Tuesday, 3 December 2013

अक्टूबर क्रांति के सबक व दिशा-निर्देश

मंगत राम पासला

7 नवंबर 1917 का दिन (अक्टूबर क्रांति) दुनिया के इतिहास में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जाना जाता है। इस दिन, लाखों सालों के मानव इतिहास में, पहली बार सोवियत रूस में सत्ताधारी लुटेरे वर्गों से क्रांतिकारी ढंग से सत्ता हथिया कर मजदूर वर्ग ने खुद अपने हाथों में ली तथा मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट की समाप्ति वाली पहली समाजवादी व्यवस्था का आगाका संसार के नक्शे पर हुआ। यह घटना दोनों पक्षों के लिए अचंभित करने वाली थी। लुटेरे पक्षों के लिए यह इस रूप में अचंभित करने वाली थी कि युगों-युगों से उत्पादन साधनों पर उसके कब्जे का अंत व मजदूर वर्ग का एक शासक वर्ग के रूप में उभार, तथा विश्व भर की सदियों से लूटी जा रही जनता के लिए इस रूप में आश्चर्यजनक व अचंभित करने वाली घटना थी कि धरती पर मानवीय अस्तित्व के शुरूआती दौर से लेकर नवंबर 1917 तक इस प्रचलित धारणा का टूटना कि ‘‘राजाओं के पुत्रों ने ही राज करना होता है तथा घसियारों के पुत्रों ने घास ही छीलनी होती है।’’ यह इसके विपरीत हो गया तथा राजसत्ता पर मजदूरों किसानों का कब्जा स्थापित हो गया। क्योंकि नई व्यवस्था में जहां सब को काम करना होगा, वहां नि_ल्ले लुटेरे तत्वों को सहन नहीं किया जाएगा। इसीलिए अक्टूबर क्रांति ने दुनिया भर के पूंजीपतियों, सामंतों व धन कुबेरों की नींद उड़ा दी तथा अपने हाथों से श्रम करके भूख मिटाने वाले भाई लालो के घरों में नई आशा की ज्योति प्रज्जवलित की। 
सोवियत यूनियन ने जारशाही व पू्ंजीवाद का खात्मा करके मजदूर किसान की लड़ाकू व अटूट एकता के हथियार द्वारा पहली समाजवादी व्यवस्था में स्वस्थ समाज की नींव रखने में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी (बाल्शविक), जिसका नेतृत्व साथी वी.आई.लेनिन कर रहे थे, के झंडे के नीचे लाखों श्रमिकों, किसानों, औरतों व नौजवानों ने अपनी सरगर्म शिरकत द्वारा महत्त्वपूर्ण व शानदार भूमिका अदा की। सत्ताधारी दुश्मन वर्गों के हर दमन का मुकाबला पूरी दृढ़ता से प्रभावशाली व योजनाबद्ध ढंग से किया गया तथा इस क्रांतिकारी संघर्ष में असंख्य लोगों ने अपनी जानों की आहुति दी। 
नये जन्मे इस मजदूर राज को विश्व भर के लुटेरे पूंजीपति वर्ग ने जन्म लेते ही गला घोंटकर मारने का हर प्रयास किया। आर्थिक नाकाबंदी करके नए अंकुरित हो रहे इस पौधे को सुखाने की कोशिशें की गईं। सोवियत यूनियन के भीतरी दुश्मनों ने भी कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, समाजवाद के नव-जन्मे बच्चे को जहर देकर मारने की कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर घुसपैठ किये बैठे क्रांति विरोधी तत्वों ने पार्टी को ठीक वैज्ञानिक दिशा से भटकाकर पथभ्रष्ट करने का हर उपाय किया तथा क्रांतिकारी व सुयोग्य नेतृत्व पर हर संभव हमला करके उन्हें लोगों से अलग-थलग करने का घटिया से घटिया षड्य़ंत्र रचा। 
परंतु इन समस्त मुश्किलों, भडक़ाहटों व दुश्मन वर्गों के घातक हमलों को परास्त करते हुए सोवियत यूनियन ने लगभग 70 वर्ष समाजवादी व्यवस्था द्वारा अकेले सोवियत यूनियन के नागरिकों को भी हर तरह की लूट खसूट खत्म करके तथा घोर गरीबी व कंगाली से मुक्ति दिलाकर तेज आर्थिक विकास, सर्वपक्षीय उन्नति व उच्च जीवन स्तर ही प्रदान नहीं किया बल्कि विश्व भर में उठे आजादी संग्रामों तथा भिन्न-भिन्न देशों में आर्थिक लूट-खसूट की समाप्ति के लिए संघर्षशील ताकतों की भरपूर हौसला अफजाई व सहायता भी की। यह सोवियत यूनियन में स्थापित हुई समाजवादी व्यवस्था की शक्ति ही थी जिसने विश्व भर में गुलाम देशों को स्वतंत्रता की रौशनी दिखाई, हिटलर व उसके हमजोलियों के फाशीवादी इंजन को रोक लगाकर इस अमानवीय घटनाक्रम का खात्मा करने तथा एक मजबूत व शक्तिशाली विश्वव्यापी समाजवादी कैंप स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाजवादी सोवियत यूनियन में मेहनतकशों को दी गईं आर्थिक व सामाजिक सुविधाओं की रौशनी में पूंजीवादी देशों के सत्ताधारियों द्वारा भी अपने अपने देशों के श्रमिकों के लिए कुछ आर्थिक व सामाजिक सुविधाएं देने की घोषणाएं की गईं। इसके पीछे लुटेरे सत्ताधारी वर्गों के अंदर पैदा हुआ यह डर था कि कहीं पूंजीपति देशों के मेहनतकश समाजवादी व्यवस्था से प्रभावित होकर क्रांतिकारी संघर्षों के रास्ते पर न चल पड़ें। ‘समाजवाद के अंदर ही गरीबी अमीरी के बीच के अंतर की समाप्ति संभव है’, ‘मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट प्राकृतिक ही नहीं बल्कि मानव रचित है, जिसे क्रांतिकारी परिवर्तन द्वारा समाप्त करके समानता के सिद्धांत पर आधारित समाज का सृजन किया जा सकता है’, ‘लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था का खात्मा संभव व अटल है तथा सोवियत यूनियन उसकी ज्वलंत व जीवंत उदाहरण है’ आदि जैसे स्वस्थ विचार विश्व के बड़े भाग के लोगों के दिलो दिमाग में छा गए। अक्टूबर क्रांति मानव की मुक्ति का प्रतीक बनकर सदा-सदा के लिए मानवीय इतिहास के पन्नों पर गहरा उकर गया है। 
यह अग्रगामी व वाम सोच वाले समस्त पक्षों के लिए गहरी चिंता व विचार-विमर्श करने का विषय है कि निरंतर 70 दशकों बाद जिस देश मेें पूंजीवाद का खात्मा करके समाजवादी व्यवस्था की नींव रखी गई थी, उसी धरती पर समाजवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके पूंजीवादी लुटेरी व्यवस्था पुन: स्थापित कैसे हो गई है? श्रम शक्ति के प्रतीक लाल झंडे को उतार कर जारशाही का झंडा, जो लोगों पर जुल्म ढाने के कारण नफरत का चिन्ह बन गया था, मास्को के क्रैमलिन हाल पर फिर से फहरना कैसे संभव बना? विश्व भर के समूचे मजदूर वर्ग  व प्रगतिशील लोगों को इस घटना पर भारी अफसोस हुआ है। रूस में घटी उपरोक्त घटना को पूरी गहराई, गंभीरता व आत्म आलोचना के ढंग से वैज्ञानिक दृष्टि से देखना समझना होगा। इस विपरीत ऐतिहासिक घटना को जितनी गंभीरता से लुटेरे पक्षों ने विचारा व प्रचारा है, शायद माक्र्सवाद-लेनिनवाद का दम भरने वाली ताकतों ने इसकी उतनी संजीदगी व आलोचनात्मक दृष्टि से न तो समीक्षा की है तथा न ही इससे भविष्य के लिये उपयुक्त निष्कर्ष ही निकाले हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं पुन: न घटें।
अक्टूबर क्रांति की 96वीं वर्षगांठ पर यदि हम इस महत्त्वपूर्ण, अद्भुत व ऐतिहासिक घटना के जनक गर्व करने योग्य संघर्षों के पन्नों पर उकरे सच को ग्रहण कर सकें व उस पर अमल करने के लिए अधिक प्रतिबद्धता की घोषणा करें तथा जिन कारणों से क्रांतिकारी शक्तियों का यह धरती के उपर निर्मित स्वर्ग रूपी आर्थिक-सामाजिक ढांचा ताश के पत्तों की तरह ढह गया है, उन्हें चिन्हित करके भविष्य में उन्हें दरुस्त करें, तब ही 1917 में आए पहली समाजवादी क्रांति के प्रति वास्तविक रूप में सच्ची व पवित्र भावना का इजहार होगा। 
निस्संदेह, सोवियत यूनियन में समाजवाद को लगे धक्के माक्र्सवादी दर्शन की असफलता के कदाचित प्रतीक नहीं हैं बल्कि एक खास किस्म के समाजवादी ढांचे में सैद्धांतिक, राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में आई कमियों, विकृतियों व त्रुटियों को रूपमान करते हैं। वास्तविकता यह है कि विश्व स्तर पर चल रहे विकराल पूंजीवादी संकट के दौरान, माक्र्सवाद-लेनिनवाद की प्रसंगिकता में और बढ़ौत्तरी व आकर्षण पैदा हुआ है। काफी समय से (अर्थात 1990 में सोवियत यूनियन के बिखराव से काफी पहले) सैद्धांतिक क्षेत्र में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी माक्र्सवाद-लेनिनवाद की बुनियादी स्थापनाओं की अनदेखी करके वर्गीय सहयोग (शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, शांतिपूर्ण मुकाबला व शांतिपूर्ण परिवर्तन) के भटकाव का शिकार थी। अपने राष्ट्रीय हितों की खातिर उसने विश्व स्तर की साम्राज्यवादी शक्तियों के आक्रामक व लुटेरे चरित्र को अनदेखा करके उसके विरुद्ध जरूरी संघर्ष को कमजोर करने तथा अन्य देशों की मित्र कम्युनिस्ट पार्टियों को उनके अपने देशों की ठोस स्थितियों  के अनुकूल क्रांतिकारी युद्ध नीति के दांव-पेच बनाने के मामले में नेतृत्व देने की जगह उन्हें सत्ताधारी वर्गों के पिछलगू बनाने या सोवियत पोजीशनों को उत्साहित करने के दुस्साहसवादी दांव-पेच अपनाने  के लिए दबाव डालने की नीति अपनाई। समाजवादी व्यवस्था में मजदूर किसान एकता के आधार पर निर्मित मजदूर वर्ग की डिक्टेटरशिप का समूची मेहनतकश जनता के वास्तविक जनवाद के रूप में प्रसार करने की जगह मेहनतकशों की समाजवादी व्यवस्था को चलाने में भागीदारी तक सीमित कर दिया गया। यह धीरे धीरे मजदूर वर्ग की जगह कम्युनिस्ट पार्टी की ‘तानाशाही’ बन गया जो आगे चलकर एक ‘गिरोह’ के हाथों में समूची सत्ता के केंद्रीयकरण के रूप में परिवर्तित हो गई। इससे जनसाधारण, जिसके समूचे हितों की रखवाली करने तथा बढ़ावा देने का समाजवादी व्यवस्था दम भरती है, कम्युनिस्ट पार्टी व सोवियत सरकार से दूरी बना गया तथा सोवियत व्यवस्था व नेतृत्व के प्रति उसकी भरोसेयोग्यता समाप्त हो गई। माक्र्सवाद-लेनिनवाद की वैज्ञानिक विधी त्याग कर ‘नेताओं’ का गुणगान करने, सत्ता से लाभ लेने के लिए सिद्धांतों की तिलांजली देकर ‘चापलूसी’, ‘गुटबाजी’, ‘अफसरशाही रुझानों’ तथा ‘राजनीतिक बदलाखोरी’ जैसे अवैज्ञानिक व मौकापरस्त व्यवहारों को अपना लिया गया। सोवियत लोगों का विचारधारक व राजनीतिक स्तर ऊंचा करने के लिए उनकी सरकारी व सामाजिक कार्यों में भागीदारी व लामबंदी छोडक़र समस्त कार्य सरकार व इसकी अफसरशाही पर निर्भर बना दिया गया। इस सब कुछ का परिणाम आज सारे विश्व के सामने है। जबकि सात दशकों से जनहितों की पहरेदारी का दावा करने वाला राजनीतिक ढांचा अपनी अंदरूनी कमजोरियों व बाहरी दुश्मनों की चालों का सामना ना कर सका तथा पूंजीवाद की बहाली के रूप में परिवर्तित हो गया। 
आज जब हमारे देश के करोड़ों लोगों के हितों की अनदेखी करके भारतीय शासक, साम्राज्यवादी शक्तियों के सामने घुटने टेककर उनकी लूट-खसूट के लिए रास्ता साफ कर रहे हैं तथा भीतरी लुटेरों के मुनाफों में अकूत बढ़ौत्तरी करके पूंजी को चंद हाथों में केंद्रित करने की प्रक्रिया को तेज कर रहें हैं तब हमें, जो मेहनतकश लोगों के हित में सत्ता की तब्दीली के इच्छुक हैं, अक्टूबर क्रांति की प्राप्तियों व सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी में आये भटकावों व गिरावटों जिनके कारण वहां का समाजवादी ढांचा तहस-नहस हो गया, का संतुलित मुल्यांकन करके क्रांतिकारी आंदोलन को और मजबूत व विशाल करने में अधिक शक्ति से जुट जाना चाहिए, समस्त दावों के बावजूद न तो पूंजीवादी ढांचा संकट मुक्त है तथा न ही मानवता को घोर गरीबी व मंदहाली के अतिरिक्त और कुछ देने के योग्य है। इस लुटेरे ढ़ांचे का समाजवादी व्यवस्था ही उचित विकल्प है, जो हर तरह की लूट-खसूट को खत्म करके समाज को समुचित विकास के रास्ते पर डाल सकता है। ऐसी समानता आधारित व्यवस्था की कायमी के लिए किए जाने वाले दृढ़ संघर्ष के लिए 1917 की अक्टूबर क्रांति हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत्र बन सकती है।

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