Wednesday 3 August 2016

पुण्य तिथि 11 जुलाई पर जन-आंदोलनों के नायक पंडित किशोरी लाल को समर्पित: एक ‘वृद्ध युवा’ को जैसा हमने देखा-जाना

सुदर्शन कन्दरोड़ी 
 
दशम पिता गुरू गोविन्द सिंह जी द्वारा अन्याय के खात्मे तथा न्याय स्थापित करने खातिर हुये युद्ध में शहीद करवाये चार लाडलों में से एक साहिबजादा अजीत सिंह जी के नाम पर चडीगढ के नजदीक नये-नये बसे साहिबजादा अजीत सिह नगर (मोहाली) की घटना आज भी स्मृतियों में है।  एमरजैंसी के काले दौर में भारतीय हुक्मरानो के वरदहस्त से मोहाली औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक बिदेशी कम्पनी (ब्रिटिश कंसर्न-मोलिन्ज आफ इन्डिया) द्वारा  17 मजदूरो को यूनियन बना कर अपने जीवन यापन हेतु बेहतर सुबिधा मांगने के आरोप में पुलिस-प्रशासन के सहयोग के चलते बर्खास्त कर दिया, इन 17 बर्खास्त मजदूरों मे खालिस्तानी आंतकवादियों हाथो शहीद हुये का. साधु सिंह मोहाली तथा आज के सी.टी.यू. पंजाब के प्रांतीय अध्यक्ष इन्द्रजीत ग्रेवाल भी शामिल थे। विदेशी पूंजीपति के अत्याचारों (फौजदारी मुकद्दमों तथा लेबर विभाग की मालिक पक्षीय रवैया) का सामना करते हुये मजदूर माननीय सुप्रीम कोर्ट से पांच छह साल बाद करीब चार लाख रूपये मुआवजा प्राप्त करने में सफल हुये।                                                               
1980 की घटना है , मुआवजा मिलने की खुशी में ‘आल ट्रेड यूनियन कोआरडीनेशन कमेटी मोहाली’ द्वारा आयोजित समारोह को सम्बोधित करने का. भाग सिंह जी सज्जन, कामरेड गुरबक्श सिहं डकोटा के साथ पन्डित किशोरी लाल जी, जो उस समय सीटू के प्रांतीय अध्यक्ष थे, आये। बेशक कमेटी की अगवाई सीटू करती थी,तदापि ऐटक बी.एम.एस की यूनियनें भी पूरी आजादी से इस में काम करती थी, एक अति उत्साही वक्ता ने जब एक महिला सांसद के बारे में अवांछित टिप्पणी की तो पन्डित जी ने, जो समारोह के मुख्य वक्ता थे, तत्काल उसे टोका। बाद में अपने सम्बोधन में इस प्रकार की बातों को निषेध बताया। महिला   (मां-बहन-बेटी) का सम्मान बेहद आवश्यक कहा। क्योंकि यह समारोह अग्रेजों की कम्पनी के अन्याय के खिलाफ मिली विजय का प्रतीक था इस लिये स्वाभाविक बार-बार अंग्रेजों का वर्णन आया। तब पंडित जी ने अपने तजुरबे सांझे करते हुये बताया कि वे बचपन में लडको के साथ बैठते हुये अपने देश से गोरों को भगाने की बातें करते, तो गांव के ही एक वुजर्ग जिसे ‘ताया जी’ बुलाते थे, हमें हडकाते हुये कहते थे,  ‘देखो! देखो! इनकी बुत्थी (मुंह) देखो, इन्हां गोरेयां नू भगाना, ओये गोरे के राज में सूरज नही छुपता’ ताये की बात सुना कर, पंडित जी ने पंजाबी में ललकार कर कहा, मुडओ, जब देश के मजदूर-किसान इक्टठे होकर लडे तो उन्होंने शोषक अंग्रेज,जिसके राज में सूरज नहीं छुपता था, को भगा दिया। अब जिम्मेवारी आपकी है उठो! संगठित होओ तथा काले गोरे सब शोषकों को भगा दो। यह पंडित जी को देखने का हमारा पहला मौका था। बाद में पूछने पर उन के द्वारा आजादी आंदोलन में की गई कुर्बानियो के बारे मे जाना।
पंडित जी सीटू दफ्तर, 2001 सैक्टर 20-सी चडीगढ में का. भाग सिंह जी सज्जन जिन्हें हम सब लडके ‘बाबा जी’ बुलाते थे, के पास आये हुये थे। लेखक ने जब उन्हें देखा तो मर्यादा अनुसार उनके पांव स्पर्श करना चाहा तो उन्होंने बीच में ही हाथ पकड लिये तथा बोले कामरेड! मेरे गोडे (घुटने) ठीक हैं। इन्हे अभी जिक्कने (दबाने) की जरूरत नहीं। तथा  हाथ पकडकर पास बिठा लिया व समझाने लगे कि कामरेडो को व्यक्ति पूजा से कोसों दूर रहना चाहिये। बातो ही बातो में पूरी जान पहचान ली तथा ऐसे बाते करने लगे जैसे मुद्दतों से परिचय हो। यह उनका सब को अपना बनाने का तरीका था जिसे सब जन नेताओं के लिए सीखना जरूरी है। और भी युवा साथी आ गये। यहां तक याद है, डी.वाई.एफ.आई. तथा एस.एफ.आई के नेता थे। उनका सबसे ऐसा व्यबहार था जैसे दोस्त हों। उन को पास बैठ कर देखने का पहला अवसर प्राप्त हुआ, लम्बी बातें होती रही। तभी गम्भीर होकर पन्डित जी ने पूछा, ‘मुंडओ! तुसी कभी वनमानुष देखा है। यदि नहीं देखा तो अपने बाबा जी (सज्जन) को देख लो। यह वनमानुष ही है।’ हम असंमजस में थे कि पन्डित जी क्या कह रहे हैं। देखा तो सज्जन जी हंस रहे थे। तभी पन्डित जी ने भी हंसते हुये खुलासा किया, ‘एक बार सज्जन तथा मैं किसी सम्मेलन में भाग लेने कोलकता गये हुये थे, खाली समय मिलने पर चिडियाघर घूमने गये, वहां पर एक बंगाली परिवार अपने छोटे बालक के साथ आया हुआ था, उस बालक ने बडे ध्यानपूर्वक खुली दाडी बाले कामरेड सज्जन को देखा तथा अपनी मां से सज्जन की ओर इशारा कर बंगाली में बोला, ‘अम्मी! अम्मी! ऐक्टे वनमानुष’ (मां यहां वनमानुष है)। थोडी देर बाद उस बालक ने सज्जन को बातें करते देखा तो फिर उसी बाल सुल्भता से अपनी मां को बोला , ‘अम्मी ऐ वनमानुष वोलवे वी’ (यह वनमानुष बोलता भी है)। सारी बात सुन कर सब खूब हंसे लेकिन सबसे अधिक सज्जन जी हंस रहे थे। यही शायद पन्डित जी का मजाकिया अंदाज था।       
कैसे छोटों-बडे कार्यकर्ताओं को बडबोलेपन व अति उत्साह से बच कर उन्हे वर्ग संघर्ष को समझना चाहिये। एक अन्य घटना इस पर रौशनी डालती है। लुधियाना जिले में ईंट-भट्टा मजदूरों के आन्दोलन पर पुलिस का लाठी चार्ज हुआ। नेतृत्व करते हुये कामरेड मंगत राम पासला भी शिकार बने, जो तब सीटू के युवा तथा लोकप्रिय प्रांतीय महासचिव थे। समाचार-पत्र लोक लहर ने विस्तार से इस आन्दोलन तथा पुलिस लाठीचार्ज के समाचार प्रकाशित किये। पढ कर मोहाली चण्डीगढ के युवा कुछ ज्यादा ही आक्रोशित हुये तथा बिना स्थिति तथा सांगठनिक क्षमता का आकलन किये चाहते थे कि एक बडा प्रातीय स्तर का विरोध प्रदर्शन पुलिस अत्याचार के खिलाफ किया जाना चाहिये था तथा प्रांत की बुजर्ग नेतृत्व को मन ही मन कोस रहे थे। लगता था यही मानसिक हालत बाकी जगह भी थी। तभी पंडित जी चण्डीगढ़ आये, कुछ युवा कार्यकत्र्ता लुधियाना की घटना के बारे में उनसे बात करने लगे तथा एक तरह से लाठीचार्ज के खिलाफ कुछ न करने का उलाहना सा देने लगे। जबाब में पंडित जी ने सारा कुछ विस्तार से बताया तथा जिला संगठन ने विरोध किया है बताया। लेकिन हम लडके कहां मानने वाले थे। अपने तर्क देते रहे। वृद्ध युवा ध्यानपुर्वक पूरी गम्भीरता से सुनते रहे जब हमारी भडास निकल गई तो शांत भाव से बोले ‘मुडओ! इह केडा पहला ते आखिरी लाठीचार्ज है ऐअदां होंदे ही रहना फेर कर लियो मन आईयां।’ तब समझाया कि अगर आप सही में बुनियादी परिवर्तन के लिये मजदूरों को संगठित करना चाहते हो तो निजी मान-अपमान के बारे मत सोचो आप का पहला व अंतिम लक्ष्य मजदूर वर्ग का हित होना चाहिये। उनके इन्ही विचारो ने उन्हें पंडित किशोरी लाल बनाया होगा। 
पंडित किशोरी लाल जी कैसे दूसरे के दुख-दर्द को अपने कष्ट से  अधिक बडा मानते इस बारे ‘बाबा जी’ का. भाग सिंह सज्जन द्वारा बताई घटना का उल्लेख करना जरूरी लगता है। पन्डित जी तथा का. भाग सिह सज्जन जी के साथ जयपुर से चण्डीगढ (वाया दिल्ली) आते हुये बस दुर्घटना में पन्डित जी बहुत ज्यादा घायल हो गये। आगे वाली सीट की वैक से टकरा कर उनका जबड़ा टूट गया और बडी चोटे भी आई। जी.टी रोड से जल्दी ही प्रशासन ने अन्य जख्मियों के साथ अस्पताल पहुचाया। डाक्टरों ने देखा, एक टीका लगाकर जबडा सीधा करके बांधा तथा एक ओर लिटा दिया। अन्य घायलों के उपचार में लग गये जो शायद अधिक गम्भीर थे। क्योंकि गम्भीर घायलों की तदाद ज्यादा थी, और डाक्टर उन के ईलाज में व्यस्त थे। बाबा जी के अनुसार, बार-बार कहने पर भी डाक्टर पंडित जी ओर समुचित ध्यान नहीं दे रहे थे। पंडित जी जबडा हिल जाने के कारण बोल नहीं पा रहे थे उनका पूरा चेहरा खून से लथपथ था,यह देख कर बाबा जी ने चिल्ला कर डाक्टरों को डांटते हुये कहा  ‘तुम लोग इनपर ध्यान नहीं दे रहे हो, तुम्हे मालूम हैं यह कौन सी शख्शियत है? इनकी बदौलत ही तुम लोग आज आजाद होने का मान कर पा रहे हो। ‘यह भगत सिंह के साथी हैं। यह सुनते ही दो तीन डाक्टर आये तथा पंडित जी को देखने लगे। तभी एक वरिष्ठ डाक्टर ने कहा, ‘बजुर्गो! हम आप की अवहेलना नहीं कर रहे, दूसरे घायलों की हालत ज्यादा खराब है, अगर उनका अतिशीघ्र इलाज शुरू न हुआ तो अनहोनी भी हो सकती है।’ यह सुन रहे पंडित जी ने बाबा जी के हाथ को टटोल कर दबाया तथा खुद घायल होने के बावजूद उन्हें शांत रहने का संकेत दिया। यह थी पंडित जी की जिजीविषा। तंदुपरांत पंडित जी का इलाज शुरू हुआ। यह बात हमें सज्जन जी ने सुनाई जो लम्बे समय तक पंडित जी के सहयात्री- सहयोगी रहे थे।
सज्जन जी की चाय तथा बाजरे की खिचडी काफी मशहूर थी। जब भी पंडित जी चण्डीगढ में सज्जन जी के पास आते, डकोटा जी भी वहीं होते। खाने की बात चलने पर कहते, सज्जना ! बना लै अज्ज फेर अपनी नियामत (बाजरे की खिचडी)।                                
यह कुछ यादें पाठको से सांझा करने की दिली ख्वाहिश थी।

No comments:

Post a Comment