हम समस्त भारतीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षा को आगे ले जाने के लिए आल इंडिया पीपुल्स फोरम (एआइपीएफ) में एकजुट हो रहे हैं। देश का आवाम ऐसा स्वतंत्र, समतामूलक और न्यायपूर्ण समाज चाहता है, जहां नागरिकों के लिए बुनियादी अधिकारों, मर्यादा और समान अवसरों की गारंटी हो सके। ताकि वे संकीर्णतावादी हिंसा, दमन और भेदभाव के भय से मुक्त होकर अपनी चाहतों को पूरा कर सकें। संविधान में किए गए वायदों के बावजूद भारतीय राज्य जनता को न्याय दिलाने में लगातार नाकाम होता रहा है, जैसा कि आजादी के छह दशकों के बाद भी गरीबी और गैर-बराबरी के भयावह स्तरों में देखा जा सकता है, जबकि जनता की भारी बहुसंख्या प्रणालीगत शोषण और उत्पीडऩ, बहिष्करण व उपेक्षा की शिकार बनी हुई है।
सबसे खतरनाक बात तो यह है कि आज भारतीय राजसत्ता के शिखर पर जो लोग विराजमान हैं वे हमलावर ढंग से और हठपूर्वक असमानता व अन्याय को बढ़ावा देने वाली नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं, और इस प्रकार संविधान में किए गए हितकारी वादों का मजाक उड़ा रहे हैं। इसलिए, भारतीय गणतंत्र के बुनियादी उसूलों-अर्थात लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, स्वतंत्रता और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय- के प्रति वचनबद्ध तमाम लोगों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे जनविरोधी ताकतों के चंगुल से इस गणतंत्र को मुक्त कराने के लिए एकताबद्ध हों और शक्तिशाली जन आंदोलन का निर्माण करें। संसाधनों से परिपूर्ण विशाल आबादी वाले भारत देश में दुनिया की सबसे बड़ी गरीब और वंचित आबादी निवास करे-इस कलंक को हमेशा के लिए मिटा देना होगा और भारत को ऐसे देश के बतौर प्रतिष्ठित करना होगा जो अपनी जनता की खुशहाली के बल पर विकास करे।
एआइपीएफ देश की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध है। खुद की प्राथमिकताओं व लोकतांत्रिक उसूलों के अनुसार अपनी आर्थिक व वैदेशिक नीतियां बनाने की भारतीय जनता की आजादी को विनष्ट करने के लिए साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा भारतीय शासकों के साथ मिलकर किए जाने वाले किसी भी प्रयास का प्रतिरोध करने के लिए भी ्रढ्ढक्कस्न संकल्पबद्ध है। सदियों तक उपनिवेशवाद के विनाशकारी नतीजों को झेलने के बाद, भारत को आज वैश्विक स्तर पर साम्राज्यवादी युद्ध व प्रभुत्व तथा नव औपनिवेशिक आधिपत्य व लूट की हर घटना की मुखालफत करनी चाहिए और शांति, स्वतंत्रता व प्रगति की लोकप्रिय आकांक्षा का सदैव समर्थन करना चाहिए। अपने दक्षिण एशियाई पड़ोस में, भारत को पड़ोसी देशों के साथ युद्ध और टकराव के अनिष्टकारी रास्ते को छोडक़र द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।
एआईपीएफ ऐसे समाज के लिए संघर्ष करेगा जो जाति, लिंग, धर्म, यौनिकता, अंचल, एथनिक या राष्ट्रीयता के आधार पर होनेवाले भेदभाव और उत्पीडऩ से मुक्त होगा। एआइपीएफ दलितों और अन्य उत्पीडि़त जातियों के लिए न्याय, मर्यादा व पूर्णतम आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने तथा स्वायत्त्ता, पहचान और जंगली उत्पादों व वन-भूमि समेत स्थानीय संसाधनों तक पहुंच की गारंटी करने वाले मूलवासियों के तमाम अधिकारों की दृढ़तापूर्वक रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। एआईपीएफ महिलाओं की आजादी व मर्यादा पर हर हमले का, और होने वाली तमाम किस्म की लिंग आधारित हिंसा और भेदभाव का प्रतिरोध करेगा।
एआइपीएफ सांप्रदायिक विभाजनों को सख्त बनाने तथा समाज में सांप्रदायिक अविश्वास फैलाने का कड़ा विरोध करता है और सांप्रदायिक नफरत फैलाने की मुहिमों तता बहुसंख्यावादी एकीकरण (द्धशद्वशद्दद्गठ्ठद्ब5ड्डह्लद्बशठ्ठ) व वर्चस्व लादने के प्रयासों की रक्षा व विस्तार करने में लगे जनता के विभिन्न तबकों की परस्पर एकजुटता के आधार पर ही जनता की शक्तिशाली एकता हासिल की जा सकती है। भारत ने सर्वाधिक अमानवीय व बर्बर किस्म की सांप्रदायिक, जातीय और एथनिक हिंसा की भयावह घटनाएं झेली हैं, जब राज्य प्राय: मूकदर्शक और कई बार तो प्रायोजक या सह-भागीदार बना रहा है। हाल के दशकों में भारत ने आतंकवाद-जो प्राय: राज्य प्रायोजित आतंकवाद के चलते और भी बदतर व मजबूत बन जाता है-का सदमा और उग्रवाद-निरोधी अभियानों का आतंक भी झेला है। लोकतंत्र की असली परीक्षा तो जनवाद व न्याय के उसूलों से कभी भी समझौता किए बगैर संकीर्णतावादी फसादों और आतंकवाद के गतिपथ से देश को बाहर निकालने तथा बहुलता व विविधता-जो कि भारत की पहचान हैं-को सदैव बुलंद रखने में निहित है।
भारतीय एकता का एआईपीएफ भविष्य नक्शा (ङ्कद्बह्यद्बशठ्ठ) सत्ता के लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की जीवंत भावना और उसी के अनुकूल संरचना, संसाधनों के हस्तांतरण और विकास के व्यापक फैलाव पर आधारित है; वह मानता है कि सैन्यीकरण, असहमति की हत्या और देश को समृद्धि के दुर्गों और वंचना व लूट के आंतरिक उपनिवेशों के बीच बांटने के जरिए यह एकता कदापि हासिल नहीं की जा सकती है। कश्मीर और उत्तर-पूर्व के लोगों की आकांक्षाओं के क्रूर सैनिक दमन की निरंतर जारी कहानी खासतौर पर शर्मनाक है। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 और असम के पर्वतीय जिलों को 'आटोनोमस स्टेटÓ की हैसियत देने वाली धारा 244-'एÓ से लेकर संविधान की पांचवी छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के विशेष अधिकारों का प्रणालीगत ढंग से उल्लंघन किया जाता रहा है। उन्हें उलटा-पुलटा जाता रहा रहा है और यहां तक कि उससे सीधे-सीधे इन्कार भी किया जाता रहा है।
नए राज्यों की मांग पर होने वाले आन्दोलनों को हमेशा ही अलगाववादी या विभाजनकारी हरकतों के रूप में बदनाम किया जाता है और अंतत: एक राजनीतिक यथार्थ के बतौर नए राज्यों को स्वीकार कर लेने के पहले तक उन आन्दोनलों पर भारी दमन ढाया जाता है। इन तमाम बातों से माहौल खराब होता है और विश्वास की भावना तथा एकता की डोर कमजोर पड़ जाती है। आइपीएफ विविधता के जरिये मजबूत एकता को बढ़ावा देने और संघबद्ध हो रही हर पहचान के अधिकारों, आकांक्षाओं और उसके विशिष्ट चरित्र की रक्षा करने का हिमायती है।
एआइपीएफ वृद्धि की सनक से ग्रस्त विकास की उस कारपोरेट-प्रेरित धारणा को खारिज करता है जो हर चीज को 'वृद्धि-दरÓ के तराजू पर तोलती है, वास्तविक उत्पादकों को हाशिये पर धकेल देती है तथा जनता की खुशहाली और उसके अधिकारों के स्थान पर मात्र कुछ लोगों के मुनाफे को प्राथमिकता देती है। एआइपीएफ विकास के टिकाऊ व समतामूलक जन-पक्षधर माडल के लिए संघर्ष करता है। जिसमें वृद्धि अभिन्न रूप से पुनर्वितरणशील (ह्म्द्गस्रद्बह्यह्लह्म्द्बड्ढह्वह्लद्ब1द्ग) न्याय से जुड़ी होगी। जिसमें सब के लिए सुरक्षित व सम्मानजनक रोजगार एवं शालीन आजीविका की गारंटी होगी, जिसमें पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए संसाधनों का समुचित इस्तेमाल किया जाएगा, टिकाऊ व सुरक्षित तरीकों से जनता की ऊर्जा की मांग को पूरा किया जाएगा, तथा जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण होगा और जनता को अपनी जिंदगी व विकास की जरूरतें तय करने का हक रहेगा। 'जन-सांख्यिकीय लाभÓ और मुकम्मल मानवीय विकास तथा बुनियादी मानवीय जरूरतों, मर्यादा व अधिकारों से तनिक भी कम नहीं होंगे, 21वीं सदी का भारत सब के लिए स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा और सनमानजनक आजीविका की गारंटी करेगा।
एआइपीएफ स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षा के किए गए बाजारीकरण और पाठ्यक्रमों, नियमों व नियुक्तियों की प्रक्रिया में बदलाव लाकर शिक्षा में सत्ताधारी दल की रूढि़वादी व विभाजनकारी विचारधारा को थोपने की कोशिश को दृढ़ता से खारिज करता है। एआईपीएफ सभी के लिए समान, सस्ती, गुणवत्ता वाली शिक्षा, शिक्षा में तार्किक, बहुलतावादी, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, एवं शैक्षणिक व शोध संस्थानों व सांस्कृतिक संस्थाओं में लोकतंत्र व स्वायत्तता के लिए प्रतिबद्ध है। एआईपीएफ समाज में विचारों की आजादी और आलोचनात्मक सोच के हक में सक्रिय रूप से काम करेगा।
एआइपीएफ का दृढ़ विश्वास है कि वास्तव में विकसित और आगे कदम बढ़ाते भारत के सपने को साकार करने के लिए भारतीय जनता की उत्पादक ऊर्जा और रचनात्मक क्षमता को उन्मुक्त करना होगा और उसे सही दिशा देनी होगी। यह काम जीवन के हर क्षेत्र में जनवाद के गहनतम और व्यापकतम विस्तार के जरिये ही संपन्न किया जा सकता है, इसीलिए, एआइपीएफ उस गतिहीन (द्घशह्म्द्वड्डद्यद्बह्यह्लद्बष्) धारणा को खारिज करता है जो लोकतंत्र को महज पंचवर्षीय मतदान तक सीमित बना देती है, और तमाम शक्तियों को मु_ी भर लोगों के हाथों में संक्रेंद्रित और केंद्रीकृत करते हुए कारपोरेट हितों और राजसत्ता के गठजोड़ की तरफदारी करती है और उसे ही मजबूत बनाती है। इस मकसद के साथ, एआइपीएफ राज्य दमन का प्रतिरोध करने, यूएपीए एंव ए एफएसपीए व राजद्रोह कानून समेत तमाम दमनकारी कानूनों को रद्द करने, सर्व-साधारण के सशक्तीकरण के लिए कानूनी, न्यायिक व प्रशासनिक सुधारों को अंजाम देने, तथा पुलिस, अर्ध-सैनिक बलों व सैन्य शक्ति को जनता की पहुंच में लाने व उसी के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए अनथक अभियान चलाएगा, एआइपीएफ व्यापक चुनाव सुधार के लिए भी काम करेगा, ताकि कारपोरेट फडिंग और प्रशासकीय हेराफेरी को चुनौती दी जा सके एवं व्यवस्था को अधिक समानुपातिक व भागीदारीमूलक बनाया जा सके।
सही मायने में आजाद, विकसित और लोकतांत्रिक भारत के सपने को साकार करने के लिए हमें टिकाऊ व शक्तिशाली जन-जागरण व जन-दावेदारी की जरूरत है। आल इंडिया पीपुल्स फोरम का गठन व्यापक तौर पर और गहराई से महसूस की जा रही इस जरूरत, तथा लोकतांत्रिक एक्टिविज्म और आन्दोलनों की विभिन्न धाराओं के बीच व्यापकतर एकता और घनिष्ठतर सहयोग विकसित करने के साझे संकल्प का ही इजहार करता है।
हम एकताबद्ध होंगे, हम लड़ेगें, हम जीतेंगे।
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