नीलम घुमाण
‘‘नारी को आजाद करने के सभी कानूनों के बावजूद वह घरेलू गुलाम बनी हुई है। क्योंकि घर का छोटा छोटा काम उसे तोड़ता है, दबाता है, मूर्ख बनाता है और बेइज्जत करता है। इसे रसोई और नर्सरी से बांधता है। तथा नारी अपने श्रम को छोटी छोटी बेतुकी और दबाने वाली चाकरी पर बरबाद करती है।’’ - लेनिन
नारी मुक्ति पर विश्व के महान कम्युनिस्ट नेता स्वर्गीय कामरेड लेनिन का यह कथन वर्तमान स्थिति में भारतीय नारी पर खरा उतरता है। सामूहिक रूप से जीवन के हर क्षेत्र में वह पिछड़ी हुई है। भले ही देखने में यह लगता है कि आज लड़कियां पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं। व्यक्ति रूप में कुछेक औरतें कुछ क्षेत्रों में आगे आयी हैं। जो कि लोगों को खास कर मध्यवर्ग को प्रेरित करती हैं। लेकिन असल में औरत आज भी अत्याचार और शोषण का शिकार है। औरत पर हो रहे अत्याचार और शोषण की खबरें हमें रोज ही सुनने को मिलती हैं। बलात्कार की ऐसी ऐसी घटनाएं, जिन्हें सुनकर दिल कांप उठता है। आज 3 साल की बच्ची से लेकर 80 साल की बुजुर्ग औरत भी बलात्कार का शिकार हो रही है। दामिनी बलात्कार कांड ने पूरी दुनिया के सामने औरत की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह लगाया है।
और जो उस समाज तथा व्यवस्था से अपने उपर हुए जुल्म के लिए इंसाफ की गुहार लगा रही है। और व जुल्म चाहे घरेलु हो या कार्यालयों में कार्य कर रही महिलाओं के साथ हो। नारी जो इस समाज को जन्म देने वाली है। जो आज दहेज का शिकार है और जो जन्म से पहले ही मार दी जाती है, के लिए 21वीं शताब्दी कोई मायने नहीं रखती है। भारतीय समाज में औरत जो पिता, पति तथा पुत्र पर निर्भर रहती हुई उसकी सेवा तथा उसकी आज्ञा का पालन करना ही अपना धर्म और कत्र्तव्य समझती है। ऐसे में उसकी स्थिति दयनीय तथा बन्धुआ मजदूर वाली हो गई है।
समाज में फैली कुरीतियों जो स्त्री पर आधारित रही हैं, जैसे बाल विवाह, सती प्रथा तथा दहेज प्रथा और वर्तमान समय में जो नारी तथा समस्त कुदरत को नष्ट करने वाली कुरितियां, जिसके द्वारा मनुष्य अपना ही विनाश करने की तरफ बढ़ रहा है, वह है, मादा भ्रूण हत्या। समाज के ठेकेदारों द्वारा इसे रोकने की जगह इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। वर्तमान पूंजीवादी विकास ने कुछ औरतों को पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़े होने में समर्थ बनाया है। और वे उदाहरण बनकर कार्य कर रहीं हैं। लेकिन दूसरी ओर औरत आज भी कहीं न कहीं लाचारी और बेबसी का शिकार है। पुराने समय की बात करें तो उस समय भी भारतीय नारी की स्थिति बहुत दयनीय थी। मर्द औरत को अपने पैरों की जूती और मन बहलाने का सामान ही समझता था। औरत को अज्ञानता के अंधेरे में रखा जाता था उसकी किस्मत उसकी बेबसी, लाचारी तथा मुसीबतों का लेखा जोखा परमात्मा ही करता था। आज समाज में खासकर पंजाबी समाज में लड़कियों की संख्या घटती ही जा रही है। लडक़े तथा लडक़ी के अनुपात में काफी अंतर है जो दिन व दिन बढ़ता ही जा रहा है। यह चिंता का विषय है। आंकड़े बताते है कि भारत में पंजाब अग्रणी प्रातों मेें है, जहां भ्रूण हत्या द्वारा लड़कियों को मां के गर्भ में ही मार दिया जाता है। जिस पंजाब के इतिहास को पढक़र सुनकर सिर गर्व से ऊंचा उठ जाता है। उसी पंजाब में आज भ्रुण हत्या जैसी कुरितियों के विरुद्ध आवाज उठाने की आवश्यकता है।
आज जरूरत है कि औरत पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बने अपने जीवन के निर्णय स्वयं ले तथा समाज में हो रहे अत्याचार, शोषण के विरुद्ध अपनी आवाज उठाए। औरत की मुक्ति तथा समाज में उसे बराबरी का स्थान प्राप्त करने के लिए उसे आत्म निर्भर बनाना पड़ेगा तथा आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होकर ही वह अपनी स्थिति में परिवर्तन ला सकती है। अन्यथा उसकी स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रहेगी। औरत सिर्फ इसलिए सम्मानित नहीं होनी चाहिए कि वह किसी विशेष वर्ग या रुतबे से संबंधित है, जैसे जज, वकील, डाक्टर या पुलिस कप्तान आदि तथा विशेष वर्ग जैसे राजनीतिक, उद्योगपति आदि बल्कि औरत समाज का आधा हिस्सा तथा एक औरत होने के कारण सम्मानित होनी चाहिए। इसके लिए राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता है, समाज में औरत के प्रति रूढि़वादी सोच को बदलने की आवश्यकता है। और इसके लिए जब तक समाज में बराबरी तथा न्याय पर आधारित नियम लागू नहीं होंगे तब तक औरत की स्थिति नहीं बदलेगी। आज आवश्यकता है कि औरत आत्म निर्भर बनकर अपने ऊपर हो रहे जुल्म व शोषण के विरुद्ध आवाज उठाए तथा अपनी मुक्ति के लिए इस राजनीतिक व सामाजिक व्यवस्था को आमूल-चूल रूप से परिवर्तित करने में जुटी शक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष करे।
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