Wednesday 20 September 2017

मजदूरों की राष्ट्रीय कन्वेंशन का घोषणापत्र

(मजदूरों का राष्ट्रीय सम्मेलन 8 अगस्त 2017 को नई दिल्ली के तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में हुआ। सम्मेलन का आह्वान संयुक्त रूप से औद्योगिक और सर्विस सेक्टर दोनों की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने स्वतंत्र राष्ट्रीय मजदूर फेडरेशनों के साथ मिलकर किया। सम्मेलन में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही कार्पोरिटपरस्त राष्ट्रविरोधी और जनविरोधी नीतियों के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत पर और इन राष्ट्रविरोधी और जनविरोधी नीतियों से बुरी तरह प्रभावित हो रही कामगार जनता की आजिविका पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई।)
 
टे्रड यूनियनों का 12 सूत्री मांग पत्र
1.   सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सार्वभौमीकीकरण करने और माल बाजार में सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगाने के जरिए महंगाई पर रोक लगाने के लिए फौरन कदम उठाए जाएं।
2.   रोजगार सृजन के लिए ठोस कदम उठाने के जरिए बेरोजगारी पर रोक लगायी जाए।
3.   बिना किसी अपवाद के या छूट के तमाम मूल श्रम कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए और श्रम कानूनों के उल्लंघन के लिए कड़े दंडात्मक कदम उठाए जाएं।
4.   तमाम मजदूरों को सार्वभौम सामाजिक सुरक्षा कवर दिया जाए।
5.  मूल्य सूचकांक के तमाम प्रावधानों के साथ 18,000 रुपए मासिक से कम न्यूनतम वेतन न दिया जाए।
6.   समुचित कामकाजी आबादी के लिए सुनिश्चित बढ़ी हुई पेंशन 3,000 रुपए प्रति महीना से कम न दी जाए।
7.  सार्वजनिक क्षेत्र की केंद्रीय/राज्य इकाइयों का विनिवेश और उनकी रणनीतिक बिक्री बंद की जाए।
8.   स्थायी किस्म के काम के लिए ठेकाकरण बंद किया जाए और उसी तरह के तथा समान काम के लिए ठेका मजदूरों को उतने ही वेतन तथा लाभ दिए जाएं जो नियमित मजदूरों को दिए जाते हैं।
9.   बोनस तथा प्रोविडेंट फंड के भुगतान के लिए और योग्यता के लिए तमाम हदबंदियां हटायी जाएं और ग्रेचुइटी की मात्रा बढ़ाई जाए।
10.  आवेदन किए जाने की तारीख से 45 दिन की अवधि के भीतर ट्रेड यूनियनों का आवश्यक पंजीकरण किया जाए और आइ.एल.ओ. की सी-87 तथा सी-98 कन्वेंशनों को फौरन स्वीकार किया जाए।
11.  श्रम कानूनों में कोई संशोधन न हो।
12. रेलवे, बीमा और प्रतिरक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) न हो।

 

यह राष्ट्रीय कन्वेंशन मोदी सरकार द्वारा साजिशाना, व सत्तावादी (आथोरिटेरियन) तरीके से देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) को सभी त्रिपक्षीय व द्विपक्षीय फोरम समेत अंतर्राष्ट्रीय फोरम से वंचित करने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करती है। यह निदंनीय कदम कुछ और नहीं बल्कि पूरे ट्रेड यूनियन आंदोलन के अधिकारों पर घोर हमला है। इसका मुकाबला  सभी ट्रेड यूनियनें संयुक्त तौर पर करेंगी, यह कन्वेंशन प्रतिज्ञा लेती ही।
सम्मेलन घोर निराशा के साथ गौर करता है कि सरकार देश भर की समस्त ट्रेड यूनियनों द्वारा संयुक्त रूप से न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, स्कीम वर्कर्स को मजदूर का दर्जा एवं भुगतान व सुविधाएं, निजीकरण और बड़े पैमाने पर ठेकेदारी का विरोध जैसी 12 सूत्री मांगों के लिए देशभर में किए गए, आंदोलनों को लगातार अक्खड़पन से अनदेखा कर रही है। सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ करोड़ों मजदूरों की सक्रिय भागीदारी के साथ की गई कई राष्ट्रव्यापी संयुक्त हड़ताल कार्यक्रमों जिनमें कि 2 सितंबर 2015 और 2 सितंबर 2016 की हड़तालें प्रमुख हैं, के बावजूद केंद्रीय सरकार देश की कामगार जनता के अधिकारों और आजीविका पर हमले बढ़ाती जा रही है। संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों ही समान रूप से पीडि़त हैं।
यहां तक कि सर्वाधिक श्रम सघन क्षेत्रों में रोजगार के लगभग नकारात्मक होने के साथ बेरोजगारी की हालत बदतर हो रही है। उद्योगों की बंदी और कामबंदी का परिदृश्य और आइटी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नौकरियों के खत्म होने की भविष्यवाणी आग में घी डालने का काम कर रही है। लोक परिवहन, बिजली, दवाईयों आदि समेत अनिवार्य वस्तुओं के दामों में वृद्धि आम तौर से लोगों के रोजाना की जिन्दगी पर दबाव के साथ-साथ दरिद्रता बढ़ा रही है। हड़बड़ाहट में जीएसटी को लागू करने ने आग को भडक़ाने का काम किया है, सार्वजनिक क्षेत्र और कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए सरकारी खर्च में हुई भारी कटौती ने असामान्य रूप से मजदूरों और खासतौर से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की हालत को और खतरनाक बना दिया है।
सरकार का मजदूर विरोधी सत्ताधारी चरित्र तब और ज्यादा दिख रहा है जब वह समान काम के लिए समान वेतन और लाभ, 15वीं इंडियन लेबर कांफ्रेंस तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के मानदंडों के अनुसार मिनिमम वेज (न्यूनतम मजदूरी) का प्रतिपादन, आंगनवाड़ी, मिड-डे-मिल और आशा आदि स्कीम वर्करों को मजदूरों का दर्जा देने के संबंध में एक सहमति से बनी उन अनुशंसाओं, जिनमें सरकार स्वयं एक पक्ष थी, को लागू करने से इंकार कर रही है। हैरानी की बात है कि मोदी सरकार यहां तक कि ‘‘समान काम के लिए समान वेतन और लाभ’’ और ईपीएस 1995 पर जो कि वास्तविक वेतन पर पेंशन में योगदान, गणना और महंगाई भत्ते जैसे असली मुद्दे पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने से इंकार कर रही है।
देश की सभी ट्रेड यूनियनों, चाहे वे किसी से भी संबंधित हों, के विरोध के बावजूद सरकार आक्रामक रूप से अपने कार्यक्रमों  से नियोक्ता उन्मुखी और पूरी तरह मजदूर विरोधी श्रम कानून सुधारों को बढ़ा रही है और ये कामगार जनता पर दासता की हालत को थोपने के मकसद से की जा रही हैं। सबसे ताजातरीन हमला एंप्लाईज प्रोविडेन्ट फंड आर्गेनाइजेशन, कोल माइन्स प्रोविडेन्ट फंड और एंप्लाईज स्टेट इन्श्योरेंस कार्पोरेशन और कई अन्य कल्याणकारी अधिनियमों के तहत मौजूदा वैधानिक सामाजिक सुरक्षा ढांचे को विघटित और विखंडित कर सामाजिक सुरक्षा कोड को प्रस्तुत करने की ओर बढ़ रही है। सरकार ऐसा करते हुए इन विभिन्न भविष्यनिधि कोषों में मजदूरों के अंशदान से बने 20 लाख करोड़ रुपए के विशाल सामाजिक सुरक्षा कोष को हड़प कर सबसे कपट और छल भरे छद्दमावरण ‘सर्वव्यापी सामाजिक सुरक्षा’ के नाम पर शेयर बाजार में सट्टेबाजी के लिए उपलब्ध कराना चाहती है।
सभी सामरिक महत्त्व के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों जिसमें रक्षा (डिफेंस) उत्पादन, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, इश्योरंंस, रेलवे, जन सडक़ परिवहन, तेल शामिल हैं का विनिवेशीकरण, युक्तिपूर्ण बिक्री, आउटसोर्सिंग से प्राइवेट क्षेत्र के हित में निजीकरण कर रही है। दिन प्रतिदिन कई महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक क्षेत्रों में 100 फीसद एफडीआई को बढ़ावा दे रही है। इसके अलावा सरकार नगदी से समृद्ध सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निवेश वाले नगद रिजर्व को एकदम खाली कर रही है। वास्तव में रक्षा क्षेत्र के निजीकरण का असली मकसद देश द्वारा पिछले छ: दशकों से ज्यादा समय में विकसित .की गई निर्माण क्षमता और रिसर्च पहलों को नष्ट करना है। सबसे बुरी और सबसे संदिग्ध योजना है रक्षा के हथियार और संवेदनशील उपकरणों जो कि आर्डिनेंस फैक्ट्रियां स्वयं निर्मित कर रही है उनके 50 प्रतिशत उत्पादों को आऊटसोर्स करना। चरणों में पूरा निजीकरण हो रहा है। रेलवे द्वारा बनाए गए रेलवे ट्रैक पर प्राईवेट रेलों को चलाए जाने की अनुमति दी गई है। यही नहीं प्राईवेट रेल आपरेटरों को मुफ्त में रेल यार्ड, प्राइवेट कोचों, वेगनों और इंजनों के रखरखाव के लिए शेड और वर्कशाप की पेशकश की गई है।
विभिन्न मेट्रो शहरों में 23 रेलवे स्टेशनों को निजीकरण के लिए चुना गया है। रेलवे कर्मचारी रोजगार सुरक्षा, जनतांत्रिक ट्रेड यूनियन अधिकारों और वेतन, भत्ते, सामाजिक सुरक्षा आदि में की गई उपलब्धियों को बचाने के संदर्भ में निजीकरण के सबसे बड़े शिकार होंगे। सेन्ट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी अथारिटी (सीईआरसी) की तरह एक रेलवे डिवैलपमैंट आथरिटी (आरडीए) बनाई गई है।
जैसा कि सीईआरसी ने बिजली के टैरिफ में बेतहाशा वृद्धि की है और आरडीए के तहत रेल भाड़े और माल ढुलाई के भाड़े बढ़ेंगे जो कि आम आदमी को और दुख पहुंचायेगा और प्राईवेट आपरेटरों को फायदा पहुंचाएगा।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर वैधानिक और कार्यकारी तरीकों से हमले हो रहे हैं। सरकार का एकमात्र उद्देश्य निजीकरण है और उन्हीं निजी कार्पोरेट बेईमानों को अनुचित लाभ पहुंचाना है, जिन्होंने बैकों से लिया कर्ज अदा नहीं किया और जिनके कारण बैंक क्षेत्र काफी दिक्कत में है। कुछ बैंकों में अनुबंध कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी गई है। इश्योरेंस सेक्टर भी इसी तरह के हमलों से जूझ रहा है। हमारे प्रमुख बदरंगाहों का भी निजीकरण करने के लिए वैधानिक प्रावधान अंतिम चरण में है।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रमुख और सामरिक महत्त्व के सेक्टरों जैसे ऊर्जा, पेट्रोलियम, टेलिकाम, धातु, खनन, मशीन निर्माण, थल, वायु और जल परिवहन, बंदरगाह और गोदी और कई अन्य सरकार के निजीकरण के प्रचंड अभियान में हैं। सम्मेलन उल्लेख करता है कि इन क्षेत्रों के मजदूर संयुक्त रूप से अनुभागीय लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकारी क्षेत्र के मजदूरों एंव कर्मचारियों के साथ-साथ सभी स्कीम वर्करों की ओर से संयुक्त आंदोलन शुरू किए गए हैं। यह सम्मेलन इन संघर्षों को अपना पूर्ण समर्थन देता है।
राज्य सरकारों की ओर से मार्ग लोक परिवहन (जनतक ट्रांसर्पोट) के रूप को प्राइवेट पार्टियों के देने से विखंडित करने के प्रयास जारी हैं। केंद्रीय सरकार की मंशा इसी संसद सत्र में नए ‘मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम 2017’ को लाने की जल्दी है जो कि पूरी तरह से मार्ग परिवहन का निजीकरण करने की अनुमति देगा। यह सम्मेलन ट्रांसपोर्ट वर्करों के आंदोलनों को नोट करते हुए परिवहन क्षेत्र में राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकारों के जन विरोधी और मजदूर विरोधी योजनाओं की भत्र्सना करता है।
मजदूरों का राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न राज्यों में संघर्षशील किसानों और साथ ही साथ किसान संगठनों के संयुक्त नेशनल फोरम के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करती है। कृषि क्षेत्र जो कि अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र है जिसमें हो रही आत्महत्याओं के बावजूद ऐसी कार्पोरेट पक्षीय, जमींदार-पक्षीय नीतियों को बढ़ाया जा रहा जिनकी वजह से कृषि क्षेत्र में संकट खड़ा हो रहा है।
यह मजदूरों का राष्ट्रीय सम्मेलन वर्तमान सरकार के तहत सरकारी मशीनरी के संरक्षण में समाज में चलाए जा रहे साम्प्रदायिक और विभाजक षडयंत्रों के विरुद्ध अपनी तीव्र ंिनंदा लिखता है। देश में अमन पसंद धर्मनिरपेक्ष लोग सभी जगह आतंक और असुरक्षा की कठोर परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। साम्प्रदायिक ताकतें अकारण ही समाज में लड़ाई का माहौल तैयार कर रही हैं। यह माहौल आमतौर पर मजदूरों और मेहनतकश जनता की एकता को भंग कर रहा है। उस एकता की जो कि 12 सूत्रीय मांग पत्र को आगे बढ़ाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। मजदूर वर्ग को इन साम्प्रदायिक विभाजक शक्तियों के लिए अपनी मजबूत आवाज उठानी चाहिए।
वर्तमान सरकार की निजी कार्पोरेट से मित्रता रखने वाली नीतियों के कारण देश के सभी भागों में आमतौर से मजदूरों और मेहनतकश पर होने वाले हमलों से राष्ट्र के सामने संकट गहराता जा रहा है।
वहीं दूसरी और मजदूर वर्ग ने आत्मघाती जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध जारी हड़तालों समेत अन्य संघर्षों से ट्रेड यूनियन आंदोलन की मजबूत एकता व्यापक की है।
सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच और स्वतंत्र राष्ट्रीय फेडरेशनों का काम है कि विभिन्न क्षेत्रों में उठ रहे संघर्षों को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित संयुक्त आंदोलनों और लामबंदी से अधिक सघन करें। इसके साथ ही सभी सेक्टरों के संघर्षों को मजबूत करने और इनके चरम बिंदु के रूप में देशव्यापी हड़ताल की जाए। अत: यह मजदूरों का राष्ट्रीय सम्मेलन निम्नलिखित कार्यक्रमों को अपनाता है :
1. अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में उठाई गई अपनी मांगों के संदर्भ में संयुक्त आंदोलनों को खड़ा करने और आंदोलनों को तेज करने की दिशा में काम करना।
2. राष्ट्र स्तरीय लामबंदी की तैयारी के लिए ब्लाक/जिला/राज्य सरकार के औद्योगिक केंद्रों पर भीषण प्रचार, लामबंदी और सम्मेलन संगठित किए जाएंगे।
3. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में तीन दिन का लगातार हर रोज एक विशाल धरना संगठित किया जाए जिसमें देशभर के लाखों मजदूर भागीदारी करेंगे।
4. राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न सेक्टरों में कार्यरत देशभर की मेहनतकश जनता को आह्वान करता है कि संबंद्धताओं से ऊपर उठकर इस कार्यक्रम को पूरी तरह सफल बनाएं।
राष्ट्रीय सम्मेलन कामगार जनता से आह्वान करता है कि सरकार की जन विरोधी, राष्ट्रविरोधी नीतियों के खिलाफ अनिश्चितकालीन देशव्यापी हड़ताल के लिए तैयार हों।

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