Thursday 16 March 2017

हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में काले धन के बारे में एक खुला पत्र

सुदर्शन कंदरोडी, इंदौरा, हि.प्र. 
जनता को काला धन के बारे में जानकारी देने के लिये केंद्रीय सरकार विशेष कर माननीय प्रधानमत्री जी को आह्वाण करते देख तथा इलैकट्रोनिक मीडिया में काले धन नाम से ईमेल को देख अति उत्साह में आकर लिखने का प्रयास कर रहे है,भले ही इस पर कार्यवाई की उम्मीद कम ही है। क्योंकि काले धन्धे वाले ज्यादातर आप के स्वयं के दल सहित अन्य प्रमुख दलों के राजनीतिक नेता ही है। तथा आप सहित अन्य नेताओं के चुनाव प्रचार व विजयी बनबाने में उनकी बडी भुमिका होती है। उम्मीद पर दुनिया चलती है, शायद अच्छे दिन आयें इस लिये राजनीतिक दलों की सरपरस्ती में चल रहे ताकतवर खनन माफिया के खिलाफ लिखने का जोखिम लें रहें है।  इस पहले प्रयास में हम स्टोन करैशरों के मालिकों द्वारा पैदा किये जा रहे काला धन के बारे में यह आशा रखते हुये आप को सूचित कर रहे हैं कि शायद यह सूचनायें पहले आप के पास न हों। जबकि ऐसा मानना हमारा भ्रम मात्र ही है क्योंकि देश में जो भी  कानूनी /गैर कानूनी गतिविधियां चलती है, सरकार अपनी बिभिन्न ऐंजसियां  द्वारा  उनसे अवगत होती ही है।                                  
गांव कंदरोडी के नजदीक की बरसाती छौंछ नदी में अरसा 9-10 साल से चार स्टोन क्रैशर दोनों बडे दलों (कांग्रेस तथा भाजपा) के राजनीतिज्ञों तथा उनसे राजनीतिक प्राय प्राप्त दंबग लोगों द्वारा चलाये जा रहे हैं जिन्होंने बरसाती नदी का स्वरूप ही तबाह कर दिया है। सरकार की विभिन्न ऐजंसियां समय पर इस खनन के बारे में चिंता जाहिर करती रहती हैं लेकिन इस पर कोई सुनवाई नहीं होती जिस में भारतीय रेलवे के अधिकारियों के पत्र नं:
No. 18-W/60/PTK Dated 25-10-2012 तथा कांगडा के जिलाधीश महोदय जी को उनके अधीनस्थ अधिकारी के पत्र सख्या नं: Endst No 404/PA/ADC dated 19.08.2014 द्वारा दी गई रिपोर्ट प्रमुख हैं द्वारा जिसे हम इस पत्र में (ENX-1)(ENX-2) से दिखा रहे हैं। जिसमे सक्षम अधिकारियों द्वारा दी गई चेतावनियां , कि 15 से 20 मीटर तक गहरे अबैध खनन से रेलबे पुलों व नदियों के स्वरूप तथा तट बंधों को नुक्सान पहूंच सकता है, सच साबित हूई है। हमारे यहां छौंछ खड्ड पर बना पुल  पिछली बरसात (2016) में बह गया । इससे पहले चक्की नदी  के दो पुल क्षतिग्रस्त   हो चुके हैं। जो पठानकोट—नूरपूर व पठानकोट-जालन्धर रोड पर बने हुये हैं। जबकि हमारे सुत्रों अनुसार पठानकोट-जालन्धर रेलवे लाईन पर चक्की नदी पर स्थित पुलों को बहने से बचाने के लिये काफी सरकारी धन लग रहा है। नदी का तल गहरा होने से पानी (भूजल) का स्तर गहरा हुआ है। आस-पास की खेती की कुहलों द्वारा होती सिंचाई प्रभावित हूई है।         
PWD वभाग के (ENX-3) पत्र सख्या क्रमांक लो.नि.वि./30/म./आर.टी.आई 2013/1987—88 दिनांक 12.09.13 से प्राप्त सुचना अनुसार पठानकोट—जालंधर जी.टी रोड के इंदौरा मोड़ (ग्रीन लैंड पब्लिक स्कूल से इंदौरा तक)उपयुक्त सडक निर्माण के मैटरियल तथा निर्माण विधि का प्रयोग करने के बावजूद टूटने का प्रमुख कारण रेत बजरी से भरे भारी भरकम मल्टी एक्सल ट्रकों की आवाजाई को जिम्मेबार ठहराया गया है। तथा इस के लिये 13 करोड रुपये की आवश्यकता बताई थी। बेशक इस सडक़ के पुननिर्माण के लिये साधारण जन को अन्दोलन करना पड़ा था। साधारण गृहणियों /महिलायों सहित आंदोलनकारियों को सरकारी जजिया उगराहने बाले टोल टैक्स नाके को लूटने के झूठे पुलिस केस का सामना करना पड़ा। यह केस शायद अभी भी चल रहा है। किसानों की भूमि उजड़ रही है, जबकि क्रेशर मालिक मालामाल हो रहे हैं। बडी संख्या में किसानों, गरीब जनता को पीने वाले पानी से भी मोहताज होना पड़ेगा, तथा पड़ रहा है।
कैसे धन कमाया जा रहा है? इसकी एक उदाहरण इस प्रकार से है।  आबकारी व कराधान अधिकारी डमटाल वृत स्थित कन्दरोड़ी के पत्र संख्या ई.एक्स.एन—डी.एम.टी.—आर.टी.आई—389 (ENX-4 & 5) से प्राप्त जानकारी अनुसार चार चल रहे स्टोन क्रेशरों में एक जिस ने सब ज्यादा बिजनेस किया है राशि 3,30,28,663.47 रुपये (समय अबधि 01.01.2014 से 30.09.2016) का व्यापार किया। अर्थात 32962.73 रुपये प्रति दिन। जबकि आम जानकारी के अनुसार एक क्रेशर पर जेसीबी, ट्रक ट्रालियों, लोडर व कार आदि को मिला कर 15-16 वाहन तथा इतने ही कामगार  होते हैं। इनका अपना खर्च ही शायद इस राशि से अधिक हो। बेशक हमारे द्वारा कार्यालय खनिज अधिकारी कांगड़ा स्थित धर्मशाला से आर.टी. आई कानून के तहत, यह जानकारी मांगने पर कि इन क्रेशरों पर कितने जे. सी. बी, ट्रक, ट्रालियां काम करती हैं के जबाब में कार्यालय के पास सूचना उपलब्ध नहीं है, पत्र संख्या : एम.ओ./कांगडा/ आर.टी.आई.—2005—2016 1093 से (ENX-6) द्वारा बताया गया। एक और रोचक जानकारी इस कार्यालय से प्राप्त हुई कि चार की बजाये दो ही क्रेशर प्रचलित नाम से उनके पास पंजीकृत है। जबकि आबकारी विभाग के पास तीन क्रेशरों की सूचना उपलब्ध है। यानी विभागों का आपसी तालमेल का नायाब नमुना।               
इसी प्रकार से कैसे हमारे प्रांत की अपार सम्पदा का दोहन विभिन्न नामों से चल रहे स्टोन क्रैशर मालिक कर रहे हैं । एक और सरकारी पत्र से बेपर्दा होता है, सहायक आबकारी व काराधान कमिशनर नूरपूर एट जाछ डमताल को Letter No. EXN-RTI/w®vy-w®vz-wz|z (ENX-7)को उद्धृत करते हूये आबकारी तथा टैक्स अधिकारी डमटाल सर्कल एट कंदरोडी जिला कांगड़ा को  अवगत करवाते हैं कि व्यास नदी के दूसरी ओर लगे एक स्टोन क्रैशर ने जनवरी 2013 से अप्रैल 2014 तक रेत 2000-00 प्रति ट्रक तथा (बजरी (
65 MM 10MM ) 1500 प्रति ट्रक के हिसाब से बेचते हुये कुल 2,48,75,839-00 रुपये की रेत-बजरी की बिक्री की। यानी 24875839-00 / 485 =  51290.39 रुपये प्रतिदिन। इसका अर्थ हुआ 51290.39 /1500= 34 ट्रक। ट्रक 10 टायर वाला है अथवा 20 टायर वाला तथा बजरी ६५ MM व १०MM में कोई अन्तर नही। टके सेर भाजी टके सेर खाजा बाली कहावत और कैसे चद्घरतार्थ होगी?
चलिये हम 10 टायर बाले ट्रक का हिसाब देखते है। ट्रकों के जानकारों के अनुसार 10 टायर बाले ट्रक में 9 से 11 सैंकडे माल भरा जाता है। (एक सैकडा=10ङ्ग10ङ्ग1’ फुट) माल भर कर पंजाब की ओर जाते एक ट्रक वाले से पूछने पर आजकल एक सैंकड़ा का भाव 950 से 1100 का पता चला। उसने यह भी बताया आजकल सस्ता है कभी यह 1800 से 2200 तक भी बिका है। हम अगर सबसे कम रेट 950 रुपये लें तो एक ट्रक से 8000 से 9500 रुपये का काला धन पैदा हो रहा है। अर्थात 8000ङ्ग34 =272000ङ्ग365=9,92,80,000 रुपये हर एक साल में कम से कम तथा कम से कम उत्पादन को हिसाब मे लेने पर शुद्ध काला धन एक स्टोन क्रैशर द्वारा निर्बाध रूप से सृजित किया जा रहा है।                                                     
एक अन्य सरकारी विभाग के नूरपूर स्थित कार्यालय से प्राप्त सूचना के अनुसार इस विभाग ने स्टोन करैशर से 650 रुपये/प्रति क्युकि मीटर के हिसाब से बजरी खरीदी। एक क्युविक मीटर=35.2875 क्युविक फुट। इस हिसाब से सारे आंकडे दुगने हो जाते हैं यानि 1842.01 रूपये प्रति सैकडा अर्थात एक ट्रक 18420.10 -1500 =16920.10 रुपये प्रति ट्रक के पीछे काला धन। मायने 16920.10ङ्ग34=575283.40ङ्ग365 =20,99,78,441.00 एक क्रैशर का काला धन। अब इस को 282 स्टोन क्रैशर से मल्टीप्लाई कीजिये 59,21,39,20,362 रुपया शुद्ध भारतीय करंसी में  अगर हमारी स्मृति में ठीक से दर्ज है तो हिमाचल सरकार में एक माननीय मंत्री ने विधान सभा में एक प्रश्न के उतर में बताया है कि हिमाचल प्रदेश में 290 के करीब स्टोन क्रैशर पर्यावरण तथा अन्य खनन सम्बंधी सब स्थापित तय मानकों की पालना करते हुये प्रदेश की आर्थिक उन्नति में भागीदारी कर रहे हैं व 34 को स्थापित करने के और प्रस्ताव सरकार के पास आये हुये हैं। जबकि एक प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार पत्र में एक आर.टी.आई के हवाले से तकरीबन दो साल पहले खबर छपी हुई थी कि हिमाचल प्रदेश में 282 स्टोन क्रैशर चल रहे है तथा उनमें से मात्र 7 के पास पर्यावरण कलीयरेंस सर्टीफिकेट हैं। 
चलिये हम 282 को ही सही मानते है साधारण गणित से 99280000ङ्ग282=27,99,69,60,000 रूपये बनता है। यह है वह शुद्ध काला सोना (व्यापार) जो हमारे यहां के स्टोन क्रैशर हर साल पैदा कर रहे है। हमारे प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित प्रतिष्ठित विश्वविधालय को ढंग से चलाने के लिये वार्षिक आवश्यकता 150 करोड़ की हैं।     
आम तौर पर देखने से यह आकंडा अतिश्योकित लगता है, लेकिन अरसा आठ दस साल पहले टूटे हुये स्कुटरों पर घुमने वालों को आज जब बडी-बडी कारों में घुमते, हम आप की तरह साधारण घरों में रहने वालों के आज महलनुमा घरों को देखते है। तथा इस प्रकार से आये धन से स्थानीय स्तर से प्रदेशिक व केन्द्रिय स्तर पर राजनीति व प्रशासन व एक हद तक न्याय को प्रभावित कर पाने की क्षमता देखते हैं तो यकीन करना सहज ही आसान हो जाता है।    
अभी एक माननीय केंद्रीय मंत्री जी ने एक ब्यान में कहा कि यदि लोग सही से टैक्स अदा करें तो कर दरें कम की जा सकती है।
1980 में पश्चिमी बंगाल की वाममोर्चा सरकार के तत्कालीन वितमंत्री प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अशोक मित्रा लगातार तीन बार के बजट में बिना किसी प्रकार का टैक्स वढाये, सब जाति धर्मों के बच्चो को बिना किसी भेदभाव के निशुल्क शिक्षा, दसवीं तक सब व्द्यिार्थियों को किताबें व दो युनिफार्म फ्री जैसी प्रगतिशील योजनायों के लिये धन का प्रावधान करने के बाद एक सेमिनार को सम्बोधित करने चंडीगढ़ आये। धन के प्रबधन सम्बंधी प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बताया कि जितनी प्रकार के टैक्स सरकारों ने लगा रखे हैं अगर उनके आधे भी ईमानदारी से एकत्रित कर लिये जायें तो और कोई टैक्स लगाने की आवश्यकता नहीं रह जाती तथा सब सरकारों के बजट मुनाफे वाले हो जायेंगे। उसके बाद तो हमारी तमाम सरकारों ने नये-नये टैक्सों की समृद्ध परम्परा को वैट, सर्विस टैक्स, तथा स्वच्छ भारत सैस जैसे न जाने कितनी और करों से सुशोभित/ सुसज्जित किया है। खेद है कि तब भी हमारी तथाकथित जन हितेषी सरकारों के बजट घाटे में ही रह जाते है।
श्रीमान जी, पिछले साल हमारे यहां इंदौरा तहसील के गन्ना की खेती करने बाले कृषकों को सरकारी दया के कारण 500 रुपये प्रतिटन का घाटा सहना पडा। क्योंकि पंजाब में स्थित चीनी मिल वालों ने गन्ने की तय कीमत 2400/- प्रतिटन अदा की। भले ही किसानों के अंदोलन के बाद पंजाब सरकार अपने किसानों को 500 रुपये प्रति टन बोनस देने को विवश हुई। परन्तु क्योंकि हिमाचल का किसान विभिन्न सत्ताधारी राजनीतिक दलों की रहनुमाई में चलते कृषक सघों की मेहरबानी पर आश्रित है जिनकी एक दूसरे दल की राजनीतिक रूप से आलोचना करने के अतिरिक्त किसी प्रकार के जनवादी अन्दोलन की पृष्ठभूमि नहीं रही है तथा न ही यह तथाकथित किसान नेता किसानों को जनवादी असूलों पर संगठित करने में यकीन रखते हैं इस लिये हिमाचल के गन्ना पैदा करने वाले किसान को 50 रुपये प्रति किवंटल घाटा सहना पड़ा। इस धन (27,99,69,60,000 रुपये) प्रति साल से कितनी चीनी मिलें लग सकती ? जानकार लोग ही बता पायेंगे। जिससे हमारी जनता को चीनी से वचित नहीं रहना पडेगा जैसे इस बार सरकारी डिपुओं को चीनी से वंचित रहना पडा। युवको को रोजगार मिलेगा तथा इस से निकलने वाली लुगदी से गत्ता उधोग पनप सकेंगे। 
कितने किलो मीटर सडक़ का निर्माण इस धन से हो सकता है? जिससे याता यात आसान होगा, फ्यूल कम जलने से प्रायवरण शुद्ध रहेगा व सडकों की खराब दशा के चलते होने वाली सडक दुर्घटनायों को टाल कर वेशकीमती जानों को बचाया जा सकेगा।  अभी हमारे प्रदेश की सरकार, सतारूढ राजनीतिक दल व प्रमुख  तथाकथित राष्ट्रवादी विपक्षी राजनीतिक दल में 9 लाख पंजीकृत बेरोजगार नौजवानों के बेरोजगारी भत्ता देने के नाम पर नूराकुश्ती धुमधमाके से चल रही है। इस काले धन के कारोबार पर यदि कम से कम 10फीसदी टैक्स भी ले लिया जाये तो हिसाब लगाईये कितना बेरोजगारी भत्ता सरकार अपने यहां के बेरोजगारों को दे सकती है।        
हम इस आशा के साथ  कि आपके समक्ष हिमाचल सरकार को अपने आगामी वजट में इन बिंदुयों पर गौर करने का निर्देश देंगे जिस पर अमल करते हुये हमारी प्रदेश की लोकप्रिय सरकार टैक्स कुलैकशन का प्रयास करेगी ताकि समृद्ध हिमाचल की ओर एक प्रयास किया जा सके तथा सारे देश के लिये उपयुक्त खनन नीति से आर्थिकता को सदृढ करने के लिये मार्गदर्शक बन सके ।

No comments:

Post a Comment