Sunday 7 December 2014

खतरनाक है हर रंग की सांप्रदायिकता

मंगत राम पासलादेश भर में अल्पसंख्यक सांप्रदायों से संबंधित लोगों के दिलों में केंद्र में भाजपा (वास्तव में आरएसएस) के सत्तासीन होने के बाद व्यापक स्तर पर निराशा व भय पाया जा रहा है। ऐसा निराधार भी नहीं है। संघ व भाजपा के नेताओं द्वारा प्रतिदिन ही धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेषतय: मुसलमानों के बारे में दिए जा रहे बेतुके व मनघड़ंत तथ्यों पर आधारित ब्यान व प्रचार निश्चय ही आम लोगों में कई किस्म के संदेह व भ्रम पैदा कर रहे हैं। किसी आतंकवादी घटना या सांप्रदायिक संकुचित विचार को विशेष धर्म या सांप्रदाय के समूह लोगों के साथ जोडऩा सरासर गलत व भ्रमित करने वाला है। आतंकवादी तथा हिंसक, देश विरोधी व समाज विरोधी गतिविधियों में जुटे हुए शरारती तत्व हर ओर ही देखे जा सकते हैं। पंजाब में चली आतंकवाद व अलगाववाद की आंधी के काले दिन, गुजरात दंगे, जम्मू-कश्मीर में अलगावादी तत्वों द्वारा की जा रही हिंसक घटनाओं व उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावों से पहले मुज्जफरनगर में योजनाबद्ध तरीके से भडक़ाए गए सांप्रदायिक  दंगे इस तथ्य के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। परंतु संघ परिवार द्वारा सांप्रदायिक धु्रवीकरण के मनसूबों द्वारा समाज में  फैले समस्त कुकर्मों को सचेत रूप में एक विशेष सांप्रदाय के धर्म से जोड़ा जा रहा है ताकि देश को धर्म निरपेक्षता व जनवादी रास्ते से पथभ्रष्ट करके एक धर्म आधारित देश (हिंदू राष्ट्र) में परिवर्तित करने के प्रतिक्रियावादी उद्देश्य की ओर तेजी से बढ़ा जा सके। देश की वर्तमान अवस्था, जहां साम्राज्यवादी नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण जनसाधारण गरीबी, बेकारी व अनपढ़ता के जाल में जकड़े जाने के साथ साथ घोर वैचारिक पिछड़ेपन का भी शिकार हैं, सांप्रदायिक व अलगाववादी शक्तियों को अपने पैर पसारने के लिए उपजाऊ भूमि प्रदान करती है। इसी कारण आने वाले दिनों के दौरान प्रतिक्रियावादी शक्तियों की बढ़ी हुई सरगरमियों के मद्देनजर राजनीतिक तथा सामाजिक हालात अधिक तनावपूर्ण होने की संभावनाएं स्पष्ट रूप में दिखाई दे रही हैं।
इन परिस्थितियों में भिन्न भिन्न अल्पसंख्यकों से संबंधित लोगों को भी और अधिक सतर्क व सचेत होने की जरूरत है। सांप्रदायिक व प्रतिक्रियावादी विचारधारा के अनुयायी सारे ही धर्मों व सांप्रदायों के पैरोकारों में मौजूद हैं, जो हर समय स्थिति को विस्फोटक बनाने के अवसर की तलाश में बैठे रहते हैं। अल्पसंख्यकों में भी ऐसे तत्व मौजूद हैं, जो सांप्रदायिक व संकीर्ण दृष्टिकोण से अलगाववादी व कट्टड़वादी गतिविधियों में व्यस्त हैं। वे आस्था व सुरक्षा के परदे में बहुसंख्यक भाईचारे से संबंधित सांप्रदायिक तत्वों का मुकाबला करने के लिए उत्तेजित ब्यानबाजी व कई बार हिंसक कार्यवाहियों से भी गुरेज नहीं करते। ऐसे लोग एक ओर अल्पसंख्यकों को मेहनतकशों के भरोसेयोग्य पक्ष, समूचे जनवादी व वामपंथी आंदोलन से अलग रखकर उनका अपने संकुचित हितों की पूर्ति के लिए दुरुपयोग करते हैं, दूसरी ओर वे देश की जनसंख्या के बड़े भागों के दिलों में समूचे अल्पसंख्यकों के प्रति शंका व अविश्वास के वातावरण को पैदा करने में भी सहायक होते हैं।  वे अल्प संख्यकों की रोटी, रोजी, आवास व विकास से जुड़ी हर समस्या व असुरक्षा के वातावरण को सांप्रदायिक रंग देकर उन्हेंं बहुत ही संकुचित घेरे में कैद कर देते हैं, जहां वह प्रगतिशील धारा से अलग-थलग होकर बहुसंख्यकों से संबंधित सांप्रदायिक तत्वों के हमलों के समक्ष अलग-थलग पड़ जाते हैं। सांप्रदायिकता का मुकाबला सांप्रदायिकता द्वारा कदाचित नहीं किया जा सकता। वैसे हर रंग के बुनियादपरस्तों व सांप्रदायिक तत्वों के भीतर समाज व इतिहास के प्रति अवैज्ञानिक दृष्टिकोण, नफरत भरे विचार, तर्कशीलता को तिलांजलि देकर घोर अंधविश्वास व प्रगतिशील आंदोलन के प्रति घृणा की मजबूत सांझ देखी जा सकती है। दोनों पक्षों के प्रतिक्रियावादी तत्वों की अलगाववादी व भडक़ाऊ कार्यवाहियां एक दूसरे को बल प्रदान करती हैं, जिसकी बिना किसी हिचकचाहट के निंदा की जानी चाहिए।
इसलिए जब आने वाले समय में देश के देशभक्त, जनवादी व प्रगतिशील विचारों वाले समस्त जनसमूह संघ परिवार व मोदी सरकार की सांप्रदायिकता भरी नीतियों का विरोध कर रहे होंगे, तब अल्पसंख्यकों से संबंधित लोगों का भी अपनी सुरक्षा, समुचित विकास व जनवादी अधिकारों की रक्षा के लिए यह पवित्र  कत्र्तव्य बनता है कि वे अपने बीच के हर तरह के संकीर्ण व सांप्रदायिक तत्वों से सावधान रहते हुए उनकी किसी सांप्रदायिक व भडक़ीली कार्यवाही के प्रति सचेत रहकर देश के जनवादी व प्रगतिशील आंदोलन का अभिन्न अंग बनें। इसके साथ ही हर प्रकार की लूट-खसूट व भेद-भाव से निजात हासिल करने के लिए समूचे अल्पसंख्यकों से संबंधित जनसमूहों को सामाजिक परिवर्तन के लिए चल रहे बड़े आंदोलन, जिसमें देश के मेहनतकश लोग धर्मों, जातियों, रंगों, सांप्रदायों व इलाकाई विभाजनों को पीछे छोडक़र संयुक्त संघर्षों के मैदान में कूदते हों, में अपनी बनती हुई भूमिका अदा करना वर्तमान काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इसके साथ ही हर व्यक्ति की अपनी इच्छा के अनुसार कोई भी विचार अपनाने, अलग पहचान बनाए रखने, अपनी मातृभाषा व संस्कृति के विकास तथा अपनी इच्छा अनुसार धार्मिक विश्वास को अपनाने के अधिकार की रक्षा की जा सकती है।  किसी अन्य पक्ष द्वारा लोगों के धार्मिक व राजनीतिक विचारों व व्यवहारों की आजादी में दखल-अंदाजी करने पर रोक भी इसी तरह लगाई जा सकती है। देश के जनवादी व धर्मनिरपेक्ष मुल्यों की रक्षा इसी तरह की जा सकती है तथा बहु-धर्मी, बहु-राष्ट्रीय व भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले विशाल देश को धार्मिक मूलवाद के खतरनाक रास्ते पर बढऩे से रोका जा सकता है। हम सबकी प्रेरणा स्रोत्र, हमारी संयुक्त क्रांतिकारी विरासत, स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लड़े गए संघर्ष में हमारे अपने लोगों व क्षेत्र का योगदान, शहीद ऊधम सिंह, भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव के फांसी के तख्ते से दिए गए संदेश तथा हमारे अपने क्षेत्र के महान नायकों द्वारा समानता, आजादी व आपसी भाईचारे को मजबूत करने के लिए दिये गये अद्वितीय बलिदान हैं। इस सब कुछ को हर रंग के सांप्रदायिक तत्व तथा कट्टड़वादी तत्व तबाह करना चाहते हैं, जिनसे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है। अल्पसंख्यकों से संबंधित जनसमूहों को अधिक सतर्क रहना होगा क्योंकि दुश्मन पक्ष कोई भी बहाना ढूंढ कर हमला करने की ताक में बैठा है।

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