ਸੀ.ਪੀ.ਆਈ.(ਐਮ) ਦੀ ਕੇਂਦਰੀ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਵਲੋਂ ਲਈਆਂ ਗਈਆਂ ਕਈ ਗੈਰ ਸਿਧਾਂਤਕ ਰਾਜਨੀਤਕ-ਜਥੇਬੰਦਕ ਪੁਜੀਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਕੇਂਦਰੀ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਮੈਂਬਰ ਕਾਮਰੇਡ ਜਗਮਤੀ ਸਾਂਗਵਾਨ ਨੇ 20 ਜੂਨ ਨੂੰ ਉਸ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਮੁਢਲੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਤੋਂ ਅਸਤੀਫਾ ਦੇਣ ਦਾ ਦਲੇਰੀ ਭਰਪੂਰ ਕਦਮ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਘਟਨਾ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਮੁੱਚੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਅੱਜ ਭੱਖਵੀਂ ਚਰਚਾ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਬਣੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਇਸ ਸੰਦਰਭ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਏ ਰਾਹੀਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਉਹਨਾਂ ਦਾ 21 ਜੂਨ ਨੂੰ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਇਹ ਪੱਤਰ 'ਸੰਗਰਾਮੀ ਲਹਿਰ' ਦੇ ਪਾਠਕਾਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ। - ਸੰਪਾਦਕੀ ਮੰਡਲ
प्रिय साथियो,
मैं 1986 से सीपीआई (एम) की सदस्या थी और जीवन में कोई भी व्यक्ति अपने राजनीतिक सिद्धान्तों और मूल्यों के लिए जितना संघर्ष कर सकता है या जो कीमत दे सकता है वो मैंने ईमानदारी से करने की कोशिश की। लेकिन आज जब मैं एडवा (आल इंडिया डैमोक्रेटिक वुमैंस फैडरेशन) की सचिव थी व केन्द्रीय कमेटी की सदस्या थी, तब पार्टी से इस्तीफा देने की क्या नौबत आ गई, वह मैं अपने साथियों, मित्रों व शुभचिन्तकों के साथ साझा करना चाहती हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरे साथी परेशान हैं व वो जानना चाहते हैं कि मैंने अंदरूनी संघर्ष का रास्ता ही क्यों नहीं अपनाया। परेशान मैं भी अत्याधिक हूं। और हर कोशिश की कि पूरे मसले को पार्टी के अन्दर उपलब्ध तौर तरीकों से ही डील किया जाए। वरना हकीकत में बोलते हुए जिस दिन से सीपीएम ने बंगाल में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया उसी दिन से आत्मा परेशान थी। क्योंकि हम शुरू से अपने नेताओं से सुनते आए हैं कि बंगाल में; इसमें व्यक्तियों की बात नहीं है। वर्ग संघर्ष की राजनीति का इतिहास रहा है, कि वहां कांग्रेस के हाथ हमारे गरीब प्रतिबद्ध साथियों के खून से रंगे हुए हैं। वर्गीय राजनीति को छोड़ दें तो कांग्रेस में भी कई नेक लोग हो सकते हैं, पर सवाल व्यक्तियों का नहीं है।
आज आप उसी वर्ग विरोधी राजनीति से हाथ मिला रहे हैं। वो भी भाजपा के खिलाफ नहीं जो वर्ग विरोधी और साम्प्रदायिक दोनों ही है, बल्कि कांग्रेस से टूट कर अलग हुए एक हिस्से तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ। केन्द्रीय कमेटी की विशेष बैठक बुलाई गई इस पूरे सवाल पर विमर्श के लिए। पीबी में महासचिव तथा बंगाल के 4 साथियों के अलावा इस लाईन को किसी का भी समर्थन नहीं था। केन्द्रीय कमेटी ने भी दो-तिहाई से भी ज्यादा के बहुमत से उस प्रस्ताव को ठुकराया। लेकिन बंगाल की पार्टी ने फिर भी वही किया। उस वक्त जब हम सवाल उठा रहे थे तो हमें कहा गया कि चुनाव के बाद बोलना बीच में डिस्टर्ब मत करो। हमने ठीक वैसा ही किया। और एक बात और यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि अगर मेरी ईमानदारी के कोई मायने हैं तो मैंने यह सोचा था कि अगर पार्टी जीत भी जाती है तो भी मैं गलत को गलत कहने में सब कुछ दाव पर लगा दूंगी। दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य से बंगाल की जनता ने भी इस अवसरवादिता को नकार दिया।
फिर 18-20 जून को केन्द्रीय कमेटी की बैठक हुई। उसमें पोलिट ब्यूरो का बहुमत का नोट रखा गया जिसमें इस फैसले को राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन का उल्लंघन बताया गया। मीटिंग में उसे सुनकर बहुत राहत मिली कि आखिर पार्टी सही जगह पर आई। परन्तु उसके साथ-साथ पार्टी महासचिव ने अपना अलग नोट रखा जिसमें उन्होंने कहा कि बंगाल कमेटी द्वारा कांग्रेस के साथ जाने की सारी कवायदें पार्टी की लाईन से मेल भर नहीं खाती तथा यह इसका उल्लंघन नहीं है। बंगाल के दो मुख्य नेता यहां तक बोल गए कि अगर पीबी का नोट माना गया तो वे इस्तिफा दे देंगे। इसके बावजूद केन्द्रीय कमेटी के दो-तिहाई सदस्यों ने इसे पार्टी कार्यक्रम, राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन व केन्द्रीय कमेटी के फैसले का उल्लंघन बताया तथा साथ में उन्होंने इस समझौतावादी रूख से उनके अपने राज्यों में हुए नुक्सान को भी बयां किया। इसके बावजूद बहस को सुनकर पीबी ने जो प्रस्ताव अंत में रखा उसमें बहुमत की भावना के बजाय अल्पमत की भावना को दर्ज करते हुए ‘उल्लंघन’ को हटाकर ‘मेल नहीं खाता है’ कर दिया। मतलब राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन से समझौते के लिए किसी की भी जवाबदेही तय नहीं की जाएगी। इस पर कुछ साथियों ने सवाल उठाए व इसे पास नहीं किया जिनमें मैं भी शामिल थी। साथी जब बोलने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा था। इसके बाद मुझे अंदरूनी संघर्ष की जगह खत्म लगी। अत: मैंने प्रोटैस्ट करते हुए कहा कि मैं इस व्यवहार के खिलाफ व इस प्रस्ताव के खिलाफ केन्द्रीय कमेटी व पार्टी सदस्यता से इस्तिफा देती हूं।
हमने पार्टी में आते ही यही सीखा था कि हमारी पार्टी लाईन व जनवादी केन्द्रीयतावाद पार्टी की जीवन रेखा है तथा इनसे समझौता व छेड़ छाड़ सबसे बड़ा अपराध है। सबसे बड़ा अपराध की जवाबदेही तक अगर तय न हो तो इसे हजम कैसे किया जा सकता है? आज पार्टी में अपने ही राजनीतिक सिद्धान्तों से समझौता करने की प्रवृत्तियों से पार्टी व उसकि राजनीति को बचाने की जरूरत है। और मैंने वही किया है सभी उपयुक्त नॉर्म और फोरम का प्रयोग करते हुए। पार्टी कार्यक्रम, पार्टी लाईन व केन्द्रीय कमेटी के फैसले को यूं तोडऩे की गलती को कोई गलती न माने और उसे हजम करने के रास्ते पर चलने का काम करे तो ये उनका अपना फैसला हो सकता है। लेकिन मैं ये नहीं कर पाई व न ही करूंगी। ये कोई भावुकता या गुस्से का सवाल नहीं है।
मैं पार्टी कार्यक्रम से मतभेद नहीं रखती । पर यहाँ उस पार्टी लाईन की ही उपेक्षा हुई जिसे हमारे पुरोधाओं ने अपने खून पसीने से सींचकर आगे बढ़ाया व आज भी हमारे हज़ारों प्रतिबद्ध साथी वही काम कर रहे हैं। मैं उनके उस जज्बे को उसी जज्बे के साथ सलामी देना चाहती हूं चाहे कितनी भी बड़ी कीमत देनी पड़े।
- जगमती सांगवान (21 जून, 2016)
प्रिय साथियो,
मैं 1986 से सीपीआई (एम) की सदस्या थी और जीवन में कोई भी व्यक्ति अपने राजनीतिक सिद्धान्तों और मूल्यों के लिए जितना संघर्ष कर सकता है या जो कीमत दे सकता है वो मैंने ईमानदारी से करने की कोशिश की। लेकिन आज जब मैं एडवा (आल इंडिया डैमोक्रेटिक वुमैंस फैडरेशन) की सचिव थी व केन्द्रीय कमेटी की सदस्या थी, तब पार्टी से इस्तीफा देने की क्या नौबत आ गई, वह मैं अपने साथियों, मित्रों व शुभचिन्तकों के साथ साझा करना चाहती हूं। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरे साथी परेशान हैं व वो जानना चाहते हैं कि मैंने अंदरूनी संघर्ष का रास्ता ही क्यों नहीं अपनाया। परेशान मैं भी अत्याधिक हूं। और हर कोशिश की कि पूरे मसले को पार्टी के अन्दर उपलब्ध तौर तरीकों से ही डील किया जाए। वरना हकीकत में बोलते हुए जिस दिन से सीपीएम ने बंगाल में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया उसी दिन से आत्मा परेशान थी। क्योंकि हम शुरू से अपने नेताओं से सुनते आए हैं कि बंगाल में; इसमें व्यक्तियों की बात नहीं है। वर्ग संघर्ष की राजनीति का इतिहास रहा है, कि वहां कांग्रेस के हाथ हमारे गरीब प्रतिबद्ध साथियों के खून से रंगे हुए हैं। वर्गीय राजनीति को छोड़ दें तो कांग्रेस में भी कई नेक लोग हो सकते हैं, पर सवाल व्यक्तियों का नहीं है।
आज आप उसी वर्ग विरोधी राजनीति से हाथ मिला रहे हैं। वो भी भाजपा के खिलाफ नहीं जो वर्ग विरोधी और साम्प्रदायिक दोनों ही है, बल्कि कांग्रेस से टूट कर अलग हुए एक हिस्से तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ। केन्द्रीय कमेटी की विशेष बैठक बुलाई गई इस पूरे सवाल पर विमर्श के लिए। पीबी में महासचिव तथा बंगाल के 4 साथियों के अलावा इस लाईन को किसी का भी समर्थन नहीं था। केन्द्रीय कमेटी ने भी दो-तिहाई से भी ज्यादा के बहुमत से उस प्रस्ताव को ठुकराया। लेकिन बंगाल की पार्टी ने फिर भी वही किया। उस वक्त जब हम सवाल उठा रहे थे तो हमें कहा गया कि चुनाव के बाद बोलना बीच में डिस्टर्ब मत करो। हमने ठीक वैसा ही किया। और एक बात और यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि अगर मेरी ईमानदारी के कोई मायने हैं तो मैंने यह सोचा था कि अगर पार्टी जीत भी जाती है तो भी मैं गलत को गलत कहने में सब कुछ दाव पर लगा दूंगी। दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य से बंगाल की जनता ने भी इस अवसरवादिता को नकार दिया।
फिर 18-20 जून को केन्द्रीय कमेटी की बैठक हुई। उसमें पोलिट ब्यूरो का बहुमत का नोट रखा गया जिसमें इस फैसले को राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन का उल्लंघन बताया गया। मीटिंग में उसे सुनकर बहुत राहत मिली कि आखिर पार्टी सही जगह पर आई। परन्तु उसके साथ-साथ पार्टी महासचिव ने अपना अलग नोट रखा जिसमें उन्होंने कहा कि बंगाल कमेटी द्वारा कांग्रेस के साथ जाने की सारी कवायदें पार्टी की लाईन से मेल भर नहीं खाती तथा यह इसका उल्लंघन नहीं है। बंगाल के दो मुख्य नेता यहां तक बोल गए कि अगर पीबी का नोट माना गया तो वे इस्तिफा दे देंगे। इसके बावजूद केन्द्रीय कमेटी के दो-तिहाई सदस्यों ने इसे पार्टी कार्यक्रम, राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन व केन्द्रीय कमेटी के फैसले का उल्लंघन बताया तथा साथ में उन्होंने इस समझौतावादी रूख से उनके अपने राज्यों में हुए नुक्सान को भी बयां किया। इसके बावजूद बहस को सुनकर पीबी ने जो प्रस्ताव अंत में रखा उसमें बहुमत की भावना के बजाय अल्पमत की भावना को दर्ज करते हुए ‘उल्लंघन’ को हटाकर ‘मेल नहीं खाता है’ कर दिया। मतलब राजनीतिक-कार्यनीतिक लाईन से समझौते के लिए किसी की भी जवाबदेही तय नहीं की जाएगी। इस पर कुछ साथियों ने सवाल उठाए व इसे पास नहीं किया जिनमें मैं भी शामिल थी। साथी जब बोलने की कोशिश कर रहे थे तो उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा था। इसके बाद मुझे अंदरूनी संघर्ष की जगह खत्म लगी। अत: मैंने प्रोटैस्ट करते हुए कहा कि मैं इस व्यवहार के खिलाफ व इस प्रस्ताव के खिलाफ केन्द्रीय कमेटी व पार्टी सदस्यता से इस्तिफा देती हूं।
हमने पार्टी में आते ही यही सीखा था कि हमारी पार्टी लाईन व जनवादी केन्द्रीयतावाद पार्टी की जीवन रेखा है तथा इनसे समझौता व छेड़ छाड़ सबसे बड़ा अपराध है। सबसे बड़ा अपराध की जवाबदेही तक अगर तय न हो तो इसे हजम कैसे किया जा सकता है? आज पार्टी में अपने ही राजनीतिक सिद्धान्तों से समझौता करने की प्रवृत्तियों से पार्टी व उसकि राजनीति को बचाने की जरूरत है। और मैंने वही किया है सभी उपयुक्त नॉर्म और फोरम का प्रयोग करते हुए। पार्टी कार्यक्रम, पार्टी लाईन व केन्द्रीय कमेटी के फैसले को यूं तोडऩे की गलती को कोई गलती न माने और उसे हजम करने के रास्ते पर चलने का काम करे तो ये उनका अपना फैसला हो सकता है। लेकिन मैं ये नहीं कर पाई व न ही करूंगी। ये कोई भावुकता या गुस्से का सवाल नहीं है।
मैं पार्टी कार्यक्रम से मतभेद नहीं रखती । पर यहाँ उस पार्टी लाईन की ही उपेक्षा हुई जिसे हमारे पुरोधाओं ने अपने खून पसीने से सींचकर आगे बढ़ाया व आज भी हमारे हज़ारों प्रतिबद्ध साथी वही काम कर रहे हैं। मैं उनके उस जज्बे को उसी जज्बे के साथ सलामी देना चाहती हूं चाहे कितनी भी बड़ी कीमत देनी पड़े।
- जगमती सांगवान (21 जून, 2016)
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