿਆਂਦਾ ਜਾਵੇ।
ਪਰ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਲਹਿਰ ਦੀ ਪ੍ਰਫੁੱਲਤਾ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸਰਮਾਏਦਾਰ-ਜਗੀਰਦਾਰ ਆਰਥਕ ਰਾਜਨੀਤਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਮੁਖਧਾਰਾ ਵਿਚ ਅੜਿਕਾ ਸਮਝੀ ਜਾਂਦੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਛੋਟੀ ਅਤੇ ਦਰਮਿਆਨੀ ਕਿਸਾਨੀ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਢਾਂਚੇ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਅਧਾਰਤ ਸਨਅਤਾਂ ਦੀ ਤਬਾਹੀ ਇਕ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸ਼ਰਤ ਹੈ। ਆਪਣੇ ਇਸ ਨਿਸ਼ਾਨੇ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਕੇਂਦਰ ਅਤੇ ਸੂਬਾਈ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਬਲੀ-ਵੇਦੀ 'ਤੇ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਲਹਿਰ ਨੂੰ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਸਹਿਕਾਰੀ ਸੋਸਾਇਟੀਆਂ ਵਿਚ ਫੈਲੇ ਭਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਮਹਿਕਮੇਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀ, ਸਹਿਕਾਰੀ ਸਭਾਵਾਂ ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਅਤੇ ਭਰਿਸ਼ਟ ਪ੍ਰਬੰਧਕੀ ਕਮੇਟੀਆਂ ਵਲੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ ਭਾਰੀ ਲੁੱਟ ਕਾਰਨ 80-90 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਸਹਿਕਾਰੀ ਸਭਾਵਾਂ ਬੰਦ ਹਨ ਜਾਂ ਬੰਦ ਹੋਣ ਦੇ ਕੰਢੇ 'ਤੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਸਭਾਵਾਂ ਵਿਚ ਕਰੋੜਾਂ ਰੁਪਏ ਦੇ ਜਾਅਲੀ ਕਰਜ਼ੇ ਅਨੇਕਾਂ ਗਰੀਬਾਂ ਅਤੇ ਭੋਲੇ ਭਾਲੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਨਾਂਅ ਪਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ। ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ 16 ਸਹਿਕਾਰੀ ਖੰਡ ਮਿੱਲਾਂ ਵਿਚ 7 ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਬੰਦ ਹਨ। ਬਾਕੀ ਰਹਿੰਦੀਆਂ 9 ਵੀ ਬੰਦ ਹੋਣ ਦੇ ਕੰਢੇ 'ਤੇ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਆਧੁਨੀਕੀਕਰਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਮਨਮਰਜੀ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਖੰਡ ਮਿੱਲਾਂ ਦੇ ਗਲਵੱਢਵੇਂ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ।
 
ਬਿਜਲੀ ਅਤੇ ਨਹਿਰੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਤਬਾਹੀ  
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਖੇਤੀ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਬਿਜਲੀ ਅਤੇ ਨਹਿਰੀ ਪਾਣੀ ਨੇ ਵੱਡੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਹੈ। ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਆਰੰਭਕ ਦੌਰ ਵਿਚ ਖੇਤੀ ਲਈ ਬਿਜਲੀ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਤੇਜੀ ਨਾਲ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀ ਗਈ। ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਖਰਚੇ ਤੇ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਬਿਜਲੀ ਕੁਨੈਕਸ਼ਨ ਮਿਲ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਜਿਸ ਨਾਲ ਟਿਊਬਵੈਲਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬੜੀ ਤੇਜੀ ਨਾਲ ਵਧੀ ਅਤੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਰੇਤਲੇ ਅਤੇ ਉਚੇ ਟਿੱਬਿਆਂ ਵਾਲੇ ਖੇਤਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਖੇਤੀ ਲਈ ਪਾਣੀ ਮਿਲਣ ਲੱਗ ਪਿਆ। ਪਰ ਸਹਿਜੇ ਸਹਿਜੇ ਇਹ ਸਿਲਸਿਲਾ ਖਤਮ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ। ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਆਰਥਕ ਨੀਤੀਆਂ ਕਰਕੇ ਬਿਜਲੀ ਬੋਰਡ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਹੁਣ ਬਿਜਲੀ ਕੁਨੈਕਸ਼ਨ ਬੜੀ ਹੀ ਮੁਸ਼ਕਲ ਨਾਲ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਆਰਥਕ ਸਮਰਥਾ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਵੱਧ ਰਕਮਾਂ ਤਾਰਨੀਆਂ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਸਾਲ ਵਿਚ ਢਾਈ ਏਕੜ ਦੀ ਮਾਲਕੀ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਡੇਢ ਲੱਖ ਤੋਂ ਦੋ ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਤਾਰਨੇ ਪਏ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆੜ੍ਹਤੀਆਂ ਤੋਂ ਮਹਿੰਗੇ ਕਰਜੇ ਲੈ ਕੇ ਤਾਰੇ ਹਨ। ਇਸ ਮਾਲੀ ਭਾਰ ਨਾਲ ਕਿਸਾਨੀ ਹੋਰ ਤਬਾਹੀ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਧੱਕੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ।
ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖੇਤੀ ਦੀ ਸਿੰਚਾਈ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੰਨੇ ਪ੍ਰਮੰਨੇ ਨਹਿਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਤਹਿਸ ਨਹਿਸ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਨਹਿਰੀ ਸਿੰਚਾਈ ਦਾ ਖੇਤਰ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਘਟਿਆ ਹੈ। ਮਾਝੇ ਅਤੇ ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਨੁਕਸਾਨ ਪੁੱਜਾ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਵਧੇਰੇ ਰਜਬਾਹੇ ਅਤੇ ਕੱਸੀਆਂ ਬੰਦ ਪਈਆਂ ਹਨ ਜਾਂ ਬਹੁਤ ਥੋੜੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸਦੀ ਦੇਖ ਭਾਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਨਹਿਰੀ ਵਿਭਾਗ ਵਿਚ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੀ ਬਹੁਤ ਘਾਟ ਹੈ। ਨਹਿਰੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਚੋਰੀ ਰੋਕਣ ਅਤੇ ਰਜਬਾਹਿਆਂ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਲਈ ਰੱਖੇ ਜਾਂਦੇ ਬੇਲਦਾਰਾਂ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਸਰਕਾਰ ਨਹਿਰੀ ਅਤੇ ਰਜਬਾਹਿਆਂ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਅਤੇ ਸਫਾਈ ਲਈ ਬਿਲਕੁਲ ਫੰਡ ਮੁਹੱਈਆ ਨਹੀਂ ਕਰਦੀ। ਨਹਿਰੀ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਵੱਡੇ ਵੱਡੇ ਦਫਤਰ ਅਤੇ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੀਆਂ ਖਾਲੀ ਪਈਆਂ ਰਿਹਾਇਸ਼ੀ ਕਲੋਨੀਆਂ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਤਬਾਹ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਨਹਿਰੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੀ ਮੂੰਹ ਬੋਲਦੀ ਤਸਵੀਰ ਹਨ।
 
ਮੰਡੀਕਰਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦਾ ਭੋਗ ਪਾਉਣਾ  
ਕੇਂਦਰ ਅਤੇ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦੀ ਝੰਡਾਬਰਦਾਰ ਬਣਨ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਉਸਾਰੇ ਗਏ ਕਿਸਾਨ ਪੱਖੀ ਮੰਡੀਕਰਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਲਈ ਲਗਾਤਾਰ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਜਤਨਾਂ ਨੇ ਖੇਤੀ ਕਿੱਤੇ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਨੁਕਸਾਨ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਕਿਸਾਨ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਕਿੱਤੇ ਵਿਰੋਧੀ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਸ਼੍ਰੀ ਨਰਸਿਮ੍ਹਾ ਰਾਉ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਬਣਨ ਵਾਲੀ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸਮੇਂ ਸਮੇਂ 'ਤੇ ਬਣਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਕੇਂਦਰੀ ਅਤੇ ਸੂਬਾ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਪੂਰੀ ਦ੍ਰਿੜਤਾ ਨਾਲ ਨੰਗਾ ਚਿੱਟਾ ਹਿੱਸਾ ਪਾਇਆ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਜਤਨਾਂ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਹਾਇਕ ਕੀਮਤਾਂ 'ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਕਿਸਾਨੀ ਜਿਣਸਾਂ ਖਰੀਦੀਆਂ ਜਾਣ, ਹਰ ਜਿਣਸ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਨਿਸ਼ਚਤ ਮੰਡੀ ਵਿਚ ਵਿਕਰੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਖਰੀਦਦਾਰਾਂ ਵਲੋਂ ਨਿੱਜੀ ਖਰੀਦ ਕਰਨ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾਉਂਦਾ ਇਕ ਮਜ਼ਬੂਤ ਢਾਂਚਾ ਉਸਾਰਿਆ ਗਿਆ। ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੰਡੀ ਬੋਰਡ ਨੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜਿਣਸਾਂ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਹਾਇਕ ਕੀਮਤ ਤੇ ਖਰੀਦੇ ਜਾਣ ਦੀ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਜਾਮਨੀ ਦੇਣ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਕਿਸਾਨ ਅਰਾਮ ਘਰਾਂ, ਸੂਬਾ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਕਿਸਾਨ ਭਵਨ ਵਰਗੇ ਅਦਾਰਿਆਂ ਦੀ ਉਸਾਰੀ ਕੀਤੀ। ਮੰਡੀ ਬੋਰਡ ਰਾਹੀਂ ਉਗਰਾਹੇ ਗਏ 2% ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਪੇਂਡੂ ਵਿਕਾਸ ਫੰਡ ਰਾਹੀਂ, ਪੇਂਡੂ ਸੜਕਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਖੇਤੀ ਅਧਾਰਤ ਸਨਅਤਾਂ ਉਸਾਰੇ ਜਾਣ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰਨ ਲਈ ਮਾਰਕਫੈਡ ਵਰਗਾ ਖੇਤੀ ਅਧਾਰਤ ਉਦਯੋਗਕ ਅਦਾਰਾ ਉਸਾਰਿਆ ਗਿਆ। ਜੋ ਬਾਸਮਤੀ ਆਪ ਖਰੀਦਕੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ੈਲਰਾਂ 'ਤੇ ਚੌਲ ਕੱਢਕੇ, ਚੌਲਾਂ ਦੀ ਬਰਾਮਦ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਫਲਾਂ ਅਤੇ ਸਬਜੀਆਂ ਨੂੰ ਡੱਬਾ ਬੰਦ ਕਰਨ ਅਤੇ ਸੋਹਨਾ ਨਾਂਅ ਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਨਸਪਤੀ ਘਿਉ ਬਣਾਉਣ ਦਾ ਨਾਮਣਾ ਵੀ ਖੱਟਿਆ।
ਪਰ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨਾਲ ਪੁਰਾਣਾ ਮੰਡੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤਹਿਸ ਨਹਿਸ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਫਸਲਾਂ ਦੀ ਖਰੀਦ ਵਿਚ ਸਰਕਾਰ ਲਗਾਤਾਰ ਪਿੱਛੇ ਹਟ ਰਹੀ ਹੈ। ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਮਰਥਨ ਮੁੱਲ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਸਿਰਫ ਕਾਗਜਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ। ਅਮਲੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੀਆਂ ਜਿਣਸਾਂ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਕੀਮਤਾਂ 'ਤੇ ਵੇਚਣੀਆਂ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਬਾਸਮਤੀ, ਪਿਆਜ, ਆਲੂ, ਲੱਕੜ ਅਤੇ ਹੋਰ ਇਸ ਅਨੇਕਾਂ ਵਪਾਰਕ ਫਸਲਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਸਰਕਾਰੀ ਖਰੀਦ ਦੇ ਘੇਰੇ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਹਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੀ ਇਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਲੁੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਮੱਕੀ, ਦਾਲਾਂ ਅਤੇ ਸੂਰਜਮੁਖੀ ਦਾ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਮਰਥਨ ਮੁੱਲ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਮਿਲਦਾ, ਬਿਲਕੁਲ ਨਹੀਂ। ਕੇਂਦਰ ਵਲੋਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਗਏ ਨਵੇਂ ਖੇਤੀ ਉਪਜ ਮੰਡੀਕਰਨ ਐਕਟ ਰਾਹੀਂ ਦੇਸੀ ਬਦੇਸ਼ੀ ਕਾਰਪੋਰੇਟ ਘਰਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਨਿੱਜੀ ਖਰੀਦ ਕਰਨ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਦੇ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ। ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਇਸਨੂੰ ਕਾਗਜਾਂ ਵਿਚ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਤਾਂ ਅਜੇ ਤੱਕ ਝਿਜਕ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਰ ਅਮਲ ਵਿਚ ਇਸਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ।
ਕਿਸਾਨੀ ਜਿਣਸਾਂ ਦੀ ਖਰੀਦ ਡਾਕਟਰ ਸਵਾਮੀਨਾਥਨ ਦੀਆਂ ਸਿਫਾਰਿਸ਼ਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਖਰਚੇ ਨਾਲੋਂ ਡਿਊਢੇ ਭਾਅ 'ਤੇ ਖਰੀਦੇ ਜਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਦੀ ਹੈ, ਸਰਕਾਰ ਤਾਂ ਆਪਣੀ ਮਰਜੀ ਨਾਲ ਤਹਿ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਸਮਰਥਨ ਮੁੱਲ ਦੇਣ ਤੋਂ ਵੀ ਪਿੱਛੇ ਹਟ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਸਬੰਧ ਵਿਚ ਦਸੰਬਰ 2015 ਵਿਚ ਸੰਸਾਰ ਵਪਾਰ ਸੰਸਥਾ ਦੀ ਨੈਰੋਬੀ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਸੰਸਾਰ ਕਾਨਫਰੰਸ ਵਿਚ 2017 ਪਿਛੋਂ ਕਿਸਾਨੀ ਜਿਣਸਾਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰੀ ਖਰੀਦ ਅਤੇ ਖਰੀਦੇ ਅਨਾਜ ਦਾ ਭੰਡਾਰਨ ਕਰਕੇ ਗਰੀਬ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਸਤਾ ਅਨਾਜ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾਉਂਦੇ ਸਮਝੌਤੇ ਤੇ ਦਸਤਖਤ ਕਰਨਾ ਕੁਝ ਹੱਦ ਤੱਕ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚਲੇ ਕਿਸਾਨ ਪੱਖੀ ਮੰਡੀਕਰਨ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਕਫਨ ਵਿਚ ਆਖਰੀ ਕਿੱਲ ਠੋਕਣਾ ਹੈ। ਇਥੇ ਇਹ ਦੱਸਣਾ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਤਬਾਹਕੁਨ ਫੈਸਲਾ 1991 ਤੋਂ ਆਰੰਭ ਹੋਈਆਂ ਨਵਉਦਾਰਵਾਦੀ ਨੀਤੀਆਂ ਦਾ ਮੰਤਕੀ ਸਿੱਟਾ ਹੈ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕੇਂਦਰ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਪੂਰੀ ਧੱਕੇਸ਼ਾਹੀ ਨਾਲ ਲਾਗੂ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ। ਸ਼੍ਰੀ ਸ਼ਾਂਤਾ ਕੁਮਾਰ ਜੋ ਭਾਰਤੀ ਜਨਤਾ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਵੱਡੇ ਆਗੂ ਹਨ ਵਲੋਂ ਐਫ.ਸੀ.ਆਈ. ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਦੀ ਸਿਫਾਰਸ਼ ਖੇਤੀ ਸੈਕਟਰ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਢਾਂਚੇ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਦਾ ਵੱਡਾ ਦੇਸ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਕਦਮ ਹੈ।
ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਇਸ ਨੀਤੀ ਨਾਲ ਖੇਤੀ ਧੰਦਾ ਹੋਰ ਘਾਟੇਵੰਦਾ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ। ਛੋਟੀ ਕਿਸਾਨੀ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਜਾਲ ਵਿਚ ਫਸੇਗੀ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਅਣਮਨੁੱਖੀ ਵਰਤਾਰਾ ਵਧੇਗਾ, ਛੋਟਾ ਕਿਸਾਨ ਖੇਤੀ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਨਾਲ ਨੌਜਵਾਨ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਕਈ ਗਲਤ ਸਮਾਜਕ ਰੁਝਾਨਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਵੇਗਾ। ਇਸ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਅੰਨ ਸੁਰੱਖਿਅਤਾ ਨੂੰ ਗੰਭੀਰ ਖਤਰੇ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਣਗੇ।
ਜਮਹੂਰੀ ਕਿਸਾਨ ਸਭਾ ਵਲੋਂ ਇਸ ਕਠਿਨ ਹਾਲਾਤ ਵਿਚ ਕਿਸਾਨਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਨੌਜਵਾਨ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪੁਰਜ਼ੋਰ ਅਪੀਲ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਉਪਰੋਕਤ ਕਿਸਾਨ ਵਿਰੋਧੀ ਕਦਮਾਂ ਦਾ ਬਹਾਦਰੀ ਨਾਲ ਟਾਕਰਾ ਕਰਨ ਲਈ ਲਾਮਬੰਦ ਹੋਣ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਖੁਦਕੁਸ਼ੀਆ ਦਾ ਰਾਹ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਕਿਸਾਨੀ ਦੀਆਂ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਜਾਨਹੂਲਵਾਂ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਅਸੀਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸੰਘਰਸ਼ਸ਼ੀਲ ਕਿਸਾਨ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਨੂੰ ਹਾਰਦਿਕ ਅਪੀਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਕਿਸਾਨੀ ਹਿਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਦੁਬਾਰਾ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਾਂਝਾ ਮੋਰਚਾ ਉਸਾਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਸਾਂਝੇ ਮੋਰਚੇ ਤੋੜਨ ਨਾਲ ਖੱਜਲ ਖੁਆਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਕਿਸੇ ਦੇ ਵੀ ਪੱਲੇ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਪੈਣਾ। ਇਤਿਹਾਸ ਤੋਂ ਸਬਕ ਸਿਖਣੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ।