Wednesday 11 May 2016

सभ्याचार पर पूंजीवादी विकास के दुशप्रभाव

नीलम घुमाण

लम्बी गुलामी के बाद भारत 1947 में ब्रिट्रिश साम्राज्यवाद से आजाद हुआ। ब्रिटेन तथा उस जैसे दूसरे देश गरीब देशों पर अपना राज्य स्थापित कर उनको खूब लूटते तथा सारा धन अपने देश को भेजते थे। प्रकृतिक संसाधनों से धनवान भारत को भी अंग्रोजों ने खूब लूटा तथा बड़े से बड़ा जुल्म भारत वासियों पर किया। भारत को आजाद कराने के लिए देशभक्तों ने अनेक यातनाएं सही। कईयों ने फांसी का रस्सा भी चूमा। अंग्रेजी गुलामी का विरोध कर रहे भारतियों को रोकने के लिए अंग्रेजों ने समय समय पर लोक विरोधी कानून लागू किये ताकि भारत पर लम्बे समय तक अपना अधिकार स्थापित रख सकें।

इस लम्बे संघर्ष के बाद आखिर वह दिन आया जब देश आजाद हुआ। तथा कुछ समय बाद देश का अपना संविधान भी बना। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के स्वप्न का भारत जिसमें मजदूरों तथा किसानों का राज्य होता परंतु बद-किसमती से आजादी के पश्चात देश उन लोगों के हाता में चला गया जिनका अंग्रेजों से सांस्कृतिक सहिचार था। अंग्रेजों की गुलामी दिखती थी तथा उस गुलामी के खिलाफ लोगों की लड़ाई भी दिखती थी। जो लड़ी भी गई तथा अंग्रेजों को देश छोड़ भाग जाने के लिए मजबूर भी होना पड़ा। किन्तू आज इन साम्राज्यवादी देशों द्वारा जो बौधिक गुलामी पूरी दूनिया में कायम की जा रही है उस गुलामी से लडऩा तथा आजादी प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। इस न दिखने वाली गुलामी वे जिस प्रकार से हमारे विचारों को कृठिंत करने का प्रयास किया जा रहा है, इससे बाहर निकल पाना अत्यंत कठिन है। सामाजिक जीवन में परिवर्तन, जिसमें हमारा रहन सहन, आपसी मेल मिलाप, खान पान, सामाजिक मूल्य आदि सब तहस-नहस हो गया है। जिस प्रकार से पिछले 60 सालों से हमारे जीवन का हर एक पहलू बदल गया है यह सोचने का विषय है। 90 के दशक के बाद जिस तेजी के साथ भारतीय समाज बदला है, जिस प्रकार से विज्ञान ने चमत्कार दिखाए हैं। इससे जहां हमारी जीवन शैली प्रभावित हुई वहीं हमारे विचारों में भी परिवर्तन आया है। पहले हमारी किताबों के विषय सामाजिक होते थे जैसे सामाजिक समस्याएं, प्राकृतिक उत्पादन समाज के प्रति कर्तव्य तथा अधिकार आदि के बारे में पढ़ा करते थे। लेकिन अब वह विषय हमारी किताबों से गायब हो गये हैं। देश की आजादी की जगह आज कम्पयूटर का जन्मदाता, फेसबुक का जन्मदाता चार मार्गी सड़कें, बड़ी बड़ी आसमान चूमती ईमारतें आदि ने ले ली है। देश में गरीबी क्यों है? बेरोजगारी का कारण क्या है? दिन रात महंगाई क्यों बढ़ रही है? आदि विषयों की जगह उन विषयों ने ले ली है जिनका आम लोगों के जीवन से कोई भी सरोकार नहीं है।

कहा जाता है कि फिल्में भारतीय समाज का आईना पेश करती हैं। लोग फिल्मों से प्रभावित होते हैं। लेकिन आज हो क्या रहा है। फिल्मों का विषय भी परिवर्तित हो गया है। पहले मदर इण्डिया, नया दौर, क्रांति जैसी फिल्मे बना करतीं थीं मुगल-ए-आजम अपने समय की बहुत बढिय़ा फिल्म बनी इन फिल्मों का विषय भारतीय समाज का आईना पेश करता था। आज फिल्मों पर भी न दिखने वाला हमला हुआ है। भारतीय फिल्म का विषय वस्तु बदल गया है। आज की फिल्मे हमे बड़े बड़े सपने दिखाती हंै कि किस तरह एक ही रात में आप करोड़पति बन सकते हैं। किस तरह समाज में वारदात करके आप डॉन बन सकते हैं। भारत की सबसे मुख्य समस्या गरीबी जो कभी भारतीय फिल्मों का विषय होती थी वह भी फिल्मों से हटा दी गई है और भारत में अगर कोई मुसलमान हो तो वह आतंकवादी ही है फिल्मों में यह भी बताया जा रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारा जीवन इन सांस्कृतिक हमलों का शिकार होता जा रहा है।

आज घर में ही घर के कई हिस्से हो गए हैं। जहां परिवार के मैंबर अपने आप में व्यस्त है। जिसमे्ं पारिवारिक रिश्तों में रूखापन आ गया है। साम्राज्यवाद के इस हमले से मुकाबला करना तथा इन हमलों के खिलाफ एक विशाल लामबंदी आज की मांग है। इक तरफ जहां हम साम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करें तो दूसरी तरफ समाज में आ रहे इस तीव्र परिवर्तन के विरुद्ध भी लोगों को जागरूक करें।

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