Monday, 31 October 2016

आर.एम.पी.आई की स्थापना; पृष्ठभूमि तथा भविष्य नक्शा

17 सितम्बर 2016 को देश-भगत यादगार कंप्लैक्स जालन्धर (पंजाब) के ‘विष्णु गणेश पिंगले हाल’ में, ‘रैवोल्यिूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ (भारतीय इंकलाबी माकर््सवादी पार्टी (आरएमपीआई) का किया गया गठन, निश्चय ही यह एक सम्भावना भरपूर घटना है। इस उद्देश्य के लिये आयोजित की गई स्थापना-कान्फ्रेंस में केरल,तामिलनाडू, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा चंडीगढ -(यू.टी.) आदि 7 राज्यों के लगभग 250 कम्युनिस्ट कार्यकर्ता शामिल हुए। आंध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा दिल्ली से भी साथियों द्वारा इस कान्फैंस के मूल उद्देश्यों से सहमति जताते हुए शुभकामना संदेश प्राप्त हुए हैं। इस नई बनी पार्टी ने अपनी समूची सामाजिक-राजनीतिक तथा सांगठनिक गतिविधियों को चलाने के लिये हमेशा माकर््सवादी संसार दृष्टिकोण से मार्गदर्शन लेने का प्रण किया है। यह ऐलान भी किया गया है कि भारतीय जनसमुहों को हर प्रकार की सामाजिक-आर्थिक कठिनाईयों से मुक्त करने के लिये, बीते समय के दौरान भारतीय जन-पक्षीय विद्वानों तथा राजनीतिक-योद्धाओं द्वारा डाले गये बहुमुल्य सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक योगदान से भी उचित रहनुमाई ली जायेगी। इस तरह से यह पार्टी सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक तथा संस्कृतिक क्षेत्रों में, माक्र्सवाद-लैनिनवाद की सैद्धांतिक स्थापनाओं को भारतीय अवस्थाओं के अनुसार रचनात्मक ढंग से लागु करते हुए, यहां जातपात, संसाधनों के अन्यायपूर्ण वितरण तथा हर तरह के उत्पीडऩ से मुक्त, समानता पर आधारित, समाजवादी समाज कायम करने के लिये सतत संघर्षशील रहेगी।  इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस नई पार्टी का गठन, चुनाव के मौसम में चुनावी हिसाब-किताब को ध्यान में रख कर, कुकरमुत्तों की तरह पैदा हो रहे राजनीतिक दलों जैसी घटना नहीं है; बल्कि यह तो भारत के गरीबों- सर्वहारा वर्ग की मुक्ति के लिये चल रही जद्दोजहद के तीखे चढाव-उतराव वाले लम्बे तथा संकटों भरे मार्ग पर, संघर्षशील तथा समविचारक लोगों के साथ मिलकर, जीवनभर कदम मिला कर आगे बढऩे की वचबद्धता है। इसलिये नया क्रांतिकारी दल ‘रैवोल्यिूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया’ (भारतीय क्रांतिकारी माकर््सवादी पार्टी) की स्थापना कान्फ्रैंस ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इसमें एकत्रित समस्त पक्षों के अधिकतर नेता-कार्यकर्ता सी.पी.आई.(एम) तथा उसके नेतृत्व में काम करते जन-संगठनों के अग्रणी पक्तियों के नेता अथवा सरगर्म कार्यकत्र्ता रहे हैं। कुछेक तो 1964 से पहले अविभाजित सीपीआई के समय से पार्टी सदस्य-नेता रहे हैं। सारे ही उस पार्टी की राजनीतिक लाइन के बारे में पैदा हुए गम्भीर सैद्धांतिक मतभेदों अथवा काबिज नेतृत्व की गैर-माक्र्सवादी तथा नुक्सदार कार्यप्रणाली के कारण उस पार्टी को त्याग कर, समय समय पर बाहर आये थे। वो निराश हो कर अपने घरों में नहीं बैठे तथा न ही किसी बुर्जआ पार्टी में शामिल हुए, बल्कि अपनी-अपनी स्थिति तथा सामथ्र्य के अनुसार लगातार इन्कलाबी कार्यों व संघर्षों में जुटे रहे हैं। वो ऐसे राष्ट्रीय स्तर के मंच की तलाश में भी रहे है जो कि भारतीय आवाम की दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही मुसीबतों के खात्मे के लिये सही, सार्थक तथा विश्वसनीय राजनीतिक दिशा प्रदर्शित करने की हामी भरता हो। इस तरह यहां, वे चुनावी अवसरवाद अथवा राजनीतिक तिकड़मबाजी से अपने निजी हित साधने के लिये नहीं आये; बल्कि मेहनतकश लोगों के अधिकारों व हितों के लिये कुछ कर गुजरने के इरादे तथा उद्देश्य से प्रेरित होकर एकजुट हुए हैं। इसलिये इस पार्टी से अच्छी सम्भावनाओं की आशा है, क्योंकि सामुहिक सह्ृदयता तथा दृढ़ इरादा भी जन-पक्षीय सम्भावनाओं को उभारने में अक्सर अच्छी भूमिका निभाता है।           
बेशक, भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। पहले भी इस आंदोलन के नेताओं के दायें अथवा बाएं भटकाव का शिकार हो कर, क्रांतिकारी रास्ते से भटक जाने के कारण ऐसे अवसर पैदा होते रहे हैं। जिससे इस आंदोलन में दरारें उभरती रहीं हैं। 1964 में सी.पी.आई. से अलग हो कर सी.पी.आई.(एम) के बनने से भी यहां बड़े सैद्धान्तिक भ्रम पैदा हुए थे । श्री एस.ऐ. डांगे के नेतृत्व में सी.पी.आई. अपने ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक इन्कलाब’ के प्रोग्राम अधीन भारत के शासक वर्ग-पूंजीपति, जगीरदारों, की प्रतिनिधित्व करती प्रमुख राजनीतिक पार्टी-कांग्रेस पार्टी से अपने सहयोग को निरन्तर बढ़ाती गई जिससे कांग्रेस पर यह दल अधिक से अधिक निर्भर होता गया। जबकि सी.पी.आई.(एम) ने ‘जनवादी इन्कलाब’ का आह्वान किया तथा समय की जरूरतों के अनुसार, जनता की लामबंदी पर  आधारित कुर्बानियों भरपूर जन संघर्ष संगठित किये तथा अपने जन-आधार के अनुसार संसदीय संघर्षों में शमुलियत भी जारी रखी। आपातकाल के काले दौर तक पँहुचते-पँहुचते, एक दशक बीतते-बीतते दोनों प्रकार की राजनीतिक लाइनों के मध्य अन्तर स्पष्ट दिखाई देने लगा। भारत के राजनीतिक दृश्यपटल से ‘माँ—पार्टी’ कहलाती सी.पी.आई. हाशिये पर चली गई। जबकि सी.पी.आई(एम) ने देश के राजनीतिक परिदृश्य पर वामपक्ष को एक नई राजनीतिक शक्ति के तौर पर स्थापित कर दिया। इसी काल के दौरान ही दुस्साहसवाद के वाम भटकाव  का शिकार कुछ तत्वों ने भी सी.पी.आई.(एम) को जुझारू जन-संघर्षों की क्रांतिकारी पटड़ी से उतार कर संकीर्णतावादी दुस्साहसवादी के अतिवाम भटकाव पर अग्रसर करने के जोरदार प्रयत्न किये; जिसके दुखदायी परिणाम अब अधिक व्याख्या की मांग नहीं करते। पर, अब सी.पी.आई(एम) पर काबिज नेतृत्व के संसदीय  अवसरवाद के कीचड़ में बुरी तरह धंसते जाने के कारण यह पार्टी भी दो राज्यों में वामपक्ष की सरकारों के नेतृत्व में होने के बावजूद राष्ट्रीय दृष्टिकोण से न केवल स्वयं तेजी से अप्रासंगिक  होती जा रही है, बल्कि देश में कम्युनिस्ट आंदोलन की विश्वसनीयता को भी भारी पतन की ओर ले जाने का साधन बन रही है। ऐसी परिस्थितियों में, सही क्रांतिकारी दिशा को समर्पित , मजदूर वर्ग के राजनीतिक पक्ष को खड़ा करके शोषित मेहनतकश जनता के लिये कोई उम्मीद का दीप जगाना, समय की एक अहम तथा ऐतिहासिक आवश्यकता है। इसी पृष्ठ्भुमि में, माक्र्सवाद-लैनिनवाद की वैज्ञानिक समझदारी द्वारा प्रमाणित संग्रामी दिशा-निर्देशों के अनुसार, संसदीय तथा गैर-संसदीय सघंर्षों का माकूल मिश्रण करते हुए किन्तु गैर-संसदीय सघंर्षों को प्रमुखता देने के दावपेंचों के प्रति सम्पूर्ण सह्ृदयता का दम भरते साथियों द्वारा, पहलकदमी करते, ऐसे ठोस प्रयास को स्वागतम तो कहा ही जाना चाहिये। इस सब के अतिरिक्त, अब तो देश की बाहरमुखी सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी दिन प्रति दिन ज्यादा चिन्ताजनक होती जा रही है। व्यापक रूप में फैली हुई गरीबी, महंगाई तथा बेरोजगारी ने मिलकर आम जन का जीना हराम कर दिया है। बड़ी संख्या में देशवासी भरपेट भोजन से वंचित हैं तथा न ही उनके पास सिर ढकने के लिये छत ही है। साफ-सुथरे तथा सेहतमंद आवासीय प्रबंध तो सपनों की बात हैं।  करोड़ों देशवासी न तो अपने बच्चों को रोजगारयोग्य शिक्षा दिलवा पाने में सक्षम हैं तथा न ही बिमारी की हालत में उचित इलाज करवा पाने में समर्थ हैं। यहां तक कि करोड़ों दरिद्रनारायणों को साफ शुद्ध जल भी मुअस्सर नहीं। जबकि मु_ी भर अमीर-कारपोरेट घराने, बडे व्यापारी तथा बड़े भूपति, सत्ताधारी राजनीतिज्ञों के परिवार तथा सगे-सम्बंधी तथा अफसरशाह दिन-प्रतिदिन मालामाल होते जा रहे हैं। अमीरी व गरीबी के मध्य रोज बढ़ता जा रहा अन्तर, नित्य नई प्रकार की सामाजिक समस्याओं व विषमताओं को जन्म दे रहा है। देश का शासक वर्ग तथा उसके हितों की रक्षा करने वाली मोदी सरकार पूरी तरह से सामराज्यवादी शक्तियों के नीचे लग चुकी है। यहां तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा भी अब इनके हाथों में सुरक्षित नहीं रही। जनतांत्रिक सस्थाओं-परम्पराओं का लगातार ह्रास किया जा रहा है। सामराज्यवादी अंग्रेज के अन्नय भक्त  रहे तथा आज भी उसी चरित्र के अनुरूप कार्यरत संघ-परिवार का बोलबाला हो रहा है। एक ओर देश में सम्प्रदायिक तनाव बढ़ता जा रहा है व दूसरी ओर सांस्कृतिक पतन तेज हो रहा है। जिस के कारण अल्पसंख्यकों पर ही नहीं, बल्कि दलितों, औरतों, आदिवासियों और अन्य शोषित आवाम पर भी प्रशासनिक अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं व इन पर अति घिनौने हमले भी हो रहे हैं। इन सब त्रासदिक अवस्थायों का मुंह मोडऩे के लिये जरूरी है कि चुनाव के हिसाब-किताब पर निर्भर रहने की बजाय प्रथम, तत्काल प्रभावशाली जनशक्ति को संगठित करने की ओर अधिक से अधिक ध्यान दिया जाये। मेहनतकश जनसमुहों का जागरूक तथा संगठित होना इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये पहली शर्त है। इसके साथ ही, छोटे-मोटे सैद्धान्तिक मतभेदों के चलते बिखरी हुई, वाम शक्तियों की अमल में एकता निर्मित करने के लिये हर सम्भव उपाय किया जायें; दलित, अल्पसंख्यक, महिलाओं, आदिवासियों तथा अन्य पिछड़े जनसमुहों से हो रही ज्यादतियों के विरूद्ध जूझ रहे जन-आंदोलनों को तथा प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिये लड़ रहे लोगों को भी इस लड़ाकू जनशक्ति का अटूट अंग बनाया जाये। ऐसी अजेय जनशक्ति का निर्माण करके ही चुनावों की मौजूदा प्रणाली में से कोई सार्थक व जनहित परिणाम हासिल किये जा सकते हैं, संपूर्ण मौकापरस्ती पर आधारित बनाये गये गैर-सैद्धांतिक चुनावी गठजोड़ों से कदाचित नहीं।   
रैवोल्यूशनरी माक्र्ससिस्ट पार्टी आफ इंडिया (भारतीय इंकलाबी माकर््सवादी पार्टी) उपरोक्त खरी-इन्कलाबी दिशा पर पूरी मजबूती सहित पहराबरदारी करने का इकरार करती है। यह बात ठीक है कि इस मजबूती की असल परीक्षा तो भविष्य में, पार्टी के व्यवहारिक कार्यकलापों से ही होगी। परन्तु यहां हम इस पार्टी में शामिल हुई पंजाब में पिछले 15 सालों कार्यरत पार्टी के किरदार को जरूर इसके एक प्रमाण के तौर से देख सकते हैं। इस पक्ष द्वारा, सी.पी.आई. एम पंजाब के बैनर तले, हर प्रकार की ज्यादतियों तथा वहशी बदलाखोरी का मुकाबला करते हुए भी जिस तरह वामपंथी तथा संघर्षशील शक्तियों को एकजुट करने के लिये बार-बार प्रयास किये गए हैं, किसी भी प्रकार की राजनीतिक कमजोरी को अपने पास भी नहीं आने दिया, तथा जिस तरह वाम शक्तियों व मजदूरों, किसानों, खेत-मजदूरों, कर्मचारियों तथा नौजवान-विद्यार्थिओं संगठनों का सहयोग प्राप्त करके भिन्न भिन्न वर्गों के संयुक्त अन्दोलन संगठित करने के लिये सिरतोड़ यत्न किये हैं, वो सारे प्रयास उपरोक्त दिशा में हमारी मजबूती की ठोस गवाही देते हैं। ऐसी, हर पक्ष पर ठीक उतरती सार्थक व सिद्धांतों पर आधारित राजनीतिक पहुंच तो आगे भी लाजमी जारी रहेगी।  यदि चुनौतियों भरपूर बाहरमुखी जरूरतों की पूर्ति के लिये पार्टी को आवश्यक संख्या में बलिदानी काडर मिलते तथा विकसित होते रहे तो जरूरी ही यह पार्टी क्रांतिकारी संघर्षों के भविष्य के मार्ग पर नित्य नई मंजिलें तय करती हुई लाजमी तौर पर आगे की ओर कदम बढ़ाती जायेगी।       
- हरकंवल सिंह  (संपादकीय अक्तूबर 2016 अंक)

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