नीलम घुमाण
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। जहां अनेकता में एकता के सिद्धांत के अन्र्तगत विभिन्न जाति, लिंग, धर्म तथा भाषा के लोगों को समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त है। लेकिन दूसरी ओर देखा जाए तो समाज का आधा हिस्सा अर्थात भारतीय औरत भेदभाव, उत्पीडऩ तथा शोषण की शिकार है। अर्थिक शोषण की शिकार भारतीय औरत के बारे में आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत में औरत का श्रम में 60 प्रतिशत हिस्सा है और दूसरी ओर उत्पादन के विभिन्न साधनों पर औरत का मात्र 11 प्रतिशत का ही अधिकार है। कानून द्वारा लडक़े तथा लडक़ी को माता-पिता की सम्पति पर बराबर का अधिकार प्राप्त है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। यहां लडक़ी अक्सर इस अधिकार से वंचित रहती है। घरेलु चाकरी तथा बच्चे पैदा करना तथा उनका पालन पोषण करना आदि काम औरत के हिस्से आया है। नारी उत्पीडऩ की बात करें तो दुनियां में सबसे ज्यादा ब्लात्कार तथा शोषण की घटनाएं भारत में होती हैं।
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में औरत दोहरी गुलामी का शिकार है। एक समाज में औरत होना ही अपने आप में संताप है जिसमें वह पुरूष प्रधान मानसिकता का दबदबा सहन कर रही है। दूसरी इस लुटेरी सरमाएदारी व्यवस्था के शोषण का शिकार है। जहां मर्द की तरह ही औरत के श्रम की भी लूट हो रही है। 1991 में नवउदारवादी आर्थिक व सामाजिक नीतियों के युग के आरंभ होने से साम्राज्यवादी देशों द्वारा पूरी दूनिया में जो आर्थिक नीतियां लागू की गई हैं उनके दुष्प्रभावों का आज समूचा संसार शिकार है। और भारत जैसे विकासशील देश की तो यह दशा है कि महंगाई, बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार ने लोगों का जीवन दुभर कर दिया है। इन नीतियों के कारण दुनिया के साथ साथ भारत में भी बेकारों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। छोटा व्यापार लगभग ठप्प हो गया है। जहां आज इन आर्थिक नीतियों के प्रभाव का शिकार भारत का किसान, मजदूर तथा नौजवान है वहीं औरत भी इससे प्रभावित हुई है। औरत छोटे काम करने पर मजबूर है। काम अधिक लेना तथा मजदूरी कम देना इस तरह उनकी आर्थिक लूट हो रही है। आज भारतीय समाज में औरत की दयनीय स्थिति है जिसमें वह अपनी अस्मिता के साथ-साथ अपनी जान बचाती इस व्यवस्था में जी रही है। बहुदेशीय कंपनियों ने उसे एक वस्तु बना दिया है। लेकिन समाज में आज जो स्थिति औरत की है यह रातो-रात होने वाली प्रक्रिया नहीं है।
आज की औरत की स्थिति सामाजिक विकास के साथ जुड़ी हुई है। जैसे जैसे मनुष्य ने सामाजिक विकास किया औरत को भण्डारण के अधिकार से वंचित रखा औरत कमजोर होती गई। औरत की गुलामी का इतिहास जानने के लिए मानव इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी लेने की आवश्यकता है। मानव इतिहास का पहला युग जब मनुष्य जंगल में कबीले के रूप में रहता था। कच्चा-पक्का जो मिलता खा लेता था फिर मनुष्य पानी की खोज में नदियों नालों के किनारे बस गया और खेती करने लगा। खाने के बाद जो भी अनाज बचता उस अनाज का भण्डारण शुरू किया और उस पर अपना अधिकार जमाना आरंभ किया। श्रम लाभकारी बनता गया और एक कबीले वाले दूसरे कबीले की औरतों के ऊपर भी अपना अधिकार जताने लगे। और इस प्रकार कबीले में औरत की स्थिति कमजोर हो गई और औरत मर्द की गुलाम होनी शुरू हो गई तथा जब मनुष्य ने अनाज तथा पशु के रूप में अपनी निजी संपत्ति बनानी शुरू की तब से पुरूष स्त्री पर अपनी दबदबा तथा गुलामी स्थापित करता गया है और औरत की गुलामी का प्रारंभ हुआ। राजाओं के युग के साथ जमीन, जायदाद पर स्वाभित्व का युग अस्त्वि में आया तथा उस समय का समाज मालिक तथा दास दो हिस्सों में बंट गया। और इस युग में मालिक दास को बेच सकता था, मार सकता था तथा दासों की औरतें तथा बच्चे भी दास दासियां बन जाते। औरत को भोग विलास की वस्तु की तरह समझा जाने लगा। इसी युग में दास दासियों के बाजार अस्त्तिव में आए जहां बाजार में औरत को भी वस्तु की भांति बोली लगाकर बेचा तथा खरीदा जाता था।
राजाओं के विरुद्ध दासों की बगावत के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन हुआ तथा अब प्रत्यक्ष गुलामी के स्थान पर अब भूमि के स्वामित्व के रास्ते लूट की प्रथा आरंभ हुई और मानव समाज का तीसरा युग जागीरदारी युग आरंभ हुआ। अब जागीरदार किसानों, कारीगरों तथा मजदूरों को अपनी लूट का शिकार बनाते थे। मर्दों की तरह औरत भी खेतों में काम करने जाती और जागीरदार जवान औरतों को अपना हवस का शिकार बनाते। जिस कारण समाज में बेटी का होना संताप समझा जाने लगा। बेटी को मारना, दहेज,बाल विवाह, दासी तथा सतीप्रथा जैसे कुरितीयां समाज में पैदा हुईं। समाज ने फिर करवट ली और सरमाएदारी का चौथा युग अस्तित्व में आया जिसमें खेती के साथ साथ दस्तकारी तथा बड़े बड़े कारखाने तथा बड़े बड़े शहर अस्तित्व में आए। तथा इस युग में ऐसे वर्ग अस्तित्व में आए जिनके पास अपनी श्रम शक्ति बेचने के सिवाए और कुछ नहीं था। इस प्रकार औरत सामाजिक विकास के हर पड़ाव में प्रताडि़त होती रही है। वर्तमान समय सरमाएदारी, सबसे प्रचण्ड तथा विकराल रूप धारण करके श्रमिक के श्रम की लूट कर रहा है तथा इसमें औरत सबसे ज्यादा लूटी जा रही है। दोहरी मार की शिकार औरत अपनी अस्मिता और जान बचाती इस लुटेरी व्यवस्था में आगे बढ़ रही है। औरत की मुक्ति का मार्ग समाजवाद की स्थापना के साथ जुड़ा है। जब तक समानता वाली व्यवस्था नहीं स्थापित होगी तब तक औरत अपनी आजादी के लिए संघर्षरत रहेगी।
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। जहां अनेकता में एकता के सिद्धांत के अन्र्तगत विभिन्न जाति, लिंग, धर्म तथा भाषा के लोगों को समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त है। लेकिन दूसरी ओर देखा जाए तो समाज का आधा हिस्सा अर्थात भारतीय औरत भेदभाव, उत्पीडऩ तथा शोषण की शिकार है। अर्थिक शोषण की शिकार भारतीय औरत के बारे में आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत में औरत का श्रम में 60 प्रतिशत हिस्सा है और दूसरी ओर उत्पादन के विभिन्न साधनों पर औरत का मात्र 11 प्रतिशत का ही अधिकार है। कानून द्वारा लडक़े तथा लडक़ी को माता-पिता की सम्पति पर बराबर का अधिकार प्राप्त है, लेकिन वास्तविकता कुछ और ही है। यहां लडक़ी अक्सर इस अधिकार से वंचित रहती है। घरेलु चाकरी तथा बच्चे पैदा करना तथा उनका पालन पोषण करना आदि काम औरत के हिस्से आया है। नारी उत्पीडऩ की बात करें तो दुनियां में सबसे ज्यादा ब्लात्कार तथा शोषण की घटनाएं भारत में होती हैं।
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में औरत दोहरी गुलामी का शिकार है। एक समाज में औरत होना ही अपने आप में संताप है जिसमें वह पुरूष प्रधान मानसिकता का दबदबा सहन कर रही है। दूसरी इस लुटेरी सरमाएदारी व्यवस्था के शोषण का शिकार है। जहां मर्द की तरह ही औरत के श्रम की भी लूट हो रही है। 1991 में नवउदारवादी आर्थिक व सामाजिक नीतियों के युग के आरंभ होने से साम्राज्यवादी देशों द्वारा पूरी दूनिया में जो आर्थिक नीतियां लागू की गई हैं उनके दुष्प्रभावों का आज समूचा संसार शिकार है। और भारत जैसे विकासशील देश की तो यह दशा है कि महंगाई, बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार ने लोगों का जीवन दुभर कर दिया है। इन नीतियों के कारण दुनिया के साथ साथ भारत में भी बेकारों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। छोटा व्यापार लगभग ठप्प हो गया है। जहां आज इन आर्थिक नीतियों के प्रभाव का शिकार भारत का किसान, मजदूर तथा नौजवान है वहीं औरत भी इससे प्रभावित हुई है। औरत छोटे काम करने पर मजबूर है। काम अधिक लेना तथा मजदूरी कम देना इस तरह उनकी आर्थिक लूट हो रही है। आज भारतीय समाज में औरत की दयनीय स्थिति है जिसमें वह अपनी अस्मिता के साथ-साथ अपनी जान बचाती इस व्यवस्था में जी रही है। बहुदेशीय कंपनियों ने उसे एक वस्तु बना दिया है। लेकिन समाज में आज जो स्थिति औरत की है यह रातो-रात होने वाली प्रक्रिया नहीं है।
आज की औरत की स्थिति सामाजिक विकास के साथ जुड़ी हुई है। जैसे जैसे मनुष्य ने सामाजिक विकास किया औरत को भण्डारण के अधिकार से वंचित रखा औरत कमजोर होती गई। औरत की गुलामी का इतिहास जानने के लिए मानव इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी लेने की आवश्यकता है। मानव इतिहास का पहला युग जब मनुष्य जंगल में कबीले के रूप में रहता था। कच्चा-पक्का जो मिलता खा लेता था फिर मनुष्य पानी की खोज में नदियों नालों के किनारे बस गया और खेती करने लगा। खाने के बाद जो भी अनाज बचता उस अनाज का भण्डारण शुरू किया और उस पर अपना अधिकार जमाना आरंभ किया। श्रम लाभकारी बनता गया और एक कबीले वाले दूसरे कबीले की औरतों के ऊपर भी अपना अधिकार जताने लगे। और इस प्रकार कबीले में औरत की स्थिति कमजोर हो गई और औरत मर्द की गुलाम होनी शुरू हो गई तथा जब मनुष्य ने अनाज तथा पशु के रूप में अपनी निजी संपत्ति बनानी शुरू की तब से पुरूष स्त्री पर अपनी दबदबा तथा गुलामी स्थापित करता गया है और औरत की गुलामी का प्रारंभ हुआ। राजाओं के युग के साथ जमीन, जायदाद पर स्वाभित्व का युग अस्त्वि में आया तथा उस समय का समाज मालिक तथा दास दो हिस्सों में बंट गया। और इस युग में मालिक दास को बेच सकता था, मार सकता था तथा दासों की औरतें तथा बच्चे भी दास दासियां बन जाते। औरत को भोग विलास की वस्तु की तरह समझा जाने लगा। इसी युग में दास दासियों के बाजार अस्त्तिव में आए जहां बाजार में औरत को भी वस्तु की भांति बोली लगाकर बेचा तथा खरीदा जाता था।
राजाओं के विरुद्ध दासों की बगावत के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन हुआ तथा अब प्रत्यक्ष गुलामी के स्थान पर अब भूमि के स्वामित्व के रास्ते लूट की प्रथा आरंभ हुई और मानव समाज का तीसरा युग जागीरदारी युग आरंभ हुआ। अब जागीरदार किसानों, कारीगरों तथा मजदूरों को अपनी लूट का शिकार बनाते थे। मर्दों की तरह औरत भी खेतों में काम करने जाती और जागीरदार जवान औरतों को अपना हवस का शिकार बनाते। जिस कारण समाज में बेटी का होना संताप समझा जाने लगा। बेटी को मारना, दहेज,बाल विवाह, दासी तथा सतीप्रथा जैसे कुरितीयां समाज में पैदा हुईं। समाज ने फिर करवट ली और सरमाएदारी का चौथा युग अस्तित्व में आया जिसमें खेती के साथ साथ दस्तकारी तथा बड़े बड़े कारखाने तथा बड़े बड़े शहर अस्तित्व में आए। तथा इस युग में ऐसे वर्ग अस्तित्व में आए जिनके पास अपनी श्रम शक्ति बेचने के सिवाए और कुछ नहीं था। इस प्रकार औरत सामाजिक विकास के हर पड़ाव में प्रताडि़त होती रही है। वर्तमान समय सरमाएदारी, सबसे प्रचण्ड तथा विकराल रूप धारण करके श्रमिक के श्रम की लूट कर रहा है तथा इसमें औरत सबसे ज्यादा लूटी जा रही है। दोहरी मार की शिकार औरत अपनी अस्मिता और जान बचाती इस लुटेरी व्यवस्था में आगे बढ़ रही है। औरत की मुक्ति का मार्ग समाजवाद की स्थापना के साथ जुड़ा है। जब तक समानता वाली व्यवस्था नहीं स्थापित होगी तब तक औरत अपनी आजादी के लिए संघर्षरत रहेगी।
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