Monday, 5 May 2014

मई दिवस की क्रांतिकारी विरासत

दस्तावेज

मई दिवस का इतिहास 19वीं सदी के 9वें दशक से शुरू हुआ। उस समय यूरोप के देशों की तरह अमेरिका में भी मजदूरों में व्यापक बेचैनी फैली हुई थी। इस बेचैनी के परिणामस्वरूप ही पहली मई 1886 को अमेरिका के समस्त बड़े-बड़े ओद्यौगिक शहरों में मजदूरों ने एक दिन की रोष हड़ताल की थी। इस हड़ताल की मुख्य मांग थी 8 घंटे का कार्य दिवस निश्चित करवाना; क्योंकि उस समय मजदूरों से 12-14 घंटे काम लेना एक आम सी बात थी। अमेरिका के शहर शिकागो में इस जुझारू हड़ताल का सबसे अधिक असर हुआ, जहां हजारों मजदूरों ने इसमें बड़े उत्साह से भाग लिया। पूंजीपतियों की अमेरिकन सरकार ने इससे बौखलाकर, अपने वर्गीय चरित्र के अनुसार, मजदूरों पर जवाबी हमला करने का निर्णय लिया तथा 3 मई को हड़ताली मजदूरों की हो रही एक शांतिपूर्ण बैठक पर पुलिस द्वारा बर्बर जुल्म ढाया गया। मजदूरों पर किए गए इस हमले के कारण 6 मजदूर शहीद हो गए। 
निहत्थे मजदूरों पर पुलिस की इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए अगले दिन, 4 मई को, मजदूरों ने शिकागो शहर के ‘हे मार्किट’ (घास मंडी) चौक में एक विशाल शांतिपूर्ण रोष प्रदर्शन किया। इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन को तोडऩे के लिए सत्ता के नशे में चूर सत्ताधारियों ने भडक़ाहट का हथकंडा अपनाया तथा प्रदर्शन पर एक बम फेंक दिया,जिससे एक सारजैंट मारा गया। इसके बाद पुलिस, इस बहाने का इस्तेमाल करके, शांतिपूर्ण मजदूरों के जलूस पर बुरी तरह टूट पड़ी। यह बम विस्फोट एक संकेत था, जिस पर पुलिस ने तथा स्थानीय फौज की टुकड़ी ने, जो कि नजदीक ही बैठाई गई थी, प्रदर्शनकारियों पर गोली चलानी शुरू कर दी। चार और मजदूर शहीद हो गए तथा मुठभेड़ में एक पुलिस वाला भी मारा गया। 
इस खूनी घटना के उपरांत न सिर्फ शिकागो में, जो कि इस रोष लहर का केंद्र था, बल्कि समूचे देश में सरकार ने हड़ताली मजदूरों, विशेष रूप से उनके नेताओं, के विरुद्ध वहिशी ‘जवाबी’ कार्यवाही आरंभ कर दी। सैंकड़े मजदूरों को गिरफ्तार किया गया तथा 8 नेताओं पर, शिकागो शहर में हुए प्रदर्शन का नेतृत्व करने के दोष में, मुकद्दमा चलाया गया। 
इस मुकद्दमे के दौरान पूंजीपतियों की सरकार द्वारा मजदूरों के विरुद्ध जोरदार दुष्प्रचार किया गया। इस दुष्प्रचार के लिए मिल मालिकों ने पानी की तरह पैसा बहाया। पत्रकार व अखबारों के संपादक खरीदे गए तथा अमेरिकावासियों को हर तरह की झूठी कहानियां घड़-घडक़र सुनाई गईं। इस तरह, समूचे देश में मजदूर आंदोलन के विरुद्ध एक तरह का मनोवैज्ञानिक युद्ध छेड़ दिया गया ताकि मजदूर विरोधी हवा बनाई जाए तथा मजदूर वर्ग व उसके संगठनों के विरुद्ध जनमत भडक़ाया जा सके। 
परंतु मुकद्दमे के दौरान, गिरफ्तार किए गए नेताओं द्वारा अपनी सफाई में दिए गए ब्यानों से, यह मुकद्दमा मजदूरों के विरुद्ध नहीं बल्कि पूंजीवादी प्रणाली के विरुद्ध एक जन-फतवे का रूप धारण कर गया। मजदूर नेताओं ने अपनी सफाई का पक्ष पेश करते हुए अपने साहस और वर्गीय गौरव का भरपूर सबूत दिया। उन्होंने ना सिर्फ अपने निर्दोष होने के प्रमाण दिए बल्कि इसके विपरीत अधिकारियों को दोषियों के कटघरे में खड़ा कर दिया। जो नेता गिरफ्तार नहीं किए जा सके थे, वे खुद अदालत में पेश हो कर अपने साथियों के साथ जा खड़े हुए। इसके बावजूद अदालत ने ऐसा अन्यायपूर्ण फैसला लिया जिसने पूंजीवादी न्याय-प्रणाली की निष्पक्षता के मुखौटे को उतारकर उसके वास्तविक वर्गीय चरित्र को बुरी तरह नंगा कर दिया तथा पूंजीवादी जम्हूरियत के ‘समानता’ के लबादे को भी तार-तार कर दिया। चाहे किसी भी नेता का बम धमाके के लिए दोषी होना साबित नहीं हो सका परंतु फिर भी सात नेताओं को मौत की सजा सुनाई गई। यह नेता थे-अल्बर्ट पार्सन्का, आगस्त स्पाईका, सैमुअल फील्डका, माईकल शाअब, लुई किंग, अडोल्फ फिस्चर तथा जार्ज ऐनग्ल। 8वें नेता, आस्कर नीव को 15 सालों की कैद की सजा सुनाई गई। इस मुकद्दमे के दौरान यह बात भी प्रत्यक्ष रूप से साबित हो गई थी कि जिन साथियों को मौत की सजा सुनाई गई उनमें से सिर्फ दो ही थे जो कि चार मई के प्रदर्शन में शामिल थे। 
अमरीकी धनकुबेरों तथा सरकार के इस घोर अन्याय व शर्मनाक कार्यवाही का मकसद मजदूरों में फैली हुई बेचैनी को दबाना था तथा उन मजदूरों को डराना था जो कि अभी चेतन रूप में वर्ग संघर्ष करने के स्तर तक सचेत नहीं हुए थे। इसके बावजूद अमेरिका व यूरोप के मजदूर संगठनों ने, तथा कुछ प्रगतिशील अमेरिकनों ने भी बड़े बड़े रोष प्रदर्शन संगठित किए तथा यह मांग की कि यह नाजायज सजाएं रद्द की जाएं। परंतु अमेरिकी सरकार द्वारा यह समस्त अपीलें/दलीलें अनसुनी कर दी गईं। केवल फील्डज़ व शाअब की मौत की सजाओं को ही उम्रकैद में बदला गया। लुई किंग का जेल में ही देहांत हो गया और अन्य 4 योद्धे-अल्बर्ट पार्सन्का, आगस्त स्पाईका, जार्ज ऐनग्ल व अडोल्फ फिस्चर को 11 नवंबर 1887 को फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया। इन चारों ही बहादुर मजदूर नेताओं ने हंस-हंस कर फांसी के फंदे चूमे। फांसी के तख्ते की ओर बढ़ते हुए स्पाईज़ के अंतिम शब्द थे:
‘‘एक समय आएगा, जब हमारी चुप्पी, हमारे शब्दों से भी ज्यादा मुखर होगी।’’
इस तरह शुरू हुई मजदूर आंदोलन की एक और जुझारू परंपरा, सांझे मजदूर उद्देश्य के लिए क्रांतिकारी बलिदान देने की परंपरा।  दूसरी ओर, जिन तीन नेताओं को उम्र कैद की सजा दी गई थी उनको  1893 में रिहा कर दिया गया। क्योंकि इलियंस प्रांत, जिसमें शिकागो शहर स्थित है, का गर्वनर यह स्वीकार करने के लिए मजबूर हो गया कि इन नेताओं पर लगाए गए आरोप साबित नहीं हो सके थे तथा फांसी पर चढ़ाए गए नेताओं की तरह, ये भी अदालत की पक्षपाती पहुंच का शिकार बने थे। इसके बिना, यह भी सिद्ध हो गया था कि मुकद्दमे के प्रमुख गवाह को रिश्वत दी गई थी। इस तरह, अमेरिकी पूंजीवादी न्यायप्रणाली का भंडा, समूची दुनिया,के सामने चौराहे में फूट गया था। अंतरर्राष्ट्रीय मजदूर आंदोलन द्वारा शिकागो के इस मुकदमे को ‘हे मार्किट केस’ का नाम दिया गया तथा इस केस में फांसी लगाकर शहीद किए गए चार नेताओं को शिकागो के शहीद  कहकर सम्मानित किया गया। झूठे केस बनाकर शहीद किए गए इन नेताओं की शहादत से दुनिया भर के मजदूरों में व्यापक रोष भडक़ा। इस पृष्ठभूमि में 1889 में, पेरिस में हुई,अंतरर्राष्ट्रीय वर्किंग मैन्का एसोसिएशन की कांग्रेस में निर्णय लिया गया कि अगले साल अर्थात् 1890 से हर वर्ष पहली मई के दिन को मजदूर वर्ग के अंतरराष्ट्रीय एकजुटता दिवस के रूप में मनाया जाया करेगा। इस तरह आ$गाका हुआ था, मजदूरों के इस रक्तरंजित क्रांतिकारी अंतरर्राष्ट्रीय दिवस का। 
इसके बाद, दुनिया भर के मजदूरों के लिए पहली मई का दिन, अपनी आर्थिक व राजनीतिक मांगों  को उठाने व क्रांतिकारी युद्धनीतिक निशाने को उभारने का मंच बन गया। इस दिन मजदूर वर्ग, जगह-जगह, ‘‘दुनिया भर के मेहनतकशो एक हो जाओ’’  का नारा बुलंद करके अपनी अंतरर्राष्ट्रीय एकजुटता को प्रकट करता है। साथ ही वह बीते वर्ष में किए गए संघर्षों का लेखा-जोखा करता है तथा नए कार्यों व नए राजनीतिक  क्षितिज निर्धारित करता है। पिछले 25 सालों से भी अधिक समय के दौरान, मई दिवस ने मजदूर आंदोलन को विकसित करने व बड़ी बड़ी उपलब्धियां करने के योग्य बनाने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
(एल्गजैंडर ट्रेक्रनबर्ग द्वारा लिखित ‘मई दिवस’ का इतिहास पुस्तक से प्राप्त जानकारी पर आधारित)

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