आम लोगों को भ्रम में डालने व गुमराह करने के लिए रंग बिरंगी जुमलेबाजी का इस्तेमाल करने वाली मोदी सरकार द्वारा ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ की बड़ी डींगें मारी गईं और यह झूठ पुराण आज भी जारी है। इस नारे का स्पष्ट अर्थ तो यही निकलता है कि समूचे देशवासियों के सरगरम सहयोग से उनकी जीवन स्थितियों का विकास किया जायेगा, अर्थात् उनकी हर प्रकार की जरूरतों को पूर्ण किया जायेगा। परंतु, वास्तव में हकीकत बिल्कुल ही भिन्न दिखाई देती है कि इस सरकार के लिए हर क्षेत्र में विकास की धारणा के अर्थ कुछ और ही हैं।
उदाहरणस्वरूप आर्थिक क्षेत्र में इस सरकार द्वारा बाजार की निर्दयी शक्तियों को और अधिक छूटें देने तथा सामाजिक सुविधाओं के निजीकरण की नीतियां ही जारी रखी गई हैं। बल्कि, इन नीतियों को लागू करने के मामले में पिछली सभी सरकारों के मुकाबले निरंतर और अधिक तेजी लाई जा रही है। इसी लिए इस सरकार के पिछले तीन साल के कार्यकाल के दौरान यहां कारोबार करते देसी-विदेशी पूंजीपतियों का विकास अवश्य हुआ है। जबकि, आम लोगों की तो मंहगाई बेरोजगारी तथा अन्य समस्याओं ने और अधिक कमर तोड़ दी है। उनके लिए तो दाल भी पहुंच से बाहर चली गई है। रोजगार के अवसर तथा घरेलू बाजार और अधिक सिकुड़ गया है। किसी भी सरकारी या अद्र्ध-सरकारी संस्थान में निकलने वाले चपरासी के पद के लिये भी उम्मीदवारों की दूनी-चौगुनी नहीं बल्कि कई-कई हजार गुणा अर्जियां प्राप्त होती हैं, जिनमें ग्रैजुएट, पोस्ट-ग्रैजुएट ही नहीं बल्कि पी.एच.डी. जैसी उच्च योग्यता प्राप्त उम्मीदवार भी आवंद देते हैं। यही हाल निजी संस्थानों में भी है जहां सेवा सुरक्षा बिल्कुल भी नहीं है। हर जगह ठेका भर्ती से काम चलाया जा रहा है। आम लोगों से बुनियादी-गुणवत्ता आधारित शिक्षा भी पहुंच से बाहर चली गई है। स्वास्थ्य सुविधायें अत्यंत मंहगी हो गई हैं तथा मेहनतकश लोगों की बहुसंख्या उपयुक्त इलाज करवाने से असमर्थ हो चुकी है। नोटबंदी ने तो स्थिति और भी बिगाड़ दी है। इससे बेरोजगारी में बढ़ौत्तरी होने के साथ-साथ किसानी का संकट भी और अधिक विकराल रूप धारण कर गया है। आलू, प्याज व अन्य सब्जियां पैदा करने वाले किसान बुरी तरह लुट गये हैं। किसी भी क्षेत्र में ‘‘सबका विकास’’ तो कहीं दिखाई ही नहीं देता। देश की समूची पैदावार (त्रष्ठक्क) का बहुत बड़ा भाग पूंजीपतियों की संपत्तियों व ऐशो-आराम में और अधिक बढ़ौत्तरी का साधन मात्र ही बना है।
सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में भी, मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रतिक्रियावादी, बुनियादपरस्त व फिरकू संगठन तथा उनके हुल्लड़बाज कार्यकर्ता ही अधिक सशक्त हुये हैं। उनकी आक्रमकता ने और अधिक घातक रूप ग्रहण किया है। जिससे देश भर में धार्मिक अल्प-संख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों व ईसाईयों पर चिंता के बादल और अधिक गहरे हुए हैं। यह भी स्पष्ट दिखाई देता है कि फिरकू-फाशीवादी तत्वों को आम लोगों के मनों में नफरत के बीज बिखेरने के लिये सरकारी शह मिल रही है तथा वे अल्पसंख्यकों से संबंधित निर्दोष लोगों को उत्पीड़त करने के लिए नित्य नये तरीके ईजाद कर रहे हैं। यह गैर संवैधानिक तत्व अपने इच्छित शिकारों को निशाना बनाने के लिए कोई भी मौका व्यर्थ नहीं जाने देते। इतना ही बस नहीं, इस समय के दौरान धार्मिक अल्प-संख्यकों के साथ-साथ दलितों, आदिवासियों तथा औरतों पर भी प्रतिक्रियावादियों के अमानवीय हमले और अधिक घिनौना रुप धारण कर गये हैं। मोदी सरकार देश के भीतर प्रतिक्रियावादी, धर्म-आधारित राज्य स्थापित करने के लिये उतावली है। योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में की गई नियुक्ती इसी सरकार से की गई है। इस कदम ने रही सही कमी को भी पूर्ण कर दिया है। मोदी सरकार के घृणित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये गुंडा तत्वों द्वारा यूपी सरकार की नग्न शह पर किये जा रहे कुकृत्य आज सभी की चिंता का विषय बन चुके हैं। संघ परिवार का वास्तविक एजेंडा अब कोई ढँकी छिपी बात नहीं है। क्योंकि सरकार ने इस ऐजंडे पर अमल करना तुरंत ही आरंभ कर दिया था। भारत जैसे विविध सामाजिक स्वरूप वाले समाज के लिये इस दिशा को विकास मुखी तो कदाचित नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह तो सामाजिक विनाश की ओर बढ़ता रास्ता है।
भारतीय संविधान के अनुसार हर नागरिक के बुनियादी अधिकारों में शामिल विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर भी प्रतिक्रियावादी तत्वों के हमले निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं। देश के भीतर असहनशीलता वाला वातावरण तेजी से निर्मित किया जा रहा है। कई विद्वान व बुद्धिजीवी इस हैवानियत की भेंट चढ़ चुके हैं। संघ परिवार से जुड़ा विद्यार्थी संगठन ए.बी.वी.पी. आजकल इस दिशा में कुछ अधिक ही सरगर्म दिखाई दे रहा है। यह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (छ्वहृ) जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान की वैज्ञानिक, बौद्धिक व लोकतांत्रिक उपलब्धियों को नष्ट-भ्रष्ट करने के हर संभव प्रयासों में लिप्त हैं। विश्वविद्यालय, जिन्हें विचारों के विकास के पालने कहा जाता है, की सरगर्मियों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाये जा रहे हैं तथा उनका संघ परिवार के प्रतिक्रियावादी व एकाधिकारवादी विचारों के वाहनों के रूप में दुरुपयोग करने के मंसूबे सरेआम ऐलाने जा रहे हैं। सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध करने वाले हर व्यक्ति को तुरंत राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाता है। ना उनके विचारों की गहरी जांच-पड़ताल होती है तथा ना ही उसकी समूची पृष्ठभूमि देखी जाती है। राष्ट्रवाद (असली) जो कि विश्व भर में साम्राज्यवादी लूट खसूट के विरुद्ध लड़े गये रक्त रंजित संघर्षों की बहुमूल्य मानववादी उपलब्धि थी, को इन फिरकू तत्वों द्वारा पुन: केसरिया रंग की विकृत अंध-राष्ट्रवादी पौशाक पहनाई जा रही है। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि फाशीवाद के मुद्दर्ई हिटलर तथा उसके साथियों के ऐसे ही अंध राष्ट्रवाद (नकली) के विरुद्ध लड़े गए संघर्ष के दौरान हकीकी राष्ट्रवादी शक्तियों को करोड़ों की संख्या में प्राणों की आहूतियां देनी पड़ी थीं। इसके बावजूद संघ परिवार से संबंधित हुल्लड़बाज देश में हकीकी देशभक्तों तथा आम लोगों के विचारों की आजादी के अधिकार को समाप्त करने के लिये कई प्रकार के हथकंडों का उपयोग कर रहे हैं। वह सरकार की जन विरोधी तथा जम्हूरियत विरोधी राजनीतिक पहुंचों का विरोध करने वालों को भी राष्ट्र विरोधी करार देकर उन पर हिंसक हमले कर रहे हैं। इसको किसी भी रूप में राष्ट्रवादी पहुंच नहीं कहा जा सकता बल्कि यह तो नग्न अंधराष्ट्रवादी पहुंच है, जिसका विकास के वर्तमान दौर में देश के लिए हानिकारक सिद्ध होना लाजमी है।
देश के भीतर जनवादी मूल्यों के विकास की दृष्टि से भी मोदी सरकार ने अभी-अभी हुये 5 विधानसभा चुनावों के उपरांत कुछ नये ‘रिकार्ड’ कायम किये हैं। सरकार के सारे समर्थक उन्माद में नाच-कूद रहे हैंं कि 4 राज्यों में भाजपा की सरकारें बन गईं हैं तथा उसका, राजनीतिक प्रभाव अब उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी स्थापित हो गया है। परंतु इस ‘महान उपलब्धि’ के लिये जिस तरह सरकार ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का दुरूपयोग करके गोवा व मणिपुर में भाजपा की सरकारें गठित की हैं, उससे संवैधानिक रूप में जम्हूरी मूल्यों को गहरा आघात पहुंचा है। गोवा में भाजपा की पिछली सरकार के विरुद्ध लोगों द्वारा दिये गये स्पष्ट जनादेश के बावजूद तथा यहां तक कि मुख्यमंत्री व कुछ मंत्रियों के भी हार जाने के बावजूद, शर्मनाक ढंग से कई तरह के जोड़-तोड़ करके भाजपा सरकार का गठन करना किसी तरह भी लोकतंत्र के साथ बलात्कार से कम नहीं है। इस उद्देश्य के लिये देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दल बदल विरोधी निर्णय का भी घोर उल्लंघन किया गया जिस में कहा गया था कि चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत ना मिलने पर चुनावों से पहले बने हुए किसी गठजोड़ का यदि बहुमत बनता हो तो उसके नेता को सरकार गठित करने के लिये आमंत्रण दिया जा सकता है, परंतु यदि ऐसा कोई गठजोड़े ना भी बना हो तो सबसे पहले चुनावों में सबसे अधिक सीट जीत कर आई पार्टी के नेता को सरकार गठित करने के लिए कहा जाये तथा यदि वह अपनी असमर्थता जताये सिर्फ तब ही किसी और विकल्प की तलाश की जाये। प्रशासनिक सुधारों के बारे में गठित किये गये न्यायमूर्ति सरकारिया आयोग की सिफारिशें भी इस पहुंच का समर्थन ही करती हैं। परंतु मोदी सरकार की छत्रछाया में भाजपा ने हर तरह की अनैतिकता का प्रदर्शन करते हुए दोनों ही राज्यों में सबसे अधिक सीट जीतने वाली पार्टी (कांग्रेस) को दरकिनार करके जोर-जबरदस्ती अपनी सरकारें गठित कर ली हैं। दुर्भाग्य से अदालत ने भी यह तथ्य दरकिनार कर दिये। इसके लिये चुनावों से पहले भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व मणिपुर में बड़े स्तर पर दलबदलियां भी करवाई गईं, जिनको तो यह गैर सैद्धांतिक पार्टियां सहज ही सही सिद्ध कर सकती हैं। परंतु मणिपुर में तो दलबदली कानून का घोर उल्लंघन करके एक कांग्रेसी विधायक को मंत्रि पद की शपथ दिलवा दी गई। यह है मोदी सरकार का ‘‘सबका विकास, सबका साथ’’ तथा ‘‘लोकतंत्र का सर्वपक्षीय विकास।’’ अपनी पार्टी के संकुचित राजनीतिक हितों को साधने के लिए अपनाई गई यह लोकतंत्र को नष्ट-भ्रष्ट करने वाली पहुंच इस कुनबे द्वारा भविष्य में अपनाये जाने वाले स्पष्ट तानाशाही हथकंडों का स्पष्ट सूचक है।
मानव समाज के विकास के वर्तमान पड़ाव पर सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में जम्हूरियत तथा धर्म-निरपेक्षता मनुष्य की दो सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं। यह सरकार इन दोनों उपलब्धियों की अंतरीव व वैज्ञानिक धारणाओं को बिगाड़ कर उन्हें नये अर्थ दे रही है। धर्म-निरपेक्षता का तो यह ‘संघ परिवार’ बुनियादी रूप में ही विरोधी है तथा ‘धर्म आधारित’ प्रतिक्रियावादी राज्य की स्थापना का नग्न मुद्दई रहा है। इसीलिये इसके नेताओं द्वारा लोगों को धोखा देने के लिए ही ‘‘सबका साथ’’ का झूठा नारा गढ़ा गया है, जबकि आचरण ठीक इस के विपरीत है। जहां तक देश की संवैधानिक जन तांत्रिक परंपराओं के आदर का संबंध है, उसका भी प्रमाण इन चुनावों से संबंधित उपरोक्त दोनों घटनाओं ने दे दिया है। जैसे कांग्रेस पार्टी के लिये धर्म निरपेक्षता प्रतिबद्धता का मुद्दा नहीं बल्कि राजनैतिक सुविधा का मुद्दा रहा है वैसे ही इन घटनाओं ने प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा के लिये भी लोकतंत्रिक मूल्य राजनैतिक प्रतिबद्धता नहीं बल्कि सिर्फ राजनैतिक सुविधा का मुद्दा ही है। जब तक राजसत्ता हथियाने के लिये यह मुद्दा काम देता है, ठीक है, जब रुकावट बने तब जम्हूरियत के संकल्प की धज्जियां उड़ाने में भाजपा द्वारा कोई शर्म महसूस नहीं करती। यह देशवासियों विशेष रूप में प्रगतीशील, जन पक्षीय व वैज्ञानिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध समस्त लोगों के लिये निश्चय ही एक खतरे की घंटी है। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये इन सभी को मिलकर जन लामबंदी पर आधारित ठोस प्रयत्न करने होंगे। ऐसी प्रतिक्रियावादी फिरकू व फाशीवादी शक्तियों से हर मोर्चे अर्थात; आर्थिक, वैचारिक व राजनैतिक मोर्चे पर डट कर टक्कर लेनी होगी। भारतीय संदर्भ में मेहनतकश लोगों को बर्बाद कर रहीं नवउदारवादी नीतियों के विरुद्ध तथा फिरकू-फाशीवादी हमलों के विरुद्ध समस्त देशभक्त व वामपंथी जम्हूरी शक्तियों को मिलकर शक्तिशाली व देशव्यापी जन संघर्ष खड़े करने होंगे।
उदाहरणस्वरूप आर्थिक क्षेत्र में इस सरकार द्वारा बाजार की निर्दयी शक्तियों को और अधिक छूटें देने तथा सामाजिक सुविधाओं के निजीकरण की नीतियां ही जारी रखी गई हैं। बल्कि, इन नीतियों को लागू करने के मामले में पिछली सभी सरकारों के मुकाबले निरंतर और अधिक तेजी लाई जा रही है। इसी लिए इस सरकार के पिछले तीन साल के कार्यकाल के दौरान यहां कारोबार करते देसी-विदेशी पूंजीपतियों का विकास अवश्य हुआ है। जबकि, आम लोगों की तो मंहगाई बेरोजगारी तथा अन्य समस्याओं ने और अधिक कमर तोड़ दी है। उनके लिए तो दाल भी पहुंच से बाहर चली गई है। रोजगार के अवसर तथा घरेलू बाजार और अधिक सिकुड़ गया है। किसी भी सरकारी या अद्र्ध-सरकारी संस्थान में निकलने वाले चपरासी के पद के लिये भी उम्मीदवारों की दूनी-चौगुनी नहीं बल्कि कई-कई हजार गुणा अर्जियां प्राप्त होती हैं, जिनमें ग्रैजुएट, पोस्ट-ग्रैजुएट ही नहीं बल्कि पी.एच.डी. जैसी उच्च योग्यता प्राप्त उम्मीदवार भी आवंद देते हैं। यही हाल निजी संस्थानों में भी है जहां सेवा सुरक्षा बिल्कुल भी नहीं है। हर जगह ठेका भर्ती से काम चलाया जा रहा है। आम लोगों से बुनियादी-गुणवत्ता आधारित शिक्षा भी पहुंच से बाहर चली गई है। स्वास्थ्य सुविधायें अत्यंत मंहगी हो गई हैं तथा मेहनतकश लोगों की बहुसंख्या उपयुक्त इलाज करवाने से असमर्थ हो चुकी है। नोटबंदी ने तो स्थिति और भी बिगाड़ दी है। इससे बेरोजगारी में बढ़ौत्तरी होने के साथ-साथ किसानी का संकट भी और अधिक विकराल रूप धारण कर गया है। आलू, प्याज व अन्य सब्जियां पैदा करने वाले किसान बुरी तरह लुट गये हैं। किसी भी क्षेत्र में ‘‘सबका विकास’’ तो कहीं दिखाई ही नहीं देता। देश की समूची पैदावार (त्रष्ठक्क) का बहुत बड़ा भाग पूंजीपतियों की संपत्तियों व ऐशो-आराम में और अधिक बढ़ौत्तरी का साधन मात्र ही बना है।
सामाजिक राजनीतिक क्षेत्र में भी, मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान प्रतिक्रियावादी, बुनियादपरस्त व फिरकू संगठन तथा उनके हुल्लड़बाज कार्यकर्ता ही अधिक सशक्त हुये हैं। उनकी आक्रमकता ने और अधिक घातक रूप ग्रहण किया है। जिससे देश भर में धार्मिक अल्प-संख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों व ईसाईयों पर चिंता के बादल और अधिक गहरे हुए हैं। यह भी स्पष्ट दिखाई देता है कि फिरकू-फाशीवादी तत्वों को आम लोगों के मनों में नफरत के बीज बिखेरने के लिये सरकारी शह मिल रही है तथा वे अल्पसंख्यकों से संबंधित निर्दोष लोगों को उत्पीड़त करने के लिए नित्य नये तरीके ईजाद कर रहे हैं। यह गैर संवैधानिक तत्व अपने इच्छित शिकारों को निशाना बनाने के लिए कोई भी मौका व्यर्थ नहीं जाने देते। इतना ही बस नहीं, इस समय के दौरान धार्मिक अल्प-संख्यकों के साथ-साथ दलितों, आदिवासियों तथा औरतों पर भी प्रतिक्रियावादियों के अमानवीय हमले और अधिक घिनौना रुप धारण कर गये हैं। मोदी सरकार देश के भीतर प्रतिक्रियावादी, धर्म-आधारित राज्य स्थापित करने के लिये उतावली है। योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में की गई नियुक्ती इसी सरकार से की गई है। इस कदम ने रही सही कमी को भी पूर्ण कर दिया है। मोदी सरकार के घृणित उद्देश्यों की पूर्ति के लिये गुंडा तत्वों द्वारा यूपी सरकार की नग्न शह पर किये जा रहे कुकृत्य आज सभी की चिंता का विषय बन चुके हैं। संघ परिवार का वास्तविक एजेंडा अब कोई ढँकी छिपी बात नहीं है। क्योंकि सरकार ने इस ऐजंडे पर अमल करना तुरंत ही आरंभ कर दिया था। भारत जैसे विविध सामाजिक स्वरूप वाले समाज के लिये इस दिशा को विकास मुखी तो कदाचित नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह तो सामाजिक विनाश की ओर बढ़ता रास्ता है।
भारतीय संविधान के अनुसार हर नागरिक के बुनियादी अधिकारों में शामिल विचारों को प्रकट करने की स्वतंत्रता के अधिकार पर भी प्रतिक्रियावादी तत्वों के हमले निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं। देश के भीतर असहनशीलता वाला वातावरण तेजी से निर्मित किया जा रहा है। कई विद्वान व बुद्धिजीवी इस हैवानियत की भेंट चढ़ चुके हैं। संघ परिवार से जुड़ा विद्यार्थी संगठन ए.बी.वी.पी. आजकल इस दिशा में कुछ अधिक ही सरगर्म दिखाई दे रहा है। यह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (छ्वहृ) जैसे विश्व प्रसिद्ध संस्थान की वैज्ञानिक, बौद्धिक व लोकतांत्रिक उपलब्धियों को नष्ट-भ्रष्ट करने के हर संभव प्रयासों में लिप्त हैं। विश्वविद्यालय, जिन्हें विचारों के विकास के पालने कहा जाता है, की सरगर्मियों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाये जा रहे हैं तथा उनका संघ परिवार के प्रतिक्रियावादी व एकाधिकारवादी विचारों के वाहनों के रूप में दुरुपयोग करने के मंसूबे सरेआम ऐलाने जा रहे हैं। सरकार की जन विरोधी नीतियों का विरोध करने वाले हर व्यक्ति को तुरंत राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाता है। ना उनके विचारों की गहरी जांच-पड़ताल होती है तथा ना ही उसकी समूची पृष्ठभूमि देखी जाती है। राष्ट्रवाद (असली) जो कि विश्व भर में साम्राज्यवादी लूट खसूट के विरुद्ध लड़े गये रक्त रंजित संघर्षों की बहुमूल्य मानववादी उपलब्धि थी, को इन फिरकू तत्वों द्वारा पुन: केसरिया रंग की विकृत अंध-राष्ट्रवादी पौशाक पहनाई जा रही है। इतिहास इस तथ्य का साक्षी है कि फाशीवाद के मुद्दर्ई हिटलर तथा उसके साथियों के ऐसे ही अंध राष्ट्रवाद (नकली) के विरुद्ध लड़े गए संघर्ष के दौरान हकीकी राष्ट्रवादी शक्तियों को करोड़ों की संख्या में प्राणों की आहूतियां देनी पड़ी थीं। इसके बावजूद संघ परिवार से संबंधित हुल्लड़बाज देश में हकीकी देशभक्तों तथा आम लोगों के विचारों की आजादी के अधिकार को समाप्त करने के लिये कई प्रकार के हथकंडों का उपयोग कर रहे हैं। वह सरकार की जन विरोधी तथा जम्हूरियत विरोधी राजनीतिक पहुंचों का विरोध करने वालों को भी राष्ट्र विरोधी करार देकर उन पर हिंसक हमले कर रहे हैं। इसको किसी भी रूप में राष्ट्रवादी पहुंच नहीं कहा जा सकता बल्कि यह तो नग्न अंधराष्ट्रवादी पहुंच है, जिसका विकास के वर्तमान दौर में देश के लिए हानिकारक सिद्ध होना लाजमी है।
देश के भीतर जनवादी मूल्यों के विकास की दृष्टि से भी मोदी सरकार ने अभी-अभी हुये 5 विधानसभा चुनावों के उपरांत कुछ नये ‘रिकार्ड’ कायम किये हैं। सरकार के सारे समर्थक उन्माद में नाच-कूद रहे हैंं कि 4 राज्यों में भाजपा की सरकारें बन गईं हैं तथा उसका, राजनीतिक प्रभाव अब उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी स्थापित हो गया है। परंतु इस ‘महान उपलब्धि’ के लिये जिस तरह सरकार ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का दुरूपयोग करके गोवा व मणिपुर में भाजपा की सरकारें गठित की हैं, उससे संवैधानिक रूप में जम्हूरी मूल्यों को गहरा आघात पहुंचा है। गोवा में भाजपा की पिछली सरकार के विरुद्ध लोगों द्वारा दिये गये स्पष्ट जनादेश के बावजूद तथा यहां तक कि मुख्यमंत्री व कुछ मंत्रियों के भी हार जाने के बावजूद, शर्मनाक ढंग से कई तरह के जोड़-तोड़ करके भाजपा सरकार का गठन करना किसी तरह भी लोकतंत्र के साथ बलात्कार से कम नहीं है। इस उद्देश्य के लिये देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए दल बदल विरोधी निर्णय का भी घोर उल्लंघन किया गया जिस में कहा गया था कि चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत ना मिलने पर चुनावों से पहले बने हुए किसी गठजोड़ का यदि बहुमत बनता हो तो उसके नेता को सरकार गठित करने के लिये आमंत्रण दिया जा सकता है, परंतु यदि ऐसा कोई गठजोड़े ना भी बना हो तो सबसे पहले चुनावों में सबसे अधिक सीट जीत कर आई पार्टी के नेता को सरकार गठित करने के लिए कहा जाये तथा यदि वह अपनी असमर्थता जताये सिर्फ तब ही किसी और विकल्प की तलाश की जाये। प्रशासनिक सुधारों के बारे में गठित किये गये न्यायमूर्ति सरकारिया आयोग की सिफारिशें भी इस पहुंच का समर्थन ही करती हैं। परंतु मोदी सरकार की छत्रछाया में भाजपा ने हर तरह की अनैतिकता का प्रदर्शन करते हुए दोनों ही राज्यों में सबसे अधिक सीट जीतने वाली पार्टी (कांग्रेस) को दरकिनार करके जोर-जबरदस्ती अपनी सरकारें गठित कर ली हैं। दुर्भाग्य से अदालत ने भी यह तथ्य दरकिनार कर दिये। इसके लिये चुनावों से पहले भी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व मणिपुर में बड़े स्तर पर दलबदलियां भी करवाई गईं, जिनको तो यह गैर सैद्धांतिक पार्टियां सहज ही सही सिद्ध कर सकती हैं। परंतु मणिपुर में तो दलबदली कानून का घोर उल्लंघन करके एक कांग्रेसी विधायक को मंत्रि पद की शपथ दिलवा दी गई। यह है मोदी सरकार का ‘‘सबका विकास, सबका साथ’’ तथा ‘‘लोकतंत्र का सर्वपक्षीय विकास।’’ अपनी पार्टी के संकुचित राजनीतिक हितों को साधने के लिए अपनाई गई यह लोकतंत्र को नष्ट-भ्रष्ट करने वाली पहुंच इस कुनबे द्वारा भविष्य में अपनाये जाने वाले स्पष्ट तानाशाही हथकंडों का स्पष्ट सूचक है।
मानव समाज के विकास के वर्तमान पड़ाव पर सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में जम्हूरियत तथा धर्म-निरपेक्षता मनुष्य की दो सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं। यह सरकार इन दोनों उपलब्धियों की अंतरीव व वैज्ञानिक धारणाओं को बिगाड़ कर उन्हें नये अर्थ दे रही है। धर्म-निरपेक्षता का तो यह ‘संघ परिवार’ बुनियादी रूप में ही विरोधी है तथा ‘धर्म आधारित’ प्रतिक्रियावादी राज्य की स्थापना का नग्न मुद्दई रहा है। इसीलिये इसके नेताओं द्वारा लोगों को धोखा देने के लिए ही ‘‘सबका साथ’’ का झूठा नारा गढ़ा गया है, जबकि आचरण ठीक इस के विपरीत है। जहां तक देश की संवैधानिक जन तांत्रिक परंपराओं के आदर का संबंध है, उसका भी प्रमाण इन चुनावों से संबंधित उपरोक्त दोनों घटनाओं ने दे दिया है। जैसे कांग्रेस पार्टी के लिये धर्म निरपेक्षता प्रतिबद्धता का मुद्दा नहीं बल्कि राजनैतिक सुविधा का मुद्दा रहा है वैसे ही इन घटनाओं ने प्रमाणित कर दिया है कि भाजपा के लिये भी लोकतंत्रिक मूल्य राजनैतिक प्रतिबद्धता नहीं बल्कि सिर्फ राजनैतिक सुविधा का मुद्दा ही है। जब तक राजसत्ता हथियाने के लिये यह मुद्दा काम देता है, ठीक है, जब रुकावट बने तब जम्हूरियत के संकल्प की धज्जियां उड़ाने में भाजपा द्वारा कोई शर्म महसूस नहीं करती। यह देशवासियों विशेष रूप में प्रगतीशील, जन पक्षीय व वैज्ञानिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध समस्त लोगों के लिये निश्चय ही एक खतरे की घंटी है। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिये इन सभी को मिलकर जन लामबंदी पर आधारित ठोस प्रयत्न करने होंगे। ऐसी प्रतिक्रियावादी फिरकू व फाशीवादी शक्तियों से हर मोर्चे अर्थात; आर्थिक, वैचारिक व राजनैतिक मोर्चे पर डट कर टक्कर लेनी होगी। भारतीय संदर्भ में मेहनतकश लोगों को बर्बाद कर रहीं नवउदारवादी नीतियों के विरुद्ध तथा फिरकू-फाशीवादी हमलों के विरुद्ध समस्त देशभक्त व वामपंथी जम्हूरी शक्तियों को मिलकर शक्तिशाली व देशव्यापी जन संघर्ष खड़े करने होंगे।
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