Saturday 5 April 2014

हरियाणा के गांव गोरखपुर में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र के खिलाफ संघर्ष

इंद्रजीत बोसवाल 
भारत में साफ, सुरक्षित एवं सस्ती समुचित बिजली आपूर्ति की बातें जोर शोर से सरकारी तंत्र द्वारा प्रचारित करते हुए यह कहा जा रहा है इस जरूरत को पूरा करने के लिए भारत में 40 नये परमाणु संयंत्रों को स्थापित करने की जरूरत है। इन प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में से एक हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गांव गोरखपुर में लगाया जायेगा। आज से कई साल पहले इस परियोजना के लिए इस इलाके का मौका मुआयना किया गया था। यह संयंत्र 1503 एकड़ जमीन पर लगाने की योजना है। इस उद्देश्य हेतु हरियाणा सरकार ने जब भूमि अधिग्रहण की सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित की तो सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे गावों गोरखपुर, बड़ोपल व काजलहेड़ी के किसानों ने किसान संघर्ष समिति का गठन करके अपनी कृषि भूमि को बचाने के लिए परियोजना के विरोध में संघर्ष की शुरूआत की थी। 
17 अगस्त से किसान संघर्ष समिति ने फतेहाबाद जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन आरंभ कर दिया। 26 अगस्त 2010 को इस परियोजना से प्रभावित गांवों के लोगों ने एक विशाल प्रदर्शन किया व उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया। किसानों की साफ समझ थी कि वो किसी भी कीमत पर (चाहे जितना भी मुआवजा दिया जाए) अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। कई राजनीतिक पार्टियों की इस समझ व मांग से सहमति नहीं थी कि एन.सी.आर. के रेट से मुआवजा तथा नौकरियां दी जाएं तभी जमीन देंगे। 
इस परमाणु संयंत्र के विरोध में 10 सितंबर 2010 को फतेहाबाद की अनाजमंडी में एक किसान महापंचायत भी बुलाई गई। जिसमें दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पहुंचे थे। पंजाब से जम्हूरी किसान सभा के राज्य उपाध्यक्ष कामरेड भीम सिंह भी पहुंचे। मगर यह महापंचायत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाई थी क्योंकि इस पंचायत में राजनीतिक पार्टियों के नेता भाषण झडऩे के लिए तो पहुंचे मगर अपने काडर व आम जनता को शामिल नहीं करवा सके। पूंजीवादी पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए समय समय पर शामिल होती रहीं। लेकिन किसान संघर्ष समिति मैदान में डटी रही। यह संघर्ष 1 साल 11 महीने उपायुक्त के कार्यालय में धरने पर डटा रहा। मगर दुर्भाग्य की बात यह रही कि इस परियोजना को रद्द करवाने के लिए आम जनता नहीं जुड़ पायी। ना ही राजनीतिक पार्टियां ,ना ही जनसंगठन जनता को जोड़ पाये। हां कुछ जनसंगठनों ने पहल जरूर की जिसमें देहाती मजदूर सभा, शहीद भगत सिंह नौजवान सभा पंजाब-हरियाणा, हरियाणा बेरोजगार युवा संगठन, सम्पूर्ण क्रांति मंच व आजादी बचाओ आन्दोलन आदि जनसंगठनों ने इस परमाणु संयंत्र के विरोध में जरूर प्रचार किया जिसमें किसानों को मजबूती मिली व धरने पर डटे रहे। इसी वजह से 17 जुलाई 2012 को जनसुनवाई के लिए गोरखपुर पर इक_ किया गया। जिसमें सरकारी वैज्ञानिक व परमाणु विरोधी वैज्ञानिकों में सवाल-जवाब हुए। यह सवाल डा. राजेन्द्र शर्मा, स्व. डा. वी.एल. शर्मा, डा. महावीर मानव ने किए। मगर एक भी सवाल का जवाब सरकारी वैज्ञानिक नहीं दे सके। दूसरी तरफ सी.पी.आई.(एम) अंदर खाते सरकार से मिल चुकी थी। और उन्होंने इलाका बचाओ कमेटी का गठन करके जो धरना उपायुक्त कार्यालय पर लगाया जा रहा था उसके उखड़वा कर काजल हैड पर ले गए ताकि किसानों को चैक आसानी से दिये जा सकें। 18 जुलाई से 30 जुलाई तक हैड पर ड्रामाबाजी चलती रही इधर किसान चैक लेते रहे। 2 साल का संघर्ष मात्र 12 दिनों में समाप्त करवा दिया लेकिन परमाणु विरोधी मोर्चा के साथी उपायुक्त कार्यालय पर धरने पर बैठे रहे। जिन्होंने 2 साल 2 महीने पूरे किये। सी.पी.आई.(एम) के लीडरों ने जनता के साथ बहुत बड़ा धोखा किया। क्योंकि सी.पी.आई.(एम) की समझदारी इस परमाणु संयंत्र के विरोध में नहीं थी।  
इस पूरे आन्दोलन में तीन किसानों को शहादत देनी पड़ी एक किसान भागू राम सिवाच का 30-12-2010 को देहांत हुआ जिसका शव राष्ट्रीय राज मार्ग के बीचो बीच रखकर दो दिन तक रोड जाम रखा गया। मुख्यमंत्री हरियाणा को भी अपना रास्ता बदलना पड़ा जिसमें सभी विपक्षीय पार्टियों व जनसंगठनों ने हिस्सा लिया। शहीद भगत सिंह नौजवान सभा के साथियों ने इस रोड जाम में पूरा सहयोग दिया। दूसरे दिन उपायुक्त ने स्वंय धरना स्थल पर आकर आश्वासन दिया कि भागू राम सिवाच को शहीद का दर्जा, सैक्शन 4 की फाईल मुख्यमंत्री को भेजना, परिवार में से एक सदस्य को सरकारी नौकरी व 20 लाख रूपए मुआवजा देना। यह आश्वासन बाद में झूठा ही निकला। इस तरह दो साथी रामकुमार जिनकी 4-2-11 को व ईश्वर सिवाच 5-9-11 को शहादत दे गए। 
किसान संघर्ष समिति के समर्थन में देहाती मजदूर सभा ने 6 सितंबर 2010 को एक दिवसीय धरना दिया जिसमें लगभग 200 पुरूष व महिलाओं ने हिस्सा लिया। उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को मांग पत्र सौंपा गया जिसमें स्पष्ट लिखा गया था कि जो परमाणु संयंत्र मानवता के लिए खतरा है उसे रद्द करना चाहिए। इसी कड़ी में शहीद भगत सिंह नौजवान सभा पंजाब-हरियाणा ने संघर्षरत किसानों का समर्थन करने के लिए 28 सितंबर 2010 को पपीहा पार्क में एक विशाल युवा-छात्र संकल्प जनसभा का आयोजन किया व पूरे शहर में प्रदर्शन करतेहुए धरने पर बैठे किसानों का समर्थन किया व उपायुक्त के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा। इस परमाणु संयंत्र की नींव हमारे देश के प्रधानमंत्री ने 13 जनवरी 2014 को रखी है। लेकिन आज भी परमाणु विरोधी मोर्चा के सदस्य इसको रद्द करवाने के लिए सैमीनार, गोष्ठी आदि करके जनता को जागृत कर रहे हैं। जिसकी कमान सुभाष पूनिया ने संभाल रखी है। इसके अलावा डा. सुरेन्द्र गाडेकर जिन्होंने कर्नाटक का प्लांट उठवाने में प्रमुख भूमिका निभाई, डा. सोमदता, प्रफुल विदवई जाने माने लेखक, डा. नीरज जैन जैतापुर (महाराष्ट्र) से, डा. वैशाली पाटिल, डा. अलग मित्ररा, मनोज त्यागी (आजादी बचाओ आन्दोलन), डा. अनिल सदगोपाल रिटार्यड वाईस चान्सलर दिल्ली यूनिवर्सिटी, कालसे पाटिल रिटार्यड चीफ जस्टिस हाई कोट बम्बई, के.एन रामचन्द्रन भाकपा (माले) चुटका मध्यप्रदेश से, पूर्व जरनल वी.के, सिंह, एम.जी. दवासयाम, रिटार्यड आई.ए.एस. कुडनकुलम से यह लोग अब भी फतेहाबाद पहुंचकर सैमीनार व गोष्ठी का आयोजन करते रहते हैं। अगर इस संयंत्र को रद्द करवाना है तो इसे जनता का संघर्ष बनाना पड़ेगा तथा इस बारे में जनता को शिक्षित करना होगा।

No comments:

Post a Comment